"वास्तविक खुशी"
आर0 के0 लाल
आज मैं जब शाम को घर आया तो मेरे बच्चों ने दरवाजे पर मुझे रिसीव किया । मेरा बैग ले लिया तथा मेरे साथ सोफा पर बैठ गए । उन्होंने आवाज लगाई - “मम्मी ! पापा आ गए हैं , उनके लिए नींबू पानी ले आओ ।” बच्चों ने पूछा “ पापा आप कहां से आ रहे हैं ? आज का दिन आपका कैसा बीता? क्या क्या आपने किया , क्या खाना खाया? क्या नाश्ता किया? किसी से कहासुनी तो नहीं हुई? रास्ते में कहीं जाम में तो नहीं फंसे ।” सच मानिए मैं तो उनको देखता ही रह गया। आज इन्हें क्या हो गया है ? मेरे तो आंसू ही छलक पड़े। वैसे तो मुझे अच्छा लग रहा था परंतु मेरा टेंशन काफी बढ़ गया।
इससे पहले जब मैं आता था तो मैं ही बच्चों को बुलाता था। पूछता था कि बेटा यह बताओ तुमने आज क्या किया ? वो छोटे थे तो दौड़ के आते थे और अपनी कापी किताब, खिलौने आदि दिखाते थे तथा सारी बातें प्यार से करते थे , परंतु जैसे - जैसे बड़े होते गए वे कम ही बात करने लगे। इंटर स्कूल के अंत में तो जवाब में मुझे सुनना पड़ता था कि पापा अब हम बड़े हो गए हैं। क्या हमारे पीछे पड़े रहते हो। आते आते ही शुरू हो जाते हो। हमे अपनी जिंदगी जीने दीजिए। अक्सर कहते थे कि अभी हम दोस्तों के साथ बैठे हैं बाद में बात करेंगे। धीरे धीरे मैंने तो उनसे पूछना ही बंद कर दिया था क्योंकि हर दफा किसी न किसी तरह की डांट मुझे खानी पड़ती थी। हमारे बीच व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का सिलसिला बंद सा ही हो गया था। अगर उनसे एक गिलास पानी भी मांग लिया तो उत्तर मिलता था “ पापा आप बहुत काहिल हो गए हैं ,आलसी हो गए हैं इतना भी नहीं होता कि अपना काम खुद कर ले।” मेरे लगभग सभी तरीके जैसे बात करने के तरीके , खाना खाने के तरीके , सोने के तरीके और यहां तक की उनके दोस्तों के आने पर उठने बैठने के तरीके पर यही बच्चे कितने खराब कमेंट करते थे । कहते थे कि पापा को देखो उनको कोई तमीज नहीं है, उनको कुछ आता नहीं है । इन सब की बातों को सुनते सुनते वास्तव में आज बेवकूफ ही बन गया हूं। जो कुछ वे कहते थे मुझे लगने लगता कि बिल्कुल एकदम सच है।
आज मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मेरे बच्चे अचानक ऐसा क्यों व्यवहार कर रहे हैं। यह पूछने की मेरी हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी। फिर भी डरते हुए पत्नी से कहा “ सुनती हो ! जरा चाय बनाओ ,थोड़ी पकौड़ी भी तल दो और सभी के साथ आकर के चाय पी लो ।”
आज बहुत दिनों के बाद हम सब एक साथ बैठे। बहुत हिम्मत करके मैंने बच्चों से पूछा कि आज इस तरह की बातें, प्यार भरी बातें ,अपने मन की बातें तुम सब मेरे साथ क्यों कर रहे हो? मैं इतना प्यार नहीं सह सकता। मुझे इस उम्र में हार्ट अटैक न आ जाए। मैं डिप्रेशन में हूं। क्या तुम लोग बताओगे कि मैंने ऐसा क्या कर दिया । मैं तो उन सभी पलों को भूलने का प्रयास करता हूं जो तुम लोग के साथ तुम्हारे बचपन में बिताया था। जब तुम किसी मुसीबत में होते थे, बीमार पड़ते थे अथवा कहीं तुम्हें चोट लग जाती थी तो मैं और तुम्हारी मम्मी कितना परेशान होते थे। हम कोशिश करते थे कि अधिक से अधिक सुविधाएं तुम्हें दे। तुम्हारी मम्मी तो मुझसे लड़ झगड़ कर अपने नाम से कपड़े और गहने खरीदती थी मगर वास्तव में वह सब कुछ बेटियों के लिए हुआ करता था। तुम लोग भी बहुत खुश रहते थे । हम सब साथ खाते थे, घूमते थे, पिकनिक मनाने जाते थे , पहाड़ों पर भी जाते थे। लगता था कि हम सभी एक ही जान है । हमें सदैव लगता था की हमारे बच्चों में गजब का संस्कार है। मगर समय बीतता गया और हम लोगों के बीच की दूरियां बढ़ती गई। आज हम एक दूसरे से संपर्क (कॉन्टैक्ट) में तो हैं परंतु हमारे बीच कनेक्शन शायद समाप्त सा हो गया है । जैसे इंटरनेट का वाईफाई तो है परंतु उसमें नेटवर्क नहीं आ रहा है। कनेक्टेड रहने का आशय है कि हम एक दूसरे के साथ उठे बैठे, एक दूसरे का हालचाल पूछें, सुख दुख में भागीदार बने। बदलते समाज में यह सोच शायद खत्म सा होता जा रहा है। हमने भी तो इनसे समझौता कर लिया है। मगर आज समझ में नहीं आ रहा है कि अपने घर में यह बदलाव क्यों ? कोई मुझे बताएगा?
बच्चे भी तैयार बैठे थे। उन्होंने कहा “ पापा हम लोगों को अपनी गलतियों का बोध होने लगा है।” यह जो दूरियां बढ़ गई है उनके लिए जिम्मेदार हम सब हैं । हमने सोचा था कि अब हम बड़े हो गए हैं , हमरी जिंदगी अलग अलग है और हमें अपने तरीके से जीने का हक है। हम चाहते थे कि हमारे दिनचर्या में किसी तरह का हस्तक्षेप मेरे माता-पिता ना करें। रोका टोकी को हम अपनी तौहीन समझते थे भले ही वह हमारे हित की बातें हो। हमें लगने लगा था की हमारी सोच और समझ आप लोगों से कहीं अधिक है। हम भूल गए थे कि बचपन में हमारे साथ आप लोग समय बिताते थे और हम कितना प्रसन्न रहते थे। जब कभी हमें कार्टून वाले सीरियल देखने होते थे तो हम आपके सीरियल को बंद करा देते थे फिर भी आप कुछ नहीं कहते थे और हमारे साथ बैठकर कार्टून फिल्म भी देखते थे। जब भी हम कुछ फरमाइश करते थे तो आपके पास पैसा हो या ना हो, कहीं ना कहीं से उधार लेकर या लोन लेकर हमारी इच्छाओं को पूरा करते थे। हमारी खुशियों के लिए ही मम्मी ने तो घर वालों से लड़ाई करके अपनी रसोई तक अलग कर ली थी। आज अब आप लोग हमारे कमरे में आते हैं तो हम वहां से भगा देते हैं।
हम लोगों का एहसास हुआ कि जब कभी हम कोई सफलता पाते हैं तो सभी हमसे जलते हैं चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या भाई बहन हो । मगर आज भी वास्तविक खुशी पापा- मम्मी को होती है।
आपने हमें स्मार्ट फ़ोन दिलाया परंतु अपने पास छोटा नोकिया का फोन ही रखा । बहाना मारते हैं कि क्या करूंगा मैं स्मार्टफोन लेकर। शायद इसलिए कि मेरी अगली फरमाइश के लिए आपको पैसे खर्च करने हैं । फिर हम यह सब बातें क्यों नहीं समझते । आप तो खुद सरकारी स्कूल में पढ़े थे परंतु हम लोगों को कन्वेंट स्कूल में महंगी फीस देकर पढ़ने की व्यवस्था की । साथ ही कई ट्यूशन लगाए थे। आप कहां से पैसा लाते थे , मेहनत करते थे जो भी करते थे हमने कभी नहीं पूछा । क्या यह हमारा फ़र्ज़ नहीं था । आज हम कमाने लगे हैं। हमारी नौकरी लग गई है तो पता चलता है कि पैसा कमाना कितना कठिन है। हमारे पास तो इतनी कमाई के बाद भी एक पैसा नहीं बचा है कि किसी के ऊपर खर्च कर सकें। हम लोगों ने कभी नहीं पूछा कि आप कैसे यह सब मैनेज करते रहे हैं। हम लोगों को जब किसी बात पर डांटते है तो हमारा मुंह बन जाता है। कहते हैं कि पापा को कोई काम धाम नहीं है। हमेशा कुछ ना कुछ सिखाते रहते हैं। आज भी आप हम सबको हमेशा बर्दाश्त करते रहते है। आज भी जब हम बीमार पड़ते हैं तो आप हमारी सेवा करते हैं । अगर आपको बुखार भी होता है तो हम दवा देने से बचते हैं और अपने काम पर चले जाते हैं। आज हम लोगों को थोड़ा बहुत समझ आने लगा है। हमें लगता है कि हमारे पारिवारिक सूत्र में कुछ ना कुछ गैप तो है ही। आगे चलकर हम लोगों को पछताना पड़ेगा । जो कुछ आपके लिए नहीं कर रहे हैं उसके लिए आपकी हमें याद आएगी । अवश्य ही एहसास होगा पर तब हम शायद कुछ ना कर पाएंगे । इसलिए वक्त रहते हम कुछ तो अपनी मम्मी पापा के लिए करना चाहते हैं। शायद हम उतना नहीं कर पाएंगे जितना आप लोगों ने किया है परंतु आपसे अच्छी तरह बात करके हो सकता है कि आपको अच्छा लगे , आपकी ढलती उम्र की थकान दूर हो जाए और हम लोग फिर एक बार अपने बचपन की तरह प्यार में बांध जाए। हमें एहसास हुआ है कि मम्मी पापा हमसे कुछ नहीं चाहते। आप लोग केवल प्यार के भूखे होते हैं। हम उतना तो आपके लिए करें कि कम से कम आपका टेंशन तो खत्म हो जाए। हमें पता हो गया है कि सब हमें छोड़ देंगे पर आप दोनों तन मन धन से हमारे साथ जुड़े रहेंगे।” भावुकता के माहौल में आगे की बातें मै सुन नहीं पाया;;;;;;।
मुझे तो बहुत अजीब लगा। क्या वास्तव में हम पति-पत्नी इसी दुनिया में हैं? क्या हमारे बच्चे सही में दूसरे बच्चों से अलग है जो ऐसा सोचते हैं? मुझे लगा कि मेरा जीवन सफल हो गया और यह बच्चे इस तरह के संस्कारी सोच के साथ जीवन के पथ पर शिखर तक सफलतापूर्वक पहुंच जाएंगे। मुझे गर्व का अनुभव होने लगा। लगा कि जो कल तक अपने को झुका हुआ महसूस कर रहा था फिर से मेरी रीढ़ की हड्डी सीधी हो गई है ,बच्चों का साथ पाकर, यही तो वास्तविक खुशी है ।