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भैया संगम केहर बा?

भैया संगम केहर बा?
आर0 के0 लाल
प्रयागराज में लगने वाले कुंभ के संगम की बात आज पूरे विश्व में चर्चा का विषय है। उस दिन दिल्ली से प्रयागराज आते समय हमारी बोगी में कुंभ जाने वालों की भरमार थी । सभी चर्चा कर रहे थे कि कैसे पहुंचा जाए और क्या क्या किया जाए । पता चलने पर कि मैं वहीं का रहने वाला हूं अगल- बगल वाले इकट्ठा हो गए, मुझसे कुंभ की बातें पूछने लगे । अपनी समझ के अनुसार मैं उन्हें समझाता रहा। मैं बहुत रोमांचित हो उठा था । मुझे लोग कितना महत्त्व दे रहे थे। उन्हें बताना चाहा- “को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ । कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।। अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा।।” अर्थात तीर्थराज का दर्शन कर सुख के समुद्र रघुकुल श्रेष्ठ श्री राम जी ने भी सुख पाया था, रामचरितमानस में इसका वर्णन किया गया है। प्रयागराज में त्रिवेणी संगम प्राचीन काल से ही श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है । इसकी कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है और कहा जाता है कि यहां पर अमृत छलका था जिसके कण आज भी गंगा यमुना सस्वती के संगम की रेती में मौजूद हैं। पूरी दुनिया के श्रद्धालु जाति, धर्म, संप्रदाय और रंगभेद के बाधाओं से दूर होकर कुंभ के अवसर पर यहां पहुंचकर उसका लाभ प्राप्त करते हैं और मोक्ष की कामना करते हैं। बड़ी संख्या में लोग एक महीने का कल्पवास करते हैं। मैंने सहयात्रियों को बताया कि तीर्थ यात्रियों का स्वागत करने के लिए शहर को काफी सजाया संवारा गया है। होटल, पंडाल, विश्राम स्थल, स्विस कॉटेज के अतिरिक्त विशाल टेंट सिटी में लोग रुक सकते हैं। कुंभ मेला देखने हेतु विशेष हेलीकॉप्टर सेवा भी है। शहरवासियों ने भी अपने घरों को तैयार कर लिया है ताकि वह मेहमानों का स्वागत कर सकें। शायद उन्हें लगता है कि यात्रियों की सेवा करके वह भी पुण्य के भागी होंगे।
प्रयागराज में अरैल घाट पर एक मित्र के स्विस कॉटेज में मुझे ठहरने का अवसर प्राप्त हुआ। वहां की भव्यता देखकर खुशी और आश्चर्य का ठिकाना न रहा। बढ़िया सोने का कमरा, सोफा सेट, गीजर, रसोई घर, डाइनिंग टेबल और बाथरूम किसी फाइव स्टार से कम नहीं लग रहे थे । जमीन पर दरी कालीन बिछी होने से पैर में बालू तक नहीं लग रही थी। बेड टी से लेकर कॉन्टिनेंटल डिनर तक की सुविधा थी। हमने मोटर बोट से संगम में डुबकी लगाई और हेलीकॉप्टर से मेले को निहारा। पर्यटन का अच्छा आनंद आया। लोग सदैव ही तीर्थ स्थलों पर पिकनिक मनाने अथवा एडवेंचर करने चले जाते हैं परंतु पता नहीं उन्हें तीर्थ का लाभ मिलता है या नहीं। मुझे भी प्रसन्नता तो मिली पर मन तृप्ति नहीं हुआ। पता ही नहीं चला कि असली संगम के आस्था का अहसास क्या हैं। बस इतना ही जान सका कि जहां हरा और सफेद पानी मिलता है वहीं संगम है। मैंने सोचा इलाहाबाद रेलवे और बस स्टेशन से संगम तक का भ्रमण सामान्य श्रद्धालु की तरह करके अनुभव लिया जाए।
स्टेशन का विहंगम नजारा देखते ही बन रहा था। चारों दिशाओं से गाडियों से झुंड के झुंड श्रद्धालुओं का आगमन और फिर नदी की भांति उनकी गति एक दूसरे से आपस में मिलती हुई एक विशाल संगम का दृश्य उत्पन्न कर रही थी। हर तरफ से लोग चले आ रहे थे। दूर तक मानव का एक विस्तृत समुद्र जिसमें पूरब का पश्चिम और उत्तर से दक्षिण के लोगो का समागम हो रहा था । उनके बीच उनकी विभिन्न परंपराओं, उनकी संस्कृति, भाषाओं का संगम का अनुभव सहज ही किया जा सकता था। उनकी वेशभूषा का संगम उनकी रीति-रिवाजों का संगम और ना जाने कितने तरह के संगम इस छोटे से शहर में बन रहे थे जो आज पूरे विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया है। रास्ते में हो रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी भारत के विभिन्न अंचलों की कला का सौंदर्यपूर्ण संगम देखने को मिलता है । भक्ति श्रद्धा एवं अध्यात्म का ही नहीं कुंभ मेले में तकनीकी एवं शिल्प कला का भी अनूठा संगम होता है। देश विदेश के शिल्पकार एवं कारीगर अपने जनपद में बनाए गए वस्तुओं को लेकर यहां प्रदर्शनी लगाते हैं और लोग उन्हें खरीदते हैं।
इस प्रकार अनेकों तरह के संगम मेले में दिखाई पड़े। आप किस संगम का आनंद उठाना चाहते हैं यह आप के भाव एवं श्रद्धा की बात है।श्रद्धा के बिना किसी भी तीर्थ के दर्शन का फल नहीं मिलता ऐसा लोग कहते हैं।
यहां दान देने की प्रथा है और सभी लोग कुछ ना कुछ दान करते हैं । गठरी में कोई चावल दाल का सीधा लाया है तो कोई तिल का लड्डू । जितना भी जिससे बन सका है वह ले आया है और अपनी शक्ति इच्छा के अनुसार दान दे रहे थे । कुछ अपवाद को छोड़ कर कम ज्यादा दान को लेकर कोई किसी का अपमान नहीं करता। जब जजमान बछिया की पूंछ पकड़ते हैं तो उन्हें लगता है कि वह सीधे स्वर्ग पहुंच गए हैं।
एक चाय की दुकान पर किसी के जेब कत जाने का जिक्र चल रहा था। कुंभ के मेले में हर तरह के लोग विचरण कर रहे हैं वह भी जिन्हें मोक्ष की कामना है और वह भी जो चोरी बेईमानी कर रहे हैं और लोगों का सामान झटक रहे हैं। दुकान पर ही किसी ने बताया कि कुछ लोगों का गलत बयानी करके मदद मांगते हैं। उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।
संगम की छटा तो बहुत ही निराली है। यह मन को शान्ति प्रदान करती है। उसकी धारा में हजारों दीपक और रंग बिरंगी लाइट की परछाइयां देखकर लगा कि जैसे मैं इस धरा पर आकाशगंगा में विचर रहा हूं। विकट ठंड में भी रात दिन स्नान, नावों पर ही जलते चूल्हे पर खाना पकाने का दृश्य देखकर इतना सुखद एहसास होता है कि मन की सारी चिंता गायब हो जाती है। पंडालों में प्रवचन और लाउडस्पीकर पर भजन, खोए व्यक्तियों के लिए प्रसारण, जगह जगह भंडारा भव्य एवं अदभुत है।
जहां एक ओर पुरुष सन्यासियों के अखाड़े हैं तो वही महिला सन्यासी पीछे नहीं है ।कुंभ में विदेशी श्रद्धालुओं की भी भरमार है। जापान, अमेरिका फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, न्यूजीलैंड ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, कनाडा आदि से । किन्नर अखाड़े का इस बार से नया स्वरूप स्थापित हुआ है। यह सभी हमें आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती हैं। हमें सहज नाना प्रकार के ज्ञान प्राप्त होते हैं। शायद इसीलिए यह तीर्थराज प्रयाग कहलाता है।
जहां करोड़ों लोग पतित पावनी गंगा के चरणो में डुबकी लगाते हैं वह स्थान तो दिव्य रूप से हमारे धार्मिक आस्था का साक्षी है । मेरा मानना है कि यह टापू विशिष्ट रूप से एक विशाल ऊर्जा ग्रह का द्योतक है।भागीरथी के जमाने से लेकर करोड़ों पूर्वजों की अस्थियां लेकर यहां बह कर आई हैं । असंख्य साधु सन्यासी, देवी देवताओं ने यहां डुबकी लगाई है जिससे उनके तेजपुंज का कुछ अंश ऊर्जा के रूप यहां एकत्रित होता रहता है। सभी महान आत्माओं के पवित्र चरण पड़ने से और उनकी नहाने के पश्चात शरीर से गिरने वाले जल के साथ उनके आशीर्वाद का जमाव भी यहां होता रहता है । उस स्थान पर डुबकी लगाते ही हम उन सभी आत्माओं के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं और स्वतःउनका आशीर्वाद एवं ऊर्जा हममें नवचेतना भर देता है। हमारी सारी नेगेटिविटी शून्य हो जाती है। एक ही डुबकी से हम उन सभी देवी देवताओं एवं महान आत्माओं को अपनी श्रद्धा भक्ति भी अर्पित कर देते हैं । यही तो मोक्ष पाने का तरीका है। यही भावना शायद गुप्त सरस्वती का रूप है। ऐसे नजारे देख कर क्या पाया इसका जवाब देने के लिए लोगों के पास शब्द नहीं होता।लोग कह रहे थे कि केवल यह एक अनुभूति होती है । इसलिए कहा जाता है गंगे तव दर्शनार्थ मुक्ति। जय हो।

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