BOYS school WASHROOM - 13 Akash Saxena "Ansh" द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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BOYS school WASHROOM - 13

अविनाश और उसकी फॅमिली तैयार होकर आज शाम बाहर एन्जॉय करने के लिए निकले तो थे लेकिन यश और विहान के उतरे चेहरों को देख देख कर प्रज्ञा को एक चिंता खाये जा रही थी….की आखिर हमेशा बातें बनाने वाले उसके बच्चे आज इतना चुप चुप क्यूँ है….वो अपने वेन्यू तक पहुँचने ही वाले थे की तभी प्रज्ञा ने अविनाश को गाडी रोकने के लिए कहा…

"क्या...क्या हुआ प्रज्ञा कोई प्रॉब्लम"
प्रज्ञा-नहीं प्रॉब्लम कुछ नहीं, बस तुम यहीं रुको साइड मे….
"अरे हुआ क्या ये तो बताओ".....
हाँ मम्मा कोई इमरजेंसी है क्या? (यश पीछे से आवाज़ लगाते हुए बोला)
प्रज्ञा-नहीं! नहीं कोई इमरजेंसी नहीं है और ना ही कोई प्रॉब्लम...तुम गाडी रोको ना अवि….
"अच्छा बाबा रुको….रोकता हूँ"और अविनाश ने साइड मे गाडी लगायी और प्रज्ञा तुरंत गाडी से नीचे उतरते हुए बोली….
"चलो उतरो सब नीचे!"

यश-वह...व्हाट्...क्यों?
विहान-ओह नो! ओह नो! ओह नो नो नो नो…लगता है अब….
(तीनों साथ मे)"चलकर जाना पड़ेगा...ओह प्रज्ञाआ"

यश-लेकिन माँ अभी हम बहुत दूर हैँ।
"अब किसी की कोई आवाज़ नहीं...जल्दी से सब नीचे आओ, देखो कितना प्यारा मौसम है। "....

प्रज्ञा ने माहौल को थोड़ा खुशनुमा तो बनाया लेकिन शायद इतना काफ़ी नहीं था…..लेकिन फिर भी सब नीचे उतरे और अब चल कर वेन्यू पर जाने लगे…

चारों तरफ लोगों की चहल-पहल….कम ट्रैफिक वाली सडक और उस पर गिरती रंग बिरंगी रोशनी….सड़क किनारे लगी चाट-पकोड़ी की ठेले….मानो हवा मे एक पॉजिटिव एनर्जी बिखरी हुयी हो….और सर्दियों की शुरुआत करती वो हल्की ठंडी हवा मानो दिमाग को शान्ति का एहसास करा रही हो...प्रज्ञा बस आँखें बंद कर के सब महसूस कर रही थी और शायद भूल गयी की वो कहाँ है…..इधर अविनाश और यश प्रज्ञा को घूरने मे लगे थे और उधर विहान अपने काम की चीज़ आइसक्रीम की दुकान को निहारने मे….प्रज्ञा ने आँखें खोली तो दोनों सामने ही खड़े थे जिन्हे देखकर प्रज्ञा शर्मा गयी और अविनाश और यश हँसने लगे…..

"तुम बाप-बेटे भी ना….चलो अब…"
हाँ!हाँ!...पहले तुम मौसम का आनंद तो ले लो...अविनाश ने उसे छेड़ते हुए कहा….यश सुन कर थोड़ा शर्मा गया….
"क्या अवि तुम भी ना बच्चों के सामने ही…."

ये सुनकर यश विहान को देखने के लिए मुड़ा तो वो वहां नहीं था …."अरे! ये विहु कहाँ चला गया अभी तो यहीं था…विहान!विहान!"...यश एकदम टेंशन मे आ गया।

"अरे यश! इतना क्या परेशान होना...यहीं होगा….तुम उधर देखो जाकर और मै और तुम्हारी माँ इधर जाकर देखते हैँ, मिल जायेगा यहीं कहीं होगा किसी दुकान पर।"

यश वापस गाडी की तरफ़ आने लगा और प्रज्ञा और अभी दूसरी तरफ…

और थोड़ा सा चलते ही यश की नज़र विहान पर पड़ गयी और उसने चैन की सांस ली….और उसकी तरफ़ बढ़ते हुए चिल्लाते हुए बोला…..
"यहाँ क्या कर रहा है विहु तू? हम वहां चिंता मे आ गए ...अभी तू कहीं गुम हो जाता तो…"

यश को आता देख वो फट से पीछे घूम गया…..

यश ने जाकर उसे पकड़ा…"कहाँ जा रहा है अब"...और विहान को अपनी तरफ़ घुमाया तो वो हंस पड़ा और विहान के हाथ और मुँह पर लगी आइसक्रीम देखकर उसका गुस्सा भी ठंडा हो गया….."अच्छा बेटा आइसक्रीम खायी जा रही थी..लेकिन ऐसे..... .वैसे तेरे पास पैसे कहाँ से आये विहु? "...

"वो….वो….मै…."

"कुछ बोलेगा या वो वो ही करता रहेगा"......इतने मे आइसक्रीम वाला बोल पड़ा…"भैया जी वो मैंने दे दी थी इसे ये ज़िद करने लगा था...मुझे लगा ये गुम हो गया है तो मैंने ही इसे आइसक्रीम देकर यहाँ रोक लिया था"...

"ओह अच्छा!......धन्यवाद भैया हमें तो लगा ही की ये गुम हो गया आपका बहुत बहुत धन्यवाद। बताइये कितने रूपये हुए भैया…..पहले मुझे ज़रा एक टिशु दीजिये इस बंदर को साफ तो कर दूँ…."

"रहने दीजिये भैया! आपका बेटा बहुत प्यारा है….ये आइसक्रीम मेरी तरफ से…" टिशु यश को पकड़ाते हुए आइसक्रीम वाला बोला…

उसकी बात सुनकर यश हंस पड़ा और विहान के हाथ-मुँह को साफ करते हुए बोला-"भैया ये मेरा बेटा नहीं है..भाई है...लेकिन बेटे से भी ज़्यादा प्यारा है। "

"अरे! माफ़ कीजियेगा,मुझे लगा ये आपका बेटा है तो मैंने…."

"अरे कोई बात नहीं भाई होता है कभी कभी…..चलें यश माँ-पापा भी परेशान हो रहे होंगे…"

"हाँ भैया….लेकिन…"

"अब क्या लेकिन? विहु!"

"मेको एक और आइसक्रीम चाहिए।"

"नहीं नहीं! बिकुल भी नहीं….. अभी तो एक खायी है तुमने अब नहीं और अभी खाना भी खाना है…."

विहान ज़िद पकड़ गया और इसने बिना आइसक्रीम लिए बगैर यश के साथ जाने से मना कर दिया।

"विहान ये बहुत गलत बात है…..रुको ज़रा मै पहले पापा को मैसेज कर दूँ पहले, नहीं तो वो तुम्हें लेकर खाम-खा परेशान हो रहे होंगे"

यश अपना फ़ोन निकाल कर अविनाश को मैसेज कर देता है की विहान उसके साथ है और वो बस ज़रा देर मे उसे लेकर वहां पहुँच रहा है…..

इधर "आइसक्रीम चाहिए ! आइसक्रीम चाहिए !"कहकर विहान यश का सर खा जाता है…. लेकिन यश भी उसे आइसक्रीम दिलाने की ना कहकर
उसे समझाने के लिए घुटनो के बल बैठ गया और उस से कहने लगा की वो उसे डिनर के बाद पक्का आइसक्रीम दिलाएगा….दोनों भाइयों की आइसक्रीम को लेकर हो रही नोक-झोंक के बीच एक आइसक्रीम विहान की तरफ़ बढ़ते हुए एक आवाज़ आयी….

"ये लो इतना मन है तो मेरी तरफ़ से ले लो मेरे भी छोटे भाई जैसा ही है, इतना क्या बहस करना। …"

विहान ने झट से आइसक्रीम पकड़ ली…
"भैया आप पहले ही दे चुके अब फिर से….इसे तो जितनी भी आइसक्रीम खिला लो कम है, लेकिन इस बार आपको पैसे लेने पड़ेंगे" यश ये बोलते हुए जैसे ही खड़ा होकर पीछे मुड़ा और साथ ही साथ विहान की नज़रे भी आइसक्रीम से ज़रा ऊपर हुयी तो दोनों शॉक हो गए….