BOYS school WASHROOM - 10 Akash Saxena "Ansh" द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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BOYS school WASHROOM - 10

""सुनो प्रज्ञा मै समझता हूँ तुम्हे क्या महसूस हो रहा है और मै भी वही महसूस कर रहा हूँ जो तुम महसूस कर रही हो, लेकिन मेरी तरह तुम्हें भी ये समझना होगा की यश अब बच्चा नहीं रहा, वो जानता है की उसे क्या करना है क्या नही। .. ..किस से कैसे बात करनी है।...कहाँ जाना है,कैसे लोगों के साथ रहना है, कैसे अपनी प्रोब्लेम्स को हैंडल करना है।….. और वो अब बड़ा हो चुका है तो हमें खुद ही उसे स्पेस देनी होगी...वो हमसे कभी नहीं कहेगा…. वो बहुत समझदार है और मुझे पूरा विश्वास है वो कभी कोई गलत काम नहीं करेगा। मुझे पता है, तुम्हें उसे लेकर डर लगा रहता है ना….मुझे भी लगता है,पर हम हर समय उसके साथ तो रह नहीं सकते ना और तुम एक बार कभी उससे एक माँ की तरह नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह बात कर के देखना शायद तुम उसे और भी बेहतर समझ पाओ और रही विहान की बात तो तुम्हे उसे समझाने की शायद अब ज़रुरत नहीं क्योंकि मैंने देखा है की वो कैसे यश को देख कर उसकी बातें समझकर उसे फॉलो कर रहा है और ये बहुत अच्छी बात है लेकिन मै तुमसे ये नहीं कह रहा की तुम उनके गलत होने पर भी चुप रहो, तब तुम्हे बोलने का उन्हें समझाने का पूरा हक़ है और तब मै भी बीच मे नहीं पडूंगा लेकिन अभी के लिए उन्हें थोड़ा टाइम दो वो खुद रिलैक्स हो जाएंगे।""
अविनाश बड़े ही प्यार से प्रज्ञा को सारी बातें समझाता है…..

प्रज्ञा-पर अवि वो आज कुछ…..

"पर वर कुछ नहीं प्रज्ञा….उनके एक्साम्स आ रहे है हो सकता है वो उसी को लेकर परेशान हो और होना भी चाहिए….अब तुम एक दम रिलैक्स हो जायो और शाम का वेन्यू सेलेक्ट करो वरना पिछली बार की तरह सड़कों पर घूम कर ही वापस आना पड़ेगा"

प्रज्ञा-अरे! मै तो भूल ही गयी थी शाम के बारे मे…..लेकिन अवि मुझे नहीं लगता की अब वेन्यू सेलेक्ट करने का कोई मतलब होगा…

अवि-क्यों? अभी तो टाइम है ना…

प्रज्ञा-मुझे नहीं लगता...यश और विहान का बाहर जाने का अब कोई मूड भी होगा।

अविनाश-अरे वो तुम मुझ पर छोड़ दो….उन दोनों से मै जाकर बात करता हूँ...लेकिन तुम बस एक अच्छा सा वेन्यू सेलेक्ट करो जहाँ हम सब एक अच्छा सा डिनर कर सके……..
इतना कहकर अविनाश दरवाज़ा खोलकर अपने कमरे से जाने लगता है और फिर दो कदम पीछे आकर प्रज्ञा से कहता है…."और हाँ, प्लीज् जो भी सेलेक्ट करो वहां एक टेबल ज़रूर बुक कर देना मेरा कार्ड वहीँ पड़ा है लैपटॉप के पास"....

अरे हाँ बाबा...पहले तुम जाओ और अपने लाड़लो को लेकर आओ….प्रज्ञा इतना कहकर लैपटॉप मे बिजी हो जाती है और वहां से निकलकर अविनाश सीधा जाता है यश के रूम की तरफ….

अविनाश कई बार यश के रूम मे जाने की कोशिश करता है लेकिन वो अंदर से लॉक होता है, फिर अविनाश उसके दरवाजे पर कई बार नॉक करता है और यश को आवाज़ भी लगाता है। तब कुछ 25 से 30 सेकंड के बाद यश दरवाज़ा खोलता है और अविनाश कुछ ऐसा देखता है जिससे अब उसके मन मे भी कहीं ना कहीं अपने बच्चों के लिए चिंता उत्पन्न होने लगती है।