ठक ठक ठक...
ठक ठक ठक... दरवाज़े पर ज़ोर से आहट होती है,
विहान!विहान...स्कूल बस आती ही होगी 7 बज चुके हैं क्या कर रहे हो,आज फिर देर करोगे क्या?विहान की माँ( प्रज्ञा) उसे आवाज़ लगातीहै।
विहान जो कि 12 साल का है-मम्मा बस आ ही गया।
प्रज्ञा-जल्दी आओ तुम्हारा बैग और टिफ़िन लगा दिया है।
विहान-बस आ ही गया माँ और दरवाज़ा खुलता है,गोल मटोल मासूम सा विहान हँसता हुआ बाहर आता है, उसके बाल बिगड़े और जूतों के फीते खुले होते हैं,इतने बड़े हो गए पर अभी भी फीते बांधने नहीं आये तुम्हें प्रज्ञा कहते हुए उसके फीते बांधने लग जाती है।
तभी बस के हॉर्न की आवाज़ आती है।साथ ही विहु(विहान) जल्दी आ नहीं तो तुझे छोड़ कर चले जायेंगे,चिल्लाकर यश(विहान का बड़ा भाई-17 साल) भी आवाज़ लगाता है।
प्रज्ञा-चलो जल्दी नहीं तो यशु भाई अकेले चला जायेगा और आज शाम को हम बाहर चलेंगे आइस क्रीम खाने बोलते हुए विहान के बाल बनाते हुए गोद मे लेकर दौड़ती हुई आती है।
विहान-सच मे मम्मा और चॉकलेट भी खाएंगे और...बस बस शाम को चलेंगे अगर तुम्हारी कोई शिकायत नहीं आयी तो ठीक है और प्रज्ञा विहु को नीचे उतारकर बैग देती है।
यश-इसके चक्कर में तो आज सबको लेट होना पड़ेगा।अब चल जल्दी शैतान कहीं का। बस वाले भैया आज फिर
तेरी वजह से डांट लगाएंगे।
विहान-चलो चलो जल्दी से!प्यारी सी आवाज़ में विहान मम्मा बाए कहता हुआ अपने बड़े भाई का हाथ पकड़ के चल देता है।
बाए बेटा(प्रज्ञा) बाए मम्मा(यश) कोई शरारत मत करना दोनों,प्रज्ञा कहते हुए बस तक छोड़ कर वापस लौटती है।
घड़ी की तीलियों में 8बज चुके होते हैं।
एक कप चाय मिलेगी और अखबार भी।
गए दोनों शेर स्कूल अविनाश(प्रज्ञा का पति और यश और विहान का पापा) पूछता है।
प्रज्ञा-हाँ लाती हूँ,रुको ज़रा सांस लेने दो तुम्हारे शेरों को ही छोड़ कर आई हूँ।सुबह सुबह पूरी कसरत करा लेते हैं।
तो ऐसे शुरू होती है,एक छोटे से परिवार की प्यारी सी सुबह की।
प्रज्ञा-ये लो चाय और तुम्हारा अखबार।
अविनाश-बहुत बहुत शुक्रिया।
और दोनों बैठ कर चाय पीने लगते हैं।
प्रज्ञा-आज शाम को हम बाहर जाएंगे,मेने विहान से कह दिया है। बहुत समय से कहीं नहीं गए।
अविनाश-चलो ठीक है वैसे भी काफी टाइम हो गया साथ मे वक़्त बिताए और बच्चों का भी मन बहल जाएगा थोड़ा।
बस किताबों में पूरा दिन बिता देते हैं।
अविनाश-अखबार दिखाते हुए ,ये देखो फिर एक बच्ची का बालात्कार पता नहीं क्या हो गया है इंसानों को..
प्रज्ञा-मानो इंसानियत ही खत्म हो गयी है।
तभी अविनाश की नज़र घड़ी पर पड़ती है,अरे!8:30 बज गए चलो हमे भी निकलना है क्लिनिक के लिए।
प्रज्ञा-हाँ!चलो तुम तैयार हो जाओ जब तक मैं हमारा टिफ़िन लगाती हूँ।
प्रज्ञा पेशे से एक स्त्री रोग विशेषज्ञ(डॉक्टर)है और अविनाश एक मनोवैज्ञानिक(डॉक्टर)है।
और दोनों तैयार होकर अपने क्लीनिक के लिए निकल जाते हैं।
इधर यश और विहान की बस रास्ते में होती है।सब शोर मचा रहे होते हैं।
ओये मोटे आज खाने में क्या लाया है? विहान से एक यश के साथ का लड़का पूंछता है।
विहान-मुझे मोटा मत बोल नहीं तो यशु भैया को बुला लूंगा और यशु भैया कह कर आवाज़ लगा देता है।
आगे की कहानी अगले भाग में पढ़िए।