देवी सावित्री’-हरिशंकर आदेश बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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देवी सावित्री’-हरिशंकर आदेश

महाकाव्य-‘‘देवी सावित्री’’-महाकवि प्रो. हरिशंकर आदेश

‘‘पाठकीय दृष्टिकोण’’-वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’

प्रवासी महाकवि आदेश कृत-‘‘देवी सावित्री’’ का आवरण पृष्ठीय दृष्टिकोण ही सम्पूर्ण कृति का जीवन्त-सा आईना है। हिन्दी श्लोकों में सरस्वती वंदना कृति का आमूल प्राण है। शुभाशंसा में प्रो.रमेशचन्द्र कुहाड़, प्रों सुरेन्द्र दुबे तथा अनुप्रेरक-अनुभूति में प्रो. सरस्वती भल्ला एवं अभिमत दाता प्रो. हरिशंकर मिश्र का सानिध्य हितोपदेशी है। प्रो. नरेश मिश्र के चितंन की धरती, महिला सशक्तिकरण के युग का अनुप्रेरक महाकाव्य, कृति का अनूठा अवदान है। जो आदेश जी के पुरोवाक को समृद्धता प्रदान करता है। साथ ही श्याम त्रिपाठी और प्रो. शिखारानी शर्मा का चितंन-झरोखा कृति को नव चेतना प्रदान करता है।

आदेश जी की कृति-‘‘देवी सावित्री’’ की भाव भूमि अति अनूठी है जिसमें बड़ी विचित्रता से चौरासी छन्दों को पिरोया है। कृति के एकादश सर्ग, सम्पूर्ण कथा के अनुप्राण है। उपसंहार की कसौटी अनुत्तरीय है। अविर्भाव के साथ, अनुपालन, अध्ययन-परीक्षण, अभिनव तारूण्य और अन्वेषण की चिंतन धरती भावोत्पादक है। पाणिग्रहण संस्कार, सावित्री-यम संबाद तथा आल्हाद पर्व, अभिसार का अनुपम दर्शन है। अबशान की शान्त प्रिय बेला तथा दिवंगमन मानव के चिंतन-चेतन का सारगार्भित आईना है।

कृति का प्रारम्भ मद्र देश की पावन-भूमि से प्रारंभ होकर, शाल्ब-भू की महानता के साथ सम्पूर्णता पाता है जिसमें अनेकों दृश्य हृदयग्राही बन पड़े है। काल रात्री की परिभाषा को बडे ही गहन चिंतन के साथ परोसा गया है।

यथा-‘‘सृजन,मरण-प्रजनन की सारी, क्रिया रूद्ध हो जाती है।

करता है विश्राम समय,वह कालरात्रि कहलाती है।।’’पृ.132

सुन्दरता की अनूठी झॉंकी उकेरने में आदेश जी दो कदम आगे ही दिखे है जिसकी उन्होने चंद शब्दो में श्रंगारिक झॉंकी अनूठे शब्दों में प्रस्तुत की है।

‘‘बक्ष पर रति-मठ का निर्माण’’ पृ.171

एक और दृश्य बडी ही गहराई के साथ आदेश जी ने उपस्थित करने का मार्मिक प्रयास किया है जो नियति की वास्तविकता का सच है।

‘‘मैं न किंचित त्रस्त हूँ, इस मृत्यु से प्रिय-मृत्यु तम से जागरण है आत्मा का’’।

सास्वत व्यापार में, आवागमन के, मृत्यु स्थानांतरण है आत्मा का

पंचतत्वों से समन्वित देश में प्रिय, मृत्यु केवल अवतरण है आत्मा का।

अन्नपालित गात्र है आवास इसका, यह कलेवर आवरण है आत्मा का। पृ.254

इस तरह मानव जीवन के आपसी संबधो पर बडी गहरी अनुभूति प्रस्तुत करने की कला आदेश जी की अपनी कुशलता अनुकरणीय है जिसमें परिणय जीवन की कसौटी दर्शाई गई है। इसी क्रम में उन्होने दाम्पत्य जीवन के अनेको दृश्यों को बडी पेचेदगी से प्रस्तुत किया है यथा-

‘‘कथन मात्र को प्रथक-प्रथक काया होती है-पति है पुरूष तथा पत्नि माया होती है।’’

है आनन्योक्षित सम्बन्ध भार्या-पति का, पत्नि तो अपने पति की छाया होती है पृ.315

जीवन के आनंदित पलों को बडी ही खूबी के साथ आदेश जी ने अपने हृदय की सच्चाई को प्रस्तुत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोडी है। लगता है यह उनका हृदयंगम छंद है।

‘‘चौदस का चंद्रमा-भादों की रात, ऐसे में चली चलों तुम मेरे साथ’’। पृ. 325

अम्बर से झर-झर, झरती नीहार, झरती हो केशों से मानों जलधार

सित-बसना, भीगी-सी निशा-सद्यःस्नात, ऐसे में चली चलों तुम मेरे साथ।।’’

इस तरह कृति में अनेको स्थलों पर गहरी अनुभूतियॉं एवं जीवन के मनोहारी दृश्य भी छन्द,अलंकार,ज्योतिष,रसायन,भूगोल और खगोल आदि के साथ चित्रण बड़ी गहरी चिंतन दृष्टि से किया गया है जो आदेश जी की अतुलनीय बुद्धि कौशल की महानता है। कृतिकार बंदनीय हैं।

इस तरह महाकाव्य ग्यारह सर्गों में विभाजित कर पठन पाठन की सरलता दी गई है। प्रत्येक सर्ग की अपनी नवीव कथा है जो पाठक के मन को आकर्षित करती है।सभी सर्गों का जुडाव इतना मनोरम है की कथा का क्रम टूटते नही दिखता है

चतुर्थ सर्ग में एक अनूठा दृश्य प्रस्तुत किया है जिसमें आशीर्वाद के रूप में देवी सावित्री को निम्न रूप से जीवन जीने की समझायस दी गई है।

यथा-

पति-पत्नी यदि परस्पर बॉंटें पूरा प्यार।

उनके ऑंगन में हॅंसे, वारह मास वहार।

दो आत्माओं का मिलन होता धर्म विवाह,

जहॉं धर्म होता वहॉं, हो सुख सरित प्रवाह।

इस तरह महाकवि की कितनी गहरी चिंतन धरती है जो साकार सी होकर बोलती है।

सभी सर्गों की कथा पूर्ण सात्विकता लिए कथा विस्तार पाती है उपसंहार के रूप में यह काव्य धार्मिक कार्यों का अनुगमन करता है। देवी सावित्री की जीवन कहानी बडी मार्मिकता के साथ आदेश जी ने प्रस्तुत की है जो विशेष बधाई के योग्य होकर साहित्य जगत मे एक नया सोपान खोलती है। मनीषी चिंतको के लिए साथ ही नऐ जागरण का भोर सा दर्शाती है। इसलिए आदेश जी की कलम वन्दनीय है।

चुॅंकि कृति में पूर्णतः सावधानी बरती गई है फिर भी कतिपय स्थान पाठक के चितंन को भ्रमित पथ की ओर अनायास ले जाते दिखे, समझने की जिज्ञासा में अपेक्षा के साथ। धन्यवाद

अन्ततः आदेश जी का पुनः हार्दिक बंदन और अभिनंदन, कलम को साधुबाद।

महाकाव्य- देवी सावित्री2016

महाकवि हरिशंकर आदेश जी

प्रकाशक-निर्मल पब्लिकेशन कबीर नगर दिल्ली

मुद्रण शिवानी आर्टस प्रेस दिल्ली 94

मूल्य एक हजार रूपये

दिनांक 21-मई-2017 आपकी चिरायु का मंगलाकॉंछी

वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’

गायत्री शक्ति पीठ रोड

गुप्ता पुरा डबरा ग्वालियर म.प्र.

मो-9981284867