”स्मृति के झरोखे से-बम्बई“ बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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”स्मृति के झरोखे से-बम्बई“

”स्मृति के झरोखे से-बम्बई“

समय की गति, प्रकृति के नियम तथा जीवन के संघर्ष मे, नियति के अनौखे खेल है। इनसे कोई अछूता नही रहा हैं। प्रत्येक प्राणी को इनकी परिधि में चलना ही पङता है। इन्ही चिंतनो मे डूबा, मैं अपने मन को समुझा ही रहा था कि मोबाईल की घन्टी ने आवाज दी। चालू करने पर बम्बई के समधी श्री जनक लाल जी की जय राम जी मिली। मन प्रसन्न हो गया।

खुशी-आनन्दी के दोैर के बाद बारह सितम्बर 2010 ई0 का आमंत्रण आग्रह मिला। हमारे बडे दामाद बलराम की प्रिय पुत्री की गोद भराई का कार्यक्रम निश्चित हैं। आग्रह पर, हॉं ही करना पडा। मन में बम्बई धरती समा गयी और समधी (बाबूजी) के स्नेहाकर्षण ने प्रिय भतीजे गिरीश (पप्पू), बहू सीता, नातिन रीना और रिधिमा तथा अपनी धर्म-पत्नी मन्नो देवी के साथ लश्कर एक्सप्रेस गाडी से डबरा,जिला ग्वालियर म0प्र0 से रवाना होकर, अनेक छोटे बडे स्टेशनो को पार करते हुए थाणा स्टेशन (बम्बई)पर पहुंचे/आगमन की सूचना पाकर स्टेशन पर स्वागत अगवानी सभी ने दी /लगा, बम्बई तो स्नेह की नगरी हैं तभी तो यहॉं अनेकों फिल्मकारों के बसेरे हैं। अप्सराऐं अवतार लेकर ही अपनी रंगशालाऐं सजाऐं हैं।यह धरती स्वर्ग से कम नहीं लगती।

हम सभी उनकी वेंन से लोधा पैराडाईज के फ्लेट पर पहुॅंच गये। समय करीब नौ बजे का था। भोजनादि से निवृत हो कर विश्राम किया। सुबह गोदभराई का कार्यक्रम बडी उत्सुकता के साथ सम्पन्न किया गया। बाबू जी का परिवार, सभी की आब-भगत में पूरे मनो योग से लगा रहा। सभी मेहमान एक परिवार जैसे लग रहें थे। कार्यक्रम लगभग पूरे दिन(13.09.2010)में ही सम्पन्न हो पाया। रात्री में सभी लोगों का विचार बना कल(14.09.2010) बम्बई भ्रमण किया जाये। बाबू जी के बडे पुत्र प्रकाश भाई द्वारा सारी व्यवास्था की गई। प्रातः 9ः00 बजे इक्यावन यात्रियों के साथ बस चल पडी । बस की दिशा का संचालन श्री प्रकाश भाई कर रहे थे । यात्रा पूर्व दिशा से प्रारम्भ की । भगवान भास्कर स्वागत में प्रकाश किरणे विखेर रहे थे ।

बम्बई (महाराष्ट्र) में श्री गणेश जी का जन्मोत्सव बडी धूम धाम से मनाया जाता है। भाद्रपद के ये पन्द्रह दिन विशेष मंगल के माने जाते है। सभी अनुष्ठानिक कार्य सम्पन्न किये जाते है। हर घर, द्वार, मोहल्ले, मंन्दिर तथा सार्वजनिक स्थल, कलश, बंदन बारों, विधुत रोशनी एवं ध्वनी विस्तारक यंत्रों से सुसज्जित मिले। लग रहा था-किसी स्वर्गलोक की यात्रा कर रहे है। जहॉं जय-जय गणपति बब्बा, गणपति बब्बा मोरिया, जय गणपति देवा इत्यादि प्रकार से ध्वनि गूंज रही थी। वातावरण बहुत ही सुहाना था। भवन एक मंजिल से लेकर पचास मंजिल ऊॅंचे बने हुऐ थे। ऐसे लग रहा था जैसे ये भवन गुब्बारों कि तरह आसमान में उड रहे हों। सूर्य भी अपनी प्रसन्नता में सप्तरंगी किरणें बिखेर रहा था। भवनों की आकृतियॉं विभिन्न प्रकार की थी। सभी की निगाहें आसमान छूतीं अट्टालिकाओं पर थीं-वेचारीं झोपडियॉं तरस रहीं थी।

रोड काफी चौडे-चौडे थे, रोडों की बनावटे, नालियों का निकास, चौराहो के दृश्य, प्रकाश व्यवस्था, पगडंडियॉं, डिवायडर आदि को देख कर लग रहा था यह कोई नवीन मोहन जोदडों अथवा हडप्पा नगर प्रकट हो गया है। व्यवस्था अतुलनीय थी। बसें कतार बद्ध, जीप-कारें, अपने सुनिश्चित स्थल से, ट्रक आदि भारी वाहन अपने मार्ग पर तथा अन्य वाहन व पैदल अपने-अपने सुनिश्चित मार्ग से, अपनी सुनिश्चित गति से, बेसब्री के साथ दौड रहे थे। सभी वाहन ड्रायवरों का विशेष ध्यान, संकेत सूचको पर टिका था। सभी को अपना गंतव्य ही दिख रहा था। कोई किसी की परवाह नहीं कर रहा था। वातावरण भारी भीड भरा था। चौराहों को पार करना बडा ही कठिन था। इधर रेलगाडियॉं-इतनी तेज गति से भाग रही थी जैसे इनके भी पंख लग गए हों। धडा-धड की धडकनें मानव के कानो को बहरा बना रही थी। सारा आवागमन, आपाधापी के लिए दौड रहा था। मानवों की रेल-पेल असंयमित थी। हर व्यक्ति भागता ही नजर आ रहा था। इतनी भीड भरी नगरी मन को आश्चर्य चकित कर रही थी। यह सब कुछ देखते-देखते हम कुरला नामक स्टेशन को पार करते हुए आगे बड ही रहे थे कि अनेकों हवाई जहाजो के उतरने और आसमान में उडने के नजारे देखने को मिले।यह विशाल हवाई जहाज अडडा है। हर दस मिनट पर हंसों की तरह हवाई जहाज आ-जा रहे थे। यहॉं के पुरूष देवता और बालाऐ देव परियॉं सी लग रही थी।

यह नगर विभिन्न संस्कृतियो, भाषाओं, बोलियो, रंगो-रूपों, पहनाबों, चाल-चलनो, विभिन्न धर्मो आदि को अपने मे समेटें लगा। यहॉं का वातावरण ”वसुधैब कुटुम्बकम्“ बाला लगा/यह सब देखते हुए विधान सभा भवन पर पहुंचे/यह स्थल नगर का गौरव है। सभी तरफ विधायक, मंत्री आदि के विभिन्न आकृति वाले बंगले बने है कुछ ही आगे मुखर्जी चौक मिला। यह सब शहीद भगत सिंह मार्ग के इर्द-गिर्द था। यहीं पर 125 वर्ष पुराना रेस्टोरेंट देखने को मिला यह सब देखते हुए गेट ऑफ इंडिया पर करीब 1030 बजे पहुंचे।

गेटवे ऑफ इंडियाष यह स्थल पूर्वी समुद्र पर स्थित है। समुद्र के किनारे पर विशाल दरवाजा बना हुआ है। इसकी ऊॅंचाई लगभग चालीस फीट के आस-पास होगी। यह दरवाजा काफी लम्बा और चौड है।इसके दोनों ओर झॅंझरीदार दरबाजे भी है। मुख्य दरवाजे के ऊपर दो गुम्बदें बनी हुई है। यहॉं समुद्र अपनी अलौकिक छटा को बिखेरता लगा। सूर्य, गेट वे ऑफ इंडिया पर सभी का स्वागत सा करते लगा। मडराते मेघ-समुद्र से पानी की याचना करते से लगे समुद्र का विस्तार, निगाह के ओझिल होने तक लगा। सूर्य का उस अेार से निकलकर यूं लगा रहा था मानो कोई चक्रवर्ती समा्रट प्रातः स्नान का धीरे-धीरे, मंथर गति से चल कर भारत भुवन की यात्रा पर आ रहा हैं। किनारे के विशाल भवन पानी में झूला- झूलते से लग रहे थे। झुके हुए वृक्ष जल स्पर्श कर अर्ध्य सा दे रहे थे।

इस गेट वे ऑफ इडिया का निर्माण सन 1911 ई0 माना गया हैं। यहॉं पूर्व दिशा को छोड कर समुद्र की अन्य तीन दिशाऐं भवनो से घिरी हुई हैं। विस्तृत समुद्र मे उठती उतुंग लहरे, उनमे तैरती नौकाऐं, अग्नि वोट,लहराते जहाज विशेष आकर्षक कर रहे है। इंडिया गेट के पश्चिम मे विशाल मैदान हैं जिसमे दाना चुंगते कबूतर, छाया चित्र खिंचबाते सैलानी तथा स्वल्पहार लेते दर्शक अच्छे लग रहे थे।

ताज होटल बम्बई की धरोहर ताज होटल लगभग चौबीस माले का बना हुआ हैं इसकी इमारत भी बहुत पुरानी हैं यह स्थल भारतीयों तथा विदेशीयों के ठहरने का सुन्दर स्थान हैं। कुछ समय पहले ताज होटल के विध्ंवस का नजारा सभी की दृष्टी में आज भी बसा हुआ हैं। समुद्र के किनारे अपनी विशेष सुन्दरता लिऐ बहुत ही आकर्षक हैं इसे अवश्य देखना चाहिये। इसमें अनेको अन्य विशेषताऐं भी छुपी हुई हैं।

प्रिंस वेल्स म्यूजियम (महाराज शिवाजी संग्राहलय) इतिहास की विशेष धरोहरो मे इसका स्थान महत्वपूर्ण हैं। यह संग्राहलय प्रागऐतिहासिक काल को अपने में समेटते हुऐ आधुनिक काल तक की कहानी कहता हैं। मानव सभ्यता के विकाश काल मे मिट्टी के पात्र पत्थर के हथियार से चल कर लोहयुग, ताम्रयुग आदि की कहानी कहता हैं।इससे आगे चलने पर अमिताभ बच्चन की ससुराल, मंत्रालय भवन, सचिवालय, विशाल यूनिवर्सिटी, ओवराइज होटल राज भवन अथवा लाल बंगला देखने को मिला।

मछली घर (तारापीर वाला संग्राहलय) इस संग्राहलय मे कई प्रजातियों की मछलीयॉं देखने को मिलीं जिनकी आकृतियॉं कई रंगो मे दर्शनिय थीं जो दर्शको के मन को लुभा रहीं थीं। उनके ठहरने के अनेकों कक्ष थे। उन्हे सभी सुविधाओ मे रखा गया था। फिर भी वे परतंत्र सी लग रहीं थी। यदि सच्चाई से देखा जावे तो वह संग्राहलय मछलीयो का कैदखाना सा लग रहा था। जिन्दगी त्रासदी भरी थी फिर भी दर्शको को बहुत जानकारी मिली।

नेरीमन पॉइन्ट मरीन ड्रयाव (रानी के गले का हार) ठीक मछली घर के सामने ही पूर्व दिशा मे विशाल समुद्र लहरा रहा था। जो तीन दिशाओ से ऊॅंचे भवनो से घिरा था। उसकी आकृति गले के हार जैसी थी, इसलिये उस स्थान को ”रानी के गले का हार“ भी कहा जाता हैं। रवि की प्रातः कालीन ऊषा रंजित किरणें स्वर्ण मयी होकर झल मलाते स्वर्ण हार-मुक्ताहार जैसी दिखायी देती हैं। अतः गले के हार की उपमा सटीक सी लगी। इसी के दक्षिण भाग मे-पारसियों का श्मशान स्थल भी है। जहॉं शव को जल जीवांे; तथा पच्छियों का भोज बनाकर-हडिडयों को समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता हैं। यह पारसियों का पवित्र स्थान-सोरों तथा त्रिवेणी संगम प्रयाग की याद ताजा करता है। उससे आगे चलने पर लोगो को कुछ विश्राम की आवश्यकता सी हो रही थी तभी हम सभी एक अनूठे विश्राम स्थल पर पहुंचे। उसी रास्ते पर जग्गी दादा का बंगला, मलवार हिल तथा जैन मंदिर आदि भी मन को बहुत अच्छे लगे।

हैंगिंग गार्डन (कमला नेहरू पार्क) यह स्थान उतना मनोहारी लगा कि सभी ने यहॉं स्वल्यहार के साथ-साथ काफी समय रूककर विश्राम किया। पं जवाहार लाल नेहरू जी ने उस मनोहरी स्थल को जो समुद्र मे लटका सा या झूला झूलता लगता हैं। कमला नेहरू के नाम से यादगार स्थल बनाया। बहुत ही सुन्दर स्थल हैं विशाल पेड. समुद्र कें जल का स्पर्श कर रहे हैं। विभिन्न किस्मों के पुष्प खिले हुऐ हैं। अपार आनंद को समेटे बस आगे चली तो मन को तथा आत्मा को शान्ति प्रदान करने वाला, घन्टा और घडियालो की झंकारो से गुंजायमान महालक्ष्मी मंदिर मिला। यह धार्मिक आस्था का विशेष स्थल हैं। लोगों का मानना हैं कि मॉं लक्ष्मी ने ही सुनामी लहर से बम्बई नगर की रक्षा की थी। समुद्र, मॉं लक्ष्मी के चरणो का प्राछालन कर रहा हैं। पूजा अर्चना करने पर सभी की मुरादें पूरी होती हैं। मंदिर स्वर्णमयी कलश से सजा हुआ हैं। यह नगर का विशेष दर्शनीय स्थल हैं।

हाजी अली बाबा की दरगाह यह स्थल भी समुद्र तट से कुछ अन्दर जल के बीचो-बीच हैं। विशाल दरगाह है। लगभग एक किलोमीटर अन्दर समुद्र मंे है। जिसका मार्ग पत्थर और कंकरीट का बना हुआ है। समुद्र की लहरों के बीच हाजी अली बाबा हमेशा अठखेलियॉं करते से दिखे है। यहॉं सभी धर्म, समुदाय के लोग मिन्नते ले कर आते है और मुरादों की झोलियॉं भर कर ले जाते हैं। काफी चौडे परिसर में विशाल मजार है। दर्शन-अवश्य करना चाहिये।

यात्रा जारी रही और हम सभी पहॅंचें।

नेहरू सांइस सेन्टर यह एक विशेष उपलब्धि हैं जहॉं ध्वनि के विशेष तंत्रो को दर्शाया गया है। यह विज्ञान भवन तीन मंजिल है। इसमे ध्वनि के तंत्रो का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। ध्वनि के विभिन्न यंत्र, ध्वनि के प्रकार, आदि देखने को मिले। विशेषताऐं वर्णनातीत है।

सन सेट पॉइन्ट यह वह स्थल है जहॉं भगवान भास्कर अपने विश्राम स्थल में जाते से दिखते हैं। सम्पूर्ण दिन की थकान को मिटाने, समुद्र की लहरो के जल से मुहॅं प्राच्छालन करते हुए; उमुंग लहरो के बीच अपने आपको समामे हुए तथा विश्रामदायिनी सन्ंझा के आगमन का स्वागत सा करते लगते हैं। अपनी लाल-लाल लालिमा को अपने में समेटते हुये संध्या की लालिमॅंा को बिखरने का अवसर देते हैं। यह आत्मिक झॉंकी हैं। विशेष वर्णन से परे हैं। यहीं पर बॉंदªा बर्ली सी-लींक पुल भी है जो शहर के दो हिस्सो को जोडता है।

जूही चौपाटी यह बम्बई का विशेष स्थल है। इसे सूर्य के अस्त होने से पूर्व देखना ही विशेष है। उतुंग लहरें सूर्य की लालिमा से खेलती हुई सी लगती है। नौकाओं और जहाजों के पाल सुहावने लगते है। सागर की विभिन्न आकृतियों बाली लहरें मानव को अनेकों संदेश देती है। लोग जल में अन्दर जा कर लहरों का आनन्द लेते है। यह स्थल विदेशियों को भी आकर्षित करता है। यह स्थल बहुत लम्बाई लिये है। यहॉं लोगों की अपार भीड होती है।

माईन्स मेरी चर्च यह इंडिया का सबसे बडा चर्च है। इसकी विशालता और ऊॅंचाई काफी है। यह आस्था का विशेष स्थल है। सभी लोग इसे देखने जाते है। सद्भवना का संचार होता है। मानवता की दशा का एक अनूठा दिशाबोध है।

फिल्म सिटी यह स्थल गोरे गॉंव से कुछ आगे है। इसे फिल्म नगरी भी कहा जाता है। यहॉं पर ऊॅंचे-ऊॅंचे पहाड है।हरियाली भरा जंगल हैं। वनवासी गॉंव है। आदिवासियों के विशेष देवताओं को भी स्थान दिया गया है। कल-कल करते झरने है। झाडियों में गुम होती राहें है। सुन्दर रोड है। काठ (प्लाय बुड) के विशाल बंगले है। लम्बं और सुन्दर रोड है। फूलभरी झाडियॉं और बगीचे है। जंगली जीब के निवास है। सूटिंग के मनोरम स्थल है। चहचहाते पक्षी तथा मृगों के अनेका झुण्ड-हरी घास पर चरते दौडते दिखई देते हैं। यह देवता (हीरो) और परियों (हीरोइन) का अति सुन्दर नगर है। यहां इनके दर्शनों को, लोग ईश्वर से मिन्न्त मॉंगते है। यह फिल्म सिटी विशाल और सुन्दर भवनों का रमणीक स्थल है।

सिद्वि सनातन संस्कृति मंदिर यह भवन (मंदिर) सात मंजिल है। लिफ्ट द्वारा दर्शन करने की व्यवस्था है। इसकी सातवी मंजिल में पदमनाथ, मल्लिकार्जुन, महा कालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, काशी विश्वेश्वर, त्रयब्यंम्केश्वर, धृनेश्वर तथा रामेश्वर के दर्शन मिलते है।

छटवे तल में मछेन्द्र मत्स्येन्द्र स्वामी आदि तेरह स्वामियों के दर्शन किये।

पॉंचवे तल में संत ज्ञानेश्वर, सतपाल महाराज, गोरा कुम्हार, नामदेव, मुक्ता बाई, जना बाई, नरसी मेहता, मीरा बाई, रैदास, एक नाथ, तुका राम, रामदास, झूलेलाल, राम कृष्ण परमहंस, जलाराम बापट आदि के दर्शन मिले।

चौथे तल में देवियों की झॉंकी में शैल पुत्री, ब्रह्यचारिणी, चन्द्र घन्टा, कुष्माकर, स्कंधमाता, कात्यायनी, काल रात्री, महा ज्योति, सिद्धरात्री, और सरस्वती मॉं के दर्शन किये।

तृतीय तल में मयूरेश्वर, सिद्ध विनायक, बल्लालेश्वर, बरद विनायक, चिंतामणि, गिरीजातक, विघ्नेश्वर, तथा ग्यारह मुखवाले महा गणपति के दर्शन किये।

द्वितीय तल में दस अवतारों के दर्शन-मत्स्य, कच्छप, बाराह, नृसिंह, बामन, परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध और कल्किावतार की मनोरम झॉंकियॉं थी।

प्रथम तल में ओउम्(ऊॅं) शिवाय का शान्ति मयी अखण्ड जाप चल रहा था। आगे चलने पर देखा।

राधारास बिहारी मंदिर यहॉं पर हरेराम! हरे कृष्ण! के अखण्ड जाप के साथ भगवान की लीलामयी जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक की-मानव यात्रा की मनोहरी-चेतनामयी झाकियॉं सजायीं गयीं थी।

शिर्डी के सॉंई बाबा बम्बई के साथ, नासिक परिक्षेत्र से लगा यह स्थल भी जीवन की सच्चाई से जुडा-पावन धार्मिक आस्था का केन्द्र है। यहॉं विशाल सिंहासन पर सॉंई महाराज विराजमान है। दर्शक मेला विशाल जुडता है। मनोकामनाऐं भी पूरी होती है, प्रसाद भवन है। अनेकों धर्मसालाऐं हैं। यह स्थल पावन नगरी है यहॉं का पावन नींम वृक्ष, देवका माई आदि स्थल मनोकामनाऐं पूरी करते हैं।

सिंगापुर के शनी देव यह स्थल भी धर्मिक आस्था का विशेष केन्द्र हैं लंका से भेजे शनी देव यहॉं विराजे हैं। विशाल मेला लगता हैं। वेलपत्र, पुष्प, पत्रादि चढाये जाते हैं। यहॉं के भक्त जन-सीधे सच्चे शनी देव के परम भक्त हैं। दर्शन करने से शरीर व्याधा, तथा अन्य कष्ट दूर हो जाते हैं।

बम्बा देवी बम्बई की प्रसिद्व देवी बम्बा देवी है। इसकी शक्ति के आधार पर ही इस शहर का नाम करण बम्बई रखा गया है। यह मुख्य बम्बई में एक विशाल परिसर वाले मंदिर में ब्राजमान है। यह लोगो की धर्मिक आस्था का केन्द्र स्थान है। इसके दर्शन मात्र से लोगो की पीडाऐं शांत हो जाती है मुरादें पूरी होती है।

बी0 टी0 स्टेशन भारत की पश्चिमी रेल यात्रा का आंतिम बिन्दु ही बी0 ठी0 स्टेशन है। यह स्थान मुख्य बम्बई में बना हुआ है। यदि देखा जाये तो बम्बई में बहुत सारे स्टेशन है। जिनमें मुख्य रूप से कल्याण, थाना और बी0 टी0 स्टेशन ही है। सभी गाडियॉं यहॅा पहुंच कर वापिस होती है। विस्तृत स्थान में स्टेशन बहुत सुन्दर बना हुआ है। लोग देखकर दंग रह जाते है। भारत की एक अनूठी धरोहर के रूप् में इस स्टेशन को जाना जाता है।

लोधा पैराडाइस बम्बई में मानव निवास के अनेकों स्थल है। किंतु व्यवस्था और सुंदरता की स्थिति में नासिक रोड स्थित लोधा पैराडाइस अन्य से हटकर विशेषता पूर्ण है। यहॉं का शांत वातावरण, बाग-बगीचा की रौनक, वाटर कूल तथा काला गणेश अन्य स्थलो से हटकर ही है। मुख्य मार्ग से सटा होने के कारण भी यह विशेष सुविधा जनक है।

थाणा स्थिति विशाल तालाब-तलाओपाली यह तालाब विस्तृत क्षेत्र में स्थित है। यह चारौ तरफ से पक्का बॅंधा हुआ है। बीच तालाब में एक सुन्दर मंदिर बना हुआ है। यहॉं तक पहुॅंचने के लिए एक पुल की व्यवस्था की गई है। गणेश उत्सव पर यहॉं भारी भीड होती है। सभी ओर से पूजा अर्चना के बाद गणेश जी की झॉंकियॉं आती है। लाल बाग के मुख्य गणेश भी यहॉं आते है। यह काफी मनोहरी स्थल है। यहॉं बैठ कर मानव के मन को शांति मिलती है।

अनेको संस्कृतियों का नगर बम्बई की विशेष विशालता इसी में निहति है कि वह अपने आप में अनेकों धर्मों, भाषाओं, रीति-रिवाजौं, प्रथाओं, संस्कृतियों तथा वेष-भूषाओं को समाहित क वसुधैव कुटम्बकम् का स्वरूप प्रदान करती है। अनेकता में एकता की अनूठी मशाल है। नगरी को धन्यवाद!

वेदराम प्रजापति (मनमस्त)

गायत्री शक्ति पीठ रोड गुप्ता पुरा डबरा जिला ग्वालियर (म0प्र0) मो 9981284867