रामचरितमानस-मानस के मुहावरे ramgopal bhavuk द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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रामचरितमानस-मानस के मुहावरे

रामचरितमानस-मानस के मुहावरे


2 मानस के मुहावरे

मुहावरे बात को बजनदार बनाकर श्रोता के हृदय को उदीप्त करते हैं। जिससे कथ्य बजनदार बनकर श्रोता के हृदय में घर कर जाता है। वह उसे प्रभावशाली वक्तत्व मानकर स्वीकार करने के लिए कृत संकल्पित हो जाता है।

रोनी सूरत बनाकर कही हुई बात असरदार नहीं होती। मुहावरेदार बात कहने पर वक्ता के चेहरे पर असीम आत्मविश्वास की झलक दिखाई देती है। मुहावरे आत्मविश्वास के द्वारा आत्मविश्वास पैदा करने के लिए कही गई घरोहर है। इनका उपयोग जब-जब व्यग्य के रूप में किया जाता है तब ये और अधिक बजनदार बन जाते हैं। रामचरितमानस में यह धरोहर पक्ति-पक्ति में बिखरी पड़ी है। इसीलिए इस धरोहर को और अधिक सरसब्ज बनाने के लिए श्री रामचरितमानस का ही सहारा लेते हैं। ऐसे कई दोंहे और चौपाइयों की अर्धाली हैं जो मुहावरों के रूप में हमारे समाज में प्रचलित हैं।

रामचरितमानस मुहावरों के माध्यम से जन-मानस की पहुँच के अन्दर है। गाँव का अनपढ़ ग्वाला अपनी बात की प्रामाणिकता के लिए कह उठता है-प्राण जायें पर बचन न जाई। श्रोता पर इस बात का यह असर पड़ता है कि वह समझ जाता है कि सामने वाले ने जो वचन दिया है वह पूरा होकर ही रहेगा। गाँव के ग्वाले के इस कथन पर रामचरितमानस की इस अर्धाली ने अपनी परिपक्वता के हस्ताक्षर कर दिए हैं। उसकी यह बात शपथ पत्र बन गई है।

रामचरितमानस के मुहावरों को जब- जब जन-जन के द्वारा प्रयोग किया जाता है तो सपथपत्र के रूप में अनायास यह प्रयोग कथ्य को बजनदार बना देता है कि बात में कोई टोलमटोल की गुंजाइस नहीं रहती है।

रामचरितमानस की अर्धाली, दोहे, चौपाइयाँ जन- जन की आचार सहिता बन गई हैं। उससे लिए गये कथन हमारे धर्मग्रंथ के सुभाषित वाक्य हैं जो जन जीवन में चेतना लाने का प्रयास कर रहे हैं। आदमी के अन्दर पनप रहे आत्म विश्वास को बढ़ाने का काम ये मानस के मुहावरे करने में लगे हैं।

समय के व्यतीत हो जाने पर, उसे उस व्यर्थ गये समय का ज्ञान देने के लिए उपदेशक कहने लगता है-

का वर्षा जब कृषि सुखाने।

संसार को कर्मवादी बनाने के लिए मानस का यह सन्देश-

कर्म प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करिअ सो तस फल चाखा।।

इस घरती के श्रमशील व्यक्तित्व को थपथपाने के लिए-

जो इच्छा करिहो मन माहीं। राम कृपा कछु दुर्लभ नाँहीं।।

संसार के प्राणियों को समय का महत्व बतलाने के लिए-

तुलसी नर को का बड़ो, समय बड़ो बलवान।

आदमी के जीवन में सत्संग का बड़ा महत्व है। निम्न कथन में सत्संग का महत्व समाहित है-

सठ सुधरहि सत् संगत पाई। पारस परस कुघात सुहाई।।

ऐसे ही इस चौपाई में-

बिन सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।

जब हम किसी नये कार्य को शुरू करने के लिए पण्डित जी से मुहूर्त पूछने जाते हैं। वे मुहूर्त बतलाने के साथ अन्त में यह चौपाई कह देते हैं-

प्रबिस नगर कीजै सब काजा। हृदय राखि कौशलपुर राजा।।

यह महामंत्र पाकर राम के नाम के सहारे वह उस शुभ मुहूर्त पर जो कामष्शुरू करता है उसकी सफलता में सन्देह नहीं रह जाता है।

ज्ब- जब आदमी निराशा के गर्त र्में डूब जाता है अथवा वह जो काम कर रहा है वह कहीं आशा से अधिक फलदाई हो जाता है तो यह कथन आदमी की हिम्मत को सहलाने के लिए पर्याप्त है।

होइ है सोई जो राम रचि राखा। का करि तर्क बढ़ावहि साखा।।

श्रेष्ठ लोगों का महत्व प्रतिपादित करने के लिए यह दोहा रामबाण है-

जड़ चेतन गुण दोष मय विश्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि वारि विकार।।

जब कोई कवि या लेखक अपना आत्मविश्लेषण करने लगता है। रामचरितमानस की यह चौपाई उसे सन्देश देने लगती है-

कवित विवेक एक नहि मोरे। सत्य कहऊँ लिखि कागद कोरे।।

आत्मविश्लेषण का यह सपथ पत्र उसे अहम् से बचाने में पूरी तरह समर्थ है। राम नाम का महत्व प्रदर्शित करने के लिए यह दोहा वन्दनीय है-

राम नाम मणि दीप धरु जीह देहरी द्वार।

तुलसी भीतर बाहिरेहु जौ चाहसि उजियार।।

आदमी जब गृह जाल में फस जाता है। उसे आत्म साधना के लिए समय ही नहींे मिल पाता है, तब यह अर्धाली उसे आत्म सन्तोष देने लगती है-

गृह कारज नाना जंजाला।

ीइस प्रकार की कठिन स्थिति में उलझ जाने पर यही वेदना इन शब्दों में प्रकट होने लगती है-बंधेउ कीट मरकट की नाईं।

होनहार भवतव्यता का यह स्वरूप मानव जीवन में यदा-कदा देखने को मिल ही जाता है। उस समय यह कथन मुखरित हो उठता है-

तुलसी जसि भवतव्यता। तेसो मिलइ सहाय।।

आपन आवइ ताहि पहि। ताहि तहाँ ले जाय।।

एक दिन मैं टेªन से घर लौट रहा था। प्लेटफार्म पर यह चौपाई लिखी दिखी-

परहित सरिस धर्म नहीं भाई। पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।। उस दिन मुझे लगा यह चौपाई तो संयुक्त राष्ट्र संध के कार्यालय के मुखरविन्द पर लिखने लायक है। विश्व में इससे सुभाषित सन्देश जन-मन की पीड़ा को हरने वाला और क्या हो सकता है।

सम्प्रभुता को पाकर आदमी का अहम् पल्लवित हो उठता है। महाकवि तुलसी दास जी ने उस अहम् से बचने के लिए हमें सचेत किया है-

नहि कोउ अस जन्मा जग माहीं। प्रभुता पाइ ताहि मद नाहीं।।

इसे सुनकर हम अपने हृदय को टटोलने लगते हैं, कहीं ऐसा कोई दोष हमारे अन्दर प्रवेश तो नहीं कर गया।

जब हम अपनी जाति का अपामान महसूस करने लगें तो मानस की यह अर्धाली हमें सजग कगरने के लिए मुखरित हो उठती है- सब ते कठिन जाति अपमाना।

हम अपनी जाति को उस अपमान से बचाने के लिए यह मुहावरा सुनकर कृत संकल्पित हो जाते हैं।

रामचरितमानस में ऐसी बहुत सी चौपाइयाँ एवं दोहे है जो उपदेशक बनकर समाज में विचरण कर रहे हैं-

मात पिता गुर प्रभु कैबानी। बिना विचारकािअ शुभ जानी।।

बिना हरि कृपा के संत नहीं मिलते-

अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरि कृपा मिलहि नहीं संता।।

प्रभु का प्रताप इस पक्ति में देखिये-

सुन माता साखा मृग नहिं बलबुद्धि विशाल।

प्रभु प्रताप ते गरुणहि खाय परम लघु ब्याल।।

कभी- कभी जीवन में हमारे द्वारा कोई महान कार्य हो जाते हैं तो इन शब्दों में हमें प्रशंसा सुन पड़ती है- जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई।

उस समय हम अहम् से बचने के लिए इस महामंत्र का जाप करने लगते हैं-

प्रभु की कृपा भयउ सब काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू।।

जब हम किसी की शरणागत होना चाहते हैं तो यह महामंत्र हमारे मुख से अनायास निकल पड़ता है-

मन क्रम बचन चरण अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौ त्यागी।।

यों इस कथन से हम अपनी शरणागति स्वीकार कर लेते हैं।

रामचरितमानस में ऐसे बहुत से नीति परक दोहे, चौपाइयाँ हैं जो व्यवस्था को सचेत करने के लिए अपना ध्वज लिए खड़े हैं-

सचिव,वैद्य गुरु तीनि जो प्रिय बोलहि भय आस।

राजधर्म तन तीनि कर होइ वेगहि नास।।

जैसा व्य्िक्त होगा। वैसा ही समाज बन जायेगा। उसका वैसा ही घर होगा। मानस की यह अर्धाली कितनी गहरी अनुभूति व्यक्त कर रही है-

जस दूलहु तसि बनी बराता।।

देश के स्वतंत्रता संग्राम में, इस एक मुहावरे ने जन-मन में स्वतंत्रता के लिए प्राण फूकने का कार्य किया है-

पराधीन सपनेहु सुख नाहि।

कभी -कभी किसी का कथन हमें अति श्रेष्ठ लगता है तो उसकी प्रशंसा में यह चौपाई निकल पड़ती है-

जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।।

कभी-कभी आदमी के जीवन में ऐसी स्थिति आती है कि उसे अपने काम को पूर्ण किए बिना चैन नहीं मिलता तो वह अपने परिजनों से कहने लगता है-

रामकाज कीन्है बिना मोहि कहाँ विश्राम।

हम जिस मोहल्ले घर परिवार में रहते हैं, वहाँ का वातावरण अनुकूल नहीं हुआ तो वह अपनी वेदना इन शब्दों में व्यक्त करता है-

सुनहु पवन सुत रहनि हमारी। जिम दसनन्हि महुँ जीभ विचारी।।

हरिजन शब्द के सुन्दर उपयोग के लिए इस समय याद आरही है यह अर्धाली-

हरिजन जान प्रीति अति बाढ़ी।

किसी काम को शीघ्रता से सम्पन्न करने के लिए यह सन्देश-

अब बिलंवु केहि कारन कीजे।।

यदि कोई अनायास हमारे घर हमारी जानकारी लेने के लिए आ जाता है तो घर के सभी लोग इस चौपाई का स्मरण करनके लगते हैं’-

जानि न जाय निशाचर माया। काम रूप केहि कारण आया।।

जब कोई किसी से भयभीत होकर शरण में आता है तो हम उसकी शरणागति अपना कर्तव्य मानकर स्वीकार कर लेते हैं-

जो सभीत आवा सरनाई। रखिहऊँ ताहि प्रान की नाईं।।

जन-जन में प्रचारित यह अर्धाली- भय बिनु होय न प्रति। प्रति का भय के साथ समन्वय करने का यह अद्वितीय उदाहरण वन्दनीय है।

रामचरितमानस एक यह चौपाई जन- जन में विवाद का विषय बनकर उभरती रहती है। जिस के मन जैसा आया, उसका लोग वैसा अर्थ लगा लेते हैं। उसी अर्थ को वे सही अर्थ होने का दावा भी करते हैं।-

ढोल गवाँर शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।

ऐसा लोचदार मुहावरा जन- जन की जीभ पर कुण्डली मार कर बैठ गया है। ताड़ना के विभिन्न अर्थ लगाये जातें हैं। कुछ ताडना का अर्थ समझने से भी लगाते हैंें कुछ मारने- पीटने से। इसका जिसके मन जैसा आया अपने- अपने विवेक से वैसा अर्थ लगा रहे हैं। कुछ इसके कारण रामचरितमानस की रचना का विरोध भी कर रहे हैं।

मित्रता को परिभाषित करने वाला यह सूत्र-

जाकर चित्त अहि गति सम नाई। अस कुमित्र परिहरहि भलाई।।

बहुत से मुहावरों में एक इस मुहावरे का प्रयोग भी अलग- अलग अर्थों में किया जाता है-

परम स्वतंत्र न सिर पर कोई।

एक पिता के सभी पुत्र अलग-अलग अस्तित्व की पहिचान के लिए जाने जाते हैं-‘

एक पिता के विपुल कुमारा। होहि प्रथक गुनशील अचारा।।

हमारे जनवादी मित्र रामचरितमानस की इन पक्तियों के बहुत चर्चा करते रहते हैं। वे राम राज्य की ऐसी अनूठी कल्पना के बहुत प्रशंसक हैं। वे मुहावरे की तरह इन पक्तियों का प्रयोग करते रहते हैं-

दैहिक दैविक भोतिक तापा। रामराज्य नहिं काहुहि व्यापा।।

सब नर करहीं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।

चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहु अघ नाहीं।।

राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परमगति के अधिकारी।।

अल्प मृत्यु नहीं कबनिउ पीरा। सब सुन्दर सब निरुज शरीरा।।

नहीं दरिद्र कोई दुःखी न दीना। नहीं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।

राम राज नभ गेस सुन,सचराचर जग माहिं।

काल कर्म स्वभव गुन, कृत दुःख काहुहि नाहि।।

रामचरितमानस मुहावरों का सागर है। जन- जन में व्यप्त मुहावरों में अधिकाश मुहावरे रामचरितमानस से लोगों के पास आये हैं। इस प्रकार मानस दिन-प्रतिदिन जन- जन में अपनी पैठ बनाता जा रहा है।

भारतीय समाज की आचार संहिता, यह सपथ पत्र, यह आत्मविश्वास पैदा करने वाली धरोहर और उसके मुहावरे वन्दनीय हैं जो सहज ही इस समाज को व्यवस्थित बनाये रखने में मदद कर रहे हैं। शत् शत् वन्दनीय है रामचरितमानस एवं इस महाकाव्य के रचयिता विश्वकवि गोस्वामी तुलसीदास।


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रामचरितमानस