अपने-अपने कारागृह - 16 Sudha Adesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपने-अपने कारागृह - 16

अपने-अपने कारागृह -16

22 तारीख को अनिला का कनछेदन करना निश्चित हुआ । सुबह 10:00 बजे अस्पताल में कनछेदन के लिए अपॉइंटमेंट ले लिया था । अजय नहीं चाहते थे कि किसी सुनार से अनिला के कान छिदाये जाएं । गन शॉट से एक मिनट भी नहीं लगा कान छेदने में । डॉक्टर के द्वारा दर्द निवारक दवा लगाने के कारण दर्द भी नहीं हुआ ।

दिन में पूजा का आयोजन किया गया था तथा रात्रि में डिनर का । डिनर में सभी आमंत्रित लोगों ने आकर अनिला को आशीर्वाद दिया तथा उनका मान बढ़ाया । नए लोगों से परिचय के साथ जान पहचान का भी दायरा बढ़ाने वे अत्यन्त खुश थे ।

पच्चीस तारीख को पदम और रिया को जाना था । पूरा घर खाली हो जाएगा, सोच- सोचकर उषा का मन परेशान होने लगा था । कुछ दिन पूर्व जहाँ वह उनके आने का इंतजार कर रही थी वहीं अब उनके जाने की आहट से उसका मन दुखी था पर वह कर भी क्या सकती है ? बच्चे तो उड़ते पंछी हैं । थोड़ी देर अपने नीड में विश्राम कर फिर कर्म क्षेत्र में जाना उनकी मजबूरी है, सोचकर मन को समझाने का प्रयत्न किया था ।

दो दिन बच्चों ने उनके साथ गुजारने का फैसला किया । अजय, पदम, पल्लव जहां बातें कर रहे थे वही डेनियल और रिया, स्नेहा के साथ किचन में लगी हुई थीं । वहीं वह स्वयं अनिला और परी को उनके डैडी और ममा की बचपन की फोटो दिखा रही थी । अनिला बड़ी होने के कारण अनेकों प्रश्न कर रही थी मसलन यह फ़ोटो कब की है । इसमें मैं कहां हूँ ? मम्मा कहाँ है ? परी, अनिला के प्रश्नों को दोहराने का प्रयत्न कर रही थी जबकि वह दोनों को संतुष्ट करने का प्रयास कर रही थी ।

डेनियल और पल्लव ने लंदन आने का वायदा लेकर उनसे विदा ली वहीं रिया भी कह रही थी, ' मम्मा एक बार आइए ना बेंगलुरु ।'

जब वह उन दोनों को विदा करके लौटी तो मन बहुत बेचैन था । कैसी है यह मजबूरी है ? एक समय था जब पति-पत्नी एकांत चाहते हैं पर मिल नहीं पाता था पर अब जब एकांत ही एकांत है पर चाहना नहीं , मायूसी सिर्फ मायूसी ।

उषा ने अजय से लंदन जाने की बात की तो उन्होंने कहा, ' चलेंगे पर जरा व्यवस्थित तो हो लें ।'

बात अजय की भी ठीक थी क्योंकि कुछ डियूज बाकी थे तथा जो मिल चुका था उसे उचित जगह इन्वेस्ट करना था । उषा ने सोचा कि अब उसे भी अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए । गौतम तथा नीलिमा अध्यापक रहे हैं अतः इस संदर्भ में उसे उनसे बात करना उचित लगा । एक दिन अवसर देखकर वह गौतम स्वामी के घर गई तथा अपना प्रौढ़ शिक्षा वाला मंतव्य उन्हें बताया तो उन्होंने कहा, ' उषा जी विचार तो बहुत अच्छा है पर अभी हमें अपनी बेटी के पास मुंबई जाना है । आने पर विचार करते हैं । '

' अगर हम कक्षाएं प्रारंभ करना चाहे तो यहां कोई जगह है ।'

' यहां पास में ही एक कम्युनिटी हॉल है । वहां आप क्लास ले सकती हैं । इसके लिए आपको सेक्रेटरी गुरमीत सिंह से बात करनी होगी । वह मकान नंबर 502 में रहते हैं ।' नीलिमा ने उत्तर दिया ।

' ठीक है आप लोग होकर आइए, तब तक मैं सोचती हूँ कैसे क्या कर सकती हूँ ।'

उषा ने गुरमीत सिंह से बात की । वह उषा के इस मिशन में साथ देने के लिए तैयार हो गए । उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के संदर्भ में आस पास की जगहों में प्रचार करने के लिए पैम्फलेट भी बंटवा दिए जिससे लोगों को उनके मिशन का पता चल सके तथा इक्छुक लोग आकर पढ़ाई का लाभ उठा पायें ।

जब पूनम और स्नेह को उसके इस मिशन का पता चला तो उन्होंने उससे कहा , 'भाभी क्या आप हमें पढ़ाओगे ?'

' क्यों नहीं ? बिल्कुल पढ़ाऊंगी । यह बताओ तुम थोड़ा बहुत पढ़ना जानती हो या बिल्कुल भी नहीं ।'

' मैं पांचवी कक्षा तक पढ़ी हूँ ।' स्नेह ने कहा ।

' और तुम पूनम ...।'

'मैं तो सिर्फ अपना नाम ही लिख पाती हूँ ।'

ठीक है कल 5:00 बजे कम्युनिटी हॉल में पहुँच जाना । कॉपी पेंसिल मैं दूंगी पर फीस के रूप में ₹20 हर महीने लूँगी ।'

' 20 रुपये ।' कहकर वे आश्चर्य से एक दूसरे को देखने लगीं ।

' क्यों क्या हुआ ?'

' कुछ नहीं भाभी ।'

' तुम दोनों सोच रही होगी कि क्या मैं तुम दोनों से भी फीस लूंगी ?'

'नहीं भाभी, हम सोच रहे थे कि सिर्फ 20 रुपये फीस ।'

' हाँ सिर्फ 20 रुपये । 20 रुपये फीस मैं इसलिए रख रही हूँ क्योंकि मेरा मानना है बिना फीस के विद्या का कोई मोल नहीं होता । अगर इंसान पैसा खर्च करता है तो उसे वसूलना भी चाहता है । अगर मैं निःशुल्क विद्या दूँगी तो शायद एक-दो दिन पढ़कर तीसरे दिन विद्यार्थी आए ही ना ।'

'भाभी हमें पढ़ना है हम अवश्य आएंगे ।'

उसके इस नेक काम में उमा, शशि और लीना ने भी हाथ बंटाने के लिए तैयार हो गईं जिसे उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया । वैसे भी एक से भले दो ...महीने भर में ही 20 विद्यार्थी आ गए । वैसे भी एक घंटे में इससे अधिक को पढ़ाने की गुंजाइश भी नहीं थी ।

*********


एक दिन अंजना और मयंक आए । वे बहुत उदास थे । उषा ने उनकी उदासी का कारण पूछा तो अंजना ने कहा, ' भाभी माँ- पापा हमसे रूठ कर वृद्धाश्रम चले गए हैं । हमने उन्हें मनाने का बहुत प्रयास किया पर मान ही नहीं रहे हैं । बार-बार यही कह रहे हैं कि अब जब तुम्हारी बदनामी होगी, तब तुम्हें पता चलेगा । जो सुनेगा तुम्हें ही दोष देगा ,कहेगा माता-पिता को परेशान किया होगा तभी वे वृद्धाश्रम गए हैं ।'

' बात तो उनकी भी सही है वरना ऐसे ही कोई नहीं चला जाता वृद्धाश्रम में रहने के लिए ।' उषा ने कहा ।

' भाभी आप भी ...।' अंजना ने रुआंसे स्वर में कहा ।

' अंजना मैं तुम्हें गलत नहीं कह रही हूँ पर यह स्थिति आई ही क्यों ? कभी सोचा तुमने !!'

' भाभी, अब मैं क्या बताऊं, उस दिन मैं डॉक्टर के पास अपने गायनिक समस्या को लेकर गई थी । वहां समय लग गया । लौट कर आई तो देखा मां जी बहुत क्रोध में थीं । मुझसे तो उन्होंने कुछ नहीं कहा पर इनके आते ही वह बरस पड़ी, कहा,' तुम्हें काम से तथा इसे घूमने से ही फुर्सत नहीं है । जब तुम दोनों के पास हमारे लिए समय ही नहीं है तब हम तुम लोगों के पास क्यों रहें ?'

मयंक तो अवाक रह गए । अपना सारा क्रोध मयंक ने मुझ पर निकाला जबकि मैं पूरा खाना बनाकर हॉट केस में रखकर गई थी । हां यह बात अवश्य है कि उस दिन मैंने डॉक्टर के पास जाने की बात माँ जी को नहीं बताई थी ।'

' पर क्यों ?' उषा ने पूछा ।

' भाभी, अगर मैं उन्हें बताती तो वह भी मेरे साथ यह कहकर चल देतीं कि मेरा भी ब्लड प्रेशर चेक करा देना या मेरे पैर का दर्द ठीक नहीं हो रहा है तू अस्पताल जा रही है तो मैं भी अपना चेकअप करा लूंगी । अगर नहीं जातीं तब भी तिरस्कार के स्वर में कहतीं, 'हमने खूब काम किया । गाय भैंसों की सानी लगाई ,चक्की पीसी, कुएं से पानी निकाला, खलबट्टा में मसाला पीसा , तुम्हारी उम्र में न हम कभी बीमार हुए और न ही डॉक्टर के चक्कर लगाए । तुम लोग के पास अब कुछ काम रहा नहीं है , खाली हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने पर बीमार नहीं पडोगी तो और क्या होगा ? अब उम्र के साथ ब्लड प्रेशर अवश्य बढ़ गया है । उस दिन सोचा कि उनकी कड़वी बातें सुनने से अच्छा है कि बिना बताए ही चली जाती हूँ । भाभी, यही मेरी गलती थी । '

'पिताजी....।'

' उन्होंने तो काफी दिनों से किसी को कुछ भी कहना ही छोड़ दिया है ।'

' वृद्धाश्रम का पता उन्हें किसने बताया ?'

'पड़ोसन देवलीना की सास देविका आंटी ने I '

'लेकिन क्यों ?'

' यह तो पता नहीं भाभी । माँ जी को मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं रही थी पर जब से देविका आंटी से उनका संपर्क बढ़ा है ,उनको मुझ में कमियां ही कमियां नजर आने लगी हैं । '

' क्या …?' इस बार उषा के चेहरे पर आश्चर्य था ।

' हां भाभी , अब वह हमेशा मेरी तुलना देविका आंटी की बहू देवलीना से करने लगी हैं । अक्सर कहती है उसे देख चार पैसे भी कमा कर लाती है और घर भी संभालती है पर तुझे बाहर घूमने से ही फुर्सत नहीं मिलती । भाभी उन्होंने ही मुझे नौकरी नहीं करने दी थी । जब भी मैं इस संदर्भ में उनसे बात करती थी तो वे कहतीं थीं कि हमारे घर में बहुओं से काम नहीं कराया जाता और अब इसी बात पर रोकना, रोकना...। भाभी जी अगर मैं कहीं नौकरी नहीं करती तो क्या मुझे कहीं आने-जाने का अधिकार नहीं है ? अब जब भी मैं घर से बाहर निकलती हूँ, तब- तब मुझे उनकी जली कटी सुननी पड़ती है । उस दिन तो इंतिहा ही हो गई । उन्होंने घर छोड़कर जाने का फैसला ही सुना दिया । सबसे बड़ी बात उन्होंने देवेश और संयुक्ता को भी फोन करके अपने वृद्धाश्रम जाने की बात कह दी तथा सारा दोष यह कहकर मुझ पर मढ़ दिया कि तेरी माँ के कारण ही हम यह फैसला ले रहे हैं । बच्चों को भी लग रहा है कि कहीं मैं ही दोषी हूँ । भाभी जीवन के 25 वर्ष मैंने उनको समर्पित कर दिए पर आज मेरी सारी तपस्या भंग हो गई ।' कहकर अंजना रोने लगी ।

उषा को देविका जहां सुलझी महिला लग रही थीं वही अंजना की सास कमला ईर्ष्या से ग्रस्त स्त्री ...। उनकी ईर्ष्या ने हरी-भरी बगिया में कांटे बो दिए थे । घर की बात घर में ही रहे यही बड़ों की जिम्मेदारी है न कि वे अपने कार्यकलापों से घर की शांति ही तहस-नहस करने पर उतारू हो जाएं ।

उषा ने रोती भी अंजना को दिलासा देते हुए कहा,' अगर तुम गलत नहीं हो तो धैर्य रखो सब ठीक हो जाएगा । भले ही थोड़ा समय क्यों ना लगे । मैं उनसे मिलकर देखती हूँ ।'

हताश निराश मयंक ने उषा को वृद्धाश्रम का पता दे दिया । उषा ने भी उनकी समस्या को सुलझाने का पूरा भरोसा उन्हें दिया ।

सुधा आदेश

क्रमशः