अपने-अपने कारागृह - 15 Sudha Adesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपने-अपने कारागृह - 15

अपने-अपने कारागृह-15

16 मार्च को सुबह 10:00 बजे पदम और डेनियल आ गए । शाम 6:00 बजे रिया और पल्लव अपनी पुत्री परी के साथ आने वाले थे । अजय के पार्क में घुमाने तथा पास के शॉपिंग सेंटर में ले जाने के बाद भी अनिला सुबह से ही ' मैं बोर हो रही हूँ ।' की रट लगाए हुई थी पर जैसे ही परी आई वह खुश हो गई ।

' मां देखो मेरी छोटी बहन कितनी प्यारी है ।' अनिला ने डेनियल से कहा ।

विदेश में रहने के बावजूद अनिला को अंग्रेजी के साथ साफ हिंदी बोलते देखकर उषा को अत्यंत हर्ष हो रहा था । डेनियल भी अब अच्छी हिंदी बोलने लगी थी । उषा हिंदी की कद्रदान थी । उसका मानना था कि बच्चों को दूसरी भाषाओं के साथ अपनी मातृभाषा अवश्य आनी चाहिए । मातृभाषा ही व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़ कर रखती है ।

रिया और डेनियल बहुत दिनों पश्चात मिलने के कारण बेहद प्रसन्न थीं । उनकी लखनऊ घूमने की प्लानिंग चल रही थी उधर पदम और पल्लव अपनी अपनी बातों में मशहूर थे और अनिला और परी ने अपने दादाजी पर कब्जा जमाया हुआ था । वह कभी उनसे किसी चीज की फरमाइश करती, तो कभी बाहर घूमने की पेशकश करती । उषा अजय को बिना तू चपड़ किए बच्चों की एक-एक बात मानते देख कर आश्चर्यचकित थी जबकि वह स्वयं महाराजन स्नेह के साथ किचन में लगी हुई थी । स्नेह को काम करते हुए अभी हफ्ता भर ही हुआ था । उसे अपने स्वाद के अनुसार खाना बनाने की शिक्षा देने के लिए उसके साथ लगना ही पड़ता था । वैसे 2 लोगों के खाने में कुछ विशेष समय नहीं लगता पर वह सिर्फ घर तक ही सीमित नहीं रहना चाहती थी । अगर इस स्नेह ट्रेंड हो गई तो कम से कम वह इस जिम्मेदारी से तो मुक्त रहेगी ।

दूसरे दिन पदम और रिया का लखनऊ भ्रमण का कार्यक्रम बन गया । वे उन्हें भी चलने के लिए कहने लगे पर अजय का मन नहीं था । उनका कहना था बच्चों को जाने दो । हमारे साथ रहने से वे ठीक से एंजॉय नहीं कर पाएंगे । उषा भी उनकी बात से सहमत थी अंततः वे चले गए ।

पल्लव और डेनियल का लखनऊ घूमा हुआ नहीं था अतः वे ज्यादा ही उत्साहित थे । नवाबों की नगरी उन्हें सदा से आकर्षित करती रही थी । शाम को जब वे सब लौट कर आए तो बेहद प्रसन्न थे । पल्लव को जहां छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा पसंद आया वहीं डेनियल को भूल भुलैया । उसने आते ही कहा, ' मम्मा पता नहीं इसे कैसे निर्मित किया गया है अगर हम गाइड नहीं करते तो हम सबका भूल भुलैया से बाहर निकलना ही कठिन हो जाता । सबसे बड़ी बात अपनी ही आवाज वहां बहुत देर तक गूंजती रहती है ।'

अनिला और परी अपने दादाजी के पास बैठी पूरे दिन के किस्से सुना रही थीं । कैसे बुद्धा पार्क में वोटिंग की , नींबू पार्क में घूमे तथा जनेश्वर मिश्र वर्क में झूला झूले ।

इसी बीच ऊषा ने गरमा गरम वेजिटेबिल कबाब पेश किए । उन्हें देखकर पदम कह उठा, ' वाह ममा ! आपका जवाब नहीं । कबाब वह भी गर्मागर्म । इस बार मैं सोच ही रहा था कि आपसे कबाब बनाने के लिए कहूँगा पर मेरे कहने से पूर्व भी आपने बना दिये । थैंक यू मॉम ।'

' ज्यादा मस्का मत लगा, बता कैसे बने हैं ?' आदतन वह पूछ बैठी । जबकि अजय उसकी इस आदत के लिए यह कहकर कई बार टोक चुके हैं कि ऐसा वही कहते हैं जिन को स्वयं पर विश्वास नहीं होता ।

' मम्मा एकदम परफेक्ट लाजवाब ...।'

डेनियल भी काफी स्वाद से कबाब खा रही थी , यही हाल रिया और पल्लव का था । भौतिकता की अंधी दौड़ में भाग रहे युवाओं को आज खाने पीने का समय ही कहाँ मिल पाता है । उनकी चाव से कहते देखकर उषा ने हर दिन कुछ नया बनाने और खिलाने का मन बना लिया था ।

बच्चे कुछ ही दिनों में लगता था पूरा लखनऊ एक्सप्लोर कर लेना चाहते थे अतः लगभग रोज ही उनका कहीं ना कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम बन जाता । कभी वे हजरतगंज जाते तो कभी अमीनाबाद, कभी चौक तो कभी कपूरथला या फिर कभी वे फन या वेव मॉल जाते और नहीं तो लखनऊ की चाट खाने ही निकल जाते तथा साथ में उनके लिए भी पैक करा लाते । उषा भी बच्चों को एक साथ घूमते देख कर बहुत खुश थी ।

उषा उनके लिए रोज ही कुछ स्पेशल बना कर रखती । बाहर का खाने के बावजूद वे उसके हाथ का बना खाना भी बड़े चाव से खाते । बच्चों के घूमने निकलते ही अजय और उषा भी अनिला के कनछेदन का निमंत्रण देने निकल जाते । सीनियर सिटीजन ग्रुप के लोगों के अतिरिक्त कुछ अन्य लोग भी उनकी लिस्ट में सम्मिलित थे ।

मम्मा डैडी के अतिरिक्त मयंक और अंजना ने भी बच्चों को बुलाया था । उन्हें उन सबको लेकर उनके घर भी जाना था । बच्चों की सुविधा अनुसार उसने दोनों जगह जाने का कार्यक्रम बना लिया । पहले उषा उन्हें अपने मम्मा डैडी के घर लेकर गई । डेनियल अपने नाना -नानी तथा मामा -मामी के लिए उपहार लेकर आई थी । उसका उपहार उनके प्रति उसके अपनत्व दर्शा रहा था । डेनियल का अपनत्व एवं व्यवहार देखकर नंदिता ने कहा , ' बहुत भाग्यशाली हैं आप दीदी जो इतनी अच्छी बहू पाई है ।'

कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया अंजना ने भी दी थी । जब वह उन्हें उनके पास लेकर गई थी ।

' बुआ बुआ ' कह कर डेनियल न केवल अंजना के आगे पीछे घूम रही थी वरन किचन में भी अंजना का हाथ बंटा रही थी । मयंक के माता-पिता भी डेनियल के हाथों से उपहार पाकर बेहद प्रसन्न थे । विशेषता आज माँ जी ने कोई नकारात्मक बात नहीं की ।

धूलेंडी के दिन लीना एल्हेन्स का फोन आ गया । उन्होंने सबको साथ लेकर आने का एक बार फिर निमंत्रण दिया था । अब न ले जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था । उसने स्प्रिंग रोल के साथ हरा भरा कबाब और बना लिए ।

लीना ने घर के लॉन में होलिका रखी थी । सबके पहुंचते ही होलिका दहन की तैयारी प्रारंभ हो गई । डेनियल के लिए यह एक नई चीज थी ।उसने होलिका दहन का कारण पूछा तो उषा ने उसे होलिका की कहानी सुना कर, उसको होली के त्योहार के बारे में बताने का प्रयत्न किया तथा यह भी बताया की होली बुराई पर अच्छाई के प्रतीक स्वरूप मनाई जाती है । होली के रंग आपस में प्रेम और सद्भाव के प्रतीक हैं । यह रंगों का त्योहार होली, सारे गिले शिकवे भुला कर प्रेम से रहने का संदेश देता है ।

होलिका दहन के पश्चात ही रंगों का त्यौहार प्रारंभ हो गया । छोटे बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद ले रहे थे वहीं बड़े छोटे और बराबर वालों के गले मिलकर आशीर्वाद और शुभकामनाएं देने लगे । तत्पश्चात फाग के गाने, होली के ऊपर बने फिल्मी गाने तथा हास परिहास प्रारंभ हो गया । ढोलक संभाल रखी थी शशि ने जबकि देवेंद्र और नीलम ने गानों की कमान संभाल रखी थी वहीं नजमा मंजीरे पर थाप दे रही थी ।

पदम, रिया और पल्लव के साथ डेनियल भी खुशी खुशी रंगो के त्यौहार को एन्जॉय कर रही थी । साथ ही साथ अनिला और परी भी । देर रात होली विश करके वे सब घर लौटे ।

दूसरे दिन अनिला और परी सुबह जल्दी ही उठ गईं । उठते ही अपनी- अपनी पिचकारी लेकर ' होली खेलना है ।' की रट लगाने लगी ।

आखिर पदम ने बाहर लॉन में बाल्टी में पानी रखकर रंग डाल दिया । उसने उनको पिचकारी में रंग भर कर चलाना सिखाया ही था कि वे दोनों एक दूसरे के ऊपर रंगों की बौछार करने के साथ जो भी उनके सामने आता उस पर रंगों की बौछार करते हुए ' होली है ' कहतीं और भाग जातीं । उन दोनों को मस्ती करते देख अजय बाहर बरामदे में बैठे-बैठे खुश हो रहे थे कि तभी अनिला ने उनके ऊपर रंगों की बौछार करते हुए कहा, ' हैप्पी होली दादाजी 'उसी का अनुसरण परी ने भी किया ।

' अरे अरे...।' कहते हुए अजय अपने स्थान से हटे । तभी पदम और डेनियल ने उनके पैरों पर रंग लगाते हुए ' हैप्पी होली पापा जी ' कहा । अजय ने उन्हें आशीर्वाद दिया... क्यू में रिया और पल्लव भी थे ।

गुझिया खाकर डेनियल आश्चर्यचकित थी । उसने उससे कहा, ' ममा, आप मुझे भी गुझिया बनाना सिखा दीजिए । हर होली पर पदम गुझिया की बात करते हैं पर मुझे बनानी ही नहीं आती । आप से सीख लूँगी तो कभी-कभी पदम को बनाकर खिला दिया करूंगी ।'

सुधा आदेश

क्रमशः