अपने-अपने कारागृह - 6 Sudha Adesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

  • मंजिले - भाग 14

     ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।...

श्रेणी
शेयर करे

अपने-अपने कारागृह - 6

अपने-अपने कारागृह -5

इसी बीच अजय का प्रिंसिपल सेक्रेटरी पद पर रांची स्थानांतरण हो गया । ' किंग ऑफ स्मॉल किंगडम' वाला दर्जा उनसे छिन गया था । अब उषा भी दूसरी लाइफ में है स्वयं को समायोजित करने का प्रयास करने लगी । अपनी रचनात्मकता तथा कार्यशैली से उसने 'महिला क्लब ' में अपना दबदबा बना लिया था तथा सभी एक्टिविटीज में खुलकर भाग लेने लगी थी ।

वैसे भी जगह-जगह खोलें प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों के कारण उसकी ख्याति पहले ही' महिला क्लब ' की अध्यक्षा प्रभा मेनन तक पहुंच चुकी थी । वह उससे इतना प्रभावित थीं कि उससे सलाह लिए बिना वह कोई कार्य नहीं करना चाहती थीं । सेक्रेटरी ममता को भी उन्होंने स्पष्ट निर्देश दे दिया था कि वह उससे सलाह लेकर ही किसी कार्यक्रम का निरूपण करें । अनाथ आश्रम में दान देने के साथ अपने क्लब के माध्यम से प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खोलने का अपना विचार उसने अध्यक्षा के सम्मुख रखा तो उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था ।

रिया को भी अंततः कैंपस द्वारा एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छा ऑफर मिल गया । उसकी पोस्टिंग बेंगलुरु में हुई थी । उषा की इच्छा तो पूरी नहीं हो पाई परंतु कदम दर कदम बच्चों को अपनी मंजिल प्राप्त करते देखकर उषा की खुशी का ठिकाना न था । बच्चों को पल-पल बढ़ते देखना माता- पिता को न केवल सुकून पहुँचाता है वरन आत्मिक संतोष भी देता है । बच्चे माता-पिता का गुरूर होते हैं । हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके बच्चे उनसे अधिक नाम कमाए और एक दिन ऐसा आए कि बच्चे उनके नाम से नहीं वरन वह बच्चों के नाम से जाने पहचाने जाएं ।

रिया के ज्वाइन करते ही उषा को उसके विवाह की चिंता सताने लगी । रिया से जब इस संदर्भ में बात की तो उसने कहा , ' मम्मा मुझे अभी थोड़ा सेट तो हो लेने दीजिए ।'

उषा को रिया का कहना भी ठीक लगा । दो वर्ष बीतने पर भी जब उसका यही उत्तर रहा तो उसने चेतावनी के स्वर में कहा, ' अब मैं तुम्हें और वक्त नहीं दे सकती । तुम्हें विवाह के लिए सहमति देनी ही होगी । दो वर्ष हो गए हैं तुम्हें जॉब करते हुए , समय से बच्चों की सारी जिम्मेदारियों से मुक्ति मिल जाए यह हर एक माता-पिता की इच्छा होती है ।'

बेटा -बेटी आई.ए.एस .नहीं बन पाए तो सोचा चलो दामाद ही इस प्रोफेशन का चुन लें, कम से कम उसकी इच्छा तो पूरी हो जाएगी । दीपावली पर रिया का आने का कार्यक्रम था । एक लड़का उषा की नजरों में था । वह अजय के अभिन्न मित्र देवेंद्र जो रांची में डिस्ट्रिक्ट जज थे, का पुत्र सुजय था । वह आई.पी.एस .था । उसे यू.पी . काडर मिला था । वह भी दीपावली पर घर आ रहा था । उषा सोच रही थी कि इस बार जब रिया आएगी तब वह दोनों को मिलाकर उनका विवाह पक्का कर देगी ।

दीपावली पर रिया आई । उसके आत्मविश्वास ने उसके चेहरे का लावण्य और बढ़ा दिया था । दीपावली के पश्चात उषा सुजय से मिलने का कार्यक्रम बना ही रही थी कि दीपावली के दूसरे दिन रिया ने उससे कहा, ' मम्मा, कल मैं अपने मित्र को बुला लूँ वह मेरा कलीग है तथा रांची का ही रहने वाला है ।'

' अवश्य इसमें पूछने की क्या बात है । शाम 4:00 बजे तक आ जाए तो अच्छा है । शाम 6:00 बजे देवेंद्र भाईसाहब से मिलने जाना है । उनका लड़का सुजय आया हुआ है । बहुत ही सुदर्शन लड़का है । सोचा तुमसे मुलाकात करा दूँ । वह आई.पी.एस . है ।

' ठीक है ममा मैं उसको फोन कर देती हूँ ।' रिया ने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा ।

ठीक 4:00 बजे एक गाड़ी ने उनके बंगले में प्रवेश किया । उससे गौर वर्ण, छह फीट का एक लड़का उतरा । रिया उसको रिसीव करने पहुँच गई । उसे लेकर वह अंदर आई तथा उसका, उससे परिचय करवाते हुए उसने कहा, ' पल्लव, मीट माय ममा डैड और ममा डैड यह है पल्लव मेरा कलीग । हम एक ही कंपनी में काम करते हैं । यह ब्रांच मैनेजर है । इसके पिता हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट हैं ।'

' आओ बेटा, बैठो .. रिया तुम्हारी काफी प्रशंसा कर रही थी ।' अजय ने उसका स्वागत करते हुए कहा ।

पल्लव ने रिया की तरफ देखा । उसने इंकार में सिर हिलाया ही था कि उषा ने पूछा, ' तुम्हारी एजुकेशन कहाँ हुई है ।'

' जी रांची में.. ।'

' बी.टेक्. कहाँ से किया है ?'

' बी.आई.टी. मेसरा से ।'

' उषा, प्रश्न पर प्रश्न ही पूछती जाओगी या चाय नाश्ते का भी प्रबंध करोगी ।'

' बस अभी...।' कहकर उषा किचन में चली गई ।

डैडी और पल्लव के बीच पॉलिटिक्स से लेकर सरकारी और प्राइवेट कंपनी में वर्क कल्चर पर बातें होने लगीं । इसी बीच ममा श्यामू के साथ नाश्ता लेकर आईं । समोसे के साथ प्याज के पकोड़े, मिठाई इत्यादि । सब हल्के-फुल्के माहौल में नाश्ता कर रहे थे पर रिया तनाव में लग रही थी । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी बात वह कैसे मम्मा डैडी के सम्मुख रखे ।

' आंटी जी इतने अच्छे नाश्ते के लिए शुक्रिया । अंकल जी अब मैं इजाजत चाहूँगा ।' पल्लव ने उठते हुए कहा ।

' बेटा आते रहना ।' डैडी ने उससे कहा था ।

रिया पल्लव को कार तक छोड़ने गई ।

' तुमने मेरे और अपने संबंधों के बारे में अपने ममा- डैडी को बताया ।' पल्लव ने रिया से पूछा ।

' अभी नहीं ...समझ नहीं पा रही हूँ कि कैसे कहूं ?'

' वक्त कम है । कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाए । तुम ही कह रही थीं कि तुम्हारी मम्मा तुम्हारे विवाह की बात कर रही हैं ।'

' हां 6:00 बजे का अपॉइंटमेंट है । लड़का आई.पी.एस. है ।' रिया ने उसे चढ़ाते हुए कहा ।

' कहीं यह जनाब मेरा पत्ता ही साफ ना कर दें ।'

' शायद...।' रिया की आंखों में एक नटखट चमक थी ।

' रिया अब मुझे और परेशान मत करो । प्लीज , तुम अपने मम्मी डैडी से जल्द से जल्द बात करो ।'

' तुमने बात की ।'

' अभी तो नहीं पर आज अवश्य ही करूँगा ।'

' मतलब दो दो जगह बिजली चमकेगी ।'

' नहीं सिर्फ एक जगह... मेरे ममा पापा मेरी राय का सम्मान अवश्य करेंगे ।'

' ओ.के . मैं भी कम नहीं हूँ । मम्मा डैडी को मना ही लूंगी ।'

रिया पल्लव को विदा कर अंदर आई ही थी कि उषा ने कहा,' रिया शीघ्र तैयार हो जाओ । देवेंद्र भाई साहब के घर जाना है । '

' मम्मा डैडी आप दोनों चले जाओ । मेरा मन नहीं है ।'

' मन को क्या हो गया । अभी तो तुम पल्लव के साथ खूब खिलखिला कर बातें कर रही थीं ।'

' देवेंद्र भाई साहब ने तुझे बुलाया है । वह तुझे अपने पुत्र सुजय से मिलाना चाहते हैं । चल बेटा जल्दी आ जाएंगे ।' पापा ने उससे आग्रह किया था ।

रिया उनके साथ चली गई । देवेंद्र अंकल और मनीषा आंटी ने उनके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी सुजय भी ठीक थे किन्तु उसका मन पल्लव से लग चुका था अतः उनके बारे में सोचने का प्रश्न ही नहीं था । वैसे भी उसका और सुजय का कार्यक्षेत्र अलग था । अगर वह सुजय को चुनती तो उसे या तो उससे अलग रहना पड़ता या जॉब ही छोड़ना पड़ता । दोनों ही स्थिति शायद ही वह स्वीकार कर पाती ।

एक अच्छी मुलाकात के पश्चात वे घर लौट आए । खाने का किसी का मन नहीं था अतः श्यामू को कोल्ड कॉफ़ी बनाने का निर्देश देकर लिविंग रूम में बैठ गए ।

वह टीवी खोलने ही जा रही थी कि मम्मा ने पूछा, ' बेटा तुझे सुजय कैसा लगा ?'

' ठीक था ।' अन्मयस्कता से रिया ने कहा था ।

' फिर उसके साथ तुम्हारे विवाह की बात चलाएं ।'

विवाह और सुजय के साथ...नहीं, मैं आपको बता नहीं पाई थी कि मैं पल्लव के साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहती हूँ ।'

' क्या…?'

एक बार फिर उषा के मन मस्तिष्क में 30 वर्ष पूर्व का दृश्य घूम गया । ठीक उसी तरह उसने अपने और अजय के बारे में अपने मम्मा डैडी को बताया था । इतिहास एक बार फिर स्वयं को दोहरा रहा था पर वह इसके लिए तैयार नहीं थी । यही कारण था कि रिया की बात सुनकर वह बुरी तरह बिफर पड़ी थी ।उसकी मनोदशा देखकर अजय उसे अंदर ले कर गए तथा समझाते हुए कहा, ' शब्दों को लगाम दो उषा तुमने भी प्रेम विवाह किया है फिर अपनी पुत्री की मनः स्थिति क्यों नहीं समझ पा रही हो । पदम से तुम्हें शिकायत थी कि उसने हमसे बिना अनुमति लिए विवाह कर लिया किंतु रिया ने विवाह नहीं किया है । वह अपनी पसंद बताते हुए हमसे हमारा आशीर्वाद मांग रही है । लड़का अच्छा है । उसके साथ एक ही कंपनी में काम कर रहा है । उसे पसंद है तो हमारा आपत्ति करना व्यर्थ है । वैसे भी बच्चों की प्रसन्नता में ही हमारी प्रसन्नता होनी चाहिए । लगता है प्रेम विवाह हमारे बच्चों के डी.एन.ए .में है ।' अजय ने तनाव भरे माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से अंतिम वाक्य कहा तथा उषा की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा ।

उषा अजय की बात का कोई उत्तर नहीं दे पाई थी । अजय की बातों से पूर्ण सहमत ना होने के बावजूद अंततः उसने अपनी सहमति दे दी थी क्योंकि उसे लगा अगर उसने सहमति नहीं दी तो रिया भी कहीं पदम की तरह कोई गलत कदम ना उठा ले और सच उसकी स्वीकृति ने रिया को प्रसन्नता से सराबोर कर दिया । उसकी सहमति पाते ही रिया ने उसे किस करते हुए कहा ,' मम्मा मुझे आपसे यही उम्मीद थी यू आर माय ग्रेट ममा ।'

रिया की आँखों में उमड़ा प्यार उषा को द्रवित कर गया । सारा आक्रोश भूल कर उसने अजय से पल्लव के माता-पिता से मिलने की इच्छा जाहिर की । अंततः उन्होंने पल्लव के माता- पिता अवनीश और कविता से मिलकर उनका विवाह तय कर दिया । वह भी अपने सारे पूर्वाग्रह बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी ढूंढने को तैयार हो गए थे ।

विवाह की नियत तिथि से हफ्ता भर पूर्व ही पदम और डेनियल भी आ गए थे । आते ही पदम और डेनियल ने जिस तरह विवाह की बागडोर अपने हाथ में ली थी उसे देखकर उषा को महसूस हुआ था कि सचमुच बच्चे माता-पिता का बहुत बड़ा सहारा होते हैं । यद्यपि रिया ने विवाह की काफी शॉपिंग पहले ही कर ली थी पर डेनियल उससे संतुष्ट नहीं हुई । उसने आते ही रिया को फिर ढेरों शॉपिंग करा दी प्रिया की ड्रेस ,ज्वेलरी, ब्यूटी पार्लर से लेकर सूटकेस लगाने का सारा काम डेनियल ने ही किया था । तब लगा था कि डेनियल भले ही विदेशी हो पर संस्कारों में कहीं भी वह किसी भारतीय लड़की से कम नहीं है ।

अजय और उषा इस विवाह में कोई कमी नहीं रखना चाहते थे । वास्तव में वह पदम के विवाह की कमी इस विवाह से पूर्ण करना चाहते थे अतः बारातियों के साथ अपने नाते रिश्तेदारों के रुकने का पूरा इंतजाम उन्होंने होटल में किया था । स्टेशन से होटल लाने ले जाने की व्यवस्था के साथ, होटल के रूम के अलॉटमेंट की जिम्मेदारी पदम ने अपने ऊपर ले ली थी । दुख इस बात का था कि मम्मी जी ने इस बार भी आने से मना कर दिया था ।

विवाह वाले दिन रिया बहुत खूबसूरत लग रही थी । भारतीय साड़ी में डेनियल भी उससे कम नहीं लग रही थी । सभी अतिथि उसके स्वागत तथा व्यवहार से बेहद प्रसन्न थे । विवाह भली प्रकार संपन्न हो गया था । घराती, बारातियों को संतुष्ट देखकर उषा और अजय अत्यंत ही संतुष्ट थे।

उनका घर कॉस्मापॉलिटन हो गया था । वह स्वयं ब्राह्मण, अजय बंगाली जबकि उनकी बहू क्रिश्चियन और उनका दामाद पंजाबी बिहारी । अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर तथा बच्चों को अपने परिवारों ने प्रसन्न देखकर वे अत्यंत प्रसन्न थे । अभी खुशियों को जी भी नहीं पाए थे कि उनकी खुशियों को ग्रहण लग गया । अजय के किसी विरोधी ने विवाह में हुए शानो शौकत पर अंगुली उठाते हुए मिनिस्ट्री में उसके खिलाफ रिपोर्ट भेज दी थी । तुरंत ही डिपार्टमेंटल इंक्वायरी सेट हो गई । वह और अजय बेहद अपसेट थे पर अजय को विश्वास था कि सांच को आंच नहीं आएगी । वैसे भी उनका सदा यही कहना रहा था उषा जो भी करो सोच समझ कर करना क्योंकि हमारी तो सिर्फ दो ही आँखें हैं जबकि सैकड़ों आँखें हमें देख रही हैं ।

ऐसी विचारधारा वाला व्यक्ति कभी कोई गलत कार्य कर ही नहीं सकता । उषा को भी अजय पर पूर्ण विश्वास था जबकि लोगों की उठी अंगुलियां उसे आरोपी सिद्ध करने पर तुली थीं । उषा यह सोचकर परेशान थी कि आखिर यह कैसी न्याय व्यवस्था है जहां लोग अनैतिक तरीके अपनाते भी फल फूल रहे हैं जबकि सीधे-साधे ईमानदारी के रास्ते पर चलते हुए लोगों को इस तरह के झूठे आरोपों में फंसा कर आरोपी न जाने कैसा आनंद प्राप्त करते हैं ?

उषा का उस समय किसी से मिलने जुलने का मन नहीं करता था पर फिर वह सोचती कि इस तरह घर में बंद रहकर वह एक तरह से लोगों के आरोपों को कुबूल ही करेगी । वह जानती थी कि अजय ने कभी बेईमानी का एक पैसा भी लेना कुबूल नहीं किया न ही किसी नेता या अपने सीनियर के आगे झुके । भले ही इस बात के लिए उन्हें बार-बार स्थानांतरित किया जाता रहा हो । अजय के लिए उनके उसूलों से बढ़कर कुछ भी नहीं है और जहाँ तक विवाह में खर्च का प्रश्न है तो क्या एक क्लास वन अधिकारी अपनी 30 वर्ष की सर्विस के पश्चात अपनी पुत्री का विवाह धूमधाम से नहीं कर सकता ?

जीवन में परेशानियां आती है पर जो सक्षमता से उनका मुकाबला करता है उसके सम्मुख यह परेशानियां बौनी होती जाती है और अंततः सत्य सामने आ ही जाता है । उनके साथ भी ऐसा ही हुआ । 6 महीने के अंदर ही अजय को क्लीन चिट मिल गई । तब जाकर उन्हें चैन की सांस आई । बाद में पता चला कि अजय के एक जूनियर अधिकारी ने अजय को फँसाने के लिए वह पत्र भेजा था । एक बार वह अधिकारी अजय के पास एक मंत्री की सिफारिश पर किसी गलत फाइल पर हस्ताक्षर करवाने के लिए आया था । अजय ने उसे इस कार्य के लिए उसे न सिर्फ टोका वरन निकट भविष्य में ऐसी किसी सिफारिश पर काम करने से भी मना कर दिया था । अजय के निर्णय ने मंत्री को नाराज कर दिया था अतः विवाह का मुद्दा उठाकर मंत्री जी ने उस ऑफिसर के जरिए अजय को फँसाने की चाल चली थी ।

सुधा आदेश

क्रमशः