लहराता चाँद - 40 - अंतिम भाग Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लहराता चाँद - 40 - अंतिम भाग

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

40

नए साल की पार्टी के बाद रात के 1बजे संजय अनन्या अवन्तिका घर पहुँचे। अपने बैडरूम में पलँग पर धड़ल्ले से गिर कर अवन्तिका ने अनन्या से पूछा, "दी आज आप बहुत खुश लग रही हो। क्या बात है?" अवन्तिका ने अनन्या से पूछा।

- खुश क्यों नहीं लगूँगी। आज नया साल भी है? पार्टी भी बहुत बढ़िया की थी साहिल ने। मैं हमेशा ऐसे ही रहती हूँ, क्यों तुम खुश नहीं हो।" चमकते आँखों से अनन्या ने उत्तर दिया।

- " हाँ, खुश तो हूँ। पर मुझे पूछने वाला कौन था वहाँ? मगर ऐसा लग रहा था कि यह पार्टी आप ही के लिए थी। आप की आँखों में चमक चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट, बार बार गाल गुलाबी हो जाना देख मुझे कुछ और ही बात लग रही है। मुझसे कुछ न कहना चाहो तो फिर.... अलग बात है।" अवन्तिका ने मुँह फुलाकर कहा।

- ऐसी कोई बात नहीं अवि, कोई बात हो तो तुमसे क्यों छुपाऊँगी बोलो, तुम मेरी प्यारी बहना हो। वैसे तुम्हें क्या लग रहा था? नाईट ड्रेस पहन पलँग पर बैठते पूछा अनन्या।

- "मुझे कुछ भी लगे आपको क्या? आज कल मुझसे ज्यादा कोई और हो गया है।

- "ऐसा कौन है? जो मैं नहीं जानती।"

- "आप जानती है, नहीं तो उसके साथ नए साल पर क्यों नाचती? तुम तो साहिल में ऐसे खोई हुई थी कि तुम्हें कोई दूसरा नज़र ही नहीं आ रहा था। मुझे तो आपने देख भी नहीं रही थी।"

- "ओह! ऐसी बात नहीं है अवि सब नाच रहे थे, नया साल था तो मैं भी थोड़ी देर नाच ली बस और कुछ नहीं... बेकार का ख्याल छोड़ जा सोजा ..." अनन्या मुस्कुरा कर रजाई ओढ़ कर सोने की कोशिश की।

- "नहीं दीदी आप कुछ अलग लग रही हो, कुछ नया नया...।" मन ही मन में सोचते हुए सोने के लिए अपना बिस्तर ठीक करने लगी अवन्तिका।

"अनु बेटा, बेटा अनु .. " संजय अनन्या को ढूँढ़ते उसके कमरे में आया। अनु को बिस्तर ठीक करते देख वापस जाने लगा।

" पापा कहिए । क्या बात है? पानी ले आऊँ।"

- "कुछ नहीं बेटा! बहुत देर हो गई है। सो जाओ। सुबह को बात करते हैं।" ए सी का स्विच ऑन करके अपने कमरे की ओर बढ़ गया।

- "जी पापा।" अनन्या टेबल लाइट बंद करके बिस्तर पर लेट गई।

####

दूसरे दिन संजय अस्पताल से लौट कर बॉलकनी में अकेले बैठे हुआ था। अनन्या उसके लिए चाय ले आई संजय को दे कर उसके हाथ से सिगरेट को बुझा दी, "पापा आपको डॉक्टर अंकल ने सिगरेट पीने से मना किया था और आप सिगरेट पी रहे हैं।"

संजय ने उसे बैठने को कहा फिर पूछा "बस यूँ ही कुछ सोचते हुए सिगरेट ले लिया। फिर आदत छूटने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही। बेटा अनन्या अवि किधर है? "

- "बाहर गई है पापा।" अनमने वहीँ पड़े पत्रिका उठाकर देखने लगी।

- "बेटा तुम अंजली आँटी के घर गई थी?"

- अनन्या सहम कर फर्श की ओर देखते हुए धीरे "हाँ "कहा।

- "तुम्हें वहाँ नहीं जाना चाहिए था। आँटी से तुमने जो भी कुछ कहा वह ठीक नहीं था।"

- "मैंने बहुत सोच समझ कर ही ये निर्णय लिया है डैड।" स्वर में उसकी दृढ़ निर्णय था।

- "आँटी से बात करने से पहले तुम्हें मुझसे बताना चाहिए था।"

- "आप को मैंने कहा था ना डैड। और अंजली आँटी से ज्यादा हमारे लिए कौन सही हो सकता है? मुझे यकीन है मैंने कोई गलती नहीं की है पापा।"

- "तुमने कभी सोचा है अंजली पर क्या गुजरेगी? वह क्या सोचेगी मेरे बारे में, तुम्हारे बारे में।"

- " नहीं डैड! मैंने आपके लिए अंजली आँटी के लिए और हम सब के लिए सोच कर ही ये फैसला लिया है। मैंने बिल्कुल ठीक किया है डैड, आप के लिए अंजली आँटी से ज्यादा सही इंसान कोई नहीं।"

- "लेकिन ये कैसे हो सकता है? इस उम्र में बेटियों की शादी छोड़ मैं खुद अपनी शादी के लिए सोच भी कैसे सकता हूँ?"

- "अगर अंजली आँटी को कोई प्रॉब्लम न हो तो आप शादी के लिए मान जाओगे पापा?" सीधे संजय की आँखों में देखते हुए पूछा अनन्या।

- नहीं मैं कभी शादी के लिए तैयार नहीं हूँ। तुम्हारे आँटी से बात करने का परिणाम जानती हो? जानती हो कि वह भारत छोड़ कर हमेशा के लिए विदेश जा रही है।"

अनन्या को इस बारे में कोई खबर नहीं थी। वह चकित रह गई। कुछ समय चुप रही फिर बोली, "अंजली आँटी को रोक लीजिए डैड। वह सिर्फ आपके कहने पर ही रुकेगी।"

- "मैं, मैं नहीं रोक सकता। जो भी हुआ गलत हुआ, तुरन्त जा कर माफी माँगो। और उन्हें जाने से रोको। मैं ये नहीं चाहूँगा कि मेरे बच्चों की गलती के बजह से किसी को दिल को ठेस पहुँचे, उन्हें तकलीफ हो।"

- "नहीं डैड, उन्हें आप ही रोकोगे।"

- "बेटा, समझने की कोशिश करो। इस तरह जिद्द करना अच्छी बात नहीं है।"

- "जिद्द तो आप कर रहे हैं डैड! अगर आप शादी के लिए राजी नहीं हुए तो मैं अंजली आँटी की तरह हमेशा के लिए बिना शादी के ही रह जाऊँगी।" बेबाक अपनी बात कह कर अनन्या चली गई। संजय हैरान रह गया। उसे समझमें नहीं आ रहा था एक ओर अनन्या की जिद्द दूसरी ओर अंजली को रोके तो कैसे? सोचते हुए वह टेबल पर से चाय उठाकर मुँह से लगाया। तब तक चाय ठंडी हो गई थी।

####

संजय बरामदे में टहलने लगा। उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। कैसे अनन्या को राजी किया जाए? किस तरह अंजली को रोका जा सकता है। यह जिद्दी लड़की अंजली को रोकने नहीं जाएगी। जो हुआ ठीक नहीं हुआ अनन्या ने नादानी से जो भी किया है उसे ठीक करना पड़ेगा।

संजय उठ खड़ा हुआ, "अनन्या जो भी एकबार मन में ठान लेती है उसे सच करके दिखाती है। अगर सचमुच अंजली चली गई तो वह अपना वादा निभाते शादी के सुख से दूर होकर जीवन के सौंदर्य से खुदको वंचित रखने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। अंजली को रोकना होगा, किसी भी तरह रोकना होगा। नहीं तो.... नहीं तो...।" वह अपनी गाड़ी लेकर अंजली के घर की ओर प्रस्थान हुआ। मन में डर था कहीं अंजली निकल न गई हो। अगर वह विदेश चली गई तो अनन्या उसे कभी माफ नहीं करेगी और वह जिंदगी भर यूँ ही रह जाएगी। किसी भी तरह अंजली को रोकना है सिर्फ यही एक ख्याल में वह गाड़ी को और तेज़ चलाने लगा। दस मिनट बाद वह अंजली के घर के सामने खड़े पाया। एक साथ दो दो सीढ़ियाँ चढ़ते उसके दरवाज़े की घंटी बजाया। अनुसूया ने दरवाजा खोल कर प्रश्नार्थक नज़र से देखा। संजय '" अंजली जी से बात करनी है, क्या उन्हें मिल सकता हूँ?"

- "नहीं।"

- "क्यों नहीं? उनसे मिलना बहुत जरूरी है।

- "अभी आप उनसे नहीं मिल सकते। वह घर छोड़कर चली गई हैं।

- "कब और कैसे?

- "अभी कुछ ही समय पहले एयरपोर्ट के लिए निकल गईं है।

- "कितने बजे की फ्लाइट है?

- "11 बजे की...

संजय अपना हाथ घड़ी देखा अभी 3 घंटे का समय है। अगर आधे घंटे के पहले एयरपोर्ट नहीं पहुँचा तो फिर इस जन्म में वह अंजली को मिल नहीं सकेगा। और अनन्या अपनी बात पर पक्की है। ये लड़की जितनी संवेदनशील है उतनी ही जिद्दी है। बिल्कुल अपनी माँ पर गई।

"धन्यवाद," कहकर वह जल्दी से सीढ़ियाँ उतरने लगा।

जल्द से जल्द वह गाड़ी तक पहुँचा और एयरपोर्ट की ओर गाड़ी दौड़ा दी। संजय ने फ़ोन करके अंजली से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन फ़ोन आउट ऑफ रीच आ रहा था। संजय ने तुरंत गाड़ी को एयरपोर्ट की ओर घुमाया और उसकी गाड़ी पूरी स्पीड़ से गति पकड़ ली। पगडंडियाँ पार करते हुए हाइवे पर पहुँचा। शाम का वक्त होने से ट्रैफिक जोरों पर थी। और एक बार रम्या को खो चुकने का एहसास भी। फिर भी उसे किसी भी तरह अंजली को एयरपोर्ट के अंदर जाने से पहले पकड़ना होगा। समय हाथ से निकलता जा रहा था और ट्राफिक उसके सामने रोड़ा बना हुआ था। बस और 5किमी की रास्ता और बीच में सिग्नल के हरे होने के इंतज़ार।

'ओह! भगवान अंजली गेट के बाहर ही मिल जाए।' शायद वह आज तक अपने बच्चों के अलावा किसी के लिए कोई प्रार्थना की हो। लेकिन भगवान ने उसकी गुजारिश सुन ही ली। ट्रैफिक लाइट हरा होने ही वाली थी उसके सामने से एक गाड़ी गुजरी जिसमें अंजली बैठी हुई थी। वह कुछ आश्वस्त हुआ और उस गाड़ी के पीछे अपनी गाड़ी दौड़ा दी। और कुछ आगे जा कर अंजली की गाड़ी को रोक लिया। ड्राइवर अचानक ब्रेक देकर गाड़ी रोका और चिल्लाने ही वाला था कि संजय गाड़ी से उतर कर अंजली के पास आया। अंजली कुछ समझती कि संजय गाड़ी से उसका सामान उतारने लगा। ड्राइवर के हाथ पैसे दे कर अंजली के हाथ पकड़ कर गाड़ी से नीचे उतार दिया। अंजली समझ नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है।

- ये क्या हो रहा है संजय? ये सब क्या कर रहे हो?

- "अंजली चलो मेरे साथ। "

- -"कहाँ"

- "चलो मैं बाताता हूँ।"

- "संजय तुम्हें पता भी है क्या कर रहे हो। छोड़ो मुझे, फ्लाइट का समय हो रहा है।"

- " पहले घर चलो सब कुछ बताऊँगा।"

- "लेकिन मैं घर क्यों चलूँ? मेरी फ्लाइट का समय निकल रहा है, मुझे एयरपोर्ट जाना है। मैं आपके साथ कहीं नहीं जा रही हूँ। मेरा हाथ छोड़िए।"

- "तुम कहीँ नहीं जा रही हो अंजली, हम घर जा रहे हैं।" संजय का आप के बदले तुम कहना बड़ा अजीब सा लगा अंजली को।

- किसके घर और क्योँ? संजय छोड़ो प्लीज, वरना मैं पुलिस को बुलाऊँगी।" संजय अंजली का हाथ छोड़ दिया। अपने माथे पर हाथ रख कर कहा, "अंजली प्लीज। तुम से बहुत जरूरी बात करना है चलो मेरे साथ नहीं तो ..."

- नहीं तो..? क्या?

- नहीं तो मैं ... मैं.. मैं तुम्हें उठाकर ले जाऊँगा। कहते हुए अंजली को अपनी बाँहों में उठाकर गाड़ी में बिठा दिया।

- ये कैसी जबरदस्ती है? किस हक़ से तुम मुझे घर ले जाने लगे। क्या लगते हो तुम मेरे...?"

- "अगर तुम चाहो तो तुम्हारा पति होने को तैयार हूँ।" अंजली का प्रश्न पूरा होता उससे पहले ही संजय ने कहा।

- क्या मतलब तुम्हारा किस हक़ से तुम ....? जब अंजली को समझ में आया वह आश्चर्य से देखती रह गई। उसे समझमें नहीं आ रहा था कि वह जो भी सुन रही है क्या वह सच है?

- अंजली अब मैं तुमसे पूछता हूँ, क्या तुम मुझे अपने पति के रूप में मुझे स्वीकार करोगी? शायद मैं तुम्हें वह प्यार न दे पाउँ जो एक बीवी का होता है या यह वादा भी नहीं कर सकता कि जिंदगी भर तुम्हारा साथ निभाऊँगा। भग्न हृदय है, धड़कने कब रुक जाएगी मुझे नहीं पता। लेकिन इतना समझ गया हूँ कि मेरे घर में मेरी बच्चियों को तुम्हारी जरूरत है। उन्हें एक माँ की जरूरत है। साँस लेने के लिए कुछ समय रुका।

- बस.. हो गया? सिर्फ मैं मेरे बच्चे, इसके अलावा भी कुछ है? या ये भी भूल गए कि मैं भी कुछ हूँ, तुम्हारे घर में तुम्हारे बच्चों के लिए ... क्या कहना चाहते हो संजय? क्या मेरा कोई अस्तित्व नहीं? तुमने किस हक़ से कह रहे हो कि मैं तुम्हारे बच्चों की माँ बनूँ?

- समझती क्यों नहीं अंजली, क्या मैं नहीं चाहता मेरी जिंदगी में कोई आये। अवि के जन्मदिन पर जब मेरी बेटियों को तुममें अपनी माँ को ढूँढ़ते देखा तब मैंने बहुत असहाय महसूस किया था। चाहता तो मैं भी किसी के साथ शादी कर जीवन गुजार सकता था लेकिन रम्या के मौत का अपराधबोध मुझे इन सब से रोक रहा था। लेकिन मेरी बेटियों ने मुझे उन सब से आज़ाद कर दिया है वे मुझे माफ़ कर दिए हैं। अनन्या चाहती है उसकी शादी से पहले मेरी शादी तुम से हो वरना वह शादी नहीं करेगी। आजीवन यूँ ही अकेली जीवन गुजरने को तैयार है। अकेलापन मैंने देखा है अंजली मेरी बेटी को किसी भी हालात में अकेली छोड़ नहीं सकता। मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूँ, वह जब किसी बात को मन से ठान लेती है उसे किसी भी हालात में निभा कर रहेगी। उसके आँखों का अरमान और दिल की चाहत मैंने देख लिया है। साहिल और अनन्या की शादी होनी ही है। अब बोलो अंजली क्या मैंने तुम्हें रोककर कुछ गलत किया है? उसने अंजली के आँखों को सीधे देखते हुए पूछा।

- लेकिन ... अंजली कुछ कहती उससे पहले ही संजय फिर कहने लगा।

- तुम जानती हो मुझे एक बार हृदयघात हो चुका है। कब तक मैं रहूँगा कब मेरा बुलावा आएगा मुझे पता नहीं। उससे पहले दोनों बेटियोँ की शादी करना है। इतने दिन तुमने मेरे बच्चों को दोस्त बनकर सँभाला है। क्या वैसे ही माँ बनकर उन्हें सँभाल नहीं सकती? उसके आँखों में अश्रु झलक रहे थे। अंजली ने कभी संजय को रोते गिड़गिड़ाते नहीं देखा। वह हमेशा बहुत मजबूत और दूसरों को सहारा देते दूसरों की मदद करते ही देखा है।

- मुझे और मेरे घर को सँभाल लो अंजली, जिंदगी में अकेले जीते-जीते थक गया हूँ। बिखर गया हूँ। अब मुझमें हिम्मत नहीं है, मेरी जिंदगी अब तुम्हारे हाथ में है। तुम जो भी निर्णय लोगी मैं उसे पूरे दिल से अपनाऊँगा। ये रही गाड़ी की चाभी तुम चाहो तो एयरपोर्ट जा सकती हो या फिर चाहो तो मेरे साथ ...." कहते-कहते रुकगया।

"... गाड़ी का दरवाजा खुला है।"

####

बिल्कुल उसी वक्त साहिल ने अनन्या के घर प्रवेश किया और अनन्या को बगीचे में बैठकर लिखते देख धीरे से पीछे से आकर उसकी आँखें बंद कर दी। इस अचानक प्रक्रिया से अनन्या चौंक गयी। वह आनेवाले का हाथ छूँ कर पहचानने की कोशिश की। उसकी शरीर से आ रही परफ्यूम की सुगंध से अनन्या ने उसे पहचान लिया। वह साहिल के हाथ को अपने आँखों से दूरकर उठ खड़ी हो गयी।

- साहिल ये क्या कर रहे थे तुम? गुस्से से देखते हुए उसने पूछा।

- क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा अनन्या?

- तुम जानते हो मुझे ये सब पसन्द नहीं।

- आँखे ही तो बंद की था। इसमें गुस्से वाली बात क्या है? हल्के से मुस्कुराते कहा।

- तुमको ये हक़ किसने दिया कि तुम मुझे छू सको? गुस्से से उसका चेहरा लाल पड गया।

- उस दिन पार्टी में हम दोनों साथ जब नाच रहे थे तब तो तुम्हें कोई ऐतराज़ नहीं था। फिर आज क्या हुआ? क्या तुम्हें मैं पसन्द नहीं या मेरा साथ। साहिल खिन्न हो कर पूछा।

- प्लीज यहाँ से चले जाओ साहिल। मुझे कुछ नहीं कहना।

- कहना पड़ेगा अनन्या, मैं तुम से प्यार करता हूँ। लेकिन तुम कभी मुझसे ऐसे व्यवहार करती हो जैसे कई सालों से मेरा इंतज़ार था और कभी अचानक ऐसे व्यवहार करती हो जैसे एक अनजान व्यक्ति से बात कर रही हो, ऐसा क्यों अनन्या? मेरे प्रश्न का जवाब चाहिए। मैं भी तो जानूँ आखिर तुम्हारे दिल में क्या है?" साहिल ने अनन्या को देखते हुए प्रश्न किया।

- अनन्या के पास कोई जवाब नहीं था। "मुझे जाने दो साहिल।" वह जाने लगी।

- जरूर जाओ मगर मेरे प्रश्न का उत्तर दे कर जाओ।" उसका हाथ पकड़ कर उसे रोका। "आज तुम्हें मेरे सवालों का जवाब देना होगा अनन्या।"

- "इस प्रश्न का उत्तर मैं देता हूँ। " पीछे से सुनाई दिया। दोनों पीछे मुड़ कर देखे संजय खड़ा था। संजय ने कहा, "अनन्या देखो मैं किसे ले आया हूँ।" तभी अंजली वहाँ पहुँचती है।

- आँटी आप? खुशी से जा गले लिपट गई।

- हाँ, अंजली को मैं मना कर घर ले आया हूँ अनन्या जैसे कि तुम चाहती थी। अब तुम्हें साहिल से शादी करने के लिए कोई ऐतराज तो नहीं?"

अनन्या अंजली की ओर देखा। अंजली ने मुस्कुराते उसकी सहमति दी। "आँटी आप डैड से ... यानी हमें ...." आश्चरानंद से उसकी जुबान से शब्द निकल नहीं रहे थे।

- अब तो साहिल से शादी करने को तैयार हो ना अनन्या?" अंजली ने आँख मारते पूछा। अनन्या सिर झुकाकर मुस्कुराई और अपनी स्वीकारोक्ति से सिर हिलाई।

- साहिल अब देर मत करो, अनन्या फिर से ना कहे उससे पहले जल्द से जल्द अपने पिता माता से कहकर शादी की तैयारी करो। साहिल के खुशी से नाचने की देर थी। उसने तुरंत ही संजय के पैर छुए और संजय ने उसे स्वागत में गले लगा लिया।

अवन्तिका ऑफिस से लौट कर दरवाज़े पर ही रुक गई। उसने सब कुछ सुन लिया था। लेकिन जब उसने अपने पिताजी और अनन्या के चेहरे पर खुशी और संतृप्ति देखी वह भी इस खुशी में शामिल हो गई। और अनन्या के गले लगकर बधाई दी और धीरे से छेड़ते हुए उसके कान में कहा, "दीदी आप भी ना छुपे रुस्तम निकली। चुपके से जीजू को चुन लिया हमें खबर तक नहीं हुई। और ये वही बात हुई ना, बगल छोरा दुनिया भर ढिंढ़ोरा।"

- हट पगली। कहकर उसे मारने दौड़ी और अवि सोफे के चारों ओर भागते उससे बचने की कोशिश करने लगी। फिर दोनों थककर सोफे पर बैठ गए। संजय और अंजली दोनों को खुश देख मुस्कुरा रहे थे।

©श्रीमती लता तेजेश्वर 'रेणुका'