लहराता चाँद - 7 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लहराता चाँद - 7

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

7

रात के 10 बज ही थे। अनन्या ने अवन्तिका को खाना खिलाकर सुला दिया और टेबल ऊपर रखी "बाबुल का आँगन" मासिक पत्रिका पलटने लगी। जिसमें संजय का एक आर्टिकल 'आरोग्य' छपा था। अनन्या उसे बहुत ध्यान से पढ़ने लगी। संजय क्लिनिक से लौटा नहीं था। कभी-कभी ऐन मौके पर इमरजेंसी आ जाने से उसे देर रात तक अस्पताल में रुकना पड़ता था। आखिर मनुष्य का शरीर है, कभी कैसी मुसीबत आन पड़ जाए किसे पता। भगवान तो शरीर का गठन करके धरती पर भेज देता है और उसके बाद उसकी रक्षा भी एक मानव शरीर से बना डॉक्टर ही करता है। शरीर के सूक्ष्माति सूक्ष्म गठन तक पहुँचने के लिए कई तरह के मशीनें उपयोग की जाती है, लेकिन उसका संचालन भी मनुष्य को ही करना पड़ता है। मनुष्य का दिमाग ऐसी कई मशीनों से भी प्रभावी है। संजय एक प्रशिक्षित डॉक्टर है और उसका पहला कर्तव्य समर्पण है। चाहे रोगी कैसी भी हालात में या किसी भी समय पर अस्पताल पहुँचे उसको देखे बिना वह जा नहीं सकता। इसलिए डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है।

अनन्या पत्रिका को टेबल पर रख उठ खड़ी हुई और कमरे में टहलने लगी। समय 10.45 बज चुका था। सुबह उसे ऑफिस के लिए तैयार होना था। संजय का ऑफिस में देर होने पर अनन्या को सो जाने को हमेशा ही कहता है। संजय को क्लिनिक में रोगियों की भीड़ से कभी कभार देर रात तक रुकना पड़ता था। अनन्या को भी अपने काम से ज्यादातर समय बाहर रहना पड़ता है। वह थककर सोफ़े पर बैठ गई। जर्नलिस्ट होने से नवीन खबर की तलाश उसे हमेशा रहती है। जब भी उसे बाहर जाना होता है वह अपने साथी विनय और समर को साथ ले जाती। अनन्या ने दूसरे दिन उसी बाजार में जाना तय किया। उसने विनय को फ़ोन किया।

- हाँ, बोलो अनन्या इतनी रात गए अभी तक सोई नहीं?"

- हाँ यूँ ही? कुछ कहना था।"

- हाँ बोलो कैसे फ़ोन किया?" विनय ने पूछा।

- कल हमें गोरेगांव के भिवंडी बाजार में जाना होगा।"

- कुछ खबर है वहाँ?"

- खबर तो छिपी हुई होती है विनय उसे हमें ढूँढकर सामने लाना पड़ता है। कुछ गुंडें हैं जो हफ्ता वसूली के नाम से वहाँ के लोगों को परेशान कर रहे हैं। उन गुंडों के बारे में पता लगाना है और उन्हें पुलिस के हाथों सौंपना है। "

- ठीक है। हमारी सेना तो सदैव तैयार रहती है।" हँसकर बोला विनय।

- लेकिन यह बात छोटी नहीं है, इसमें राजनेताओं का हाथ होने का शक है। बहुत सँभलकर काम करना होगा। हो सकता है जान पर भी खतरा बने।

- ठीक है। अनन्या ध्यान रखूँगा।

- फिर सब को तैयार रहने को कह दो। मिशन 'हफ्ता वसूल' कल से शुरू होगा।"

- जरूर मैडम, आप आज्ञा दीजिए हमारे सैनिक सदैव तैयार है।

- विनय डोंट बी सिल्ली, आई एम सीरियस।

- ठीक है अनन्या, बाकी मुझ पर छोड़ दो।

- फिर कल का प्रोग्राम बनाओ और तैयार रहो। अनन्या फ़ोन रख कर किचेन समेंटने अंदर चली गई।

कुछ ही देर बाद संजय घर लौटा।

- पापा।" अनन्या उसके हाथ का बैग अंदर रखकर उसके लिए ग्लास भर पानी ले आई।

- रात बहुत देर हो गई अनु बेटा अभी तक जाग रही हो?"

- हाँ, डैड सुबह ऑफिस जाने की जल्दी में बात नहीं हो पाती है न इसलिए आप के लिए इंतज़ार कर रही थी।"

- ठीक है फ्रेश होकर अभी आता हूँ।"👍👍👍👍

- 10 मिनट में संजय फ्रेश हो कर नाईट ड्रेस पहन कर आया।

- डैड चलिए खाना लगा देती हूँ।

- नहीं अनु मैने खाना खा लिया है, कहा था न फ़ोन पर। अच्छा बोलो बाकी सब कैसा चल रहा है ? आज का दिन कैसा रहा?"

- सब तो ठीक है डैड पर ... आज कुछ हुआ ..." सुबह घटी सारी बात बताई।

संजय ने पूरी बात सुनने के बाद कहा - बहुत अच्छा किया कि अस्पताल में भर्ती करा दिया लेकिन इन गुंडे-मवालियों से बचकर रहना बेटा। वे कुछ भी कर सकते हैं। तुम अकेले इन सब से निपट नहीं पाओगी।"

- लेकिन मैं अकेली कहाँ हूँ ? विनय, समर और गौरव साहिल सब हैं न पापा।"

- न बेटा इन् गुंडे मवालियों के बीच जाने की इजाजत मैं तुम्हें कदापि नहीं दे सकता। अब जाकर सो जाओ, रात बहुत हो गई है।

- फिर पापा और उन गुंडों की मनमानी कब तक चलेगी ? क्या वे उन गरीबों पर ऐसे ही जुर्म करते रहेंगे और हम देखकर भी कुछ नहीं करेंगे?"

- उसके लिए पुलिस है न अनन्या! ये सब उन लोगों का काम है और हमें उन गुंडों से उलझना ठीक नहीं। पत्रकार का सम्बन्ध लोगों के दर्द, पीड़ा समझना, सच्चाई से लोगों से रूबरू कराना है लेकिन खुद गुंडों से निबटना नहीं। ये सब कानूनी मामला है पुलिस को ही निपटाने दो। हमें इन पेचीदा मामलों से दूर रहना चाहिए।"

- इस बारे में लोगों को सजग करना तो पड़ेगा न डैड।"

- हाँ पर सिर्फ सजग करना है कानून को हाथ मे लेकर लड़ना नहीं है, जिसका काम उसी को शोभा देता है। इसके लिए उन व्यापारियों को पुलिस में शिकायत करनी चाहिए। कोई भी ये काम कर सकता है। तुम ऑफिस का काम निपटाओ।"

  • - लेकिन डैड, अगर हर कोई देखते रहेगा कि कोई आएगा और आकर मदद करेगा तो वह दिन कब आएगा डैड, कोई और क्यों ? हम क्यों नहीं? नहीं डैड मैं जाऊँगी।"
  • - नहीं, मैं तुम्हें इसकी इज़ाजत नहीं दे सकता। मेरा मतलब कल मुझे कुछ काम है। तुम्हें मेरे साथ डिस्पेन्सरी चलना पड़ेगा।" संजय अनन्या को रोकने के और कोई रास्ता नहीं था।

    "पर पापा.." अनन्या चुप हो गई।

    - "...और बहस नहीं। जाकर सो जाओ। "

    - "ठीक है डैड ।" वह समझ गई कि आगे बहस करेगी तो डैड नाराज़ हो जाएँगे। डैड को मुझसे काम है तो फिर कोई दूसरा रास्ता निकालना पड़ेगा। कल सिर्फ विनय को साहिल और समर को भेजना पड़ेगा। सोच कर चुप हो गई। वह लौट कर अपने कमरे की ओर चली गई।

    सारी बातें जानने के बाद संजय कुछ परेशान सा हो गया। लोगों की गरीबी और उनकी जिंदगी के बारे में खबर इकट्ठा करना और उनकी मदद करना अलग बात है, पर यहाँ की बात कुछ और है अनन्या का गुंडों बदमाशों से टक्कर लेना जोख़िम भरा है। संजय ने इन उलझनों से अनन्या को दूर रखना ही उचित समझा।

    संजय को रोज़ सुबह उठते ही जॉगिंग करने नज़दीकी पार्क में जाने की आदत है। वहाँ उसका दैनिक व्यायाम शुरू हो जाता है। पॉश इलाके के रहनेवाले डॉ.संजय एक घंटा व्यायाम और जॉगिंग करने के बाद घर लौट आते हैं। जॉगिंग के दौरान कभी-कभी उनके ओर दोस्तों से मुलाकात हो जाती है। कभी कभार डॉ.दुर्योधन से भी मुलाकात हो जाती थी। डॉ दुर्योधन हिंदी के प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। उन्हीं दिनों वह जब हिंदी प्रोफ़ेसर थे उनके कॉलेज की ओर से एक पत्रिका निकलती थी। उसमें प्रो. दुर्योधन जी के कई आलेख छपते थे जिसे पढ़कर छात्र छात्राएँ अभिभूत हो जाते थे। उनके लेखन के माध्यम से बहुतों को प्रेरणा मिलती थी। उनकी विचारधारा, शब्द संयोजन और लेखन में विप्लवात्मक शैली युवाओं को सोचने पर मजबूर कर देती थी।

    उनकी लेखनी सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ जैसे जंग का आव्हान करती थी। पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित होते ही विद्यार्थी ने सवालों से उन्हें घेर लेते थे। वह स्वतः एक फिलॉसफर थे। सभी के सवालों का बहुत ही सहजता से जवाब देते थे। इसलिए वे कॉलेज के विद्यर्थियों के प्रेरणा और हीरो बने हुए थे। कई साल प्रोफ़ेसर का कार्य करने के बाद कॉलेज से अवकाश पाते ही वे अपने हिंदी छात्र-छात्राओं के साथ मिल कर एक प्रत्रिका निकालने को सोचा और वह उस कार्य में सफल भी रहे। आज उनकी पत्रिका साहित्य क्षेत्र में नंबर वन का स्थान प्राप्त कर चुकी है। बर्तमान समय में वे एक प्रकाशक और संपादक के तौर पर जनता से परिचित है। आज भी बड़े-बड़े पद में रह चुके उनके पुराने शिष्य उनसे मिलने उनके ऑफिस आ जाते हैं।

    जब भी डॉ.संजय से उनकी मुलाकात होती थी उनके बीच ढ़ेर सारी चर्चाएँ होती रहती हैं। कभी एक दूसरे से जवान होने का चैलेंज लेते थे और दौड़ में अपना जोश दिखाते थे। फिर कभी अपनी जिंदगी का हाल सुनाते तो कभी अपने परिवार के सुख-दुख बतियाते। कभी राजनितिक तो कभी सामाजिक चर्चाएँ भी जगह ले लेती थीं। जब भी कोई सामाजिक विसंगतियाँ घटित होती तो दुर्योधन बहुत चिंतित हो जाते।

    समाज में बढ़ती विसंगतियों के कारण, युवा पीढ़ी को जिम्मेदार ठहराते तो कभी राजनीति को कोसते। आखिर पत्रकारिता उनका ध्येय है। अखबार के किस पन्ने पर कौन सी ख़बर होना चाहिए और कहाँ से क्या खबर लिया जाए, हर रोज़ खबर की तलाश। कभी कश्मीर में शहीदों से बर्बरता की खबर से विचलित हो जाते कभी स्त्रियों के साथ हो रहे अत्याचार से गुसैल हो जाते। कभी किसानों की खुदकुशी तो कभी क्रिकेटरों की आनंद-उल्लास से भरी बातें, यह सब बातें करते हुए वे कभी नहीं थकते थे।

    उस दिन भी दुर्योधन से संजय की मुलाकात हो गई।

    - हाय संजय! कैसे हो और जीवन कैसा चल रहा है?

    - बहुत बढ़िया, और आप बताओ, क्या हाल है?

    - बस जिंदगी जैसे ले जा रही है और तुम्हारी डिस्पेंसरी कैसे चल रही है?

    -" सब ठीक ठाक।" संजय ने जवाब में कहा, "और बताओ आप आज कल बहुत व्यस्त हो गए हो कि हमारी याद ही नहीं आती।"

    - हाँ, तबियत खुश है तो डॉक्टर का क्या काम?

    - अच्छा भाई ठीक है, जब मन करे चले आना, डॉक्टर से नहीं दोस्त से मिलने ही सही और आपका पेपर का सर्कुलेशन कैसे चल रहा है?

    - माँग तो अच्छी है, उतना तो मिल जाता है जिससे पत्रिका बिना रुके चलती रहे। मेरा जो भी कुछ है सब कुछ इसी में ही लगा दिया है। अब प्रकाशन ही मेरा सब कुछ है। ये तो मेरी तरफ से समाज सेवा है, अपने मुनाफ़े के लिए तो सोचता नहीं हूँ। भगवान का दिया सब कुछ है मेरे पास बस पत्रिका चलती रहे।

    - कल कुछ लिख भेजा था, देखा आपने?

    - हाँ, बहुत दिनों बाद आप का आलेख मिला। आरोग्य को लेकर आप का लेख बहुत ही महत्वपूर्ण है। आज कल लिखने में इतना कंजूसी कर रहे हैं। आप जैसे डॉक्टर अगर शरीर पर चाकू छुरी चलाकर इलाज कर सकते हैं वैसे ही सर् जी कभी कभार अपनी कलम चलाकर समाज का इलाज़ भी कीजिए। सिर्फ चाकू, छुरी और आपरेशन टेबल के अलावा भी आप कलम से दुनिया को बहुत कुछ दे सकते हैं। दुनिया में आप सिर्फ शरीर ठीक करने के डॉक्टर ही नहीं दिलों में धड़कने वाले डॉक्टर भी रहो।"

    - "आप भी क्या छेड़ दिए दुर्योधन भाई, मैं कहाँ इन सब का गुलाम हूँ। मेरा दिल जिस पर धड़कता था वह न रही। आ अब तो मेरी बच्चियाँ ही मेरी सब कुछ हैं और रही लेखन की बात, कभी मन करता है तो कलम चला लेता हूँ। सब कुछ मेरी पत्नी के साथ शुरू हुआ था और उसीके साथ ही खत्म। जब दिल में पीड़ा उठती है तब अपनी डायरी में ही लिख कर रखता हूँ। वह भी पूरी तरह प्राइवेट आप के काम नहीं आने वाली है।

    - अब आप की अमानत है आप ही जाने, लेकिन कभी कभी कुछ लिख भेजिये। खड़े हो कर हाँफते हुए कहा दुर्योधन ने।

    - अब आप बूढ़े हो गए हैं दुर्योधनजी, पहली वाली बात नहीं रही आप में। संजय को शरारत सूझी तो दुर्योधन को छेड़ दिया।

    - दुर्योधन खड़े हो गए और चिढ़ाते हुए कहा तुम्हें मैं बूढ़ा दिख रहा हूँ ? जनाब खुदको देखिए आप मुझसे चार पाँच साल छोटे हो लेकिन तुमसे तो जवान दिख रहा हूँ।

    - हाँ दिख रहे हैं पर हैं नहीं। मेरे साथ कुछ देर भागने से क्या हालत हो गई आपकी। कैसे हाँफ रहे हैं।"

    - वह तो शक्कर की बीमारी है इसलिए, नहीं तो तुम्हारे जैसी कई युवाओं से लड़ जाऊँगा।

    - रहने दीजिए दुर्योधनजी, पहले ब्लड प्रेशर और डायबिटीज कंट्रोल में रखिए फिर युवाओं से लड़ने जाना।

    - हाँ भाई, डॉक्टर हो इसलिए मेरी कमजोरी तुम्हें पता है, नहीं तो कोई मुझे देखकर कहे कि मैं बूढ़ा हूँ।

    संजय ने हँस कर कहा - आज क्लिनिक में आईए आपका पूरा चेक अप कर दूँगा ।

    - आज नहीं फिर कभी, कुछ काम निपटाना है।

    - कोई समस्या तो नहीं?

    - नहीं ऐसी कोई गंभीर समस्या तो नहीं है।

    - ठीक है, जब समय मिले आ जाईए। संजय दुर्योधन से बिदा लेकर आगे बढ़ गया।