लहराता चाँद - 9 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लहराता चाँद - 9

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

9

साहिल एक सामान्य परिवार से है। उसके पिताजी कॉलेज के प्रिंसिपल हैं और माँ संगीत की विदुषी। उसकी एक छोटी बहन सूफी है। माँ शैलजा घर में ही एक संगीत इंस्टिट्यूट चलातीं हैं और वक्त-वक्त पर उनका गाना रेडियो और मंच पर प्रसारित होता रहता है। कुछ बच्चे उनसे संगीत सीखने उनके इंस्टिट्यूट में आते हैं। साहिल और सूफी उनको जान से ज्यादा प्यारे हैं।

साहिल, सूफी से 8 साल बड़ा है। जब साहिल का जन्म हुआ तब उसके पिता अभिनव कॉलेज के प्रोफेसर थे। उनकी पत्नी शैलजा और अभिनव का प्रेम विवाह हुआ था। शैलजा एलेक्स केरल की एक क्रिश्चियन परिवार की लड़की थी। शैलजा और अभिनव का परिचय एक दोस्त की शादी में हुआ और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती गहराने लगी। दोनों के घरों में असहमति के बावजूद दोनों ने शैलजा की इच्छा से चर्च में शादी कर ली फिर मंदिर में शादी की। जाति और धर्म की चक्की में पिस कर सगे-सम्बधियों के बगैर ही उनकी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत हुई। घरवालों और रिश्तेदारों की कमी शैलजा और अभिनव को महसूस होती थी लेकिन एक दूजे के प्यार ने उन्हें सभी कमी को भुलाकर आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। उन दोनों ने एक दूसरे के संग ही पूरा परिवार पा लिया था।

साहिल और सूफी के जन्म ने उनके जीवन में एक अहम मोड़ लिया। जिंदगी में वे फिर पीछे मुड़कर नहीं देखे और आगे बढ़ते गए। समाज ने उनके प्यार को कबूल नहीं किया। बदलते समय के साथ लोग भी धर्म और जातिवाद को आड़े करते उनकी शादी को मान्यता दे दी। साहिल और सूफी के साथ उनका परिवार एक आदर्श परिवार सा प्रतीत होने लगा।

मगर कुछ समय से अभिनव के परिवार से कटे-कटे रहना शैलजा को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। शैलजा जब भी सवाल उठाती अभिनव कुछ काम का बहाना बना लेता। ज्यादातर समय वह कॉलेज में रहने लगा और उसे शैलजा को वक्त दे पाना मुश्किल होने लगा। कॉलेज में बढ़ते टेंशन और विद्यार्थियों में बढ़ती असहिष्णुता देख वह भी परेशान था। इस तरह अभिनव और शैलजा के बीच दूरियाँ बढ़ने लगी। दोनों कब एक-दूसरे से दूर होने लगे पता ही नहीं चला। शैलजा अपने संगीतमय जीवन मे खोयी हुई थी, और अभिनव कॉलेज में व्यस्त रहने लगा।

अभिनव के कॉलेज की प्रोफ़ेसर विनीता शर्मा हमेशा अभिनव के काम में मददगार थी। कॉलेज में उन दोनों को लेकर तरह तरह के चर्चाएँ होने लगी। शैलजा का अभिनव पर पूरा भरोसा था। लेकिन लोगों की चटपटी बातें जब कान में पड़ती हैं तो कोई भी पत्नी भला कैसे सहन कर सकती। वह अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी। अभिनव का देर रात घर लौटना, बगैर खाना खाए सो जाना, फिर सुबह जल्दी उठकर चले जाना शैलजा के दिल में टीस पैदा करता था। अगर कभी शैलजा अभिनव से पूछती तो ''प्लीज शैलजा, अभी मुझे सोने दो सुबह बात करेंगे।'' कह कर टाल देता और सुबह-सुबह उठकर कॉलेज चला जाता। शैलजा उसके व्यवहार से दुःखी होकर खुद को अवांछित महसूस कर घर छोड़कर जाने का फैसला किया। उसने अपने कुछ कपड़े सूटकेस में रखकर अभिनव का इंतज़ार करने लगी। जैसे कि अभिनव रात को घर लौटा शैलजा ग्लास में पानी ले आई। पानी पीकर पलँग के पास रखी सूटकेस को देख पूछा - शैलू, ये सूटकेस यहाँ क्यों है?

शैलजा ने कुछ नहीं कहा।

"शैलजा मैं कुछ पूछ रहा हूँ।"

"मेरी सुनने के लिए आपके पास वक्त है?"

"ये कैसा सवाल है?"

शैलजा ने कहा - "आप के पास हमारी बात सुनने के लिए वक्त कहाँ है अभिनव? फिर भी बता देती हूं मैं जा रही हूँ।"

- "कहाँ जा रही हो? मुझे कहती तो टिकेट करवा देता। तुम्हारे घर में सब ठीक है न? अभी घर जाने की क्या जरुरत पड़ गई? सहज स्वर से टाय खोलते हुए प्रश्न किया।

- सब ठीक है, शैलजा बोली।

- फिर अब क्यों घर जा रही हो?

- तो यहाँ रह कर क्या करूँ? घर में किसके लिए बैठी रहूँ? शैलजा ने दुःखी होकर कहा।

- क्या मतलब? अभिनव ने शैलजा की तरफ बिना देखे ही प्रश्न किया।

शैलजा कुछ न कहकर चुप रही।

- अरे बच्चे तो हैं न तुम्हारे साथ। सारा दिन तुम भी तो काम में बिजी रहती हो और क्या चाहिए?"

- बस मैं सिर्फ बच्चे के लिए हूँ? मेरी जिम्मेदारी सिर्फ बच्चे हैं? और आप की कोई जिम्मेदारी नहीं है घर के लिए मेरे लिए और बच्चों के लिए? आप को याद भी है कब आखिरी बार मुझे से ठीक से बात की थी आपने? कब हम साथ में डिनर करने बाहर गए थे। बच्चे भी तरस गए हैं आप के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए। क्या आप के काम और आप के कॉलेज के अलावा हम कहीं भी नहीं दिखते आप को?"

अभिनव कुछ देर चुप हो गया फिर कहा - तो क्या करूँ मैं काम छोड़कर घर में बैठ जाऊँ ये तो नहीं सकता ना। कॉलेज में इतनी टेंशन चल रही है की घर पहुँचते लेट हो जाता है। फिर ट्रैफिक भी तो बहुत रहता है।

- देर तो एक दिन एक सप्ताह या एक महीने का होता है जी। आप से सही ढंग से बात करके महीनों हो गए। कब तक इंतज़ार करें कि आप कुछ वक्त हमारे साथ गुजरोगे?"

- कैसी बात कर रही हो, रोज़ तो घर से निकलता हूँ और रात को तो घर आ जाता हूँ ना। सब कुछ तो है घर में फिर ...

- आप अपनी गलती टालने की कोशिश न करो जी। ठीक है आप कॉलेज ही सँभालो हम रहें न रहें क्या फर्क पड़ता है? पहले तो ऐसे न थे वही कॉलेज उतना ही दूरी फिर कैसे सब कुछ बदल गया? क्या मेरी देह सुर्ख हो गई है? क्या मैं पहले सी नहीं रही अब?

- क्या कुछ बोलती जा रही हो शैलजा? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा।

- आजकल आपकी देखभाल करने वाले बहुत हैं ना आप के कॉलेज में हमारी जरुरत ही क्या आप को? इसलिए मैं जा रही हूँ। अगर आप को फुरुसत मिले तो फ़ोन कर दिया करो।"

- शैलजा, ओके बाबा मैं मानता हूँ घर आने में देर हो जाती है। कुछ दिन और हौसला रखो। जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। सभी काम निपटाकर घर जल्दी आ जाऊँगा। अभी जाने की बात मत करो प्लीज...।" बिनती करते हुए कहा।

- आप को लेकर बहुत बातें सुनने में आ रही है, वह सब क्या है?

- कैसी बातें? अनजान बनकर पूछा।

शैलजा चुप रही, अपनी जुबान से वह सारी बातें सुनाती भी कैसे जो दूसरों से सुनी हैं? चुप रहना भी उसके लिए मुश्किल था। कुछ दिन से अभिनव का व्यवहार ने उसे दुखी कर दिया था। उसका शैलजा के प्रति अलग-थलग रहना शैलजा को अभिनव के व्यवहार से शक होना स्वाभाविक था। आखिर कई साल साथ गुजारे हैं। एक दूसरे की दिल की बात बिन कहे उनके व्यवहार से समझ लेना मुश्किल नहीं था। लेकिन शैलजा ने अभिनव को पूरा मौका दिया उसे समझने का, और शैलजा के मन में घर कर रहे शक को दूर करने में अभिनव कामयाब रहा। अब सूफी व साहिल भी बच्चे नहीं रहे। वे भी खूब समझने लगे हैं। मगर शैलजा ने अपने दिल की पीड़ा को उन तक पहुँचने नहीं दिया। पर माँ के दिल की बात साहिल को समझने में देर नहीं लगी।

शैलजा चुपचाप पलँग पर बैठी रही। अभिनव जाकर शैलजा के पास बैठ गया और कहा - शैलू, मुझ पर यकीन रखो जो सब बातें फैलाई जा रही हैं वैसा कुछ भी नहीं हैं। हम साथ में काम करते हैं और वह मेरी सब-ऑर्डिनेट है। कॉलेज में मेरी कामों में मेरी सहायता करती है। उससे ज्यादा कुछ भी नहीं। मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। तुम्हारे अलावा कभी किसी के बारे में सोचा तक नहीं। मेरा विश्वास करो। प्लीज।

- अभिनव मुझे तुम पर भरोसा है। तुम्हें भरोसा करना चाहती भी हूँ। लेकिन क्या करूँ लोग जिस तरह की बातें करते हैं और जिस तरह की बातें मेरे कान में बार-बार सुनने को मिल रही है उसका मैं क्या करूँ। आप का देर से घर आना कटे-कटे से रहना मुझे बहुत दुखी कर देता है। अगर आप को मुझसे कोई शिकायत है तो साफ़ साफ़ कहिए मैं खुद को बदलने की कोशिश करुँगी पर आप का मुझसे दूर रहना मुझे बर्दाश्त नहीं होता। इसलिए मेरा धीरे धीरे विश्वास टूटने लगा है।

- लोगों की बातों का क्या? दस मुँह दस बातें और फिर मैं तुम्हें धोख़ा देने की कभी सोच भी नहीं सकता। तुम मेरी जिंदगी हो, तुम मेरी बीवी हो। अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा उठ गया तो मैं जीते जी मर जाऊँगा। ना शैलू, प्लीज कुछ ऐसा मत करो कि बाद में पछताना पड़े और हम दोनों के बीच की दूरी बढ़ती ही चली जाए।" अभिनव शैलजा के हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, "धैर्य रखो। कुछ दिन में सब कुछ ठीक हो जाएगा। मानता हूँ कि मैं तुम्हें वक्त नहीं दे पा रहा हूँ पर जल्दी सब कुछ ठीक कर दूँगा। मेरा यक़ीन करो।

शैलजा कुछ देर तक आँसू बहाती रह गई, अभिनव कमरे में कुछ सोचते हुए इधर उधर टहलता रहा। शैलजा ने आँख पोंछ कर कहा - ठीक है, मानती हूँ कि लोग कई बार अफवाह फैलाते हैं या यह मेरा शक है, लेकिन आप का रवैया मेरी तरफ पहले सा नहीं रहा।"

- ये सिर्फ काम की गंभीरता की वजह से है शैलू, मैं कभी ये नहीं चाहूँगा कि मेरी वजह से तुम्हें कभी मुश्किलें झेलनी पड़े। ठीक है आगे मैं ध्यान रखूँगा कि तुम्हें और बच्चों को समय दे सकूँ। अब तो मान जाओ।

शैलजा ने सिर झुका कर ' हाँ ' कहा।

- नहीं ऐसे नहीं यही बात मुस्कुराकर कहो। अभिनव उसके मुँह को हाथ से उठाते हुए कहा।

शैलजा रोंदू आवाज़ से मुस्कुरा कर सिर हिलाई। अभिनव एक गहरी साँस छोड़कर शैलजा को चाय लाने को कहकर फ्रेश होने वाशरूम की ओर बढ़ गया।