Lahrata Chand - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

लहराता चाँद - 2

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

2

शादी के 2 साल के बाद डॉ.संजय ने खुद का एक क्लिनिक खोला। हड्डियों और नशों के बड़े से बड़े ऑपरेशन बहुत ही सजगता और आसानी से कर देते। लोग उसकी बहुत इज्जत करते थे। लोगों का इलाज करने के साथ उसके नम्र व्यवहार और सृजनात्मक शैली से लोग प्रभावित होते थे। उसका सरल स्वभाव रोगियों से रिश्ता इस तरह जोड़ देते कि एक बार चिकित्सा के लिए आये रोगी उनकी एक स्पर्श से ही खुद को स्वस्थ महसूसने लगते थे। डॉ.संजय स्वतः एक कवि/लेखक भी थे।

20 साल की उम्र में ही उनकी पहली रचना "बाबुल का आँगन" में प्रकाशित हुई थी। स्वयं डॉ.दुर्योधन, संजय की रचानाएँ प्रकाशित करते थे। इस तरह डॉ. दुर्योधन से उनकी घनिष्ठता बढ़ी। संजय डॉक्टरी प्रैक्टिस करते हुए भी जब वक्त मिलता मन की गहराई से निकले लफ्ज़ों को एहसास के कोरे कागज पर कलम से उकेर देते। उनकी ज्यादातर कविताएँ प्यार और दर्द से भरी थीं। रम्या से प्यार और उसका दर्द जब कलम से उतरता लोगों के हृदय को छू जाते। सच, लेखक के लिए कलम एक वरदान है। अपनी जुबान से जो नहीं कह सकते उस दिल के दर्द को कोरे कागज़ पर शब्दों की लकीरों से बिखेरकर मन हल्का कर देते हैं।

समाज में दुःख-विडंबनाएँ जो हर रोज़ उसके सामने सवाल बन खड़े हो जाते हैं वे सारी घटनाएँ उसे सोचने पर मजबूर कर देते। डॉ.संजय उन घटनाओं को केंद्रित कर अपनी कलम से इस तरह रंग भर देते कि पात्र व घटनाएँ आँखों के सामने जीवंत लगते। उसकी कहानियाँ व पात्र इतने सजीव लगते कि उनके रचे हर पात्र लोगों के दिल को छू जाते। जड़ बन गए समाज से उसे हमेशा ही शिकायत रही। उसे लगता था कि समाज के लोगों में पैसों के प्रति आकर्षण ने उनके दिल के एहसासों को मिटा दिया है।

समाज व सरकार खुद को बे-बस व मजबूरी की हालात पैदाकर लोगों की सहानुभूति हथिया रही है। समाज में हो रही घटनाओं को नज़र अंदाज़ कर राजनैतिक व्यापारियों से अपने हिस्से के वोट बैंकों को भरने का काम कर रही है। जनता की बेबस नज़रें, दिल का दर्द, उनके मन की टीस सरकार को दिखना बंद हो गई हैं। इसलिए वह डॉक्टरी से रोगी के साथ सन्दर्भ अनुसार उनके दर्द बाँटता व बातों से उनके मन की पीड़ा को भी दूर करने में कामयाब रहता था। इसलिए लोगों को डॉ.संजय सदैव ही प्रिय रहा।👍👍👍

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डॉ.संजय और रम्या की शादी के तीन साल बाद अनन्या और पांच साल बाद अवन्तिका का जन्म हुआ। संजय और रम्या के प्रेम का प्रतीक उनके दोनों बच्चों से वे बहुत प्यार करते थे। अवन्तिका के जन्म के कुछ दिनों बाद संजय के पिताजी सहदेव जी का देहांत हो गया। और उसकी माँ पति के जाने का दुःख बरदाश्त न कर सकी और दिल की बीमारी से ग्रसित हो गई। माँ और पिताजी के एक के बाद एक चले जाने से वह बहुत ही अकेला पड़ गया।

अनन्या और अवन्तिका को भी दादा और दादी से बहुत लगाव था। उन के दादा जी की मौत से परिवार के सारे सदस्य एकदम दुख में डूब गए। समय का प्रभाव व रम्या के प्यार ने फिर से उसके उत्तरदायित्व को सचेत कर दिया। बाद में वे कोलकाता छोड़ मुंबई आ गए। अनन्या व अवन्तिका भी समय के साथ-साथ सब कुछ भूलकर अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए। फिर से उनकी जिंदगी पटरी पर दौड़ने लगी थी लेकिन शायद कुदरत को डॉ.संजय की ख़ुशी नामंजूर थी। जब अनन्या 12 साल की थी रम्या का मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा। इस बात का संकेत संजय को तब पता चला जब वे माथेरान घूमने के लिए गए।

दीपावली का अवसर था। बच्चों के स्कूलों में दीपावली मनाने के लिए कुछ दिन की छुट्टी थी। छुट्टियों के अवसर पर संजय ने अपने परिवार समेंत माथेरान जाने का फैसला किया। काम की व्यस्तता से निजात पाने के साथ जिंदगी से कुछ पल ख़ुशी-ख़ुशी बच्चों के साथ बिताने का एक अच्छा मौका था। संजय ने पहले ही सारी तैयारियाँ कर रखी थी। और वह दिन जल्द आ ही गया। उस दिन सुबह बच्चों को साथ लेकर अपनी गाड़ी से माथेरान के लिए घर से निकले। रम्या व बच्चे बहुत खुश थे।

मुंबई से माथेरान जाना उनके लिए कोई नई बात नहीं थी। प्रकृति के गोद में सुंदर पहाड़ियों के बीच उबड़-खाबड़ पगडंडियों के बीच से गाड़ी दौड़ रही थी। जीवन की व्यस्तता से कुछ पल परिवार के साथ आनंद और मस्ती करने का मज़ा ही कुछ और है। वे अक्सर छुट्टियों में बच्चों के साथ बचपन की शरारतों का मज़ा लेते। रम्या के साथ कुछ जवानी की यादें ताज़ा करते फिर अपने काम में लौट आ जाते थे।

संजय की गाड़ी माथेरान के पहाड़ों पर चढ़ रही थी। माथेरान गाँव से करीबन 30किलोमीटर पहाड़ी के रास्ते गुजरना पड़ता है। रास्ते में बंदरों की शरारतें भी कुछ कम नहीं थीँ। पहाड़ों को चीरते हुए सर्पिल रास्ता पहाड़ के ऊपर तक ले जा रहा था। रस्ते के एक तरफ लंबे-लंबे वृक्ष जो अपनी साख फैलाये असमान को छूने का वृथा प्रयास कर रहे थे। एक ओर खाई जो कई फुट नीचे तक थी जिसकी गहराई ऊपर से नज़र नहीं आ रही थी। पहाड़ स्त्री के मनचले अंगों की तरह उबड़-खाबड़ नज़र आ रहे थे।

पहाड़ की चोटियों से गिरता जल प्रवाह जन संचार से दूर किसी गहराई में झरना बन बह रहा था। मेघमालाएँ पहाड़ों पर तैरते हुए अपनी सुंदरता पर इतरा रहीं थीं। प्रकृति की सुंदरता को अनन्या अपने कैमरे में कैद कर रही थी। रम्या बिना पलक झपकाए प्रकृति में खोई जा रही थी। गाड़ी में अवन्तिका अपनी माँ के गोद में गहरी नींद में सो गई थी। सामने की सीट पर बैठे डॉ.संजय अपने ड्राइवर रमन के साथ बीच-बीच में बात कर रहे थे ताकि उसका भी उत्साह बना रहे और सामने से आते हुए वाहनों का भी ध्यान रहे।

माथेरान पहुँचते ही रमन ने गाड़ी को कार पार्किंग में पार्क किया। गाड़ी से उतरकर वे आगे बढ़े। लंबे-लंबे वृक्षों के बीच हिल स्टेशन बहुत ही सुंदर नज़र आ रहा था। जैसे ही कार पार्क कर वे बाहर निकले घुड़सवार से पहले बंदरों ने उनका स्वागत किया। रास्ते पर भागते-दौड़ते छोटे-बड़े बंदर नज़र आ रहे थे। माँ बंदरिया अपने बच्चे को पेट के नीचे दबाकर रखी हुई थी। रम्या उस बंदरिया का उसकी बच्ची से प्यार देख अभिभूत हो गई। चाहे इंसान हो या बंदर, चाहे कोई भी पशु या पक्षी हो, हर किसी के लिए माँ-बच्चों का रिश्ता अनोखा होता है। कितना मजबूत होता है माँ बच्चों के प्यार का रिश्ता। माँ के लिए बच्चे का बोझ आनंददायक होता है। वो अपने गले लगाकर उसे हर विमुखता और मुश्किलों से बचाती रहती है। चाहे कितनी भी बाधाएँ आएँ, माँ अपने बच्चों को अपने से अलग होने नहीं देती। उस बंदरिया ने भी अपनी बच्ची को पेट में इस तरह चिपकाए रखा था जैसे वह उसीका एक अंग हो। सच भी है, बच्चे माँ की धरोहर होते हैं, जब तक की बच्चे खुद माँ से अलग न हो जाएँ तब तक माँ उन्हें गले लगाये रखती है।

अवन्तिका ने गुलाबी रंग की फ्रॉक पहन रखी थी। छोटे-छोटे घुँघराले बाल बड़ी-बड़ी आँखें जैसे बार्बी डॉल लग रही थी। अनन्या ने जीन्स मिनी स्कर्ट के ऊपर स्लीवलेस टॉप पहन रक्खी थी। 12 साल की लड़की गोलमटोल शरीर पर जीन्स टॉप उसे बहुत जँच रहा था। अनन्या के लंबे बाल उसकी कमर तक पहुँच रहे थे जो कि उसकी सुंदरता को दुगुना कर रहे थे।

अवन्तिका ने एक बिस्कुट का टुकुड़ा आगे बढ़ाया। बंदरों की टोली से एक छोटा-सा बंदर आगे आकर बिस्कुट को अवन्तिका के हाथ से लेकर खाने लगा। अवन्तिका ख़ुशी से ताली बजाकर नाचने लगी। अनन्या, अवन्तिका को पीछे से रोकी, "अरे अवन्तिका कहाँ भाग रही है? बंदर काट लेगा, आगे मत जा। ये अक्सर हिंस्र हो जाते हैं। ऊपर कूद पड़ेंगे।" अवन्तिका अनन्या की बात सुनकर शांत हो गई।

- दीदी, फ़ोटो... सेल्फी लो न।" अवन्तिका जिद्द करने लगी।

- बंदरों के साथ बंदर लगेगी।" अनन्या ने अवन्तिका को चिढ़ाते हुए कहा।

- माँ देखो न दीदी कैसे मुझे बंदर कह रही है।" अनन्या की ओर ऊँगली दिखाते हुए रोने लगी।

- अनन्या ऐसे नहीं बोलते, नई जगह है सँभालकर रहना होगा। एक दूसरे का ध्यान रखना है।" अनन्या और अवन्तिका दोनों सिर हिला कर रजामंदी दी।

- दोनों आ जाओ मेरे पास मैं सेल्फी लेता हूँ।" संजय ने दोनों को गोद में उठा लिया। ढेर सारे फोटो खिंचवाने के बाद वे आगे बढ़ने लगे। बच्चे दोनों काफ़ी रोमांचित थे। उनका उत्साह देखने बनता था। वे एक दूसरे से आगे निकलने को भाग-दौड़ करने लगे थे। रम्या, उन्हें जितना रोकने की कोशिश करती वे उतने ही शरारत करने लगे थे। संजय एक घोड़े को किराये पर लेकर अनन्या और अवन्तिका को उस पर बिठाया। घोड़े को लेकर उसका घुड़ सवार आगे आगे चलता रहा। रम्या और संजय घोड़े के पीछे-पीछे चलने लगे।

रम्या संजय के साथ पैदल चलकर ही पहाड़ चढ़ने के लिए तैयार हुई। पहाड़ चढ़ते रम्या की मुश्किल देख संजय ने अपना हाथ बढ़ाकर आगोश में ले लिया। दोनों एक दूसरे के हाथ पकड़कर साथ-साथ चलने लगे।

रम्या के आगे चलती एक वृद्ध महिला और उनके साथ एक वृद्ध आदमी को दिखाते हुए कहा, "देखो संजय इतने बड़े उम्र में भी वे वृद्ध दंपति कितने उत्साह से एक दूसरे के हाथ पकड़ कर चल रहे हैं।"

- हाँ, प्यार है तो सब कुछ है, प्यार किसी भी उम्र के इंसान को जवानी के उत्साह को कम होने नहीं देता। अगर दोनों साथ हों तो बूढ़े हो या जवान का क्या फर्क पड़ता है?

- संजय मुझ से एक वादा करोगे?

- हाँ बोलो रम्या, ऐसा कभी हुआ कि तुमने कहा और मैंने नहीं माना हो। फिर आज वादा क्यों? रम्या के काँधों पर दोनों हाथों को रख कर आँखों में आँखें डालते हुए पूछा। लाल रंग की कुर्ती और रंगीन फूलों से भरी पटियाला ऊपर वैसे ही चुनरी पहने सीधी-सादी हल्की-सी मेकअप किए रम्या खूब सुंदर लग रही थी। वैसे रम्या गेंहुआ रंग की होने के बावजूद उसकी नज़र में एक आकर्षण है जो सुंदरता से परे है। जिसे भोलापन या मासूमियत भी कह सकते हैं। संजय उसकी इसी मासूमियत से फिदा था। होंठों पर गुलाबी रंग की लिपस्टिक में रम्या खूब सूरत से ज्यादा एक आत्मविश्वासी और स्वाभिमानी लड़की दिख रही थी। 👍👍👍

- नहीं पहले वादा करो संजय।" रम्या संजय का हाथ अपने हाथ में लेकर जिद्द करते हुए कहा। जीन्स टी-शर्ट में संजय हमेशा की तरह हैंडसम लग रहा था।

- अच्छा बाबा ठीक है, वादा करता हूँ कहो क्या बात है?"

- वादा करो कि जब तक मैं जीवित हूँ तुम कभी मेरा हाथ नहीं छोड़ोगे। मेरे अलावा किसी और के बारे में सोचोगे नहीं। उसने संजय की आँखों में आँख ड़ालकर कहा।

- ऐसा क्यों? अगर तुम्हारे अलावा कोई और मुझे देखती है और मेरे पास आना चाहती है तो मैं ना नहीं कह सकता, मर्द हूँ। नाटकीय ढंग से रम्या के कन्धों से हाथ हटाते हुए कहा।

- देखो संजय नाटक मत करो, नहीं तो मैं यहीं से इसी खाई में कूद जाउँगी।

- हे रम्या, क्या इतना भी मज़ाक नहीं कर सकता तुमसे। तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ, तुम्हारे आलावा किसीके बारे में सोच भी नहीं सकता।"

- सच कह रहे हो?" ऊँगली दिखाकर पूछा।

- हाँ बाबा! सच कह रहा हूँ। इस जन्म क्या हर जन्म में सिर्फ तुम्ही मेरी रानी बनोगी और तुम ही मेरी परी।"

- जानती हूँ फिर भी मेरी तसल्ली के लिए तुम्हारे मुँह से सुनना था।

- अरे मेरी जान, तुम्हारे लिए तो जान भी दे सकता हूँ माँग कर तो देखो।

- नहीं जान नहीं। सिर्फ तुम चाहिए। संजय के होंठों पर हाथ रखकर मुस्कुराते संजय के सीने से लग गई। अचानक कहीं से चमगादड़ कुड़-कुड़ कर फड़फड़ाने लगे।

- चलो अब चलते हैं।" संजय आगे बढ़ने लगा।

- हाँ चलो।"

लंबे-लंबे बृक्षों के बीच से सूरज की रौशनी लुका छुपी खेल रही थी। उबड़-खाबड़ जमीं पर रास्ते में छोटे-छोटे पत्थर भरे पड़े थे। एक तरफ कंकर पर एक मीटर गेज़ की टॉय ट्रेन की पट्टियाँ बिछी हुई थी। रास्ते के एक ओर अगाध खाई जिसने प्रकृति के सौंदर्य को अपने अंदर समेंट रखा था।

हरे-भरे पेड़-पौधों से भरी वह जगह लोगों के शोर-शराबों से दूर प्रकृति की गोद में फैली हुई थी। जहाँ भी देखो हरियाली से भरे पहाड़ दूर-दूर तक सुंदरता का गहना पहने खड़े थे। मेघ मालाओं ने पहाड़ की चोटी को ढँककर रखा हुआ था। पहाड़ों से उछलती-गिरती नदियाँ सैकड़ों फुट नीचे खाई में जा गिर रही थी। रास्ते के एक ओर कँटीले पौधों ने घर बना रखे थे। धूप में खिलते फूलों की सुगंध मन मोह लेती थीं। जंगली पौधों से भरी पड़ी पहाड़ों के प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को अपनी ओर खींच ले आते थे। इसलिए शायद रोज़ हज़ारों सैलानी अपनी व्यस्तता की जिंदगी से निजात पाने कुछ समय ख़ुशी से खुद को तरोताज़ा करने चले आते थे।

संजय पहाड़ की सुंदरता को अपने कैमरे में कैद कर रहा था। रास्ते के एक तरफ फ़िलबदीह उग गए जंगली पौधे तो दूसरी ओर टॉय ट्रेन की ट्रैक्स। रम्या व संजय जंगल की सुंदरता को देख मुग्ध थे। पगडंडी से गुजरते अनन्या और अवन्तिका ने घुड़सवारी का मज़ा ले रहे थे। रास्ते पर कुछ लड़के बंदरों को खिलाने के लिए चना लिए फिर रहे थे। रम्या एक लड़के से कुछ चने खरीद कर बन्दरोँ की और फैंक ही रही थी कि दो चार बन्दर अचानक सामने आ गए और उसके हाथ से ही एक एक चना ले कर खाने लगे। रम्या के लिए ये एक अनोखा एहसास था। संजय ने रम्या की खूब सारी तस्वीरें ली। पथरीली डगर पर दोनों तरफ दरख़्तों के बीच से सूरज अपनी किरणें फैला रहा था। घुड़सवार घोड़ों को आहिस्ता-आहिस्ता चला रहे थे। अनन्या और अवंतिका दूर से हिरन, मोर, जंगली गाय आदि पशु देख खुशी से चिल्ला रहे थे।

रम्या और संजय एक दूसरे का हाथ पकड़कर बातें करते चल रहे थे। घोड़े कब उन्हें पीछे छोड़कर आगे निकल गए उन्हें पता नहीं चला। कुछ समय बाद रम्या पलटकर पीछे देखा तो वहाँ घोड़े या बच्चे नज़र नहीं आये। 👍👍

- "संजय बच्चे, बच्चे नहीं दिख रहे हैं।" वह घबरा गई। उसके माथे से पसीना छूटने लगा, पैर काँपने लगे। वह इधर-उधर ढूँढने लगी।

- रम्या, बच्चे बिलकुल ठीक है। वह आगे निकल गए होंगे। ये रास्ता घोड़ों के लिए सही नहीं है इसलिए घुड़सवार उन्हें दूसरे रास्ते से ले जाते हैं। चिंता मत करो आगे जाकर मिलेंगे। देखो तो ये सफ़ेद रंग के फूल कितने सुंदर लग रहे हैं । इनका परिमल भी कितना मनमोहक है। वहाँ रास्ते के एक ओर सफ़ेद रंग के फूल दिखाते हुए कहा। रम्या इस हालात में नहीं थी कि वह संजय की बात सुने। वह बच्चों के लिए चारों ओर देखती रही।

- अंजान जगह, अंजान लोगों के बीच मेरे बच्चे कहाँ गए? घुड़सवार उन्हें किसी ओर जगह ले नहीं गया हो? अगर मेरे बच्चों को कुछ करे तो?

- रम्या कुछ नहीं होगा। बच्चे थोड़ी आगे निकल गए हैं हम भी चलते हैं, वे रास्ते में मिल जाएँगे।" संजय रम्या की घबराहट देख घबरा गया।

- कहाँ है? कहाँ है मेरे बच्चे ?"

- चलो आगे चलते है यहीं कहीं होंगे। तुम चिंता मत करो।"

- नहीं संजय अगर... अगर मेरे बच्चे नहीं मिले तो? मेरा क्या होगा? मैं तो जीते जी मर जाउँगी। संजय के हाथ को जोर से पकड़कर कहा।

- संजय, मेरे बच्चे .. दिमाग पर बढ़ते तनाव से वह बेहोश हो गई। माँ का बच्चों को न देख भावुक होना सही है, लेकिन रम्या का खुद पर काबू न कर पाना और बेहोश हो जाने से संजय हैरान हो गया। रम्या को बेहोश होते हुए देख लोग उसके चारों ओर से उमड़ पड़े। उस भीड़ को हटाते हुए संजय रम्या को अपनी दोनों बाँहों में उठाकर एक पेड़ के नीचे ले गया। पेड़ के नीचे बिठाकर पानी मुँह पर छिड़का। कुछ देर बाद रम्या होश में आई। संजय ने दूर घोड़े पर बैठे बच्चों की ओर इशारा किया। रम्या, अनन्या व अवन्तिका को घोड़े पर बैठे देखकर शांत हुई। संजय ने उसे पानी पिलाया। कुछ देर बाद रम्या ने खुद पर क़ाबू पा लिया और कहा - संजय मुझे बच्चों के पास ले चलो।

संजय और रम्या उस पूरा दिन बच्चों को लेकर होटल में ही रहे। पूरा दिन संजय ने रम्या का ख्याल रखा। छुट्टी में सैलानियों के लिए होटल में गाना और बच्चे बड़ों के मनोरंजन के लिए खेल की प्रतियोगिता आदि रखे थे। पूरा दिन वहीं गुजार कर रात को बच्चों को वीडियो गेम्स और कैरम खिलाकर मन बहलाया। दूसरे दिन रम्या की तबियत कुछ सुधार होने पर सुबह नाश्ता ख़त्म कर घूमने गए। पहाड़ों के कुछ जगह की सौंदर्य ने मन मोह लिया। रम्या की तबियत के चिंता के कारण वे वहाँ से वापस लौट आये। बाज़ार से गुजरते हुए वहाँ के दुकानों में से अपने पसंद के सामान भी खरीदा।

बाजार में तरह-तरह के सामान सजे हुए थे। आँखों को चकाचौंध कर देने वाले डिज़ाइनर कपड़े, हाथ से बनी बिजली के बल्ब्स, केन व लकड़ी से तैयार किए गए घर के उपकरण बेलन से लेकर सोफे तक हर चीज़ बिक रही थी। तरह-तरह के रंगीन व कलाकारी जूते, कुछ हाथ से बनाए हुए थे तो कुछ बाहर से बिक्री के लिए आए हुए जूते रखे गए थे। रंग-बिरंगे कपड़े, दीया-बाती से रात में बाजार की रौनक देखने लायक थी। पहाड़ की ऊँचाई के वजह से वहाँ बिजली का बंदोबस्त नहीं था।

बैटरी से तैयार बिजली से ही उस इलाके को रोशन किया गया था। रास्ते भर बल्ब से ऐसे सजाये गए थे जैसे की दीवाली मनाई जा रही हो। उस बिजली की रौशनी में घोड़े की आँखें बल्ब की तरह चमक रही थीं और उनके चमकीले शरीर, रोशनी से और भी आकर्षक लग रहा था। वहाँ के कुछ दर्शनीय स्थल प्रोक्यूपाइन पॉइंट, पनोरमा पॉइंट, एलेग्जेंडर पॉइंट, हार्ट पॉइंट और बाकी कुछ जगह का दौरा करने के बाद वापसी में टॉय ट्रेन में बैठकर दस्तरी कार पॉइंट पहुँचे फिर घर वापस लौट आये। यात्रा के दौरान अनन्या और अवन्तिका ने खूब मस्ती की। रम्या के साथ साथ दोनों को अकेले संजय ने ही सँभाला।

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