लहराता चाँद - 39 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लहराता चाँद - 39

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

39

साहिल विदेश से लौट आया। उसे एक tv चैनल में जॉर्नलिस्ट एंड रिपोर्टर की नौकरी मिल गई। उसी के नाम से एक शो साहिल रिपोर्टिंग के नाम से शुरू होने वाला था। वह चैनल के लिए दस्तखत करने के बाद वह अपने पुराने ऑफिस पहुँचा। दुर्योधन से मिलकर आशीर्वाद लिया और अपने सहकर्मियों से जी भर के मिला। बहुत दिनों बाद उन्हें मिलकर वह बहुत खुश था। अनन्या भी साहिल को देख खुश हुई। एक दिन वह अनन्या के पापा संजय से मिलने उनके घर पहुँचा। संजय का हालचाल पूछकर कर वहाँ से निकल गया। साहिल को देख अनन्या के चेहरे पर खुशी देख संजय को अच्छा लगा। उसकी चेहरे पर रौनक देख संजय को उसकी दिल की बात पहचानने में देरी नहीं लगी।

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शैलजा की जिंदगी बदलने लगी थी। वह खुद को अभिनव के साथ घर में असहनीय महसूस करने लगी। चाहे अभिनव उसे प्यार से बुलाए उसे उसकी बुलावे में दिखवा नज़र आता। उसके प्यार भरी बातों में किसी धोखे की गंध महसूस होती। अभिनव के साथ एक घर में रहना और बच्चों का उसकी ओर झुकाव उसे परेशान करने लगता। साहिल की घर वापसी के बाद घर फिर से खिल उठा। सूफी बहुत खुश थी। अभिनव पहले से सब कुछ सहज करने की कोशिश में था। लेकिन दिल टूटे और यूँ ही जुड़ जाए ये हो नहीं सकता। काँच में एक बार दरार पड़ जाए तो फिर कभी नहीं जुड़ता। चाहे कितना भी जोड़ने की कोशिश करो गहरा दाग रह ही जाता है। शैलजा का मन अभिनव के प्रति नफरत से भर गया था। उसका असली चेहरा सामने आ चुका था। चाहे इस घाव को भरने अभिनव कितना भी प्रयास करे उसमें शैलजा को धोखा ही नज़र आता था।

अब उसके सामने सवाल था साहिल और सूफी के भविष्य की चिन्ता। साहिल अपने देश लौट आया है एक अच्छी नौकरी के साथ। सूफ़ी के लिए भी रिश्ते भी आने लगे हैं। सूफी अब शादी के लिए तैयार नहीं है। फिर भी अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं। जितना जल्दी हो सके साहिल और अनन्या की शादी कर देना चाहिए। सोचते हुए वह छत पर आ खड़ी हुई।

दूर-दूर तक फूल ही फूल दिख रहे थे। रास्ते के दोनों तरफ बोगनवेलिया के तरह तरह रंग के फूल लाल पीले, बैगनी, सफ़ेद। साथ ही गुलमोहर के फूलों से पूरा रास्ता भरा पड़ा था। ठंडी मौसम की शीतलहर से पेड़ पौधे सिकूड़ते जैसे लग रहे थे। उसने अपनी शॉल को जोर से जकड़ लिया। लेकिन उसके मन में जो युद्ध चल रहा था उसकी गरमाहट उसके दिमाग से उतर नहीं रही थी। दिल और दिमाग में सुलगते उस आग को दिल में ही दबा रही थी। आखिर अभिनव उसके पति हैं, विवाह कर उसके हाथ में हाथ थामे इस घर में दुल्हन बन आई थी। प्यार किया था उससे और 25 साल का सहजीवन। क्या-क्या नहीं किया है उसने इस घर को पालने पोषने में। इस घर की एक एक ईंट में उसकी जान बसती है। बच्चों के कदम उनकी किलकारियाँ इस घर में गूँज उठती है। जीवन में उसने अभिनव पर विश्वास ही तो किया था। उसे यहीं इसी घर में जिंदगी गुजारनी है, जीवन की आखिरी साँस तक साथ रहने का वादा किया था।

वह इस कदर अपनी सोच में डूबी हुई थी कि अभिनव कब आकर उसके पीछे खड़े हो गए था उसे पता ही नहीं चला। शैलजा को जब एहसास हुआ वह पीछे मुड़कर जाने ही लगी थी कि अभिनव ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। "रुक जाओ शैलजा ऐसे मुँह मत फेरो। मैं जानता हूँ मैंने तुम्हारा विश्वास तोड़ा है। क्या तुम मुझे माफ़ नहीं कर सकती?"

शैलजा चुप रही। अभिनव ने फिर से कहा, "मैं बहक गया था शैलजा। हीरे को छोड़ एक काँच की चमक के पीछे भाग रहा था। यहाँ से चला तो गया लेकिन अपने बच्चों और तुम्हें नहीं भूल पाया। तुम से ही मेरा अस्तित्व है ये बहुत बाद में समझ में आया। लौट आया हूँ तुम्हारे पास हमेशा के लिए। मुझे माफ़ करदो शैलजा, मुझे माफ़ कर दो।" अभिनव शैलजा के सामने कान पकड़ कर कहा।

झुलस रहे मन पर जैसे किसीने ठंडा पानी डाल दिया। लेकिन वह आश्वस्त नहीं हो पा रही थी। कैसे भरोसा करे उस आदमी पर जिसने अपनी बीवी को ठुकरा कर अजनबी रिश्ते बनाए थे। क्या पता फिर से... छोड़ न जाएँ? वह एक शब्द बिना कहे वहाँ से जा रही थी भी साहिल सामने आ खड़ा हुआ।

- "माँ माफ़ कर दो ना पापा को प्लीज। पापा बहुत शर्मिन्दा हैं। वह अपना गलती को स्वीकार कर माफ़ी माँग रहे हैं। देखो माँ आज साल का आखिरी सूरज डूबने को है। कल एक नए सूरज उदय होगा आशा की किरणें लिए। इस नए साल में हम सभी दुख नाराज़गी भूल कर पापा को माफ़ कर देंगे माँ। तुम भी माफ़ करदो।" साहिल शैलजा के सामने घुटनों पर बैठ कर गिड़गिड़ाने लगा।

- "हाँ माँ पापा को माफ़ कर दो ना प्लीज।" सूफी भी साहिल के पास आ कर घुटनों बल बैठ कर हाथ जोड़कर माफ़ी माँगने लगी। तभी अभिनव भी उनके साथ उसके सामने घुटनों बल बैठ कान पकड़ कर कहा, "मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई शैलजा जो आँखे हो कर भी देख नहीं पाया। मुझे क्या हो गया था पता नहीं, मेरे हीरे जैसे बच्चों को छोड़ मैं किसी बेनामी अँधकार में डूबने जा रहा था। तुम्हारा बड़प्पन है कि सब भूल कर मुझे फिर से घर में जगह दी। मेरी मुश्किलों में मुझे सहारा दिया। मैं तुम्हारे बिना कभी चल ही नहीं पाया था और न आगे चल पाऊँगा। तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूँ शैलजा, मुझे माफ़ करदो।"

शैलजा को अब कहने को कुछ नहीं रहा। "अगर तुम्हें बच्चों ने माफ़ कर दिए हैं तो ठीक है। लेकिन मुझे सोचने को कुछ वक्त चाहिए।"

तब अभिनव ने कहा, "जरूर शैलजा। लेकिन मुझे एक मौका देकर देखो मैं दुबारा शिकायत का मौका नहीं दूँगा।"

शैलजा ने सिर हिलाकर सहमति दे दी।

'याहू' कहकर साहिल और सूफी अभिनव और शैलजा के चारों और नाचने लगे। अभिनव भी खुशी से झूम उठा। तुरन्त ही नया साल मनाने का प्लान बनाया गया। और गाड़ी निकाल कर पूरा परिवार शहर के नया साल मनाते देखने और अतिशबाजी करने बाहर आ गए। साहिल ने पहले से प्लान बना कर रखा था। उसकी लौटने की खुशी और अभिनव की घर वापसी का जश्न मनाने सब इकट्ठा हुए। साहिल ने होटल का लॉन पहले बुक किया था और उसके सभी सगे सम्बन्धियों और दोस्तों के साथ म्यूजिक शुरू हुआ। अनन्या अवन्तिका संजय, अंजली और उनकी माँ, दुर्योधन, स्नेहा और उसके ऑफिस के सहकर्मी सभी खूब खुशियाँ मना रहे थे।

*****

शैलजा एक कोने खड़े नए साल की पार्टी का जायज़ा ले रही थी। सब खुश थे। सूफी ने सबके लिए कुछ खेल रखा था। हर उम्र के लिए अलग-अलग खेल होने के बाद जोड़ियों की बारी आई। सब को जोड़ी में खड़े होने को कहकर एक एक अखबार दिया गया। उस पर अपने अपने जोड़ीदार के साथ नाचना था। जैसे जैसे खेल आगे बढ़ता जीती हुई जोड़ी को अखबार को आधा करके उसपर बाँहें पकड़े नाचना होगा। ऐसे अखबार के सबसे छोटे टुकुड़े पर जो जोड़ी नाचेगी वही जीतेगी। सूफी इस खेल के बारे में समझा रही थी कि जीतने वाली जोड़ी के लिए डेटिंग का इंतज़ाम किया गया था। सभी अपने अपने जोड़ियों को लेकर तैयार थे। तभी साहिल अपने पिता माता का हाथ पकड़े एक अख़बार के पास ले आया। शैलजा के मना करने के बावजूद वह उन्हें खेलने के लिए राज़ी करा लिया। अनन्या संजय और अंजली को एक अखबार के पास ले आई। दोनों अपने हाथ छुड़ाकर दूर जा खड़े हुए। म्यूज़िक जोरों पर था।

समय और एकांत देखकर साहिल ने अनन्या को सफेद गुलाब का फूल भेंट किया जिसे अनन्या खुशी से ग्रहण किया। साहिल और अनन्या को जैसे एक नया जीवन मिल गया। दोनों एक दूसरे की ओर देखते रह गए। सफेद फ्रॉक में अनन्या बेहद खूब सूरत दिख रही थी। साहिल भी नीले कोट में आकर्षक लग रहा था जिससे अनन्या आँखें हटा नहीं पा रही थी। अनन्या उसकी कोई भी हरकत टाल नहीं पा रही थी। म्यूजिक चल रहा था और जोड़ियाँ नाच रही थी। अनन्या के होंठों पर मुस्कान संजय को कुछ न कहते हुए भी सब कुछ कह गई।

अंजली संजय को देख रही थी। अंजली संजय के पास जा खड़ी हुई। संजय कुछ कहता उससे पहले ही अंजली ने संजय से कहा, "साहिल और अनन्या दोनों साथ में बहुत खुश नजर आ रहे हैं।"

- "सच, दोनों एक दूसरे के साथ कितना खुश दिख रहे हैं। अगर दोनों एक दूसरे को हो जाएँ तो बहुत खूब सूरत जोड़ी होंगे। " संजय देखते रह गया।

"आप से कुछ बात करनी है।" अंजली ने कहा।

- "अभी नहीं बाद में, यहाँ सब मौजूद हैं। मेरी बच्चियाँ खुशियाँ मना रहे हैँ।"

- "नहीं संजय जी अभी आप से बात करनी है, फिर बाद में बात हो पाएगी या नहीं पता नहीं।"

- "ऐसा क्यों कहीं जा रही हो अंजली?"

- ऐसा ही समझ लीजिए। शायद मैं दो दिन बाद यहाँ न रहूँ।"

- आप फिर से विदेश तो नहीं जा रही?

- "हाँ ऐसी ही कुछ बात है?

- " बात क्या है मैं जान सकता हूँ? और अचानक ये फैसला? सीधे अंजली के आँखों को देखते पूछा।

- "कुछ फैसलें अचानक ही लिए जाते हैं संजय जी। मेरी जिंदगी ने भी मुझे बहुत छला है। कभी आशा कभी निराशा के बीच मैं अकेली ही जीवन जी ने की आदी हो गई। 12 साल विदेश में रहने के बाद जब यहाँ पहुँची लगा था मेरे मन से पुरानी यादें पुराने खयालत सब बेरंग हो चुके हैं। लेकिन जब आप के परिवार से मिली फिर से नई आशा जाग उठी। आपके बच्चों ने मुझे इस तरह बाँध लिया कि मैं आपके परिवार की एक सदस्या जैसी महसूस करने लगी। शायद इसी बात से बच्चे मुझ से आशा बाँधने लगे थे।"

- आप क्या कहना चाहती हैं सीधा-सीधा कह सकती हो अंजली।

- उसी बात पर आ रही हूँ। मुझे पता है आप रम्या को कितना चाहते हैं, आज भी रम्या आपके रोम रोम में बसी है। ऐसे में मैं कैसे आपके साथ एक घर बसाने की उम्मीद रख सकती हूँ?

- यानी... संजय अंजली को समझने की कोशिश में उसके चेहरे पर आँखें गड़ाए रखा था।

- ये अलग बात है कि सालों पहले मैं ने आपके साथ जिंदगी गुजारनी चाही थी।

- "अंजली मैं समझ नहीं पा रहा हूँ तुम क्या कह रही हो।" आश्चर्य से संजय उसकी ओर देखा। जैसे उसके सामने कोई नई चेहरा है जिसे वह कभी जनता ही नहीं था। जैसे वह पहली बार उसे ध्यान से देख रहा हो। आँखों में वही प्यार जो कभी रम्या की आँखों में पाता था। उसकी नज़र कुछ कह रहा हो और वह पहचान कर भी न जानना चाहता हो जो कि उसके दिल में चुभ रहा था।

- ये सच है संजय। अगर आज मैं बता नहीं सकूँगी तो फिर चाहे कभी मौका मिले न मिले। कल अनन्या मेरे घर आई थी और आपसे शादी करने के लिए अनुनय किया।

- उफ्फ अनन्या भी ना, मुझे माफ़ कर दो अंजली मुझे पता नहीं था अनन्या ऐसा कुछ कर बैठेगी। मुझे पता होता तो कभी जाने नहीं देता।"

- "ऐसी बात नहीं है। वे दोनों अब बच्चियाँ नहीं रही हैं। वे अच्छे से समझ रही हैं कि उनके लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है। अगर वे माँ का प्यार पाना चाहते हैं, उसमें कोई गलती है। लेकिन मैं नहीं चाहूँगी कि मेरी वजह से आपकी जिंदगी में कोई उथल पुथल हो। पहले भी जब मुझे पता चला कि आप और रम्या एक दूजे से प्यार करते हैं तब भी मैंने मानसिक रूप से खुदको समझा लिया था। मेरे पिताजी मेरी शादी को लेकर चिंतित होने लगे तब मैं पढ़ाई के बहाने यहाँ से दूर चली गई थी। जब लौटी आप दोनों को साथ देखकर बहुत खुश थी। कुछ समय चुप रह कर फिर से कहा, "रम्या को मौत ने छीन कर आपके साथ नाइंसाफी की है। और आप के रम्या की ओर प्यार और उसे न भूल पाना देख मुझे आपके प्रति संवेदना के साथ दुबारा खोने का डर सताने लगा। क्यों ना हो जब कोई किसी को इतना प्यार करे कि उसके जाने के बाद भी उसकी यादों में खोए रहे, ऐसे लोग जिंदगी में बहुत कम मिलते हैं।" वह खुद पर मुस्कुराई फिर कहा, "कुछ समय के लिए मैंने भी आपसे .... जरूर दिल हार बैठी। लेकिन अब अगर अनन्या या आप चाहते हैं कि मैं शादी के लिए तैयार हो जाऊँ तो गलत समझ रहे हैं।"

- अंजली।जी मैं सच कह रहा हूँ कि मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा। विश्वास कीजिए।

- " हो सकता है मगर अभी यहाँ रुकना मेरे लिए संभव नहीं। शायद मैं फिर ना ही लौटूँ। इसलिए आपसे अलविदा कहने के लिए आई हूँ। अगर मुझसे कोई भूल चूक हो गई हो तो मुझे माफ़ कर दीजिए।"

बिकुल उसी वक्त घड़ी के दोनों सुई एक हो गई और एक पल के लिए चहुँ ओर अँधेरा छा गया। फिर जैसे ही उजाला हुआ सब ने नए साल मुबारक कह कर एक दूसरे को मुबारक देने लगे। अतिशबाजी की रोशनी और आवाज़ से पूरी जगह दैदीप्यमान हो उठी। सभी जोर से नाचने लगे। यह साल सभी के लिए बहुत यादगार रहा।

संजय स्तब्ध रह गया था। फिर अंजली ने कहा, " नया साल मुबारक संजय। और एक बात कहनी थी कि साहिल और अनन्या एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। उनकी शादी तक यहाँ नहीं रहूँगी। जब तक अनन्या को मेरी जाने की बात पता चलेगी तब तक मैं जा चुकी हूँगी। मुझे यकीन है इस बात को आप अनन्या को नहीं कहेंगे। पर जब शादी का मुहूर्त तय हो जाए मुझे बताइएगा जरूर। मैं उपस्थित तो नहीं हो पाऊँगी। लेकिन आशीर्वाद जरूर भेज सकती हूँ।" मुस्कुराते हुए नमस्ते कहकर वह जल्दी जल्दी वहाँ से बाहर चली गई। भीगी हुई आँखों से उसे सड़क भी ठीक से दिख नहीं रही थी। गाड़ी के पास खड़े छलकते आँखों को पोंछा और गाड़ी में बैठ कर गाड़ी स्टार्ट की। तभी म्यूजिक जोर जोर से बजने लगा। शायद पार्टी खत्म होने का ऐलान था।