लहराता चाँद - 35 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

लहराता चाँद - 35

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

  • 35
  • साहिल को अमेरिका जाकर छह महीने हो गए थे। सूफी भी एक अच्छी नौकरी में लग गई थी। शैलजा अब पुरानी बातें भूलकर फिर से खुद को समेटने लगी थी। अब उसे साहिल और सूफी की शादीकर उन्हें रिश्तों के बंधन में बाँधकर अपनी जिम्मेदारी को पूरा करना चाहती थी। शैलजा संजय की तबियत के बारे में जानकर संजय, अनु और अवि से मिल आई।

    बहुत दिनों बाद अनन्या से मिलकर शैलजा को खुशी हुई। एक दिन सुबह शैलजा अंजली को फ़ोन लगाई। अंजली फ़ोन उठाते ही शैलजा ने बात शुरू की "अंजली जी नमस्कार, मैं शैलजा बोल रही हूँ।"

    - जी, अब कैसी है तबियत आपकी?

    - जी बिल्कुल तंदुरुस्त हूँ आप कैसी हैँ?

    - मैं भी ठीक हूँ, कहिए आज सुबह सुबह मुझे कैसे याद किया आपने? कोई बात थी या..

    - कुछ बात है, क्या मैं आप से घर पर मिल सकती हूँ? कुछ पर्सनल बात है इसलिए।

    - बड़े शौक से आइए। इसमें पूछने वाली क्या बात है? आप घर आ सकती हैं।

    - जी। शैलजा ने मिलने का टाइम ले कर नमस्ते कहकर फ़ोन रख दिया।

    उसी दिन शैलजा अंजली से मिलने पहुँची।

    - "अंजली जी अनन्या के परिवार से आप का मेल जोल काफ़ी अच्छा है आपने उनको बहुत करीब से देखा होगा। और आप उनकी शुभचिंतक भी रही है। इन दिनों संजय जी की कुछ सेहत से जुड़े परेशानियों से गुजर रहे हैं ऐसे में शादी की बात करना हो तो ठीक न लगे। आप मेरी और मेरी परिवार की स्थिति भी जानती हैं। साहिल अनन्या से बहुत प्यार करता है और मेरे ख्याल से अनन्या भी उसे बहुत चाहती है। मैं चाहती हूँ कि आप साहिल और अनन्या की रिश्ते की बात की शुरुआत अनन्या के पापा से करें तो ठीक रहेगा।

    - शैलजा जी, उससे पहले अनन्या के मन की बात जानना जरूरी है। उसके बाद ही हम कुछ निर्णय ले सकते हैं।।

    - ठीक है। आप को जो सही लगे। समय देखकर बात करके बताएँ।

    - जरूर । अंजली से वादा लेकर शैलजा घर लौट आई।

    ####

    बहुत दिन बाद दुर्योधन संजय से मिलने आया। और इत्मीनान से सावित्री के बारे में बताया। यह सदमा संजय के लिए दुखद था। सावित्रीदेवी से उनके परिवार के बहुत नजदीकी सम्बंध रहे हैं। रम्या भी सावित्री को अपनी भाभी मानती थी। रम्या के बाद अनन्या और अवन्तिका ने उस परिवार के अपनत्व से अधिक यत्न पाया।

    सावित्री की लंबे समय की बीमारी के बावजूद उसने किसी भी त्योहार को यूँ ही नहीं मनाया। वह हमेशा त्योहारों में खूब सजती और घर को भी सजाती। स्वादिष्ट पकवान बनवाती। सभी दोस्तों के संग त्योहार मनाती और खूब खिलाती। उसके बिना अब वह घर सूना पड़ गया है। उनके बेटे-बहू, पोता-पोती सभी कुछ समय के लिए आये फिर अपने रास्ते चल दिये। दुर्योधन सावित्री जी को याद कर पुरानी बातें कहते न थकते।

    दुर्योधन अब अकेला पड़ गया था। समय मिलते ही संजय के पास आकर बैठता। कई घंटों तक दोनों चैस खेलते। दुर्योधन का साथ और बेटियों की देखरेख से धीरे-धीरे संजय की सेहत ठीक होने लगी। डॉक्टर से भी संजय को घर से बाहर जाने की अनुमति मिल गई लेकिन सीढियाँ चढ़ने के इजाजत नहीं थी।

    कुछ समय के लिए उसके डुप्लेक्स घर के नीचे के ही एक कमरे में रहने का बंदोबस्त कर दिया गया। डॉक्टर संजय की नर्स सिस्टर अनुराधा उनके देखभाल करने आ जाती थी। अनन्या हर पल उसके पापा के साथ रहती। अवन्तिका पापा के साथ रहकर उनके साथ कैरम और चैस खेलती। तीनों कभी उन्हें अकेले रहने नहीं देते थे। हर वक्त कोई पास होता। इस तरह संजय को एहसास भी नहीं हुआ कि उसका ऑपरेशन हुआ है। बहुत जल्द सब कुछ भूलकर फिर से एक होकर अपने अपने काम सँभाल लिए।

    अंजली के ऊपर जिम्मेदारी डालकर शैलजा एक तरफ से निश्चिन्त हो गई थी लेकिन दूसरी ओर उसे अनन्या की हाँ का इंतज़ार था। साहिल को तो उसने समझा दिया था लेकिन अनन्या के मन में क्या है कौन जाने।

    अंजली भी अनन्या के ऊपर कोई जोर नहीं डालना नहीं चाहती थी। वह चाहती थी अनन्या खुद खुशी-खुशी इस रिश्ते के लिए हाँ कहे न कि किसी दबाव से। इसके लिए उसके मन को टटोलना जरूरी था। संजय की हृदयाघात से अंजली उनके घर अक्सर आ जाया करती। संजय ने भी अपनी बेटियों का मन जान लिया था इसलिए वह अब अंजली को नहीं रोकता था। अंजली उस घर की एक सदस्य बन गई थी। अस्पताल का काम खत्म होते ही संजय को समय पर दवाई देना और बाकी समय घर सँवारते रहती। वह अनन्या और अवन्तिका का ध्यान रखने लगी थी।

    संजय की सेहत ठीक होने पर अपनी माँ की बरसी मनाई। कुछ खास बंधुओं के साथ घर में खान पान रखा। अंजली भी हमेशा की तरह किचेन में अनन्या को मदद करती। दुपहर खाने के बाद दुर्योधन और संजय चैस खेलने में मशगूल हो जाते। अवन्तिका अपने पिता के पक्ष में रहकर चीयर करती रही। अंजली और अनन्या, अनन्या के कमरे में बैठकर बातें कर रहे थे। अंजली अनन्या की तारीफ करते हुए कहा, "अब तो तुमने बहुत अच्छे से घर सँभालने लगी हो अनन्या, कहो तो तुम्हारी शादी की बात चलाऊँ?"

    "कैसी बात कर रही हैं आँटी अभी मैं शादी नहीं करूँगी।"

    "क्यों नहीं करोगी अनन्या सही समय पर शादी हो जाना ही सही है।"

    "मुझे अब शादी नहीं करनी है।"

    "लेकिन... " कहते कहते रुक गई अंजली फिर कुछ समय सोचकर मुस्कुराते कहा, "अच्छा तो तुम्हारी नज़र में कोई है ... तो बताओ चट मंगनी पट ब्याह करा देते हैं। पापा से कहकर बात चलाऊँ?"

    "नहीं नहीं, अभी नहीं," घबरा कर बोली, "ऐसी बात नहीं है आँटी मैं अभी शादी करना नहीं चाहती।"

    "तो बता कौन है वह? जो हमारी राजकुमारी की दिल ले गया। मुझसे शरमाओ मत।" उसकी बात पर ध्यान न देते हुए कहा।

    "कोई नहीं आँटी।" उसकी आँखों से कुछ अनकही बातें जुबान पर आते-आते रह गई।

    अंजली उसके काँधे पर हाथ रखकर कहा, "देखो अनन्या तुम अभी अकेली नहीं हो, हम सब तुम्हारे साथ हैं। रम्या नहीं है तो क्या हुआ एक लड़की के सपनें उसका मन खूब जानती हूँ जो भी मन में है साफ-साफ कह देना।"

    उसने सिर को हिलाकर 'हाँ पर..' कहा।

    "आज तक तुम्हारे आस-पास कई दोस्त होंगे स्कूल कॉलेज या दफ्तर में जो तुम्हें बहुत पसंद करते हों या तुम्हें कोई पसन्द आया हो?"

    "हाँ बहुत ऐसे लोग हैं, और ऐसे भी हैं जो मुझे पसंद करते हैं। लेकिन मुझे कोई पसन्द है या नहीं इसके बारे में कभी सोचा नहीं।" कहते हुए उसे साहिल की याद आई।

    "कोई तो होगा जो मेरी अनन्या का दिल चुराया होगा, क्यों?" अंजली ने शरारती भरी नज़र से अनन्या की ओर देखते से पूछा।

    अनन्या ने मुस्कुराकर नज़र झुका दी। उसकी मुस्कुराहट में प्यार था किसीकी यादों की झलक थी। अंजली समझ गई और पूछा, "इस प्यारी सी मुस्कुराहट का कारण कौन है हम भी तो जानें।"

    "कोई नहीं आँटी, बस यूँ ही कुछ याद आ गया।"

    "वही तो किसकी याद आ गई?"

    अब उससे छुपाया नहीं गया।

    "वह मेरे ऑफिस में काम करता है। साहिल, हम बहुत पहले से दोस्त हैं।"

    "साहिल यानी शैलजा जी का बेटा ..."

    "हाँ.." हल्की सी मुस्करा दिया।

    "अच्छा फिर सिर्फ दोस्त है या...उससे कुछ ज्यादा?"

    "आँटी आप भी ना हम सिर्फ दोस्त थे।" कहते शरमा गई अनन्या फिर बात को दूसरी और मोड़ते हुए कहा, "आँटी मैं कुछ पूछूँ आपसे बुरा नहीं मानोगी ना? आप की निजी जीवन के बारे में है।"

    "जरूर पूछो अनन्या,अब तो हम दोनों दोस्त भी बन गए हैं। तुम कुछ भी पूछ सकती हो।"

    "आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की है?" अनन्या ने अंजली की ओर देखते हुए प्रश्न किया।

    "चलो जानना चाहती हो तो बता देती हूँ, सच कहूँ तो आज तक मेरी पसन्द का कोई मुझे मिला ही नहीं।"

    "मिला ही नहीं का मतलब जिसको आपने पसन्द किया था वह नहीं मिला? या कोई आपको पसंद नहीं आया?" अनन्या के इस प्रश्न का उत्तर में अंजली हड़बड़ा गई।

    "पसन्द तो आया था कभी, लेकिन एक तरफा प्यार था। एक तरफ का प्यार कभी टिक नहीं सकता है, उसे कोई और पसन्द था और उनकी शादी मैंने खुद करवा दी। फिर पढ़ने लंदन चली गई।

    "सच में इतना त्याग कोई नहीं कर सकता आँटी। अब भी देर नहीं हुई। आप शादी कर लो।"

    "छोड़ो ना अनन्या अब इस उम्र की शादी में क्या रखा है? मेरा सूरज तो ढ़लने की ओर गतियमान है फिर अभी पुरानी बातों को याद करने का भी कोई मतलब नहीं। अब तुम जवान हो शादी के लिए तैयार हो और जिस उम्र में जो होना है उसे होने देना चाहिए।"

    " शादी के लिए कोई उम्र नहीं होता है आँटी जब भी कोई पसन्द आये वही सही उम्र है।"

    "अरे पगली किस बात में उलझ गई? शादी और मैं? सोच कर हँसी आती है।"

    "क्यों नहीं आँटी आप सुंदर हो, अकेली हो, सब से अच्छी बात है कि आप बहुत अच्छी इंसान हो। इससे ज्यादा क्वालिटी क्या चाहिए किसी को?"

    "अनन्या अब छोड़ो चलो 4बजने को आया चाय बनाते हैं।" बहाना करके वह किचन की ओर बढ़गई। अनन्या खुश थी कि अंजली से मन की बात खुलकर की। अंजली के बारे में भी बहुत कुछ जाना। अचानक कुछ दिन पहले की बात याद आई जब उसके जन्मदिन पर अंजली और संजय पास पास खड़े थे और उसे एक पल के लिए लगा काश कि अंजली आँटी और पापा शादी के लिए मान जाते।

    उसी वक्त अंजली यह सोचकर खुश थी कि वह अनन्या की दिल की बात जान गई है कि अनन्या भी साहिल से उतना ही प्यार करती है जैसे शैलजा जी ने कहा था। अब अनन्या और साहिल के रिश्ते के लिए संजय से बात करने में आसान होगी। पर वह इस बात से अनजान थी कि अनन्या के मन में उसके लिए क्या चल रहा है।

    उस रात अवन्तिका ने अनन्या से पूछा, "दी आज आप और आँटी के बीच बहुत देर बात हो रही थी। क्या बात थी?"

    -"हाँ आज हम दोनों ने बहुत सारी बात की। अवि कुछ मन की बात है बोलूँ?"

    - बोलो ना दी।"

    - तुम्हें अंजली आँटी कैसी लगती है?"

    - हूँ ठीक है , अच्छी, लगती है। क्यों?

    - अगर अगर वह हमारे घर आ जाए तो कैसा रहेगा?"

    - हमारे घर? मतलब वह हमारे साथ रहेगी ? वह हमारे साथ क्यों रहेगी? आप को पता है कि पापा गुस्सा करते हैं।

    - अगर अंजली आँटी और पापा की शादी हो जाए तो वह हमारे घर आ सकती है, मेरा आईडिया कैसा है।

    - दी तुम पागल तो नहीं हो गई?" आश्चर्य चकित होकर पूछा।

    - क्यों इसमें गलत क्या है?

    - दी इस उम्र में शादी! आँटी और पापा के साथ? लोग क्या कहेंगे? नहीं दी मुझे पसंद नहीं, जैसा है वैसे रहने दो। हम सब अपने जगह ठीक हैं।

    - अवन्तिका, एक बार सोचो पापा हमारे लिए अब तक अकेले जी रहे हैं। उन्होंने दूसरी शादी के बारे में कभी सोचा भी नहीं। अब हम बड़े हो चुके फिर कुछ दिन बाद हमारी भी शादी हो जाएगी तब क्या ? क्या हमारा कुछ कर्तव्य नहीं बनता कि पापा के लिए कुछ करें, बोलो।

    अवन्तिका को कोई अन्य व्यक्ति पापा पर हक़ चलाए ये बात अच्छी नहीं लगी।

    - "करने को तो बहुत कुछ है, हम अपनी शादी के बाद भी पापा की देखभाल कर सकते हैं। इसके लिए शादी करने की जरूरत क्या है? दीदी सो जाओ मुझे और बात नहीं करनी है, नींद आ रही है सुबह ऑफिस जल्दी जाना है।" कहकर वह पलटकर सो गई।

    अनन्या की इस बात पर न जाने उसे चिड़चिड़ापन महसूस होने लगा। 'दीदी भी क्या-क्या सोच लेती है, ऐसा नहीं हो सकता, आंटी का हमेशा के लिए हमारे घर आना मुझे ये अच्छा नहीं लगता है।' बहुत समय तक अनन्या के साथ खूब मस्ती करने वाली अवन्तिका तुरन्त ही सोने का बहाना बनाने से अनन्या मुस्कुराकर करवट बदलकर सोने का निष्फल प्रयास करने लगी। साहिल की याद उसे सोने नहीं दे रही थी। कानों में साहिल की आवाज़ गूँज रही थी 'आई लव यू अनन्या... आई लव यू'। वे दिन ही कुछ और थे सपनों की दुनिया में सम्मोहन सी यादें, प्रकृति की हर रचना, खुब सूरत लगती थी। हवा में सुंगंध उस महकती हवा में न जाने मन कहाँ-कहाँ भटकते हुए खो जाता था। रंग रंगिली यादें मन को सताने लगीं।

    मन में सोचती 'काश कि उन दिनों में फिर से लौट जाऊँ। कितने सच्चे थे ख्वाब। लगता था अभी वे ख्वाब जीवंत हो उठेंगे और मेरे साथ नाचने लगेंगे। शाम की सुनहरी किरणों में सूरज धूप छाँव जैसे आँखमिचौली खेल रहा था। डूबता हुआ सूरज जब रात के अँधेरे में छुप जाता था और चाँद की सफ़ेद किरणें आँखों को रोशन करते बिखरने लगती थी तब दूर आकाश पर वह साँझ तारा खिलखिलाकर हँसने लगता था। लगता जैसे बचपन का वह बिछड़ा हुआ साथी साथ देने आकाश में उभर आया हो। जब ठंडी हवा घुँघुरिले बालों को चूम कर उड़ती थी, लगता उस प्रिय ने बालों को प्यार से सहलाया हो। मोहक सा एक ख्वाब आँखों में बस जाता था। उस नशे से जिंदगी भर सो जाने को मन करता था।' काश कि वे दिन फिर से लौट आते।

    अनन्या करवट लेते सोच रही थी, 'साहिल शायद ऑफिस में होगा। मुझे याद करता भी होगा या नहीं। मैंने उससे जिस तरह से व्यवहार किया था, उससे उसका दिल टूट गया होगा। वह अमेरिका में नए दोस्त बना भी लिए होंगे। नए दोस्त नयी जगह फिर मुझे क्यों भला याद करेगा।' मन कुंठित हो गया। 'वहाँ की लड़कियाँ खूबसूरत भी हैं और स्वच्छंद जिंदगी जीतीं हैं, मेरी जैसे अपने ही दायरे में बंद नहीं रहतीं। साहिल को कोई भी लड़की पसंद कर ले ये भी मुमकिन है।' ब्लैंकेट को अपने ऊपर खींचकर उसने करवट लेकर आँखें बंद कर सोने की कोशिश की। "न जाने आज मैं साहिल के बारे में क्या सोच रही आज क्यों वह इतना याद आ रहा?" सोचते वह मन को दूसरी ओर मोड़ते हुए सोने की कोशिश की।