Lahrata Chand - 34 books and stories free download online pdf in Hindi

लहराता चाँद - 34

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

34

  • संजय ऊपर अपने कमरे के खिड़की पर खड़ा था। कोई भूमिका बिना ही उसके कान सब कुछ सुन रहे थे। पहली बार उसे लगा अपनी बच्चियों की दिल की बात वह कभी समझ ही नहीं पाया। वह हमेशा यही समझता रहा कि वह अपने बच्चों के रहन सहन, खानापीना सभी सही तरीके से कर रहा है कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन आज वह ये समझ गया कि उसकी बच्चियों ने कभी अपने मन की बात उससे बाँटी ही नहीं। वे अपने आप में घुटते रहे मगर उससे कुछ कहा ही नहीं। तो क्या वह बच्चों की परवरिश में असफल रहा।
  • वह निराश और दुखी होकर सोफे पर बैठने ही वाला था अचानक उसके सीने में दर्द उठने लगा, वह सोफे के सहारे बैठना चाहा मगर उसका शरीर दर्द से कराहने लगा, वह सहारा लेने में अक्षम रहा और संतुलन खोकर जमीन पर गिर पड़ा।
  • 'धड़ाम' आवाज़ सुनकर सभी सीढ़ियों से ऊपर दौड़ कर आये। सीने पर हाथ रखकर तड़पता संजय को देख दुर्योधन और अनन्या दौड़कर पास आए। दुर्योधन अनन्या की मदद से उसे सीधा सुलाया। दुर्योधन ने उसे पहली चिकित्सा देते हुए उसके सीने पर दोनों हाथ से जोर से दबाया और हर 2 मिनट में मुँह से साँस देने लगा। अनन्या उसके पैर को हाथ से रक्त प्रसारण के लिए मर्दन करने लगी। कुछ ही समय में संजय खाँसते हुए होश में आया।
  • अवन्तिका अपनी नाराज़गी भूलकर पापा के कमरे के आगे घुटनों पर बैठकर रोने लगी। उसकी गलती पर उसे पछतावा होने लगा। वह समझ गई कि वह कितनी बड़ी गलती करने जा रही थी। पापा को कुछ हो गया तो.. क्या वह सह सकती है?
  • अवि डर से काँप उठी। 'नहीं पापा को कुछ नहीं होगा। पापा को कुछ होने नहीं देगी माँ को पहले ही खो चुकी है अभी पापा को खोने का सोच से ही काँप उठी। वह भी संजय के पास दौड़कर पहुँची।'
  • अनन्या के मुख से अवन्तिका की जाने की तैयारी के बारे में जानकर अंजली अवन्तिका को लेने घर पहुँची ही थी कि उसके विपरीत संजय का दिल की बीमारी के बारे में पता चला। समय को हाथ से फिसलने की मौका न देते हुए दुर्योधन और अंजली उसे तुरंत अस्पताल ले गए। दुर्योधन संजय को अस्पताल पहुँचा कर अंजली और डॉक्टर को जिमेदारी सौंपी। उसे सावित्री की डॉक्टर की बात याद आई। न जाने कैसी हैं सावित्री। अस्पताल ले गए कि नहीं। वे संजय को आई सी यू में भर्तीकर संजय को डॉक्टरों के निगरानी में छोड़कर वह खुद के घर पहुँचे। रास्ते में सावित्री के बारे में चिंता परेशान कर रही थी। दुर्योधन ने डॉक्टर को फ़ोनकर सावित्री की हालत जानना चाहा। डॉक्टर चंद्रशेखर ने बताया कि सावित्री जी की तबियत के बिगड़ते हालात देख उन्हें अस्पताल के आई.सी.यू में ले जाया गया है वह तुरन्त अस्पताल पहुँचे। दुर्योधन बिना देर किए सावित्री से मिलने अस्पताल पहुँचे। वह अस्पताल उनके घर के नज़दीक था जहाँ सावित्री जी का इलाज चल रहा था।
  • समय किसी का गुलाम नहीं होता। ना ही वापस लौटकर आता है पर उन परिस्थितियों को जीवन में बार-बार दोहराता जरूर है और हमारी गलतियों का एहसास दे जाता है। तब तक वही समय रेत की हाथ से फिसल गई होती है जिसे वापस ठीक करना संभव नहीं होता। चाहे जवानी में कोई गलती की हो या जोश में होश खोकर बच्चे अपने पिता-माता के प्रति अपना कर्तव्य भूल गए हो पर एक दिन यह समय फिर उनकी जिंदगी में भी दस्तक देता है। वृद्धावस्था उनके जीवन में लौट कर आएगी ये कभी नहीं भूलना चाहिए।
  • दुर्योधन ने अपने बच्चों को सालों बाद फ़ोन किया और उनकी माँ की बीमारी के बारे में बताया। सावित्री की बीमारी की बात जानकर वह दुखी हुए या नहीं दुर्योधन को इसकी कोई परवाह नहीं थी। क्यों कि वे संवेदनाओं की सारी हदें पार कर चुके थे। माता पिता का होना न होना उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। बच्चे जब तक छोटे होते हैं तब तक जरूरतें उनके सामने होती है। एक समय के बाद जब वही बच्चे पैसे कमाने लगते हैं और कामयाबी कदम चूमने लगती है... तब माता पिता उनके रास्ते के काँटे बन जाते हैं। उन काँटों को आड़ेकर जाना ही वे बेहतर समझते हैं। लेकिन वे भूल जाते हैं उनका भी एक वक्त आएगा जब समय उन्हें उनके किये की याद दिलाएगा। पर तब सब कुछ हाथ से फिसल गया होता है और पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचता। यही जीवन है चाहे कितने भी संस्कारों का दुहाई देने लगें ऊँची नौकरी से मिलती सुविधाएँ उन्हें अपने बस में कर ही लेती है।
  • एक लंबी साँस छोड़कर दुर्योधन ने सावित्री के कमरे में पैर रखा। 20 सालों से पक्षपात से ग्रसित सावित्री आई.सी.यू में अकेली ऑक्सीजन के सहारे साँस ले रही है। उसकी बिगड़ती हालात देख वह दुःखी था। लेकिन उसकी मुश्किलें देख वह भगवान से प्रार्थना करने लगा कि उसे इस कैद से छुटकारा दे दे। बहुत लंबे समय से बीमार होने के कारण उसका शरीर जवाब दे चुका था। बावजूद इसके पत्नी का साथ होने का एहसास दुर्योधन को संबल देता था। चाहे पत्रिका संपादन में कुछ पैसे अर्जन करें या ना करें वह तो जिंदगी को जीने का एक कारण मात्र था।
  • पत्नी का होना उन्हें अपनों के वजूद का एहसास देता था। वह एक कुर्सी सरकाकर सावित्री देवी के पलँग के पास बैठ गए। सावित्री की हालत देख उसके आँखें भर आई। वह सावित्री के हाथ को अपने हाथ में लेकर अपने होंठों से स्पर्श किया। सावित्री के हाथ की ऊंगलियों ने उस स्पर्श को पहचान लिया। सावित्री के शरीर में स्पंदन सा लहरा गया। धीरे से उसने आँखे खोली। उसकी आँखें पलँग की चारों और कुछ ढूँढ रही थी। फिर उसकी नज़रें दुर्योधन पर टिक गई। उसकी नजरों में एक आशा बच्चों को देखने की थी, उन्हें न पाकर वह में उदास हो गई। उसकी आँखों में उदासीनता देख दुर्योधन को आभास हो गया कि वह अपने बेटों को ढूँढ रही है।
  • - "चिंता मत कर सावित्री बच्चों को खबर कर दिया है कि तुम उन्हें मिलना चाहती हो जल्दी आ जाओ। बड़े ने तो तुरंत ही निकलने का वादा किया। छोटे ने भी रोशनी के स्कूल से आते ही आ जाएगा। बल्कि निकल ही गए होंगे अब सुबह तक पहुँच...।"
  • "आप को झूठ बोलना कभी आया ही नहीं।" सावित्री की नज़र ने दुर्योधन का झूठ पकड़ लिया। उसकी आँखों से आँसू किनारे छूकर बहने लगे। लेकिन उसके चेहरे पर अविश्वास की मुस्कान थी जैसे कि वह दुर्योधन को दिलासा दे रही है। सावित्री खिड़की से चाँद की और हाथ दिखाया और धीरे से कहा, "मेरा बुलावा आ गया है जी अभी आपको मेरे बिना ही जिंदगी जीने की आदत करनी पड़ेगी।"
  • "ऐसा मत बोलो सावित्री तुम्हारी अलावा मेरा बचा ही कौन है? मैं तुम्हें देखकर जी रहा हूँ, तुम्हारे बिना जीना दुर्भर हो जाएगा।
  • - "रवीना कैसी है? उसे बुलाओ।" सावित्री ने जैसे उसकी बातों को सुना ही नहीं।
  • - "अभी बुलाता हूँ।" कहकर वह बाहर से रवीना को बुलाकर ले आया। रवीना अंदर आते ही प्यार से उसको देखा और पास बुलाया। रवीना उसके पलँग के पास आ बैठी। सावित्री उसे आशीर्वाद देते हुए कहा, "मैं कभी सोचती थी मैं कितनी दुर्भाग्यशाली हूँ कि मेरे कोख से एक बेटी को पैदा नहीं कर सकी फिर भी देखो भगवान ने मुझे तुम्हारे रूप में बेटी दे ही दी। काश की तुम मेरे ही कोख से पैदा होती।"
  • रवीना मुश्किल से अपनी आँखों के अश्रु को रोक रखी थी।
  • "सावित्री माँ, माँ, आप ही मेरी माँ हो।" इन शब्दों के सिवा उसके जवान से और शब्द निकल ही नहीं पाया। दिल से वह बहुत कुछ कहना चाहती थी, "चाहे मैं आप की कोख से जन्मी नहीं हूँ लेकिन आपने मुझे वह प्यार दिया जिसे मैं जिंदगी भर तरसती रही। जन्म से आप मेरी माँ जरूर नहीं हैं लेकिन कर्म से आपने मुझे बेटी बना दिया है। आप मेरी माँ हो, हमेशा मैं आपकी ऋणी रहूँगी।" लेकिन उसके शब्द उसके जबान पर ही रह गए।
  • दुर्योधन ने उसे बाहर जा कर बैठने को इशारा किया और वह चली गई। सावित्री ने दुर्योधन को पास बुलाया और काँपते लफ़्ज़ों से कहा, "अपना ख्याल रखना जी और जाने से पहले अपने हाथों से कुछ खिला दो बहुत भूख लगी है।" कहकर दुर्योधन की ओर आशा से देखा। आँखे उसकी चमक रही थी जैसे कि बुझने से पहले दिया।
  • " हाँ सावित्री अभी... अभी लाया।" कहकर वह टेबल पर से कटोरी में फ्लास्क में से दूध डाला और साथ में बिस्कुट ले आया। बिस्कुट को दुध में डुबोकर सावित्री को खिलाया। सावित्री ऐसे खा रही थी जैसे कई दिनों से भूखी हो। खाने के बाद उसकी चेहरे पर संतृप्ति झलकी, आँखों में चमक से लग रहा था कि अपने पति के साथ बिताए यह कुछ पल की यादगार लम्हों को आत्मसात कर रही थी।
  • दुर्योधन सावित्री का मुँह साफ करके ब्लैंकेट को ठीक से ओढ़कर उसकी हाथों को हाथ में लिए बहुत समय बैठा रहा। और रवीना आई.सी.यू के बाहर द्वार पर खड़ी रही। पिछले 2 साल से रवीना एक बेटी की तरह उनकी देखभाल कर रही है। एक अनजाना सा रिश्ता उन तीनों के बीच गहराता गया। एक बेसहारा लड़की इन बे-सहारा पिता माता का सहारा बनी। एक खून के रिश्तों से हारी माता पिता की जिम्मेदारी बड़े प्यार से अपनाई। दुर्योधन ने रवीना के मामा को सज़ा दिलायी। उस पर हुए अत्याचार से जो क्षति पहुँची वह कोई पूरा नहीं कर सकता था लेकिन दुर्योधन ने उसे न्याय देकर उसकी मन को शांति पहुँचाई। अपने घर में स्थान देकर उसके आगे पढ़ने और उसकी जीवन सुधारने के रास्ते खोल दिये।
  • दूसरे दिन सुबह जब दुर्योधन ने सावित्री को जगाने की कोशिश की तब तक शरीर शिथिल हो चुकी थी। वह इस दुनिया को छोड़ कर अनंत में विलीन हो चुका था।
  • ####
  • संजय के अस्पताल से कुछ किलोमीटर दूरी पर दूसरे अस्पताल के आई.सी.यू में सावित्री आखिरी साँस ले रही है इस बात की खबर संजय या उसके परिवार वालों को नहीं थी। अंजली, संजय के अस्पताल में भर्तीकर रात भर अनन्या और अवंतिका के साथ रही। दुर्योधन के जाने के बाद संजय को ऑपरेशन के लिए तैयार किया गया। अंजली ने साथ रहकर अनन्या से ऑपरेशन से संबंधित सारी जरूरी कागज़ों पर दस्तखत कराई।
  • रात को अस्पताल में रुकने की इजाजत नहीं थी। अवन्तिका घर जाने को तैयार नहीं थी। अनन्या ने अवन्तिका को मुश्किल से अंजली के साथ घर भेजकर रात भर उसके पिताजी के साथ रही। सुबह होते ही ऑपरेशन होना था। अंजली को दुर्योधन और सावित्री के बारे में जानने के बावजूद वह इस बात की खबर अनन्या और अवन्तिका को होने नहीं दिया। उसे पता था अगर किसी भी तरह यह बात संजय को पता चले तो वह सहन नहीं कर पाएँगे। रात भर कोई भी सोया न था।
  • ऑपरेशन कामयाब होने के बाद संजय को जब होश आया अस्पताल के आई.सी.यू में था। उसके पास अनन्या बैठी हुई थी। संजय को होश में आते देख नर्स डॉक्टर को बुलाकर ले आई। डॉक्टर उन्हें जाँचकर नर्स को उचित सूचना दी।
  • " डॉक्टर संजय! अब कैसे हैं आप? "
  • ऑक्सीजन मास्क लगाए हुए संजय ने पलक झपकाया। डॉक्टर संजय की तबियत जाँचकर नर्स को इंजेक्शन देने के लिए कहा और नर्स आगे की सूचना देकर जा ही रही थी कि अनन्या ने पूछा, "सिस्टर! पापा ठीक हो जाएँगे ना?"
  • - हाँ वे अभी खतरे से बाहर है, लेकिन आराम करना जरूरी है इसलिए कुछ और दिन अस्पताल में रहना पड़ेगा।"
  • - जी डॉक्टर जैसे आप कहें।" अनन्या पलँग के पास लौट आई। संजय की दृष्टि अनन्या पर अटकी हुई थी।
  • "पापा!" भारी मन से अनन्या ने पुकारा। संजय अनन्या को देखा धीरे मुस्कुराया और फिर से नींद में चले गए।
  • "सिस्टर पापा.. पापा ठीक तो हैं?" अनन्या ने सहमी सी आवाज़ में पूछा।
  • "घबराने की कोई बात नहीं अभी नींद का इंजेक्शन दे दिया है, कुछ समय उन्हें सोने दीजिए। आप बाहर बैठो होश आते ही मैं बुलाऊँगी।" कहकर नर्स ने अनन्या को बाहर भेज दिया। अनन्या बाहर आ कर कुर्सी पर अंजली के पास बैठी। किसी से फ़ोन पर बातकर रही अंजली का चेहरा परेशानी से घिरा था।
  • " हाँ मैं जल्दी आऊँगी।" अनन्या को देखकर अंजली ने फ़ोन रख दिया। उसने अवन्तिका की ओर देखा। वह कुर्सी के एक कोने बैठे-बैठे ही नींद की गोद में चली गई थी। वह रात भर रोती रही और बिना कुछ खाए भूखी प्यासी सो गई।
  • "अनन्या मैंने डॉक्टर से बात की है। संजय अब खतरे से बाहर हैं। चिंता मत करना।" अनन्या के कांधों पर हाथ रखकर अश्वासन दिया। अनन्या सिर हिलाकर सहमति जताई।
  • "आँटी मैं अवन्तिका को कुछ खिलाकर ले आती हूँ। आप भी कुछ खा लीजिए।"
  • "नहीं अनन्या मुझे भूख नहीं। तुम अवन्तिका को खिला देना और तुम भी खा लेना। मुझे कुछ काम है जल्दी लौट आऊँगी। आराधना तुम अनन्या के पास रहना।" कहकर वह बाहर निकल गई।
  • "जी ठीक है।" संजय की ऑपरेशन का खबर जानकर आराधना सुबह अस्पताल आ गई थी। सावित्री जी के देहांत होने का खबर से अनन्या और अवन्तिका अनभिज्ञ थे। अंजली के जाने के कुछ ही देर बाद गौरव और क्षमा भी वहाँ पहुँचे। अनन्या, अवन्तिका को क्षमा के साथ घर जाकर आराम करने को कहा। अवन्तिका घर जाने को तैयार नहीं थी लेकिन अंजली ने उसे समझाकर घर भेज दिया। अनन्या अस्पताल में रुकी रही।
  • "गौरव! दुर्योधन अंकल कहाँ हैं, वह नहीं आये।"
  • गौरव को क्या कहना है शब्द नहीं मिल रहे थे। उसे पता था उनकी पत्नी का देहांत हो गया है और उन्होंने अनन्या या उनकी परिवार को इस बारे कुछ भी कहने को मना किया था। संजय के हृदयाघात से वे काफी चिंतित थे ऐसे समय में किसी भी हालत में अनन्या अवि या संजय को ये खबर नहीं बताने को कहकर दुर्योधन ही उन्हें अस्पताल भेज था। उन्हें पता था कि सावित्रीजी की मौत उन्हें और भी तोड़ देगी।
  • "सर को थोड़ी चोट लग गई है अस्पताल में हैं।" इतना छोटा कारण हो तो वह रुकते नहीं। अनन्या ने उनसे फ़ोन पर बात करनी चाही लेकिन गौरव ने उसे रोक लिया।
  • "चिंता की कोई बात नहीं। अभी डॉक्टर के साथ होंगे, बाद में फ़ोनकर लेना। पैर में फ्रैक्चर है इसलिए डॉक्टर उन्हें हिलने से मना किया है। हम अभी अभी वहीं से आ रहे हैं, सब ठीक है।"
  • ####
  • चार दिन बाद संजय डिस्चार्ज हो कर घर आ गया। बेटियों के दुखी देख उसका मन उदास हो गया था। अवन्तिका ने उसके पास आकर माफ़ी माँगी। संजय ने दोनों को पहले ही माफ कर दिया था। जब अनन्या संजय के कमरे में आई संजय के आँखे नम थीं। उनकी नज़रों में अपराध बोध स्पस्ट नज़र आ रहा था।
  • - पापा, अब कैसा लग रहा है आपको?" धीरे से पूछा।
  • संजय अब कुछ ठीक अनुभव कर रहा था। उन्होंने चारों ओर देखा, अवन्तिका संजय के दूसरी ओर चुपचाप बैठी हुई थी।
  • - पापा हमें माफ कर दीजिए। अवन्तिका ने संजय का हाथ पकड़ कर माफ़ी माँगी।
  • - पापा प्लीज हमें माफ़ कर दीजिए।" अनन्या ने अनुनय किया।
  • संजय अश्रु भरे नज़र से कहा, "हो सके तो मुझे माफ़ करदो बेटा, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ। मैं तुम्हारी माँ को वापस नहीं ला सकता।

    अवन्तिका संजय का हाथ पकड़कर कहा, "पापा हमें माफकर दीजिए। मामा को तो खो चुके हैं अब आप को ... खोने की हिम्मत नहीं है। आपको गलत समझने की गलती मुझसे हो गई है। मैं कैसे भूल गई कि आप कभी गलत हो नहीं सकते।"

    संजय ने फिर धीरे से कहा, "मैंने तुम्हारी माँ से वादा किया था कि तुम दोनोँ को हमेशा खुश रखूँगा वह वादा मैं निभा नहीं पाया। मैं खुद तुम्हारे दुख का कारण बन गया।" धीरे से कहा।

    "पापा आप कुछ मत बोलिए, डॉक्टर अंकल ने आपको बात को मना किया है।"

    आज तक सोच रहा था मैंने तुम्हारी परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन ... बेटा याद रखना तुम्हारा ये पापा तुम्हारी वजह से जिंदा है अगर मुझसे गलती हो जाए तो चाहे मुझे कुछ भी सज़ा दे दो मगर वादा करो कि मुझे छोड़कर नहीं जाओगी। तुम दोनोँ के बिना जीना मैं सोच नहीं सकता।" उसकी आँखें बरस रही थी। संजय ने हाथ उठाया फिर दोनों को आशीर्वाद देकर मुँह फेर लिया। वह रो रहे थे।

  • अनन्या घबरा गई, "पापा आप मत रोइए आप की तबियत ठीक नहीं है आप शांत हो जाइए। डॉक्टर अंकल ने टेंशन लेने से मना किया है।" फिर वह वहाँ से बाहर आ गई।
  • संजय की घर वापसी के बाद अंजली अक्सर ऑफिस आते-जाते उसका खबर लेती रही। ऑफिस से आते वक्त दवाइयाँ और घर की जरूरत की चीजें ले आती। उस दिन भी शाम को घर जाते वक्त संजय को देखने उनके घर पहुँची। अनन्या बाहर कुर्सी पर बैठी अंजली के पास आई और कहा, "आँटी पापा रो रहे हैं मुझसे सँभाला नहीं जा रहा क्या करूँ मुझे बहुत डर लग रहा है। आप पापा को सँभाल लीजिए प्लीज।" अंजली की दोनोँ हाथ पकड़कर अनुनय करने लगी।
  • "मैं देखती हूँ। तुम यही रुको।" कहकर अंजली संजय के कमरे में गई। एक कुर्सी खींचकर उसके पलँग के सामने बैठी। संजय पलँग पर लेटा हुआ था। संजय ने आँख पोंछकर मुस्कुराने की कोशिश की।
  • "संजय अब कैसी है तबियत?" अंजली ने पूछा।
  • " बेहतर।" सजंय ने जवाब दिया।
  • "आप जल्दी ठीक हो जाओ, आप की बेटियाँ आपके लिए बहुत चिंता कर रही हैं। जो हो गया उसे भूल कर उन्हें माफ़ कर दो। फिर अतीत को यादकर खुद को कष्ट मत दीजिए। बच्चे अभी-अभी राहत की साँस ले रहे हैं फिर से बीती बातों को यादकर उन्हें दुखी कर रहे हो। आप खुद हिम्मत हार जाओगे तो बच्चे आप को देख कैसे ठीक रह पाएँगे?

  • संजय ने अंजली से कहा, "ठीक है। अंजली मुझसे एक वादा करोगी?
  • - बोलो संजय। प्रश्नार्थक नज़र में कहा।
  • - अगर मुझे कुछ हो जाए तो क्या मेरे बच्चों का ख्याल रखोगी? "
  • - ये कैसा सवाल है? आप ठीक हो जाओगे, कुछ नहीं होगा आपको।"
  • - ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है, अंजली।"
  • - आप कैसी बात कर रहे हैं?
  • - ये मत सोचना कि किस हक़ से तुम्हें ये जिम्मेदारी दे रहा हूँ, तुम रम्या की सहेली और हमारे परिवार की एक अंतरंग दोस्त के नाते यह जिम्मेदारी तुम्हें सौंप रहा हूँ। क्या आप मेरी बच्चियों की जिम्मेदारी ले सकती हो?
  • - अगर तुम मुझे एक दोस्त के नाते उनकी जिम्मेदारी देते हो तो जरूर स्वीकार है संजय। आप बेफिक्र रहिए। अभी आराम कीजिए।"
  • संजय अपने सीने पर हाथ रख कर बिल्कुल शांत बच्चे की तरह सो गया।
  • समय बीतने लगा। संजय धीरे-धीरे पलँग से उठकर चलने फिरने लगा। वह बार बार दुर्योधन को याद करता की वह क्यों नहीं आ रहा। अनन्या ने वही कहा जो उसे गौरव ने बताया था। अंजली भी हर दो दिन में आकर संजय की सेहत के बारे में पता करती। अनन्या ऑफिस जाने लगी। ऑफिस के पहले ही दिन उसे सावित्री जी का देहांत होने का खबर पता चला। वह बहुत दुखी हो गई। वह ऑफिस से दुर्योधन के घर पहुँची। दुर्योधन अकेले हॉल में बैठा था। अनन्या को देखकर बैठने को कहा और संजय की सेहत के बारे में पूछा।
  • अनन्या दुःखी होकर कहा, "पापा ठीक हैं। वह आपको बहुत याद कर रहे हैं। आपने हमारी हर मुश्किल में हमारे साथ रहे। मगर सावित्री आँटी की जाने के समय हम आपकी दुख में शरीक नहीं हो सके हमें माफ कर दीजिए। सच यह कि हमें पता तक नहीं चला।"
  • "पता होता तो भी तुम क्या कर सकती थी? उधर तुम्हारे पापा ऑपरेशन टेबल पर थे और इधर तुम्हारी चाची... खैर जो होना था हो गया। सारे दुखों से मुक्ति मिल गई उसे। मुझे अकेले छोड़कर उसने अपना रास्ता नाप लिया।" दुर्योधन ने दुःखी होकर कहा।
  • "आपको जो दुःख हुआ है उसकी क्षति कोई पूर्ण नहीं कर सकता। उनसे हमने बहुत प्यार पाया है और उनके आखिरी वक्त में हम एक नज़र देख नहीं सके। अब अपना ख्याल खुद ही रखना होगा, लेकिन यह कभी मत भूलिए अंकल अब भी आपकी बेटी आपके साथ है। कभी भी हमें आदेश दीजिए हम आपके पास होंगे।" अनन्या दुखी होकर कहा।
  • "जीवन में कई सारी दुख की घड़ियाँ आती है लेकिन 40साल से जिसने दुःख सुख में साथ निभाया उसका यूँ छोड़ कर चले जाना असहनीय है।"
  • "ऐसा क्यों होता है अंकल जो बहुत दिल के करीब होते हैं वह हमें छोड़कर चले जाते हैं?"
  • "हर किसीको एक दिन जाना ही होता है यह निश्चित है, लेकिन किसे कब ले जाना है ये तो उस भगवान के हाथों में है। कर्ता कर्म क्रिया सब वही करता है। हम निमित्त मात्र हैं, खेल वह ऊपर वाला रचता है, सूत्रधार वह है, हम सिर्फ कठपुतलियाँ हैं।"
  • "क्या मेरी माँ की नियती भी उसने लिखी थी अंकल?" अनन्या पूछ बैठी।
  • "वो तो सिर्फ वही ऊपरवाला ही जानता है बेटा, अगर वह चाहता तो बचा सकता था। रात का समय था। घना कोहरा घाटी की सन्नाटे के बीच से गाय को बचाने की कोशिश में सामने आ रही गाड़ी से टकरा जाना और पत्नी को खो देना इसे किस्मत कहें या भगवान का रचा खेल। वह भगवान चाहता तो तुम्हारी माँ को बचा सकता था। और तुम्हारे पापा, जो गाय को बचाने में खुद घायल हो सकता है वह कैसे गुनहगार हो सकता है एक बार सोच कर देखना बेटा तुम्हें सच्चाई नज़र आएगी।"
  • "उस समय पापा का नशे में गाड़ी चलाना क्या इत्तेफाक था अंकल?"
  • "दुर्घटना तो संयोगवश हो सकती है लेकिन शराब पीकर गाड़ी चलाना संयोग नहीं। उसदिन जब संजय की खून की जाँच हुई थी जिससे यह पता चला कि वह अपने ऊपर पूरा कंट्रोल रखा हुआ था। अगर सामान्य से ज्यादा शराब पीया होता तो जरूर गुनाह होता।"
  • - फिर पुलिस को ये शक नहीं हुआ कि अमर बेगुनाह है? उसे कोई चोट नहीं लगी थी?
  • - अमर ने आने वाली दुर्घटना को समझकर गाड़ी से कूद जाने का बहाना किया। और सामने वाली गाड़ी को हुई क्षति और ड्राइवर के मौत की सज़ा भी अपने ऊपर ले ली। तुम्हारे पापा और माँ को रास्ते से उठाकर अस्पताल पहुँचाते समय हुई खरोचों को देखकर पुलिस ने उसको सही मान लिया। उसका यह बलिदान से संजय उसके परिवार को मुआवज़ा देकर आज तक उनकी सहायता कर रहे हैं।"
  • अनन्या भारी मन से विदा लेकर घर आ गई। रास्ते में वह सोचती रही कि 'सावित्री आंटी के सच को क्या पापा जीर्ण कर पाएँगे? क्या पापा अभी अपने जिगरी दोस्त के दुख को सुनकर बर्दाश्त करने को ताकत रखते हैं?'
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