एक दुनिया अजनबी - 22 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एक दुनिया अजनबी - 22

एक दुनिया अजनबी

22-

विभा को अच्छा नहीं लगा, बंसी काका उसके दादा के ज़माने से उनके घर में थे, उन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी उस परिवार के नाम कर दी थी | घर में उन्हें कोई नौकर नहीं समझता था | हाँ, वैसे वो पीछे गैराज से सटे कमरे में रहते थे पर उनके सुख-सुविधा का पूरा ध्यान घर के सदस्य की तरह ही रखा जाता था | दादा जी तक उन्हें बंसी बेटा कहकर पुकारते | स्टोर-रूम की कुँजी-ताली, देखरेख, हिसाब-किताब ---सब उनके हाथ में ही था | महाराजिन को उनसे ही सामान लेना होता था |

उनके एक बेटा था जो अपनी माँ व अन्य परिवार के लोगों के साथ पास के गाँव में रहता था | विभा के दादा जी ने धीरे-धीरे करके गाँव में उनकी झौंपड़ी को ईंट-मिट्टी की दीवारों में बदलवाकर पक्का घर बनवा दिया था | उनके बेटे को भी बारहवीं पास करवा दी थी और उसने गाँव में अपना एक स्कूल खोल लिया था, बाद में जिसको सरकारी मदद भी मिलने लगी थी |

बंसी काका गाँव जाते रहते या कोई घर से उन्हें मिलने आता रहता, तब भी बड़े बाऊ जी यानि दादा जी उनका अतिथि -सत्कार उन्हें रुपए -पैसे, भोजन आदि से करवाते | बंसी काका को नौकर कहने की तो बहुत दूर की बात थी, कोई सोच भी नहीं सकता था कि वे घर के सदस्य नहीं हैं |लेकिन इस स्त्री को यह सब बताने का कोई अर्थ नहीं था |

ये तो सचमुच उसे पहचान रही थी --वह बहुत बातूनी थी, न जाने कहाँ-कहाँ की बेकार की बातें सुनाती रही, माला उसके हाथ में लगातार घूमती रही, पता नहीं किस मंत्र का जाप चल रहा था ?

अचानक ज़ोरदार झटके से गाड़ी ने पटरी बदली और खुले गेट पर बैठा किन्नर गिरने को हो आया | विभा का दिल काँप उठा |एक तरफ़ बिटिया बर्थ पर सोई थी और दूसरी ओर छोटा सा बेटा मज़े से लॉलीपॉप की चुस्कियाँ लगा रहा था | गाड़ी के पटरी बदलने से उसका बैलेंस गड़बड़ हुआ, उसके हाथ से लॉलीपॉप छूटकर दूर जा गिरी, एक तरफ़ वह चीख़कर रोने लगा तो दूसरी तरफ़ सोती हुई नन्ही बच्ची चौंककर रोने लगी | दोनों अप्रत्याशित रूप से इतनी ज़ोर से चिंघाड़ मारकर रोए कि विभा सहम गई | किसे सँभाले , किसे चुप कराए ? सामने वाली बामनी माला के मनके घुमाते हुए आँखें पटपटाती घूर रही थी ---बस ---

विभा के लिए वह बड़ी मुश्किल स्थिति बन गई | दोनों को एक साथ सँभालना बड़ा मुश्किल था फिर भी वह छोटी को गोदी में लेकर दूसरे हाथ से बेटे को सँभालने की कोशिश कर रही थी | दोनों जैसे गला फाड़ने का कॉम्पिटीशन करने लगे, या जीत तेरी या मेरी ! पटरी बदलती गाड़ी में किसी तरह गिरते-पड़ते वह किन्नर उसके पास तक आया |

"दीदी ! लाइए, एक को मुझे दे दीजिए ----अगर आपको --"न जाने पटरी कितनी लंबी थी, दो-तीन मिनट हो गए थे, अब भी खड़खड़ाती गाड़ी पटरी बदलती जा रही थी |

विभा ने उसकी स्नेहिल छवि को देखा और बेटे से पुचकारकर कहा कि वह इन आँटी के पास चला जाए |एक अनदेखे, अनजान, थोड़े अजीब से चेहरे के पास जाने के लिए तैयार ही नहीं हुआ वह !

विभा ने छोटी बेटी को उसकी गोदी में दे दिया और उससे कहा कि वह खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ जाए | न जाने उसकी गोदी में ऐसा क्या था कि ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाती हुई छोटी बच्ची सुबकी भरती हुई धीरे-धीरे चुप होने लगी थी |

सामने वाली स्त्री ने एक बार भी उसकी सहायता करने की कोशिश नहीं की | हाँ, घूरती ज़रूर रही, कभी उसको तो कभी उस निरीह प्राणी को जो उसकी तहेदिल से सहायता करने की कोशिश कर रहा था |

विभा ने बेटे के आँसू पोंछे, पर्स में से निकालकर उसे चॉकलेट पकड़ाई, बड़ी मुश्किल से उसका चिल्लाना बंद हुआ | जब तक वह चुप नहीं हो गया था तब तक विभा को आँख उठाकर देखने की फ़ुरसत भी नहीं थी, जब आँखें उठाईं तो देखा कि सामने वाली माला फिराती महिला की आँखें उसे घूरती हुई क्रोध उगल रहीं थीं | उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई | एक बामनी बेचारी धर्म -संकट में पड़ गई थी |

"बाथरूम -----" बच्चे ने कहा | चिल्ला-चिल्लाकर रोने से उसे प्रेशर हो गया लगता था |

बच्ची अभी भी किन्नर की गोदी से चिपकी हुई सुबक रही थी | विभा ने उसकी ओर देखा और एक आश्ववस्त सी दृष्टि का अर्थ समझकर बेटे की ऊँगली पकड़कर उसे वॉशरुम की ओर ले गई | सामने वाली प्रौढ़ा की आँखें लावा उगल रही थीं, वह उस भले बंदे को ऐसे घूर रही थी मानो कच्चा चबा जाएगी |

कुछ देर बाद वॉशरूम से लौटकर विभा ने उसे 'थैंक्स' कहकर बच्ची को गोदी में लेना चाहा | बच्ची उसकी गोदी में बड़े आराम से चिपकी हुई थी, वह 'सो जा राजकुमारी सोजा' गाता हुआ उसे थपक रहा था | हल्के, सस्ते इत्र की गंध वातावरण में फ़ैल गई थी , जो शायद अपने काम पर निकलने से पूर्व वह लगाकर आया था |

"मेरा स्टेशन अगला ही है दीदी, तब तक मैं बेबी को अपनी गोदी में रखूँ ? "मातृत्व का सुख उसके चेहरे पर नूर बरसा रहा था | विभा मुस्कुरा दी और बिटिया को उसकी गोदी में ही रहने दिया |

"हमारे अपने तो आप लोग ही हैं दीदी, हम आपके सुख को देखकर सुखी हो जाते हैं, खुश हो जाते हैं ---"उसने भर्राई हुई आवाज़ में कहा |

"वैसे मेरा नाम मोनिका है ---मोनिका मोहन !"

"मोनिका मोहन ? "विभा को नाम सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ |

“पुरुष, स्त्री -दोनों के नाम ? "

"जी दीदी, मैं जानती हूँ, आपको मेरा नाम सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन जब हममें मिलावट है तो नाम में भी हो तो क्या बात है ? इसीलिए मैंने ये मिक्सचर नाम रखा " उसने ठठाकर हँसने की कोशिश की लेकिन उसकी आँखें भीग गईं, जैसे एक सुबकी सी उसके दिल में से उठ रही थी |