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एक दुनिया अजनबी - 6

एक दुनिया अजनबी

6-

" मृदुला माँ---? " एक बहुत खूबसूरत मॉर्डन सी दिखने वाली युवा लड़की अचानक उसके सामने नमूदार थी जिसके एक हाथ में फ्रिज़ से निकाली गई चिल्ड बॉटल और दूसरे में काँच का एक बिलकुल साफ़-सुथरा ग्लास था |

"वॉटर प्लीज़ ---" उसने बहुत सुथरी अंग्रेज़ी में पूछा |उसके आने से पहले ही वह पानी पी चुका था जिसे शायद वह देख नहीं पाई थी |

"जस्ट हैड, थैंक्स ---"उसकी आँखें बार-बार नम होने लगीं |

"इधर आओ बच्चे ----!" बिल्लौरी आँखों वाली वृद्धा ने उसे अपने पास बुलाकर उसके सिर पर हाथ फेर दिया |

"नाम क्या है बेटा ? " उसने उसका सिर स्नेह से सहलाते हुए पूछा |

"जी, प्रखर ---" उसने धीरे से कहा |

"बड़ा सुन्दर नाम है !" उन्होंने बड़े सहज भाव से कहा जैसे किसी नन्हे बच्चे को बहला रही हों और मुस्कुराकर एक बार फिर से उसके बाल सहला दिए |

उसे उनका इस प्रकार सहलाना भीतर कहीं छूने लगा |ऑंखें वृद्धा की सरल, सहज मुस्कान पर चिपक गईं | शिक्षित, सुगढ़ ! उसे आश्चर्य हुआ, यहाँ भी इतने तहज़ीबदार लोग होते हैं ? एक प्रश्नवाची चिन्ह उसकी दृष्टि में ठहर गया |

"किस तकलीफ़ में हो ? "

"जी, मृदुला जी ---" उसके मुख से फिर निकला |

वृद्धा की आँखों से आँसू झर -झर बहने लगे |उसे लगा, कोई गड़बड़ कर दी है, वह पैदा ही हुआ है गलतियाँ करने के लिए !पता नहीं, क्यों ज़रूरी होता है ऐसे लोगों का जन्म लेना जो न तो किसीको सुख दे सकते और न ही खुद सुखी रह सकते ! आजकल वह हर बात में स्वयं को दोषी ठहराने लगा था |

सुंदर युवती वृद्धा का सिर अपने सीने से लगाकर उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रही थी |उसने हर आँख में आँसू देखे और अपनी नम आँखें हथेलियों से पोंछ लीं | पानी की बॉटल और ग्लास पकड़े खड़ी सुंदर लड़की की आँखें लरज रही थीं किन्तु वह स्वयं को सँभाले थी और वृद्धा को सहारा देकर उसका सिर सहला रही थी |

उसके हाथ से बॉटल व ग्लास किसीने ले लिए थे |

"शी इज़ नो मोर----" आँखों में आँसू भरे रुंधे हुए गले से उसने सूचना दी |उपस्थित सभी चेहरों पर करुणा और आँखों में आँसुओं की नमी देखकर उसे दुःख हुआ |

प्रखर के चेहरे पर उदासी पसर गई, वह कुछ कहना चाहता था लेकिन जैसे किसीने दोनों होंठ गोंद से चिपका दिए थे |

उसे कहाँ पता था यहाँ आते हुए अचानक उसे मृदुला की स्मृति हो आएगी जिसको वह पहले कभी बिलकुल नापसंद करता था | सब समय की बात ! जीवन ठहराव व गति के बीच का संतुलन ही तो है |उसके जीवन में जो कुछ घटित हुआ, वह क्या था ? कभी अटका हुआ लगता उसे तो कभी लगता अभी कुछ बाकी है, गति की संवेदना मन में भर जाती |

उसने संदीप की ओर देखा और इशारा समझकर हाथ का पैकेट वृद्धा के चरणों में जैसे समर्पित कर दिया | वृद्धा के पास खड़ी खूबसूरत युवा लड़की ने पैकेट उठाकर वृद्धा के हाथ में थमा दिया|

"खोलकर देखो तो सही ---" बिल्लौरी आँखों से सावन झरना बंद हो गया था, पलकें भीगी, स्वर काँपता हुआ |

वृद्धा के आदेश पर युवती ने पैकेट खोला, उनके सामने बहुत खूबसूरत बनारसी साड़ी थी |

"इतनी महँगी साड़ी कौन देता है? वो तो बस नेग भर की दी जाती है ---" वृद्धा ने साड़ी के ऊपर हाथ फेरते हुए कहा जैसे उसे दुलार रही हो |

प्रखर के पास कहने के लिए कुछ नहीं था, मनुष्य हर परिस्थिति में स्वयं को साफ़-सुथरा पेश करता है | पर उसने ऐसा नहीं किया था, उसने पूरी शिद्द्त से अपनी त्रुटियों की क्षमा माँगकर नए सिरे से जीवन जीने की कोशिश की थी लेकिन ऐसा न होने पर वह टूटने लगा |

उसे जैसा कोई कहता, वह करता | यहाँ आना भी किसीके कहने का ही हिस्सा था |

जैसे उसे गाइड किया गया था, वह वैसा ही कर रहा था|

"वैसे, क्या बात है बेटा ---? "

प्रखर गुमसुम सा बैठा रहा | बात किस प्रकार और क्या बताए ? बातों के सिलसिले टूट-टूटकर उसके दिल की अंधेरी कोठरी में समा चुके थे, सीलन भरी कोठरी में ---नमी ही नमी भरी थी |

वह दुनिया का कोई पहला ऐसा शख़्स नहीं था केवल जिसने ही इतनी भयंकर गलती की थी | स्वीकारता है , शिद्द्त से स्वीकारता है कि वास्तव में इस प्रकार की गलती केवल गलती ही नहीं है, नीचता है |

हम अपने अहं में क्यों और किस प्रकार दूसरों का अपमान कर सकते हैं ? पर ऐसा ही होता है जो सबसे क़रीब होता है उसे ही हम `प्रताड़ित कर देते हैं और उस बात की नज़ाकत को समझने की चेष्टा भी नहीं करते | लेकिन सामने वाला भी जब उसी प्रकार युद्ध में उतर आए तब ? गलती केवल एक की नहीं होती न !लेकिन बंदूक दूसरों के कंधे पर ही रखी जाती है |

उसने कब किसी टोने-टोटके में भरोसा किया था पर जब पासा पलट गया, उसने घर भर में न जाने क्या-क्या पिरेमिड व अन्य चीज़ें लगवा ली थीं | उसे लगा किसी न किसी प्रकार उसका परिवार बच जाए, उसकी रूठी हुई पत्नी बच्चों को साथ लेकर घर वापिस आ जाए | लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और परिवार होते हुए भी वह अकेला खड़ा रह गया था |

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