एक दुनिया अजनबी - 3 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एक दुनिया अजनबी - 3

एक दुनिया अजनबी

3—

जिस नई सोसाइटी में इन बच्चों के माता-पिता घर बनवा रहे थे उसका चौकीदार या गार्ड कह लीजिए सुबह दूध की थैलियाँ देने घरों में आता, कुछ परिवारों ने उससे दूध बाँध रखा था, उस बंदे का नाम वसराम रबारी था |रबारी लोगों का अपना रहन-सहन, परंपराएँ, अपना बात करने का सलीका ! सब कुछ अलग सा ही !

इस शैतान टोली ने एक बार वसराम भाई यानि उस सोते हुए चौकीदार की चारपाई उठाकर चुपके से सोसाइटी के बिलकुल पीछे की लाइन में ले जाकर रख दी, वह एक डंडा अपनी चारपाई के सिरहाने रखता था जिससे यदि कोई कुत्ता आदि आ जाए तो उसे भगा सके |

प्रखर जी उस डंडे में उसकी एक चप्पल अटकाकर ले आए और उसे गेट के आगे जो पेड़ लगाए गए थे उनके बीच छिपा दिया | उसकी साइकिल भी वहीं रखी थी जहाँ वह चारपाई डालकर सो रहा था | साइकिल भी चुपके से उठाकर उसकी चारपाई के पास रख दी गई ---बस डंडे में अटकी एक चप्पल ही पेड़ों के बीच अटका दी गई थी |

सुबह अँगड़ाई लेते हुए वसराम भाई उठे तो भौंचक रह गए ! कहाँ सोए थे और कहाँ उठ रहे थे ? साइकिल सामने देखकर उनकी जान में जान आई और फिर तलाश शुरू हुई चप्पल और डंडे की जो उन्हें नहीं मिलना था सो नहीं मिला |

वसराम ने अपना बिस्तर लपेटकर चारपाई एक तरफ़ सरकाकर रख दी और साइकिल उठा, एक चप्पल एक पैर में अटका साईकिल चलाते हुए दूध लेने पहुँचा | उसकी घरवाली दूध के क्रेट्स उतरवाकर वहाँ से बेचती भी थी और वसराम स्वयं जिन घरों में उसने दूध की फेरी बाँधी हुई थी, उनमें दूध बाँटने भी जाता था |

आधी बनी सोसाइटी में अभी सब लोग रहने नहीं आए थे, कुछ थे जो आ चुके थे उनमें इन शैतान बच्चों के परिवार थे, लगभग आधी सोसाइटी में रिहायश हो चुकी थी | जिनमें शैतानी में बंदर बने ये गिने-चुने बच्चे कुछ न कुछ उत्पात न मचाएँ तो बच्चे कैसे ?

यहाँ काम करने वाली बाईयाँ गुजराती कम , महाराष्ट्रियन अधिक थीं, मुंबई या महाराष्ट्र से काम की खोज में आए थे इनके परिवार | सुबह-सवेरे लाँगदार धोती पहने चुस्त बाईयाँ अपने बाँधे हुए घरों में काम पर जाती दिखाई दे जातीं |ये बच्चे उनसे भी खूब चुहल करते |

'गुड -मॉर्निग' करना तो भूलते ही नहीं ---और फिर कोई न कोई चुहलबाज़ी !

अधिकतर इनके घरों में काम करने के कारण वो सब बच्चों से परिचित होतीं और कुछ भी शैतानी करते देखने पर प्यार से डांट भी लगाने से न चूकतीं --

"काए झाला --बाबा --शैतानी नक्को ----" बच्चों को उनकी भाषा सुनकर बहुत मज़ा आता और वे उन्हें देखकर कुछ न कुछ उत्पात करने की कोशिश करते जैसे आपस में ज़ोर से लड़ने की मुद्रा में बात करने लगते और उन्हें कहना ही होता --

"काए झाला, बाबा ---मैं घर को जाती, अब्बीच मम्मी को बोलती ---"

दूध की फेरी लगाने वाले अधिकतर गुजराती जिनमें रबारी जाति के हट्टे -कट्टे, लंबे-चौड़े लोग अधिक होते | ऐसा ही था वसराम रबारी ! उस दिन जब एक पैर में चप्पल लटकाए, साइकिल चलाते हुए दूध देने आया तब सारे शैतान बच्चे उसे घेरकर खड़े हो गए |

"वसराम भाई ! बीजी चंप्पल क्यां छे ---? मेड्स को गुड -मार्निंग का कार्यक्रम पूरा करने के बाद सारे शैतान उसके आने की राह ही तो देख रहे थे |

"सी खबर पकर भाई, मारा खटलाए पण ज्यां हूँ सुता हता , तयां थी उपाड़ी त्यां दूर मुकेलि दीधो कोइए---"( क्या पता प्रखर भाई मेरी चारपाई भी मुझे सोते हुए को उठाकर किसी ने वहाँ दूर रख दी थी )उसने बच्चों के सामने बड़े गंभीर स्वर में बताया | वह 'प्रखर' को 'पकर'कहता और फिर सारे बच्चे जो उसकी मज़ाक बनाते, प्रखर खूब खीजता |