10.
सात महीने बीत गए किसना को अन्ना शेट्टी के रेस्तरां में काम करते हुए। अन्ना उसकी लगन और इमानदारी से बेहद खुश थे। उन्होंने उसे वहां रेस्तरां में रहने की इजाजत भी दे दी थी। उनके और भी तीन पुरानी और भरोसेमंद नौकर वहीं रहते थे। किसना की मासूमियत और हंसमुख स्वभाव के कारण सारे नौकर उसे पसंद भी बहुत करते और उसे "भइयाजी" के नाम से ही पुकारते। इस संबोधन से बड़ा आश्चर्य होता था उसे फिर मालूम हुआ कि मुंबई में यूपी बिहार के लोगों को इसी नाम से संबोधित किया जाता है।
अब तो किसना का हुलिया ही बदल गया था। चमेली और सरसों के तेल की जगह शैंपू ने ले ली।
ढीली पतलून, बुशर्ट और हवाई चप्पल की जगह चुस्त जींस टीशर्ट और जूते पहनने लगा था। संगम किनारे का छोरा पुरबिया छोड़कर अपुन-तपूणवली मुंबई बोली धड़ल्ले से बोलने लगा था। देस छूटा, बोली छोटी, शहर बदला लेकिन चाल ? जस की तस, लड़कियों-सी लचकवाली, लेकिन इलाहाबाद के लोगों की तरह इस शहर के लोगों के पास इतना समय नहीं था जो उसकी भावभंगिमा पर टिप्पणी करें। रात के ग्यारह साढ़े-ग्यारह के बाद रेस्ट्रॉन्ट का हॉल उनका रहने का कक्ष बन जाता। अपनी-अपनी चटाई और तकिया लेकर पसर जाते। नींद में अक्सर किसना जोर से चिल्लाने लगता, " हमका छोड़ दे चाचा, तोहरा खून पी जाईब " । और उसके साथी जोर -जोर से किसना को धक्का देकर उसे बुरे सपने से खींच लाते। कई बार उन्होंने जानने की कोशिश की कि उसके अतीत के बारे में मगर वह टाल जाता। किसना, पर बेवक़ूफ़ नहीं। अपने जिस कलुषित अतीत को उसने सदा के लिए दफना दिया था, उसके जिक्र करने का प्रश्न ही नहीं उठता। हाँ ! कभी कभी अम्मा की याद से उसकी आँखें गीली हो जाया करती थी और मन ही मन वह क्षमा मांग लेता था।
उस दिन तो गजब हो गया। शेट्टी ने उसे कुछ सौदा लाने के लिए बाजार भेजा था। दो घंटे बाद जब वापस आया तो देखा रेस्टोरेंट के बाहर लोगों का हुजूम खड़ा है। पुलिस की जीप और साथ में खोजी कुत्ता भी सूंघ-सूंघकर किसी की तलाश में था। पुलिस को देखते ही उसके मन में बुरे ख्याल आने लगे, " तो क्या इलाहाबाद की पुलिस को उसका पता मिल गया ? शायद मिसिर चाचा के खून के इल्जाम में उसे ही पकड़ने आई हो। फिर उसने एक दो लोगों से पूछा तो मालूम हो उसके मालिक अननाशेट्टी की हत्या हो गई। खबर को सुनते ही वह भीड़ का सीना - चीरते वह भीतर गया और देखा कि अन्ना शेट्टी शरीर खून से लथपथ उन्हीं की कुरसी पर पड़ा है। पुलिस अंडरवर्ल्ड का काम समझ कर तफ्तीश में जुटी थी सुनने में आया था कि अंडरवर्ल्ड की भाई लोगों ने इस बार दस लाख रुपए का हफ्ता मांगा था अन्ना शेट्टी से उस और उन्होंने इतनी बड़ी रकम देने से इनकार किया था और उन्हीं के किसी शार्प शूटर ने पॉइंट ब्लैक रेंज से उनका काम तमाम कर दिया।
अन्ना शेट्टी की मौत पर किसना बहुत रोया था। फिर से अनाथ हो गया। दोबारा उसने रेलवे प्लेटफार्म की पनाह ली। इस महानगरी में रोजगार की कोई कमी नहीं। कमी है तो जमीन के टुकड़े की। रेस्ट्रॉन्ट के दरवाजे पर ताला लग चुका था। किसना कुछ दिनों तक यूं ही शहर की ख़ाक छानता रहा। फिर एक दिन रेस्तरां के ही एक पुराने साथी ने किसना को फिर से बैरे के काम के लिए एक होटल का पता दिया। शाम को वह किसना को साथ लिए कोलाबा के एक बार में गया और मैनेजर से मिलवाया। वैसे नौकरी के मामले में वह था नसीबोंवाला। शायद उसका मासूम चेहरा और मोहक छवि का ही कमाल था की बड़ी सहजता से उसे काम मिल जाय करता था। वह दूसरे ही दिन से काम पे लग गया।
लेकिन दक्षिण मुंबई के पॉश इलाके कब बार एंड रेस्टोरेंट यानी कि मधुशाला का चेहरा अन्न शेट्टी के उडीपी रेस्टोरेंट्स बिल्कुल भिन्नता था। रात दस बजे के बाद इस मधुशाला में तवायफ के कोठे कि सी महफिल की चांदनी बिछ जाती थी। बार- बालाएं संगीत के आरोह-अवरोह के साथ अपने अवयवों के उतार-चढ़ाव को ऐसे थिरकती की पीने वाले का नशा दोगुना हो उठता। अश्लीलता की हदों को कई बार ये पियक्कड़ ग्राहक उन बालाओं को अपने पेह्लूं में खींच लेते और उनके अंगों को छूने की हसरत लिए लिया हजारों रुपए उन पर वार देते। किसना को ये सब बहुत बुरा लगता। अब तक तो उसने जमींदारों और अन्य रसूखदारों को गांव की रंडी-पातुरियों पर पैसा लुटाते देखा-सुना था।
बड़े-बड़े रईसों, हीरा व्यापारियों की महंगी गाड़ियां शाम के बाद से ही इस "बार" के सामने कतारबद्ध खड़ी रहती। आधी रात तक साकी और जाम के नशे में धुत्त लड़खड़ाते कदम उठने के लिए किसना के जवान कंधों का सहारा लेकर अपनी गाडी में बैठते। प्राय: रोज ही किसना को अपनी इस सेवा के लिए हजार पांच सौ का टिप भी मिल जाता था। उसमें से एक हिस्सा दरबान को और एक हिस्सा मैनेजर को भी देने का नियम था। इस नौकरी में पैसा तो बहुत था, परंतु अन्ना शेटटी के छोटे से रेस्तरां का सौहार्द्र और प्रेम नहीं था। बड़े विचित्र किस्म के लोग आते थे इस बार में। खासकर के शेख और भाई किस्म के लोगों की संख्यां अधिक थी। मौज-मस्ती के साथ-साथ बिजनेस कांटेक्ट्स भी बनते।
अभी उसी दिन की बात है। चार-पांच बिगड़ैल रईसजादों का एक समूह आया। पहले तो बार-बालाओं के संग खूब ठुमका लगाया, फिर उनकी नजर हाथ में ट्रे लिए लचककर चलते किसना पर पड़ी। एक ने किसना को रोकते हुए पूछा, " क्यों भीड़ू चलेगा अपुन के साथ, दो घंटे, दस हजार !" यकायक अतीत घूम गया किसना की आंखों में। बड़ी जोर से उबकाई आई उसे। मुश्किल से उसने स्वंय पर काबू पते हुए आग्नेय दृष्टि से उनकी तरफ देखा, लेकिन दौलत और शराब के नशे में मगरूर उन रईसजादों को किसना की आंखों की घृणा दिखाई नहीं दी। किसना ने बड़ी चालाकी से अपना पीछा छुड़ाया उस दिन।
इस बात का जिक्र जब उसने अपने एक साथी बैरे से किया तो बजाय सहानुभूति के, उसने किसना को ही समझाने की कोशिश की, " अरे ! तू तो नसीबदार है। देख अपुन एक हकीकत बताता है तेरे को। ये जो मुंबई है न, एक तवायफ जैसी है। बोले तो जिसके पास पईसा है उसी की है। जो दौलत कमाने को जानता है, ये शहर उसी को अपनी बाहों में पनाह देता है। अपुन का माफिक, लुक्खा टपोरी को कौन भाव देगा रे ? अभी देख तेरे पास लक्ष्मी खुद चल के आ रहेली है और तू येड़ा (पागल) का माफिक उसको ठोकर मारता है। अभी तेरे कू एक बात बोलूं ? इस धंधें में पईसा है ऊपर से मौज-मस्ती फ़ोकट में। अबे दो हजार के पगार में इस शहर में कीड़े-मकोड़े की तरह जीना भी कोई जीना है ? अगर मुंबई में रहने को मांगता है तो पईसा कमा और राजा के माफिक जी। "
अपार ज्ञानी श्री श्री 108 जोजेफ महाशय किसना का बेहद करीबी मित्र था और शायद हितैषी भी। गोवा का ये आठवीं फ़ैल युवक यानी " जोजेफ ", जिसने बचपन में सिवाय अभाव के कुछ भी नहीं देखा, उसके विचार और उसकी नजर में पैसा ही उसका धर्म और पैसा ही उसका ईमान था। शायद इसलिए दो घंटे का दस हजार सुनकर वह किसना को तमाम दुनियादारी की बातें समझाने का प्रयास कर रहा था, जो पैसे से शुरू होकर पैसों पर ही ख़तम होती है। वैसे स्वाभाव से बुरा नहीं था वह युवक, किंतु अनाथ आश्रम में गुजरे बचपन का कड़वा अतीत, जहां एक से ज्यादा दूसरी रोटी मांगने पर चाबुक और लात-घूसों से ही पेट भरने का कानून था। उसका मानना था की समाज द्वारा तय किए गए सही और गलत काम अथवा धर्म और ईमान की बातों तो वही करते हैं, जिनका पेट भरा हुआ होता है। उसकी कही बातें किसना पर थोड़ा बहुत असर करने लगी थी, क्योंकि बीते कल के आईने में उसने भी कभी ऐसे ही दौलत और सत्ता के नशे में चूर लोगों के असली चेहरे थे और एक रात में उस अभागे ने नीति ज्ञान देनेवालों की नंगी आत्मा को देख लिया था।
जोजफ ने दोस्त के चेहरे के भावों को पढ़ने का प्रयत्न किया। " देख भिड़ू गॉड ने तेरे को हीरो का माफिक एकदम झकास थोबड़ा दिया है। अगर अपुन भी तेरे जैसा चिकना दीखता तो आज ये पियक्क्ड़ दारुडियों का झूठा ग्लास और उलटी साफ़ नहीं करता होता। पईसा कमाता पईसा ! समझा क्या। " कहते हुए उसने अपने चेचक से छिदे खुरदरे काले चेहरे को सहलाया।
रातभर किसना विचारों के तानों-बानों में उलझा रहा। उसके भी शोषण की अहम वजह उसकी निर्धनता ही तो थी। शायद ठीक ही कहता है जोजेफ। दौलतमंदों के लिए सब गुनाह माफ़ है, क्योंकि कानून, नियम, नीति, समाजिक और धार्मिक पाबंदियां वे ही तय करते हैं, और तोड़ने का अधिकार भी उनका ही है, लेकिन अब वह अपना शोषण हर्गिज़ होने न देगा। तब तक दौलत कमाएगा, जब तक लक्ष्मीजी स्वंय हार नहीं मान लेती।
शायद उसकी उम्र का ही जुनून था जो किसी भी विवेचना और विवेक को मानने से इंकार कर रहा था। अक्सर इस उम्र में युवा पीढ़ी बुद्धि की जगह जोश में फैसले करती है और किसना ने भी वही गलती की।
बार का माहौल अपने पुरे शबाब पर था। जलती- बुझती रौशनी में बार-बालाओं का अर्द्धनग्न जिस्म भड़कीले संगीत की ताल में उदंड लहरों-सा झूम रहा था और उनके लहराते जिस्म को लपकने के लिए कई जोड़ी भूखी आंखें अवसर तलाश में घात लगाए बैठी थी। किसने की उत्सुक आंखें रह-रहकर दरवाजे पर उठ जाती। उसे शायद किसी का इंतजार था। पिछली रातवाले रईसजादे कानो में और भौहों में बालियां झुलाते हुए आज फिर आए थे। बड़े विचित्र किस्म की वेशभूषा थी उनकी। खुली बाहों की डिज़ाइनर बनियान बाजुओं पर विचित्र टैटुओं की चित्रकारी। किसी ने पोनीटेल बांधी थी, तो किसी का सिर खुले मैदान सा सफाचट। उन्हें देखते ही आज किसना की आंखों में कलवाली घृणा की जगह कौतूहल और चमक थी। एक ही रात में उसका विवेक मर गया और सोच बदल गई। बार बंद होने तक उनका पीने-पिलाने का दौर चलता रहा। लड़खड़ाती जुबान और डगमगाते कदम किसना को ही ढूंढ रहे थे शायद।
" हे यू , या मैन कम हियर ! वांट टू हैव सम फन एंड मेक मनी ? " (ए तुम, हां तुम यहां आओ। थोड़ी मस्ती के साथ पैसा बनाना चाहते हो) किसना को उनकी पाश्चात्य ढंग से उच्चारित अंग्रेजी समझ में नहीं आई। ये बात समझते उन्हें देर न लगी। " ओके, नो इंग्लिश ! क्यों बे पैसा कमाने को मंगता है ?" कहते हुए पोनिटेलवाले युवक ने जेब से हजार-हजार रुपयों के नोट निकालकर किसना की आंखों के सामने लहराए और इन रुपयों के लोभ में संगम किनारे का वह भोला युवक बिक गया।
ये कैसा वीभत्स वासना का रूप था, जो एक ख़ास वर्ग की कुंठित मानसिकता को उजागर करता है। किसना के साथ असामन्य यौन संबंध उनकी समलैंगिक प्रवृत्ति नहीं, स्वाद बदलने की आदत थी और हाई सोसाइटी में अपने को अत्याधुनिक दर्शाने की व्यर्थ होड़। ये किस प्रकार की असभ्य पश्चिमी सभ्यता है। खुलेआम पेज थ्री और अन्य हाई प्रोफाइल पार्टियों में इस प्रकार की कुंठित मानसिकता के लोगों को आमंत्रित करना भी इनके तथाकथित स्टेटस सिंबल का एक फैशन बनता चला जा रहा है। बड़ी बेशर्मी और शान से अपने झूटी स्टेटस सिंबल का ढिंढोरा पीटने का कोई मौका नहीं चुकाते मीडिया के कैमरों के समक्ष। " यस ! आई एम ए गे एंड यू नो इट्स सो एक्ससिटिंग टू बी सो। आफ्टर ऑल इट्स माई लाइफ। " (जी हां में एक समलैंगिक हूं और जानते हो ये कितना रोमांचक है। आखिर ये मेरी जिंदगी है) और इस प्रकार अपने अमूल्यवान जीवन को, अपने तरीके से स्वछंद रूप से जीने का हवाला देते हुए आनेवाली स्वस्थ युवा-पीढ़ी की मानसिकता को विकृत करने का जघन्य अपराध तो करते ही हैं, साथ ही साथ इस दिखावे के चक्कर में एड्स जैसी भयंकर बिमारी के शिकार होते हैं और जो जन्मजात प्रवृत्ति के समलैंगिक हैं, उनकी साधारण घरेलू छवि की एक काल्पनिक भयानक छवि समाज के सामने रखकर उन्हें बदनाम भी करते हैं।
किसना भी अपने बुद्धि-विवेक और आत्मा को चाँद रुपयों में बेच आया था। अभागा अपनी करनी के भयंकर दुष्परिणाम से अनभिज्ञ पतन के अंध गर्त में लुढ़कता ही चला गया।
इतिहास गवाह है की नवाबों और राजा-महाराजाओं के दरबार और उनके शयनकक्ष की शान बढ़ाया करती थीं कोठों की रक्कासा और वारवनिताएं, परंतु समय के साथ मनुष्य की सुप्त जिज्ञासाएं और खुराफाती दिमाग ने स्वाद बदलना चाहा। अब तो महानगरों की महफिलों में " गे पार्टियों " का आयोजन होता है, जहां किसना जैसे न जाने कितने किस्मत के मारे बेरोजगार युवक पेट की खातिर इन पुरुषों की महफिलों में मेनका, रंभा, उर्वशी का रोल अदा करते हैं। किसना धीरे-धीरे अपनी शख्सियत खोता चला गया। पहले-पहले तो बड़ी-बड़ी गाड़ियां उसे लिवाने आया करती थीं, लेकिन चंद दिनों में ही उसने खूब रूपये कमाए। अब तो उसका अपना फ्लैट और एक गाड़ी भी थी, जो किसी मेहरबान ग्राहक ने नजराने में उसे भेंट की थी।
परंतु ईमान की रोटी और सुकून की नींद देनेवाली अन्ना शेटटी की दो हजार रूपये की नौकरी उसे दोबारा वह संतोष और सुकून न दे सकी। किसना एक जाना-माना चेहरा बन चुका था इन महफिलों का और अपनी बढ़ती मांग को देखकर स्वंय को विश्व का सबसे चतुर व्यक्ति समझने लगा था वह नादान।