फेस बुक-फेक बुक Dr Sandip Awasthi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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फेस बुक-फेक बुक

डॉ सन्दीप अवस्थी

वह बस से उतरी । रात के दो बजे थे और इस अनजान शहर में वह किसी को नही जानती थी। बस एक नाम था आयुष और जगह थी बड़ा बाजार। यही का उसने जिक्र किया था। वह उसका फेस बुक फ्रेंड है (माफ़ करें जिन युवाओं की कहानी है उन्हें हिंदी की समझ विकसित हो रही है, हुई नही, तो यही भाषा) । फेसबुक पर दोस्ती कैसे होती है! Oh come on..आप सब जानते हैं। मैंने तो अपना fb अकाउंट ही बंद कर रखा है। आभासी दुनिया से जितना दूर रहो उतना अच्छा। दोस्ती परवान चढ़ी और कब वह एक दूसरे की कमी महसूस करने लगे पता ही नही चला। "मैं तुमसे मिलना चाहता हूं?" एक महानगर से था तो दूसरी कस्बेनुमा शहर की सपने देखने की उम्र वाली। मुलाकात की उत्सुकता तो उसे भी थी पर कैसे? यह इतना छोटा शहर है कि आपके घर वापस पहुंचने से पहले आप क्या कर रहे थे, किस लड़के से मिले, यह सूचना घर पहुंच जाती। पता नही हम दूसरों पर निगाह रखना, बुराइयां करना ...पीठ पीछे और सामने मीठा मीठा बोलना कब छोड़ेंगे? क्यो नही हम अंदर बाहर से एक हो ?सुलझे हुए, समझदार और दोस्ती को जीने वाले और सबकी ईमानदारी से मदद करने वाले कब होंगे?

"अभी तो संभव नही।आगे देखते हैं।"

"ओ यार, जब मिलना होगा न तो तुम्हारे लिए एक खूबसूरत ड्रेस लाऊंगा। और हां, आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो । "

" Thnks, ड्रेस या गिफ्ट की कोई जरूरत नही। अब मम्मी आवाज दे रहीं, bye ।'

यह सिलसिला कब प्रगाढ़ दोस्ती से आगे बढ़ गया पता ही नही चला उसे। हालांकि पता चलना चाहिए था। खासकर जब हर वक़्त, हर घण्टे आपके मेल, मैसेंजर, व्हाट्सअप पर आपकी तारीफों, खूबसूरती के कोई पुल बांधे। तो समझना चाहिए उस पुल से होकर कोई मुसीबत आप तक आने के लिए निकल चुकी है। लेकिन.....

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"यह देख कैसा है? "अपनी सबसे अच्छी सहेली गार्गी को उसने फोटो दिखाई। "हम्म, तो लड़की प्यार में है। और यह महाशय हैं जिन्होंने दिल चुराया है तुम्हारा।" फोटो क्या थे, समझो मॉडल्स को मात करते थे। "करता क्या है यह? कहाँ तक पढ़ा है?' गार्गी ने अपने सूट की चुन्नी ठीक करते पूछा। दोनों एक मोबाइल कंपनी में फ्रंट आफिस संभालती, अपनी छोटी छोटी खुशियां साझा करती।

"किसी बहुत बड़ी कम्पनी में असिस्टेंट मैनेजर है। और जल्द मुम्बई में शिफ्ट होने वाला है लखनऊ से।"

"अच्छा इतनी बात आगे बढ़ चुकी है। और हमे पता ही नही" कहते हुए गार्गी ने आंखे झपकाई और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ी। छोटे शहर की हो या भारत के किसी भी जगह की लड़कियां ।उनके सपने, ख्वाहिशें बहुत छोटे छोटे और एक सुंदर सपनो का न सही पर ठीक ठीक घर के होते हैं।जहां वह पति और परिवार के दिल मे अपनी छोटी सी जगह में खुश हैं। लेकिन क्या इतनी सी भी ख्वाहिश पूरी होती हैं इन लड़कियों की? पर जिंदगी की कठोर सच्चाई से सबको जूझना ही पड़ता है, चाहे आप कितने ही मासूम क्यो न हो।

कुछ दिनों बाद ही दोनों मिले ।वह सहेली के साथ गई और वहाँ आयुष मौजूद था।ख़ास उसी से मिलने के लिए वह अपने शहर से आया था। मुलाकते हुई और कुछ दिन में वह और नजदीक आ गए। अब सारे डर दूर हो गए। थोड़ा उम्मीदो से कम था लेकिन बाते और भविष्य की योजनाएं बहुत थी उसके पास। सिलसिला चलता रहा। लड़की बोली एक दिन, फोन पर पापा से मिलने आओ।

"अरे क्यो नही बिल्कुल । तुम्हारा हाथ मांगना मेरे लिए सबसे खुशी की बात है। जरूर ।कब आऊं बताओ?" यह सुनकर दोनों, पास खड़ी गार्गी को भी तसल्ली हुई। परन्तु अपने पिताजी का रौद्र रूप वह जान, इसीलिए मन ही मन डर रही थी। "चलो, जब घर में सब ठीक होगा तब बुलाऊंगी" कहते हुए प्यार से उसने देखा। आयुष अपने ख़ास अंदाज में बोला, "देखलो, हम तो अभी चलने को तैयार हैं। पर जैसी तुम्हारी मर्जी। चलो अब कहीं बैठते हैं। " दोनों सहेलियां एक दूसरे की ओर देखीं फिर गार्गी ने अपने किराए के कमरे की चाबी उसे दे दी।

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जल्द बड़ा बाजार की अमुक बड़ी कम्पनी में उसकी नोकरी शुरू हो तो वह उससे ही शादी करेगा, के वादे से प्रारम्भ हुई मुलाकातें कब इतनी अधिक हो गईं की उसे रात दिन उसी का ध्यान रहता। वह यह भी भूल गई की घर मिलने वाली बात जब भी उठती महीने दो महीने में वह बहानो से टल जाती।

एक दिन रात्रि को चैटिंग में आयुष से जब उसने कहा, "अब देर करना ठीक नही।पिताजी मेरे लिए लड़का देख रहे हैं। तुम आओ और मेरा हाथ मांगकर ले जाओ न?" आदतन आयुष फिर बहाने बनाता परन्तु उस रात वह तय किए बैठी थी "जब तक मिलेगा नही तब तक मिलूंगी नही" । पिता के व्यवहार, छोटे भाई, समाज, रिश्तेदारों आदि की समस्याएं सब आ गईं लेकिन लड़कीं होते हुए उसके द्वारा नही बल्कि आयुष के द्वारा। "मेरे पापा, मुझे बहुत प्यार करते हैं और वह मेरी बात समझेंगे। और तुम्हे डर हो तो अपना पता दो, वह तुम्हारे घर आएंगे, केवल कास्ट ही तो अलग है न"? अब कोई रास्ता नही था। मिलने आने का समय, दिन तय हो गए।

"तूने अंकल को बता दिया कि वह आने वाला है? और तुम प्यार में हो?"

"नही यार, जब वह दरवाजे पर आ जाएगा तब ही बताऊंगी। इतनी बार टाल चुका है। अब नही आया तो ....। कहते कहते वह उदास हो गई। सांवली सी परन्तु बुद्धिमान गार्गी ने कुछ पल उसे और उसकी उदासी और आंखों की निराशा को भी देखा। सामने दिख रहे झील के खूबसूरत दृश्य को देखते हुए धीरे से बोली, "हमेशा जिंदगी कई चॉइस देती है। हमेशा हमारे पास बेहतर विकल्प होता है। और हमें कभी भी सब कुछ एक विकल्प पर ही नही छोड़ना चाहिए। " आहिस्ता से बिन्नी ने सिर हिलाया और दूर अस्त होते सूरज को देखने लगी।

वह फिर नही आया। हर बार की तरह वही कम्पनी के काम से मुम्बई जाना पड़ा। कुछ दिन बीते फिर उसके मैसेज और फोन आने लगे। माफ़ी के साथ कि अब वह ऐसा नही करेगा। लेकिन गार्गी की सलाह से वह अपने वादे पर इस बार अमल करती हुई उससे दूर होने लगी। कम बात करती। आखिरकार उसने ऐसा दांव चला कि बस। "तुम दूर क्यो जा रही हो ? जल्दी ही हम मिलेंगे। मेरी कंपनी मुझे जल्द विदेश भेज रही है। तो उसके लिए काफी तैयारी करनी पड़ रही है। और यह सब तुम्हारे लिए ही तो होगा।"

वह कहना चाहती थी कि नही चाहिए मुझे यह सब। मेरे छोटे छोटे सपनो में छोटा सा संसार है। तुम्हारा साथ है और तुम्हारे मम्मी पापा हैं। और जो तुम लाओगे कमाकर उसी में घर चला सकती हूं। । और मैं भी नोकरी करूंगी तो आराम से जिंदगी की गाड़ी चल निकलेगी।

बस यही सपने और अरमान होते हैं एक लड़की के।अपनी मेहनत, प्यार और विश्वास के साथ जीवन में आगे बढ़ना। क्या विडंबना है न पीछे घर न आगे मजबूत भविष्य? बस एक धुन्ध है उसके पार क्या होगा आपकी किस्मत। लेकिन आज 21वी सदी के तीसरे दशक में भी? हालांकि आर्थिक स्वत्वत्र्ता ने कदम मजबूत किए हैं पर भावनात्मक सम्बल और जीवन साथी तो होना ही चाहिए !!

उस दिन अचानक से बिना बताए वह उसके आफिस के सामने था। उसने शीशे के पार से देखा, लगा भ्रम हुआ हो, पर नही वही था।बढ़ी हुई दाढ़ी, आंखों में उदासी और हाथ मे ....बिन्नी की पसन्द के फूलों का गुलदस्ता लिए।गार्गी दफ्तर और वह उसके फ्लैट पर थे ।

"पिताजी बीमार हो गए थे तो गांव जाना पड़ा।फिर ऐसा उलझा की वक़्त ही नही मिल सका से प्रारम्भ हुई बात इस पर ठिठकी की अब वह कुछ महीने अपने काम पर ध्यान देगा। उसकी सारी बातों ने इतना अधिक प्रभावित किया कि वह खुद भावुक हो उठी।"कोई बात नही आयुष । तुम अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करलो हम फिर बात करेंगे।" "लेकिन मैं तुम्हारे बिना इन सब चुनोतियो से नही लड़ पाऊंगा। तुम मेरे साथ चलो। हम एक साथ जिंदगी की शुरुआत करेंगे। "

"घर वालो को बिना बताए? कैसे?क्यो?"

उसके पास जवाब तैयार थे। घर वाले राजी नही होंगे अलग जाति की वजह तो मिलने का क्या फायदा?

"तो हमे यही मुलाकातों को खत्म कर देना चाहिए, इसके आगे नही कुछ सोचना चाहिए।" यह कहते कहते आंखे भर आईं।

"नही कहते ऐसा ।कुछ करूँगा मैं ।जल्द मिलता हुँ।बस यह काम हो जाए। " कहते कहते उसने उसे अंक में भर लिया। और वह सब फिर हुआ जो दो जवान दिलो में होता है।

समय बीतता गया। फेसबुक से मिलना जारी रहा पर आगे

बात नही खिसकी। फिर ज्यादा इसरार पर उसने एक दिन मेल किया।

"हम क्यो नही बाहर छुपके शादी कर लेते ?"

वह कुछ पल चुप रही फिर लिखा, "तुम घर वालो से मिलने से क्यो बच रहे हो?तुम उनसे मेरा हाथ मांगो न। "

(कुछ देर बाद जवाब) "अभी सम्भव नही। क्योकि वह जो जम्प कैरियर में आने का इंतज़ार था वह दूसरे को मिल गया। तो मैं छोटा बनके नही मिलना चाहता। तुम्हे हर खुशी देना चाहता हूं बड़ा पद, कंपनी।"

"मैं छोटे पद से ही खुश हूं। तुम्हारे साथ बिताया हर पल लम्हा मेरे लिए कीमती है।"

"ओह मेरी बिन्नी । तुम कितनी अच्छी हो। बस कुछ ही दिन फिर हम मिलेंगे। तुम यहाँ आ जाना। कुछ पैसे मैंने जोड़ें हैं उससे नई जिंदगी शुरू करेंगे। " बिन्नी के चेहरे पर सपने झिलमिला उठे और वह नए संसार में खो गई।

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वह महानगर में घना बसा मोहल्ला था। उसमे छोटे छोटे घर थे जिनमें प्राणी भरे पड़े थे। सब तरफ दुकानें और भीड़, संकरी गलियां । उसी में आठ बाई आठ के दो कमरों का छोटा सा तीसरे माले पर एक घर में, "अरे तौसीफ, कहाँ चले ? दिन भर ख्याली पुलाव पकाते रहते हो ।थोड़ा अपनी बेगम और तीनों बच्चो पर ध्यान दो। इन्हें बाहर ले जाया करो। दिन भर इस घर में इतना शोर होता है कि पूछो मत।"

"हां, अब्बा, ले जाएंगे।तुम काहे चिंचिया रहे हो! अपना काम देखो न, ।हमारा बेगम है हम देखेंगे। क्यो यास्मीन ? "कहते कहते मुस्कराकर उसने गुटके से रंगे मुहँ को एक झटका दिया।

यास्मीन, तीसेक वर्ष की साफ सुथरे नैन नक्श की युवती, छोटे से किचन में सब्जी काटती बाहर आई और चिल्लाकर बोली, "बड़ा ताजमहल दे दिए तुम हमे? इस रोज रोज की किचकिच से अच्छा है अल्लाह हमे उठा ले। यह तीनों बच्चा लोगो को तुम और तुम्हारी अम्मा पाले।" तौसीफ चिल्लाकर बोला, "हर वक़्त यह मनहूसियत की बातें करते करते तेरा मुहँ नही थकता करमजली। चल अब मुझे कुछ काम करने दे।"

", हम्म, बड़े आए काम के । दिन रात इस मरे फोन से उलझे रहते हो। आग लगे ।"

"तुझे खर्चे के पैसे देता हूँ या नही? तुम अपने काम से काम रखो।" कहकर वह अपने फोन में उलझ गया।

कुछ देर बाद नीचे से डाकिए की आवाज आई। वह कुछ कह रहा था, "मकान नंबर, मोहल्ला तो यही है।पर यह?"

वह चौकन्ना हुआ और नीचे की तरफ लपका। "अरे क्या हुआ दिखाओ क्या है? " "यह पार्सल है लेकिन इस पर नाम गलत है। आयुष? परन्तु पता यही है।लगता है वापस भेजना पड़ेगा।"

"अरे यह मेरा ही नाम है भैया। आयुष तौसीफ खान ।बाहरगावं रहता हूँ तो वहां यह छोटा नाम काम आता है। लाओ कहाँ साइन करने हैं?"

पार्सल में उसके लिए स्वेटर था, जो बिन्नी ने अपने हाथों से बुना था। उसमे ढेर सारे सपने झिलमिला रहे थे। लिखा था, "जब तुम बुलाओगे मैं चली आऊंगी। तुम्हारे साथ जिंदगी शुरू करने। तुम्हारी बिन्नी ।"

उसने लापरवाही से पत्र फाड़कर फेंका और स्वेटर को देख मुस्कराया।

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रात्रि के दो बजे उसने बसस्टैंड के बाहर देखा शायद आया हो आयुष। लेकिन वहाँ सिर्फ़ ऑटो वालो के कोई नही था। पीली पीली हेलोजन की रोशनी, कुछ आवारा कुत्ते यहां वहाँ डोलते फिर रहे थे। उसने स्ट्रोलीबैग को लेकर कदम बढ़ाए।

"कहाँ जाना है मेमसाहब?हम छोड़कर आएगा।"

"अरे तू हट।हम बिटिया को वाजिब दाम में ले जाएंगे।"यह एक गम्भीर ऑटो वाला था जिसकी आंखों में हवस नाच रही थी। "ठहरने का फैमिली होटल।एकदम बढ़िया। आपको कोई तकलीफ नही होगी।वाजिब रेट।" कहकर वह अजीब तरीके से मुस्कराया । वह रुकी और फिर फोन लगाया। लेकिन हर बार फोन आउट ऑफ रीच। "क्या करूँ?कुछ तो सोचना चाहिए था। उसे पहले बता दिया था फिर भी वह लेने नही आया "। आसपास ऑटो वाले गंदे गंदे इशारे करते उसके नजदीक आने की कोशिश करते।रात के दो बजे के बाद का वक़्त, अजनबी शहर और अकेली लड़की। उधर माहौल ऐसा की अकेली स्त्री (स्त्री, लड़की ही नही) को दिन में भी लोग नही छोड़ते यह तो रात थी। उसने कुछ पलों में ही फैसला किया। वापस बसस्टैंड के अंदर गई वेटिंग रुम में।

सुबह छह बजे उसने फिर फोन लगाया। देर तक घण्टी बजी फिर फोन रिसीव हुआ कोई स्त्री स्वर था। "जी, आप ?" ......अच्छा। आयुष? तो कोई नही यहां। "

....आप गलत नंबर पर फोन कर रहीं। " फोन कट गया और वह उहापोह में बैठी रही।क्या सोचकर वह निकली थी और क्या हो रहा? क्या उसने गलती की? क्या प्यार सारी जानकारी के बाद ही करना चाहिए? और सबसे बड़ा सवाल अब वह वापस घर कैसे जाएगी?

यही सोचती रही की अचानक सेलफोन की घण्टी बजी।

"हेलो, हेलो " । उधर से कोई आवाज नही फिर आयुष की आवाज आई और वह बोली।"कहाँ हो तुम?मैं यहां तुम्हारे शहर में आधी रात से खड़ी हुँ।"

"ओह, मुझे लगा तुम नही आओगी । पर तुम ठीक टाइम और ठीक दिन पर ही आईं। कुछ देर के बाद लेने आता हूँ तुम्हे।" उसने फोन रखवे के बाद कुछ देर तक सोचती रही। क्या जिंदगी हर मोड़ पर एक सबक नही है?ऐसी लिखावट की जिसे पढ़ना चाहो तो पढलो और नजरअंदाज करना चाहो तो ....... पर क्या ऐसा सम्भव है ? लेकिन एक दर्द उसे मथ रहा था की काश उसने फेसबुक से दूरी बनाए रखी होती। उसने एक गहरी सांस ली और एक नम्बर लगाया।

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वह शहर से बाहर एक शानदार फॉर्म हाउस था। दो गाड़ियां खड़ी थी और अंदर कमरे में कुछ लोग जाम से जाम टकरा रहे थे।

"तो वह आधी रात को ही आ गई! अरे यहां ले आता । हम रात को ही आ जाते। बेकार समय बर्बाद किया मियाँ। "

तौसीफ उर्फ आयुष ने मुस्कराते हुए विजयी भाव से देखा और कहा, "भाईजान, सहज पके सो मीठा होई " ।

"देखो तो नाम के साथ साथ जुबान भी बदल ली इसने तो।

तू पक्का खिलाड़ी बनेगा रे बाबू मेरे।" कहकर सब हंसे।

"तो फेस बुक से तेरी दोस्ती हुई इससे?" यह दूसरा था--"अब कहाँ है वो?यहां तो बुला लिया हमे। महफ़िल ऐ रौनक कहाँ हैं?"

अब आयुष बोला, "अरे यारो, रुको जरा। इतनी मेहनत की है तो थोड़ा सा हमारी भी तारीफ करदो। कितने ख़तरे उठाकर, मिलकर भी कभी शक न हो ऐसा करके बड़ी मुश्किल से इसे हासिल किया है।"

"हो भी गई हासिल?" यह पहले वाला था-"बड़ा फ़ास्ट है तू तो यार !"

"अरे मतलब अभी हल नही हुआ, अभी होगा। अभी तो यह बताने आया हूँ कि शाम को उसे लेकर आऊंगा तो एकदम घर जैसा, फैमिली वाला माहौल लगे। उसे शक न हो। वरना चिड़िया हाथ से निकल जाएगी।"

"ओ मियां तुम यहाँ की चिंता न करो।रेहाना और वो क्या नाम है तेरी बीवी का.... सुल्ताना, वह यहां होंगी।"

और वेसे भी बाद में करना क्या है चिड़िया का?"यह एक भूरी आंखों वाला कम उम्र का लड़का था।जिसके हाथों में गोश्त काटने वाला चॉपर था। "अरे अभी से यह सब मत सोचो। हम उसे आराम से एक महीना रख सकते हैं शादी के नाटक से। फिर बाद में यदि वह रहती है साथ तो उसका नाम बदलकर रख लेंगे। नही रहती तो ......"कहते कहते आयुष एक क्रूर हंसी हंसा।

"एक तो जबसे वह दिल्ली वाले कांड के बाद कानून बना है तबसे काफी सुविधा हो गई है।"अर्थपूर्ण ढंग से वह बोला।

"क्या भाईजान, काहे की सुविधा?अब तो जान सूली पर रहती है कि कहीं साली कभी मुहँ न खोलदें! क्योकि एक साल बाद भी अक्ल आ गई तो भी एफ आई आर दर्ज हो जाती है।"

"तो, यही तो ..परेशानी हैं न ।और आप अभी सुविधा कह रहे थे।"यह वही तीसरा कम उम्र इकहरे बदन का शक्स था।

"तभी तो हलाल कर देते हैं काम खत्म। और दफन करदो। जला दो।सारी परेशानी खत्म हमेशा की।"

और पकड़े गए तो? उसने आशंका जाहिर की।

"अरे कुछ नही होता।अभी तक हम पांच को ठिकाने लगा चुके। यह संजय तीन मुर्गियां हलाल कर चुका। और ऊपर से उनके लाए गहने रुपया अभी तक इसके काम आ रहे। आयुष की यह पहली है।"

" और आपकी?" कहते ही सन्नाटा छा गया। फिर जोर का ठहाका लगाते हुए वह बोला, "मियां हम फेसबुक, टिंडर फिन्डर नही जानते। हम तो इनके लाए हुए माल से ही काम चलाते हैं। बाकी सारे तरीके कैसे क्या करना है, वह हम बताते हैं। कोई कमी पेशी हो तो आपस में बात करके हल सूझ जाता है।पर खास बात यह है कि बचे हुए हैं और आगे भी रहेंगे।चलो अब काम पर लग जाओ।आज शाम जबरदस्त पार्टी है। फैमिली फंक्शन। सबको अपना अपना पार्ट याद है न?

निर्ममता ही तुम्हारे जीवित रहने की शर्त है।जहां दिल में हमदर्दी आई, भावनाएं आईं याद रखना वही तुम उसके, उसने ऊपर इशारा किया, दिए कार्य की इस धरती पर सब तरफ हमारा ही परचम लहराए से हट जाओगे। तुम्हारा हमारा जन्म इसी पाक काम के लिए हुआ है। यह जीवन क्या, सौ जन्म भी लगे तो भी कुर्बान ।" कहते कहते उसकी आंखों और चेहरा सुर्ख हो गए।

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सपने बुनती उम्र, आज़ादी, खुली हवा, अपने मनमर्जी का करने का थ्रिल और कोई रोक टोक नही।ऊपर से अनियंत्रित सोशल साइट्स। मासूम उम्र और सब पर विश्वास करने का मन। तनावमुक्त, अबोध, इबादत सी पवित्र आंखे। अजान सा निश्छल मन और छुपकर अपने साथी से मिलने की बेकरारी। तो फिर वक़्त कहाँ होता है कुछ भी सोचने का।

बेमुरव्वत, सख्त, फरेब से भरी घर से बाहर की दुनिया मे कदम रखती लड़कियाँ और ऊपर से अनुभवी शिकारियों की टोली। खुदा भी होता तो बच नही सकता। काश कोई तो यह समझता की घर की चारदीवारी से बाहर आप सिर्फ जिबह होंगे। घर, अपने दायरे में किसी से दो बार सलाह करली होती। और यह नादान उम्र कुछ बनने, कर गुजरने अपना मुकाम बनाने की जदोजहद के लिए होती हैं। नकी प्रेम मोहब्बत की राह पर मिटने की? और यह क्यो भूल जाते हैं कुछ लोग की आधी आबादी यदि सुकून, सुरक्षा और आत्मविश्वास के साथ भरोसे से बाहर निकलती है तो उन्हें भी अपनी शैतानी सोच बदलनी चाहिए। लेकिन सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता तो ईश्वर, अल्लाह मियां भी हमारे ही साथ इस धरती पर रहते, ऊपर न घर बसाते।

वह तैयार हो रही थी होटल के कमरे में। आयुष बस आने ही वाला था।कह गया था कि उससे की आज ही शादी कर लेंगे।सब इंतज़ाम करने गया था। खूब अच्छे से उसने सुर्ख साड़ी पहनी, हल्का सा मेकअप किया।वह बिना मेकअप के भी बहुत सुंदर लगती है, यह उसकी मम्मी कहती हैं। नोकरी के टूर पर चार दिनों के लिए जा रही हूं।यह बताकर आई थी उनसे। सोचा फोन करलूं। पर अभी करना ठीक नही होगा।पहले शादी हो जाए, उसके बाद ।आयुष के साथ मिलूंगी उनसे।

तभी उसके फोन की घण्टी बजी।मुस्कराते हुए उसने कॉल रिसीव की। आंखों में झिलमिलाते सपने, चटख रंगों की ओढ़नी, बसंती परिधान में सजी वह कुछ ही देर में आने वाले तूफान से बेख़बर मासूमियत से अपने सपनो की बात करती। नही जानती यह उसकी आखरी हँसी और चहकना है।

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कई बार लगता है हम आधुनिक होकर और बर्बर हो गए हैं। हमारी सोच, मानसिकता नही बदली। और कैसे बदले ?जब गलत बातों पर भी शह देने वाले, हर गलती, अपराध को राजनैतिक रंग देने वाले हमारे लोकतंत्र को खोखला कर रहे हैं तब तक यह विषैली मानसिकता रहेगी। खबर छपी है कि सुनसान हाइवे पर एक लाश मिली है जिसका चेहरा पेट्रोल डालकर जलाया गया है। और लगता है यह केस भी अनसुलझे केसों में बंद हो जाएगा।

दूर किसी जगह अभी भी गार्गी फोन करती है अपनी सहेली को लेकिन जवाब नही मिलता।सारे संदेश फेसबुक में फेक आईडी से किए गए थे। मम्मी इंतज़ार कर रही हैं।उन्हें भरोसा है वह जरूर वापस आएगी। पापा सब तरफ दौड़ धूप करते चुप से हो गए हैं।

जिंदगी चल रही है पर लाखो लड़कियाँ रोज दाँव पर लगी फेसबुक पर चैटिंग करती जा रही है।

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डॉ सन्दीप अवस्थी

कथाकार, 6 किताबेँ और देश भर से 50 से अधिक अवार्ड्स

66/26 न्यू कॉलोनी, रामगंज, अजमेर 305001

मो 7737407061