वेदिका Dr Sandip Awasthi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वेदिका

वेदिका

Sandip Avasthi

07737407061

उसका जन्मदिन था l हल्के नीले रंग की फ्राक, चमकती आँखों में खुशी और काजल, पोनीटेल, पाँव में नै सैंडिलें पहने वह नन्हीं परी सी लग रही थी l गली, मुहल्ले के आठ दस बच्चों के साथ दोपहर बाद से वह छोटी सी पार्टी शुरु हुई थी l सुदूर बिहार के किसी गाँव से महानगर की विशालकाय मशीनों को चलाते साफ सफाई करने के लिए मजदूर तो चाहिए थे न l ऐसे लाखों परिवार थे जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के चारों और (अथार्त पेरे की परिधि के भी बहार) निवास करते थे l दो कमरे की गृहस्थी में अपनी जिंदगी बिताने को ही परम सौभाग्य मानते थे lमहानगर उन्हें अपने पास की कॉलोनियां, फ्लेटस में घुसने देता ठ पर कामगार, सर्विस मैन के तौर पर lकाम करते ही वह तुरंत दरवाजे बंद कर देता था l छोटे छोटे खुशी के अवसर पर यह छोटे गाँव, देहात के लोग खुश हो लेते थे l आँगन में लटकी रंग बिरंगी साड़ियों से सजी काली, साँवली गाँव देहात की अपने मंगल गीतों को गाती, महिलाएं जुटी थी l माहि की मम्मी ने उसके जन्म दिन पर एक छोटा सा केक पूरे सौ रुपये खर्च करके मंगवाया था l दस बारह बच्चे ललचाई नजरों से देख रहे थे कि कब उन्हें केक मिलेगा l माही कि मम्मी बडे इत्मीनान से, सलीके से प्लास्टिक के चाकू में रिबन बाँधने में जुटी थी l टी.वी. सीरियल, फिल्मों का मिला जुला प्रभाव था पर फिर भी माहौल में खुशियाँ थी l माही ने मम्मा के साथ केक काटा और सबने हैप्पी बर्थडे गयां lबाहर ढोलक पर आसपास कि महिलाओं ने बधाइयाँ गांई l

हालांकि कुछ महिलाएं बिटिया के जन्मदिन पर इतने तामझाम के खिलाफ थीं l पर माही की मम्मी बी.ए. पास थी राँची विश्वविद्यालय से l उसे अपनी माही पर बहुत प्यार था l एक भाई भी था माही का तीन साल का वह इलास्टिक वाली लकदक धोती और घर में ही सिले कुर्ते में बिल्कुल नन्हा सेठ बना इठलाता घूम रहा था l कोल्ड्रिंक, नाश्ते की व्यवस्था थी जो बँटने लगा lमाही को साथ के बच्चे रंगीन पन्नियों में लिपटे अपने अपने गिफ्ट दे रहे थे l पेंसिल, बाटल, पैन, खिलौने, छोटी पेंटिंग lमाही की मम्मी सबको तिकोनी टोपी और चॉकलेट दे रही थी l आखिर माही के आते ही तो उसके पापा को इस बहुत बड़ी कंपनी में पक्की नौकरी मिली थी जिससे वह यहाँ आ गये थे l

"एक कैंपर तिस रुपये का तो महीने का नौ सौ रुपये,"वह हिसाब लगा रहा था lएक हजार ग्राहक हैं तो रकम हुई ९ लाख हर माह l खर्चा कुल १५ लाख एक मुश्त lसालाना आय का उसने हिसाब लगाया तो ऑंखें फटी की फटी रह गई l घूस आदि के बाद भी २० लाख बचते थे lकमाल का मुनाफा है lकोई रोक टोक नियम कायदा नहीं l बस सैनेट्री इंस्पेक्टर, बडे बाबू, जूनियर इंजीनियर को पटाओ और रोकड़ा कमाओ l

सुपरवाईजर कम प्लॉंट इंचार्ज मुस्कराया, तभी तो दो बड़े बड़े बोरवेल उसका सेठ और लगवा रहा है l आसपास के महानगर होते कस्बों में l मानेसर, दारूहेड़ा, गुडगाँव में सौ से अधिक बोरवेल थे lदरअसल शहरी विकास, अरबन ट्रस्ट जलदाय विभाग सभी सरकारी महकमों का काम है आवासीय बस्तियों में पानी सप्लाई करना lवह करते भी हैं l परन्तु चौबीसों घंटे पानी, हर वक्त पानी, बाथरूम, किचन, गार्डन हेतु? जहाँ पानी पड़ौसी राज्यों से आयात करना पड़ता है वहाँ पानी की ऐसी बेशर्म बरबादी संभव नहीं lतो बिल्डर जो हजारों डिब्बेनुमा फ्लैट पर फ्लैट, कॉलोनी पर कॉलोनी बनाये जा रहें हैं वह चौबीस घंटे पानी की सुविधा देते हैं l इसके लिए यह अपने वाटर प्लांट मजदूर, निम्र तबके के लोगों, माही के माता पिता के लिए नहीं है l इनके लिए सुबह नल है जो एक घण्टे के लिए आता है l लाईन में लग के भर लो जब आपका नम्बर आ जाए lमाही के मोहल्ले में सुबह ८ बजे पानी आता है लेकिन उसके लिए लाईन पाँच बजे से लग जाती है lयह जो सामाजिक विसंगतियाँ, भिन्नताएं हैं इनकी ओर ध्यान देने का समय अधिकांश को नहीं है वार्ना कभी भी जनक्राओश भड़क सकता है l

माही की मम्मी से केक के छोटे-छोटे टुकड़े खाकर बच्चे खेलने चले गये थे l बहुत ही छोटा घर था तो सभी आस पास निकल गये l"बच्चों ज्यादा दूर मत जाना" - मम्मी ने कहा और माही ने उन्हें अपनी बोलती आँखों से आश्वस्त किया lफिर वह अपने दोस्तों पिंकी और गुड़िया के घर खेलने चली गई l पीछे दो गली छोड़ कर ही माकन था एक कमरे का गुड़िया के पापा मम्मी का lपापा फैक्ट्री में थे और मम्मी गीत गाने माही के घर में थी l "पता है में बड़ी होकर क्या बनूंगी ?" माही बहुत खुश और उत्साहित थी आज उसने आठवें वर्ष में कदम रखा था lमिले उपहारों और पहनी नै ड्रेस से अभिभूत थी l"क्या ?" "मैं बनूंगी डॉक्टर जिससे गाँव में अपनी दादी की खाँसी को ठीक कर सकूँ l" "और में हवाई जहाज चलाउँगी l" गुड़िया ने अपने सपने को बताया lबच्चे चलते रहे और थोड़ा आगे कच्ची गीली मिट्टी थी l"यह क्या है ?" माही ने उत्सुकता दिखाई l"कल यहाँ से रात में गड़गड़ाहट के साथ बरसात हुई थी ? और हमारे घर तक पानी की फुहार आई थी l" - पिंकी ने बताया l तीनों बच्चियाँ रुक गई l"सच में जमीन के अन्दर से पानी आया था?" -माही की आँखों में कौतुहल था l शाम के पांच बजे का वक्त था, दूर-दूर छोटी मोटी दुकाने थीं l खुले प्लॉंट से हैट कर एक तरफ वह बोरवेल था lजिसकी कल ही खुदाई पूरी थी lपाईप डालने बाकि थे १२० फिट तक l यह दस इंची का बड़ा बोरवेल था lपीछे बन रही नई टाउनशिप के लिए यह तैयारी थी lउसके फ्लेट बिल्डर नें एडवांस में ही बेच दिये थे lचौबीस घंटे बिजली पानी के बैकअप की सुविधा थी l सरकार ने आँखें मूंद कर निजी क्षेत्र को फ्री होल्ड दे रखा था l"चलो देखते हैं एक बार पानी कैसे अपने आप बहार आ जाता है" - गुड़िया ने उत्सुकता से कहा lमाही हिचकिचाई क्योंकि मिट्टी गीली थी और उसकी नई फ्रॉक खराब होने का डर था l"अभी चलो मुझे नहीं देखना है, हम खेलते हैं घर पर l" "अरे रुक ना, सच में बड़ा मजा आयेगा lकैसे इतने अन्दर से पानी अपने आप आता है जादू की तरह l" "और दूर आसमां तक जाती हैं उसकी फुहारें" -यह पिंकी बोली l अब माही भी उत्सुक हुई और संभल कर आगे बढ़ी lमुहाने पर एक बोर्ड था जिसे बच्चों ने देखा नहीं l तीनों बच्चे रहस्य मिक्षित उत्सुकता से गडडे में झांककर देखने लगे l गड्ढा लम्बी सुरंग जैसा भयानक अंधेरे से भरा था lमाहि नई फ्रॉक को सम्हालती और हाथ में पकड़े खिलौने के साथ अन्दर देखने को झुकी l उसे लगा अन्दर गड्ढे में से कोई आवाज दे रहा है धीरे-धीरे l"माही-माही"

उसके गुलाबी होठों पर बेहद प्यारी मुस्कान आई l वह थोड़ा और झुककर थोड़ा और साफ देखने की आस में झुकी l नई सैंडिलें, छोटे-छोटे मक्खन से पाँव के ऊँचा होने पर मचली, गीली मिट्टी में पाँव फिसला और ..... lमाहि को ऐसा लगा जैसे वह एक मायावी दुनिया में उड़ती जा रही है, उड़ती जा रही है l अंधेरा और घना होता जा रहा है l यह उड़ान निचे और निचे उसको फूल सी त्वचा रगड़ खाकर छिलती जा रही है lउसे बहुत दर्द हो रहा था लेकिन यह उड़ान रोकना अब उसके हाथ में नहीं थी l धड़ाम की आवाज हुई और उसे अपने पाँव में जोर के दर्द का एहसास हुआ l एक दर्द भरी चीख उसके नन्हें गुलाबी गले से निकली - "मम्मी बचाओ l" पर वह आवाज एक सौ बीस फीट ऊपर नहीं जा सकती थी l इन्सान के लालच, सरकारी तंत्र की दीमक लगी व्यवस्था में वह नहीं जानती थी यह वेदिका थी l आज उसकी बलि की तैयारी थी lउसकी मासूम साँसों और खून से आज यह भूमण्डलीकरण, बाजारवाद का राक्षस अपनी क्षुधा शान्त करेगा l नई चार पाँच दिन असफल बचाने के प्रयास होते रहे पर कुछ नहीं हुआ lमाही, होनहार बिटिया बलि चढ गई इस अन्धाधुंध, लापरवाह विकास की l माही की मम्मी की आँखें पथरा गई lमुआवजा राशि मिली पर माही? माही इस जन्म में अब उन्हें कभी नहीं मिल पायेगी lमाँ ने वह राशि फैंक दी विधायक के मुँह पर lटीम अन्ना के हाई प्रोफाइल सदस्यों पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि यह तो लापरवाही है, क्या करें ? होनी तो घट के रहती है ना परन्तु एक सत्तर वर्षीय सेवा निवृत हेड मास्टर ने जिसका घर पास में ही था और उसने यह सारी घटना देखी थी, जनहित याचिका दायर की जिस पर तुरंत विशेष संज्ञान लिया गया l माहि की मौसी जो पटना से लॉ कर रही थी ने भी कई सवालों के कटघरे में प्रशासन, बिल्डर्स, सरकार के गठजोड़ को खड़ा किया lबिल्डर्स, जिम्मेदार अधिकारी तब सकते में आ गये जब माही की माँ के साथ दस-बारह लोग बोरवेल के पास धरने पर बैठ गये lजब तक फैसला न हो नहीं उठेंगे lमहीना होने से पहले सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दे दिया, हर बोरवेल की खुदाई पर एन.ओ.सी. लेनी होगी lरिहायशी क्षेत्र से दूर लगेंगे l एक आदमी चौबीस घंटे इसकी निगरानी में तैनात होगा lफिर भी दुर्घटना हुई तो एक करोड़ का जुर्माना उस क्षेत्र के विकास पर व्यय किया जायेगा l

लेकिन माही वह प्यारी, नन्ही पारी, फूल सी कोमल, गुलाबी रंगत वाली बिटिया दूर आसमाँ में जा चुकी थी l अपनी मासूम आँखों में सपने लिए एक अधिखिली कली इंसान के लालच तंत्र की वेदिका पर बलि चढ़ गई थी l

Sandip Avasthi

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