हसबैंड स्वैपिंग Dr Sandip Awasthi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हसबैंड स्वैपिंग

हसबैंड स्वैपिंग

आज लग रहा था की सर्दी अपने सारे रिकार्ड ध्वस्त करेगी lदिसम्बर का तीसरा हफ्ता था और ठंड का यह हाल था कि चारों ओर घना कोहरा था और आधा दिन बीत जाने पर भी सूर्य के दर्शन नहीं हुए थे lऐसे में सरिता के घर पर वह चारों एक कमरे में बैठी गरमागरम चाय के साथ हँसाबाई के बनाए पकौड़ों का आनंद ले रही थी l"आज तो लग रहा है दिन भर रजाई में बैठे रहे न कही जाए और न कही आए" - ममता, जो स्थानीय कॉलेज में हिन्दी की लेक्चरार थी, ने अपने दिल के उदगार निकाले l"पर यार, यह भी कोई जिंदगी है" -- यह कहने वाली चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. सुधांशु की साइकोलॉजिस्ट पत्नी मधु थी -- "घर से ऑफिस, ऑफिस से घर, बैंक बैलेंस, मशीन की तरह संबंध निर्वाह, सामाजिक दायरे बस ?" "पर यार यही जीवन है l" "तुम लोगो का होगा मैं तो समय रहते इन सब बंधनों से मुक्त हो गई थी" --बोल्ड ख्याल की यह शालिनी थी जो म्यूचल डाइवोर्स लेकर के कई वर्षो से अपनी कन्सलटैंसी एजेंसी चला रही थी lअभ वह सोशलाइट थी और हर पार्टी की जान थीं l

यूँ ही महीने में दो-तीन बार यह नियमित मिलती थी lएक-दो वर्ष के अंतर पर चारों हम उम्र, सुशिक्षित, सम्पन्न थीं lजिन्हें कोई समस्या नहीं थी कोई चिन्तन या फालतू की बीमारी, गरीबों के विषय में, देश के विषय में, न धर्म जाति पाति की lजहॉ सुख की अधिकता थी वहाँ पर भी समस्या इन लोगों को हो रही थी l"और सुना यार, तेरी लव लाइफ कैसी चल रही है ?" - ममता ने डिर्वोसी शालिनी से पूछा जो अभी भी काफी मेनटेन और खिली खिली थी l"कहाँ कुछ हो रहा है ? मैं तो बोर हो गई हूँ एक जैसी जिन्दगी जीते जीते l

"हाँ यही तो हम भी कह रही हैं" -- यह सरिता ने कहा "बस अपने आपको व्यस्त रखा हुआ है !"

"मशीन को भी समय समय पर इंजीनियर देख जाता है, उसका रखरखाव कर देता है पर हमें तो वो भी नसीब नहीं" - ममता जी ने अपने बड़े-बड़े इयर रिंग को घुमाकर कहा l

"खुलकर बोलो न की दाम्पत्य जीवन बोरिंग हो गया है lहमारे पतिदेव को तो क्लिनिक और पेशेंट से फुर्सत नहीं मिलती lवह तो दाम्पत्य पार्ट भी एक रुटीन के तौर पर करते हैं l

"तो क्या करें? यह भारत है अमेरिका नहीं l" "पर काश ! ऐसा होता ! हमारे वो तो सत्संग में लगे रहते हैं" -- सरिता ने एक फरमाइश हाय भरी - सबने ठहाका लगाया l

शालिनी ने अपने खूबसूरत आँखों से अर्थपूर्ण ढंग से मधु की तरफ देखा और कहा "कुछ समझी नहीं मैं ? क्या कहना चाहती हो ?" "यार यही कि जिंदगी में कोई चीज ऐसी नहीं हैं जिसके लिए उत्सुकता बची हो lबस अगर यही जिंदगी है तो लानत है इस पर lपर हाँ, एक रास्ता है - फिर सोचते हुए बोली "तुम लोगों से नहीं होगा रहने दो l" "यह ठीक है पहले सस्पेंस क्रिएट करो फिर पीछे हैट जाओ l" "नहीं बाबा, तुम सच में नहीं कर पाओगे l" "ऐसा क्या है ? अब कह भी डालो तुम ज़्यादा ही भाव खा रही हो" - शालिनी ने कहा lआखिर में मधु बोली, "काश ! हम हस्बैंड एक्सचैंज कर पाती" l"क्या"?

"क्या कहा तुमने ?"

"हस्बैंड एक्सचैंज यार, इसमें क्या हो गया?" - शालिनी ने अर्थपूर्ण ढंग से कहा l

"तुम नई परंपरा शुरु कर देना, भला कही किसी ने सुना है ?" "पर यार, ठहरो जरा सोचो यह कितना एक्साइटेड होगा lहम नए पार्टनर्स को जानेगी ! उनसे बातों को शेयर करेगीं l"

"सेक्स के आलावा" - सरिता के कहने ही एक जोरदार ठहाका गूंजा और बात मजाक में उड़ गई lपर इनमें हिम्मत कहाँ ? फिर सब अपनी अपनी दुनिया में लौट गई जहाँ वह करीने से अपनी गृहस्थी, अपनी जिंदगी को चला रही थी lपर संतुष्टि अनुभव नही करती थी lहाँ अपने अपने पार्टनर को उन्होंने टटोलने का अघोषित कार्य शुरु कर दिया था lकुछ दिनों बाद चारों मिली lइस बार मधु के घर छब्बीस जनवरी के दिन हल्की फुल्की बातचीत के बाद टॉपिक वाही शुरु हुआ अदला-बदली का l

"पतिदेव नहीं मानेगें - सरिता ने कहा l" "लोगों को मालुम पड़ गया तो" -- ममता की आशंका थी l"अरे कुछ नही होगा" --- मधु का आशवासन था lउसने मुस्कुराकर डाइवोर्सी शालिनी से पूछा, "तेरा क्या होगा?" "मेरे पास मेरा बॉयफ्रेंड है" -- वह इठलाकर बोली l"लेकिन हम यह करना क्यों चाहते हैं ?" "फॉर ए फॉन" - यह सरिता ने कहा l"अपने आपको और जानने के लिए l" पर यह कहीं हमारे लिए मुसीबत न बन जाए ?" ममता ने आशंका जताई l"कैसी मुसीबत ? यानि मेरा बॉयफ्रेंड दूसरी शादी करने की जिद करने लगे ?" ---- शालिनी के कहते ही सब जोर से हँसी l

"पर हमारे पतिदेव तैयार होंगे ?" सरिता ने हसरत से आशंका फिर जताई l" अरे पुरुषों को मैं खूब जानती हूँ" ---- मधु जी बोली -- "जब लगी लगाई थाली खुद ही इसके पास जा रही हो तो वह कभी मना नहीं करते l"

ममता जी ने अपने इंजीनियर, धार्मिक, सत्संगी पति का तसव्वुर किया और सोचा क्या वह तैयार होगें ?

"हमें अपने अपने पार्टनर्स से इस बारे में बात करनी चाहिए lवैसे भी यहाँ दकियानुसी, गृहलक्ष्मी टाइप महिला कोई हममें है भी नहीं" - कहकर मधुजी ने बात का पटाक्षेप किया l

शालिनी ने एक दिन अपने बॉयफ्रेंड को यूँ ही प्यार से पूछा की अगर उसे कोई दूसरी खूबसूरत महिला प्रपोज करे तो वह क्या करेगा ? जतिन 'बहुराष्ट्रीय कंपनी में चीफ एक्जीक्यूटिव था और उसका लाँग रिलेशनशिप में कतई विश्वास नहीं था lवह जब तक चले तक तक चलाता था फिर झटककर आगे बढ़ जाता था l"तो देखूगाँ उसमें मेरी वाली क्वोंलिटी है या नहीं ?"

उसने हँसते हुए सावधानी से कहा l"अगर हुई तो तुम मुझे छोड़ दोगे?" इसका कोई जवाब दोनों के पास नहीं था lदिल बंधनों में आने से डरता है और बँधना भी चाहता है lकेक खाना भी चाहता है और लडडू भी हाथ में रखना चाहता है l"हम चारो फ्रेंड्स की एक मीटिंग है तुम्हे भी आना है" - शालिनी ने कहा lथोड़ी न नुकर के बाद वह मान गया lउदर इस आइडिया की जनक डॉ. मधु जो मशीनी जिंदगी से ऊबी हुई थी और उससे ज्यादा अपने डॉ. पति की रंगीनियों से आहत थीं lखूबसूरत नर्स, डॉक्टर्स, पेशेंट सबमें उसके पति के चर्चे थे lदरअसल वह लार्ड बायरन मानता था की खूबसूरत गुलाब पर मालिकाना हक़ तो एक का हो सकता है पर उसकी खुशबु पर तो सभी का समान अधिकार है lउस दिन जब मधु ने उसके एक दूसरे शहर की कान्फ्रेंस से दो दिन देर से आने पर जब कॉल किया था तो उसके कानों में किसी लड़की की आवाज टकराई थी "कौन है वहाँ?" उसने पूछा था l"यूँ ही एक डेलीगेट है जो अपना रिसर्च टॉपिक डिस्कस कर रही है मुझसे l" तब मधु ने फैसला लिया की वह जो चोरी छुपे नजरों के सामने भी और नजरों से छुपके भी चल रहा है इस पर कोई फैसला जरुरी है या फिर इसे नजर अंदाज करके चलने दिया जाय ? फिर वह भी खूबसूरत थी lउसके भी अरमान थे जिन्हें उसने व्यस्तता में खोकर रख दिया था lतभी उसके मन में यह विचार आया जिसे उसने अपनी इन पक्की सहेलियों को सुनाया था lउसे अंदाजा नहीं था की इस पर क्रियान्वन भी हो पाएगा, पर जब सभी इस पर गंभीर हो गए तो उसने अपने को हालात के हवाले कर दिया lउसके डॉ. पति को तो बस बताने की देर थी और वह इस प्रपोजल के लिए तैयार था l

बची शेष दो -- उनमें से सरिता हाउस वाइफ, बला की खूबसूरत, लंबे-लंबे बालों वाली, कत्थक नृत्यांगना रह चुकी थी lउनकी कला के मुरीद कॉलेज लाइफ से अब तक थे lउनके पतिदेव बिजनेसमैन थे और अक्सर बिजनेस के सलिसले में हर महीने वह बाहर जाते रहते थे lहर बार उनके साथ उनकी नई सैक्रेटरी जाती थी lयह बात वह उस दिन के पहले नहीं जानती थी जब वह टयूर से आए ही थे lकॉफी के बाद शॉवर लेने गए और वह उनके बैग में से कपड़े अलमारी में हैंगर पर टाँगने लगी lदरअसल पति के व्यक्तित्व को निखारने में उसके कपड़े, विलायती शूज, सूट, इम्पोटर्स फेस पैक आदि के एकदम चाक चोबन्द रखना उसकी डयूटी थी lजिसे वह बखूबी निबाहती भी थी lतभी अचानक एक आसमानी रंग की मुड़ी नाइटी निकली जिसमें किसी जनाना जिस्म की महक अभी तक रची बसी थी lवह दरअसल पतिदेव अगली मुलाकात तक याद ताजा रखने के लिए उठा लाए थे, जो अब उनकी पत्नी के हाथ में थी lसरिता, भावुक नहीं प्रैक्टिकल थीं, उन्हें आखिर पन्द्रह वर्षो का स्टेज का अनुभव था lउन्होंने अपने भावों को नियंत्रित किया, कुछ सोचा और फिर पति के कपड़ो को वापस सूटकेस वापस दीवार के पास खड़ा कर दिया lफिर वह चुपचाप बाहर चली आयी lपति के साथ लंच करते हुए उन्होंने पाया पति कुछ ज्यादा ही वहक रहे थे और उन पर लाड़ प्यार उड़ेल रहे

थे l"जरुर अपने गुनाह के अहसास को कम करना चाहते हैं यह मर्द -" उन्होंने सोचा lवैसे पत्नी इनकी चाकरी में लगी रहे पर जब खुद बाहर यह गुल खिलाते है तो अपराध बोध से बचने के लिए पत्नि के लिए कुछ न कुछ ले आते हैं l"देखो डार्लिंग तुम्हारे लिए मैं क्या लाया हूँ" -- कहते कहते उन्होंने एक खूबसूरत मणिरत्नम ज्वैलर्स लिखी डिबिया उनकी और बढाई l"अरे वाह" - खूबसूरत अँगूठी जगमग कर रही थी lयह बेवफाई रोज करे और ऐसे ही गिफ्ट लाता रहे" -- उन्होंने मन में सोचा पर प्रत्यक्ष बोली, "क्या बात है आज बड़ा प्यार आ रहा है ?" "अरे हम तुम्हें कहाँ भूलते हैं" -- बेवफा पति दिल पर हाथ रखकर अदा से बोला lवह चुपचाप, अपलक, भावरहित उसकी अभिनय क्षमता को देखती

रहीं l

उधर ममता का दर्द इसके विपरीत था l"आज सत्संग में देर हो जायेगी, वहीं भोजन भी है lतुम मेरा खाना मत बनाना" -- कहते हुए अपनी कार में श्रीमान सुरेश, सी.ए. रवाना हो गए l-- "हाय रे मेरी किस्मत" -- ममता ने मन ही मन सोचा, दिन भर कॉलेज में सभी उनकी सुंदरता, उनके फिगर को प्रशंसात्मक निगाह से देखते हैं और ठहराव आया तो यह महाशय सत्संगी बन गए lयह शिकायत वाजिब थी क्योंकि इनके श्रीमान महीनों तक दाम्पत्य सुख से पत्नी को महरुम रखते थे lउन्हें ऐसा धार्मिकता का चस्का लगा था कि महीने में आधेदिन तो सत्संग, प्रवचन, भजन, हवन में लगे रहते थे lजबकि ममता ३८ वर्ष होने के बाद भी ३० से कम की छरहरी, खूबसूरत लगती थी और जिंदगी को भरपूर, थ्रिल, रोमांच और रफ्तार से जीने में यकीन रखती थी lयही कारण था जब मधु ने 'हस्बैंड स्वैपिंग' की बात चलाई तो बहुत इच्छा होते हुए भी उन्होंने अपनी सत्संगी पति पर संदेह हुआ था की वह मानेगा भी या नहीं ?

आज वह महत्वपूर्ण बैठक थी lजिसमें अपने पार्टनर की वर्चा करनी थी और इस रोमांचक कार्य को अंजाम देने का तरीका और दिन तय होना था lसभी सदस्याऐं डॉ.मधु के घर पर दोपहर बाद से जमा थी और समोसे, गुलाबजामुन, पेस्ट्री के साथ कॉफी का आनंद लेते हुए चर्चा में मशगूल थी lमधु, शालिनी और सरिता निश्चिंत थी अपने अपने पार्टनर्स को लेकर पर उनकी चिंता दूसरी थी lयह बात किस तरह की जाए? क्या सब यहीं मिले? आमने सामने बिना आँखों की शर्म के ? यह विचार अधिकांश को समझ नहीं आया l"इससे प्राइवेसी भंग होगी और जिस बेबाक थ्रिल की हमें तलाश है वही नहीं मिलेगा" -- मधु ने कुछ सोचते हुए कहा l"फिर क्या करें?" -- ममता ने बेचैनी से कहा, "और मान लो कोई मना कर दे तो!" "अरे कोई ऐसा पुरुष भी होता है जो इसे मना करेगा? उल्टे वह तो मन ही मन खुश होगा" -- शालिनी बोली l"अरे नही यार, मेरा पति सत्संगी है" -- ममता ने अपने उदगार रखे l"अरे ऐसे लोगों को राह पर लाना मेरा काम है" -- शालिनी ने चुटकी बजाई l"मतलब उन्हें बिगाड़ना, उनके चरित्र से खिलवाड़" -- सरिता के यह कहते ही एक जोर का ठहाका गूँजा lमधुजी ने कुछ सोचा फिर कहा, "देखो हम यह एडवेंचर, कुछ नीरस हो चुकी जिंदगी को थोड़ा रोचक बनाने के लिए कर रहे हैं l" "साथ में थोड़ा वो भी हो जाए तो क्या हर्ज है" -- यह शालिनी थी l"अरे मेरे सत्संगी पति को तो बताना "वो" क्या होता है भूल गया है वो करना l" देर तक खिलखिलाहट गूँजती रही l

तय हुआ की अगले हफ्ते दो छुट्टियाँ एक साथ थी फिर तीसरा रविवार था तो उसका सदुपयोग किया जाए lउससे पहले अपने अपने पार्टनर्स को तैयार करना और बताना था lजैसा होना था सामान्यतः शालिनी, मधु, सरिता के पति तैयार हो गए इस दिलचस्प गेम के लिए lउन्हें आश्चर्य भी हुआ कि उनकी घरेलू, टिपिकल पत्नियाँ इन सबके लिए तैयार कैसे हो गई? हाँ ममता ने जब अपने सत्संगी पति को कहा तो वह क्षोभ भरे स्वर में बोले, "तुम इस भौतिक काया के पीछे कब तक पड़ी रहोगी l" "तो क्या मैं भी तुम्हारी तरह सन्यासीन बन जाऊँ ? "वरना तो क्या यह सब करोगी?" "क्या है इसमें? तुम्हें बताकर, तुम्हे साथ एक प्रयोग करते हैं lतुम्हें क्या खराब लगता है इसमें ?" खैर बहस के बाद वह भी तैयार हो गए l

जोड़ियाँ बनाने के लिए सब सरिता के घर पर थीं "भई मैंने कहा है कि सब आपस में बैठेंगी और मिलकर के पार्टी वगैरह होगी" -- ममता ने कहा lमेरे पति तो तैयार है सब बातें जानकार" -- यह डॉ. मधु थी l"मेरा बॉयफ्रेंड तो इसलिए नहीं आ रहा था कि आप सब ३० से ऊपर कि बूढ़ी हो चली हो lवह तो मैंने उसे तैयार किया कि चल भई एक बार जाकर तो देख कि अनुभव भी कुछ चीज होता है l" "अरे मेरे पति मुझे लैक्चर देने लगे कि यह भौतिक नश्वर काया है इसमें से ध्यान हटाकर प्रभु में ध्यान लगाओ l" "तु कह देती कि अभी मेरे पीछे ही इतनी लाइन है कि प्रभु कि तरफ ध्यान देने का नंबर तो बाद में आएगा" -- मधु ने हँसते हुए कहा l"प्रभु को थोड़ा इंतजार करने दो" -- शालिनी बोली l

"लेट अस डसाइड व्हाटस द प्रोसीजर फॉर चेंजिंग द पार्टनर -- मधु ने कहा l

"मेरा सुझाव है हम एक दिन और जगह तय करले और फिर केवल वही दो लोग उन जगहों पर हो जहाँ से वह कहीं भी चले जाए l"इससे तो यह जाहिर हो जाएगा कि कौन किसके साथ गया lवह कार कीज वाला तरीका लगाया जाए" -- शालिनी ने कहा l"नहीं यार कुछ और करते हैं l" "क्या?" "कुछ भी, देखो हमारे पास हैं चार अलग-अलग व्यक्तित्व lजरुरी नहीं हम सैक्स कि ही बात करे lहम उनसे अपनी फीलिंग्स, अपनी अनुभूतियाँ, अपनी बेरियत शेयर कर सकती हैं lलाइक ए गुड फ्रेन्ड" -- शालिनी ने मुदित मन से कहा l

तो साहब एक्सचेंज का प्रोग्राम तय हुआ lबिना यह सोचे समझे कि इसके दूरगामी प्रभाव क्या पड़ेगे? किस तरह पति-पत्नी आपस में निगाह मिला पाएगें? और जिसके साथ गहरी इंटीमैसी हो जाएगी फिर उससे अलगाव क्या संभव होगा? और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह चारों नही जानती थी कि इस बार तो वह खुद यह आर्गनाइजकर रही हैं lअगली बार तो यह सब वह पार्टनर्स खुद व खुद अपने आप कर लेगें जिसकी उन्हें भनक तक नहीं होगी lकई तरह कि विसंगतियों को कार्यक्रम शुरु करने कि होड़ में यह प्रयोगवादी नारियाँ भूल गई lचारों ने बैठकर तीन पतियों और एक बॉयफ्रेंड की नाम की पर्चियाँ बनाई और एक एक चुनली lमित्रों आगे की कहानी आप खुद जानते हैं मुझे बताने की जरुरत नहीं है lदरअसल उत्तर आधुनिकतावाद, स्वन्छदता, अकाल परिवार ने हमारे देश की पढ़ी-लिखी, शिक्षित, स्वतंत्र, नौकरीपेशा वाली स्त्री का जितना नुकसान किया है उतना शायद किसी का नहीं lआर्थिक स्वतंत्रता तो मिली पर अभी उसकी जिम्मेदारी, गंभीरता का अनुभव नहीं हुआ lनतीजतन अनियंत्रित स्वच्छदता बढ़ावा दे रही है परिवारों के टूटने में, हमारे बुजुर्गो की उपेक्षा में, एकाकीपन में और आखिर में अकेले रह जाने में l

पर कुछ दिनों बाद जब यह चारों मिली तो चहक रही थीं lजीवन अब बोरियत, बोझिलता के स्थान पर उल्लास, ख़ुशी से भरा था lसरिता की चमकती आँखों में अपने अस्तित्व की अहमियत झिलमिला रही थी l

जबकि शालिनी खुश थी कि उसके बॉयफ्रेंड से भी बढ़िया दोस्त सत्संगी महाशय निकले थे, हर लिहाज से परफैक्ट lडॉ. मधु खुश थी, उनकी निकलचुकी जवानी वापस आ गई थी lशालिनी का बॉयफ्रेंड उसके डॉ. पति से हर हालत में बेहतर दोस्त था lजबकि ममता को डॉ. साहब इतने भाए थे कि वह उनके प्यार भरी बातों का अभी भी अपने अंदर महसूस कर रही थी lयह चेंज चारों, नही....नहीं, आठों के लिए सुखद, सफल बहुत आहलादकारी था lदरअसल हम सब स्वाभाव से ही परिवर्तनगामी, थोड़े उच्छखंल

है lबस दकियानूसी विचारों से अपने मन को मरे रहते हैं lरखे रखे तो पानी भी सड़ जाता है फिर यह तो जीवन है lसतत प्रवाहमान, चेतन, भावनाओं से भरा हुआ lइसे भरपूर जिन ही चाहिए पर आपसी समझदारी, बुद्धिमानी और भरोसे के साथ lऔर इस तरह यह प्रयोग सफल रहा l

डॉ. संदीप अवस्थी

'आस्था', ६/२६, न्यू कॉलोनी रामगंज,

अजमेर - ३०५००१

ईमेल : awasttisandeep19@yahoo.com

मोबाईल : ०८९५५५५४९६९