Unha-Three Dr Sandip Awasthi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आई कैन सी यू - 20

    अब तक कहानी में हम ने पढ़ा की दुलाल ने लूसी को अपने बारे में...

  • रूहानियत - भाग 4

    Chapter -4पहली मुलाकात#Scene_1 #Next_Day.... एक कॉन्सर्ट हॉल...

  • Devils Passionate Love - 10

    आयान के गाड़ी में,आयान गाड़ी चलाते हुए बस गाड़ी के रियर व्यू...

  • हीर रांझा - 4

    दिन में तीसरे पहर जब सूरज पश्चिम दिशा में ढ़लने के लिए चल पड...

  • बैरी पिया.... - 32

    संयम ने उसकी आंखों में झांकते हुए बोला " तुम जानती हो कि गद्...

श्रेणी
शेयर करे

Unha-Three

उन्हा - थ्री

जमाना जेटएज का है l सूचना तंत्र, मौसम उपग्रह सभी में नई से नई टैक्नोलॉजी आ गई है l अरबों डॉलर का व्यय, विश्व के सर्वश्रेष्ठ देशों अमरीका, जापान, चीन के वैज्ञानिकों की मदद से उ. कोरिया का रॉकेट "उन्हा-३" तैयार हुआ lएक नई ऊँचाई देश को देने के लिए lहजारों मिल की यात्रा करने वह रवाना हुआ लॉंचिंग स्टेशन से lपूरे देश में उत्सव का माहौल एवं विश्व बिरादरी की सावधान निगाहें इस प्रक्षेपण पर l

उधर रामलाल माटसाब सुबह की पहली बस से जिला मुख्यालय जाने की तैयारी में थे l पिछले छह माह से उनकी पेंशन नए वेतन आयोग से नहीं बन पा रही था l जैसा सरकारी हिसाब होता है वेतन आयोग की सिफारिशें आई तो उधर महँगाई बढ़ी और बिजली, पानी, गैस, पैट्रोल सब महँगे l तो पैसा बढ़ा ही नहीं और महँगाई बढ़ गई lनतीजा घर में तंगी हो गई lपत्नी एक बेटा और एक विवाह योग्य पुत्री l इन्हें निबटाने में ही ही जिंदगी बीत जनि थी पर शायद यह संभव नहीं हो पता क्योंकि जमाना दुरुह था और यह सीधे सांद lलू सुबह ७ बजे से ही शुरू हो जाती फिर ऐसे तपाती जैसे भटटी में चना भूँजा l नहा धोकर गाँव से दो कोस पैदल चलकर सुबह ७ बजे की बस पकड़ने माटसाहब अपना चश्मा और पजामे कुर्ते में पहुँचे lबस आई और उसमें खड़े होने की जगह मिल गई l"कित जानो है" जवाब जिला मुख्यालय का मिला तो कंडक्टर ने पीछे की तरफ जगह बना दी l ३ घंटे की भीड़-भाड़ में घँसे-फँसे वह शहर पहुँचें lशहर पूरे तन्मयता के साथ इधर से उधर भाग रहा था मानो अतिव्यस्त हो l वह इस का यह दिखावा जानते थे अंत आराम से उतरे lबस स्टैंड के आसपास चाय की गुमटियाँ, मक्खियों की तरह लोग यूँ बैठे थे मानो कहीं जाना नहीं है lवहाँ से टेम्पो पकड़कर वह जिला पेंशन कार्यालय के लिए रवाना हुए l

उधर उत्तरी कोरिया का रॉकेट पृथ्वी से लगभग ११५०० कि.मी. कि दूरी पार करके अंतरिक्ष करयोजैनिक टैक्नोलॉजी से युक्त इस कि यात्रा को अपने स्क्रीन पार मॉनीटर कर रहे है lहर पल, हर क्षण यह बिल्कुल सही जा रहा है lमानव मात्र के उत्थान चंद्रमा पर एक और देश के रॉकेट पहुँचने से कैसे हो जाएगा यह जवाब किसी के पास नहीं था l

पेंशन कार्यालय के पास के चिराहे पर वह लंबी नाक वाला टैंपो उन्हें उतारकर और दुगनी सवारियाँ भरकर चल पड़ा lउन्होंने गमछे से पसीना पोंछते घड़ी देखी अभी ११ बजे थे और सूरज पूरा ताँडव दिखा रहा था lउन्होंने हाथ में पकड़े थैले में रखे कागजात को एक बार फिर ठीक किया और गहरी साँस लेकर वह पेंशन कार्यालय के अंदर दाखिल हुए lवह पाँच-छह बार आ चुके थे हर बार एक न एक कमी वह ब्रजेश बाबू निकाल देता था," माटसाब, आप आया मति करो lआपका काम होते ही मैं डाक से खबर कर दूँगा "पान सने दाँतो और धूम्रपान से काले पड़े होठों से मुस्कराता वह बोला lपिछली बार वह इस झाँसे में आ गए और दो माह तक डाकिए के आने पर दोपहर में बहार आकर उससे पूछते "भईया कोई डाक आई हमारी" इतनी बार और इतने दिनों तक उन्होंने पूछा कि अब डाकिया उन्हें देखते ही कह देता "नहीं आई माटसाब l"

फाइलों से भरी पड़ी अलमारियों में से अजीब-सी बू आ रही थी मानो कई मुर्दे दफन हों lउनके बीच में सरकारी कर्मचारी तो न जाने कितने होंगे जो इन फाइलों को आगे बढ़ाते-बढ़ाते खुद स्वर्ग सिधार गए थे lमास्टर साहब थोड़ा और सोचते तो उन्हें वहीं भोलाराम का जीव भी दिखा जाता lपर उन्होंने दुखी आत्माओं को छेड़ना उचित नहीं समझा l

बाबू ब्रजेश ने कहा आप पहले निचे कमरा नं. २ में जाओ और वहाँ से अपनी फाइल का नंबर ले आओ lवह पिछली बार आपके विद्यालय में भेजी थी lवहीं के बाबू ने पूरी प्रविष्ठियां आपकी सेलरी और इन्क्रीमेंट्स के बारे में नहीं कि थीं l" मास्टर साहब वापस घूमे और नीचे की तरफ चले l

उधर 'उन्हे-३' उत्तरी कोरिया का बहुप्रतिक्षित स्पेस यान पृथ्वी की कक्षा पार करके लगभग २२ हजार मील की ऊँचाई चंद ही घंटो में पार करके तीव्रता से चाँद की ओर बढ़ रहा था lसभी वैज्ञानिक धरती पर प्रयोगशाला में बैठे इसका परफॉमेंस देखकर खुश थे lबिल्कुल योजना के अनुसार ही इंजन काम कर रहा था lचन्द्रमा मिशन पर यान भेजने का यह छठा प्रयास था lअरबों डॉलर की तैयारी, सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्कों से निर्मित अत्याधुनिक इंजन से युक्त 'उन्हा-३' देश की प्रतिष्ठा, गौरव का प्रतीक था l

मास्टर साहब धीरे-धीरे सीढियाँ उतरते हुए कमरा नं. २ के सामने पहुँचे ओर वहाँ एक टेबिल पर रुके l"जी मैं रामलाल रा. प्रा. पा. से सेवानिवृत्त" बात पूरी नहीं कर पाए कि उस टेबिल से एक हाथ उठा ओर उसने उन्हें विपरीत कोने पर भेज दिया lवहाँ पहुँचे देखा फाइलों के ढ़ेर में एक युवक बैठा कमेंट्री सुन रहा था ओर भद्दे मजाक कर रहा था lयही हैं भारत के सरकारी कर्मचारी जिनसे देश चलता है lउससे पूछना उसके आनंद में खलल डालना होता तो उसके पास वाले से पूछा "जी वो स्कूल से मेरा पेंशन के कागज ठीक होकर आऐ ?" उन सबने उन्हें यूँ देखा जैसे वह भिखारी हैं lदरअसल हर जिले में यह पेंशन विभाग ही ऐसा है जहाँ सब से ज्यादा किचकिच है और मिलता कुछ नहीं lक्योंकि रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी ही इस भविष्य निधि विभाग में आते है lवह पहले से ही दुखी आत्मा होते है lफिर भी चाय-पानी का खर्चा यह निकाल ही लेते है lउसने देखा और बम फोड़ा l"सुधीर बाबू यह काम देखते है और वह आज आए नहीं हैं l" सुनते ही वह लड़खड़ा गए उनकी आँखों के सामने अपने परिवार का अभावग्रस्त चेहरा आ गया lसुबह ४ बजे उठ कर फिर लंबी यात्रा, गाँव से शहर कि तरफ lवह सिहर उठे हाँलाकि पूछना चाहते थे कि उस बाबू के अनुपस्थित रहने पर क्या काम 'नहीं होगा? पर रिटायर्ड कर्मचारी और धोबी का कुत्ता एक जैसे lबाहर तेज धूप पड़ रही थी l३ बज चुके थे और पेट में अन्न का एक दाना गया था वह निराश होकर मुड़ने लगे l

"उन्हा-३" उन्ही चंद घंटों में लगभग ३० हजार मील का सफर तय करके हमारे सौरमंडल कि अगली कक्षा में प्रविष्ठ होने जा रहा था lग्रहों कि साफ, स्पष्ट तस्वीरें उपग्रह प्रक्षेपण की मदद से धरती के हर कोने में बैठे नासा, इसरो, रूस, कोरिया के वैज्ञानिक देख रहे थे lउ. कोरिया एक नया इतिहास रचने से कुछ कदम ही दूर था lमानव मात्र के कल्याण अंतरिक्ष इतिहास में नई ऊँचाइयाँ छुई जा रही थी lऔर जबकि उसी समय दिक्काल में न जाने कितने मास्टर रामलाल अपनी ही हक की छोटी सी राशि के लिए कितने धक्के खाने को मजबूर थे l

तभी कमेंट्री सुनता हुआ युवा कर्मचारी बोला "अरे यहाँ आइए मैं देखता हूँ lफाइलों के आवागमन का रजिस्टर यहीं होगा ड्राअर में" वह सांय बांय से घूमे lउसने कई ड्राअर चैक किए रजिस्टर नहीं मिला lदुख और निराशा के स्वर में वह बोले "कोई बात नहीं मैं अगले सप्ताह दुबारा आता हूँ l" उन्होंने आकाश की ओर देखा जहां अंतरिक्ष यान नई ऊंचाई छू रहा था lक्या वहां से उनके लिए कोई राहत आनी थी l

अंतरिक्ष की आखिरी कक्षा से ठीक पूर्व एक जबरदस्त विस्फोट हुआ और "उन्हा-३" के परखच्चे उड़ गए lशायद आंतरिक दबाव अत्यधिक बढ़ने से उसके इंजनों ने काम करना बंद कर दिया था lपूरा विश्व असफलता में डूब गया lअरबों डॉलर, वैज्ञानिकों की वर्षो की मेहनत बेकार चली गई थी lअब कई वर्षो तक वह देश पिछड़ गया था l"मिल गई फाइल" -- वह युवा कर्मचारी बोला lफिर उनका नाम पूछकर उसने एन्ट्री चैक की lवह निर्लिप्त, नसिंग भाव से देखते रहे l"हाँ यह रही एन्ट्री आपकी फाइल विद्यालय से पूरी होकर आ गई हैं lयह उसका नंबर है lइसे ले जाकर ऊपर दीजिए आपका काम आज हो जाएगा माटसाब l"

उन्होंने उसे देखा, वह जो अभी कमेन्ट्री सुनता लापरवाह युवक था अब वह एक फर्माबरदार इंसान बन गया था lउन्हें बहुत बड़ी राहत सच में मिली थी lअब उन्हें अपनी सारी थकान, परेशानी दूर होती लग रही थी lवह धीरे-धीरे, सहमते-सहमते अपने अंदर ख़ुशी महसूस कर रहे थे lउधर उत्तरी कोरिया "उन्हा-३" मिशन के असफल हो जाने के कारणों की जाँच में डूबा था l