मिशन सिफर - 15 Ramakant Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मिशन सिफर - 15

15.

राशिद पूरी तरह तंदुरुस्त हो चुका था। अब उसे कमजोरी भी महसूस नहीं हो रही थी। लेकिन, वह इसे जाहिर नहीं कर रहा था ताकि वह घर में ही रहकर आराम कर सके। नुसरत उसके लिए ऐसी चीजें बनाकर लाती थी जिनसे उसके शरीर को ताकत मिल सके। वास्तव में, इस सबसे उसे बहुत फायदा हो रहा था और वह यह मानकर चल रहा था कि जब भी उसे अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए बाहर जाना होगा, वह उसमें अपनी पूरी शारीरिक और मानसिक ताकत लगा सकेगा।

कमरे में अकेला बैठा वह सोच रहा था कि पता नहीं आखिर उसका असली मिशन कब शुरू होगा। उस पर एक फितूर सा चढ़ा हुआ था। कितना अच्छा होता भारत आते ही वह अपने मिशन में लग जाता और उसे पूरा करके अपने मुल्क वापस लौट जाता। उसकी डिग्री और मार्क्सशीट बनाने जैसे काम पहले ही पूरे कर लिये गए होते तो उसे इतना इंतजार नहीं करना पड़ता।

उसके मन में हमेशा ही यह बात चलती रहती थी कि दुश्मन देश में दुश्मन के सबसे महफूज़ ठिकाने में घुसने और वहां तबाही मचाने का काम कोई आसान काम नहीं था। फिर उसे अकेले ही वह सब करना था। सिर्फ और सिर्फ अल्लाह ही उसके साथ था जो यह जानता था कि वह अपने वतन, अपनी कौम और मज़हब के लिए अपनी जान तक कुर्बान करने के मिशन पर निकला हुआ था। यही बात उसे इतना बड़ा जोखिम उठाने की हिम्मत और ताकत देती थी।

वह मुतमईन था कि आइएसआइ जिस काम में भी हाथ डालती है, उसे पूरा करने से पहले हर छोटी से छोटी बात पर विचार करती है और हर पहलू का पूरा ध्यान रखती है। अगर उसने उसे इतने दिन पहले भारत भेजने का फैसला किया है तो उसमें भी कोई ना कोई नुक्ता जरूर रहा होगा। वह इतने दिन से भारत में बिना किसी काम के रह रहा है, यह भी उनका पूरी तरह से सोचा-समझा कदम होगा। फिर उसने सोचा कि सच तो यही है कि भारत में कदम रखते ही उसके मिशन की शुरूआत हो चुकी थी। ये जो दिन निकल रहे थे, बेकार में नहीं निकल रहे थे। उसके मिशन की सफलता के लिए भारत में उसका रहना पहला कदम जो था।

तभी उसकी सोच दूसरी तरफ मुड़ गई थी, अगर वह भारत न आया होता और उसे इस घर में न ठहराया गया होता तो उसे अब्बू और नुसरत के साथ रहने का मौका कैसे मिलता। उसे कैसे पता चलता कि घर क्या होता है, अपनापन क्या होता है और खुदगर्जी के बिना भी इंसान एक-दूसरे से कैसे जुड़ सकता है। इस सबके लिए भी उसे खुदा का शुक्र अदा करना चाहिए। बेख्याली में उसके हाथ दुआ के लिए उठ गए।

उसकी सोच को झटका तब लगा जब उसे बाहर से खिड़की पर हो रही ठकठक सुनाई दी। उसका दिल धड़कने लगा, जरूर उसके लिए फिर से कोई पैगाम होगा। उसने आधी खुली खिड़की को पूरा खोल डाला, सामने वही शख्स खड़ा था। उसने अपने हाथ का लिफाफा राशिद की तरफ बढ़ाया और बिना कुछ बोले जैसे आया था, वैसे ही वापस चला गया। राशिद ने इस बात को महसूस किया कि उसे इस कमरे में रखवाने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी रही होगी कि इस कमरे में ऐसी खिड़की है जो गली में खुलती है और जिसमें से बिना किसी की नजर में आए उसके साथ हिंदुस्तानी एजेंट संपर्क कर सकते हैं और उसे आसानी से इंस्ट्रक्शंस भेजे जा सकते हैं। वह आइएसआइ के काम करने के तरीके से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।

नुसरत या अब्बू कभी भी आ सकते थे, इसलिए उसने दरवाजा अंदर से बंद किया और उस सीलबंद लिफाफे को खोल डाला। उसमें अखबार की एक कटिंग रखी थी। साथ में रखा था एक टाइप किया हुआ कागज जिस पर लिखा था – “यह इश्तिहार मुंबई के एटोमिक प्लांट में इंजीनियरों की भर्ती के लिए है। इसे अच्छी तरह पढ़ लें। डिग्री और मार्क्सशीट पहले ही भेजे जा चुके हैं, उनकी बिना पर आपको इस जॉब के लिए एप्लाय करना है। जहां आप रह रहे हैं पता वहीं का देना है। इंटरव्यू के लिए कॉल आने पर आगे क्या करना है, यह बाद में बताया जाएगा।“

उसने पूरा इश्तिहार ध्यान से पढ़ा। ऐसा लगता था जैसे उसी के लिए ये पोस्ट निकाली गई हो। वह सारी क्वालिफिकेशंस पूरी करता था। उसे जो स्पेशियल ट्रेनिंग दी गई थीं, वह भी इस जॉब के लिए उसके काम आने वाली थीं। इंटरव्यू में पूछे जाने वाले किसी भी सवाल के लिए वह तैयार था, बस उसे हड़बड़ी में कोई गड़बड़ी नहीं करनी थी। अर्जी भेजने की आखिरी तारीख में अभी एक सप्ताह बाकी था, लेकिन उसने तय कर लिया था कि वह कल ही सारी फार्मेलिटी पूरी कर लेगा और अर्जी भेज देगा।

दूसरे दिन ही उसने उस जॉब के लिए अर्जी भेज दी थी और इंटरव्यू के लिए बुलावे का इंतजार करने लगा था। इस बीच उसने ऑफिस के नाम से घर से फिर से निकलना शुरू कर दिया था। वह चाहता था कि मिशन पूरी तरह शुरू होने से पहले वह मुंबई की देखने वाली सभी जगह घूम ले। उसे पता था, बाद में यह मौका उसे नहीं मिलने वाला था। वह जहां भी घूमने जाता उसे यही देखने को मिलता कि मुसलमान और अन्य मज़हबों के लोग बेफिक्री से घूम रहे हैं और उनके बीच कहीं कोई तनाव और दुराव नहीं है। हमेशा की तरह वह इसे पचा नहीं पा रहा था क्योंकि यह माहौल उसे सिखाई-पढ़ाई बातों से बिलकुल जुदा था और उसे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता था।

आखिर, उसका इंटरव्यू का बुलावा आ गया। साथ ही, उसे खिड़की के जरिए एक लिफाफा भी मिला था जिसमें रखे टाइप किए पेपर में लिखा था – “अल्लाह का शुक्र है कि अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए यह अजीम मौका आपको मिल रहा है। आप एक जहीन शख्स हैं। आपने इंजीनियरिंग तक के सारे एक्ज़ाम अव्वल दर्जे से पास किए हैं। दिल में यह ईमान रखें कि आपको सारे जवाब आते हैं और इंशाअल्लाह इस इंटरव्यू में आप कामयाब होकर निकलेंगे। यह मौका किसी भी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देना है। आप अपनी तरफ से इंटरव्यू में बेहतरीन जवाब दें, बाकी हम देख लेंगे। अल्लाह इस मुबारक मिशन में हमारे साथ है।“

उसने सारी हिदायतों को कई बार पढ़ा। हर बार उसका हौंसला पहले से ज्यादा बुलंद होता गया। उसमें जो भरोसा किया गया था, उसे वह जाया नहीं होने देगा और कामयाबी के लिए जान लड़ा देगा। वह इस बात से भी अनजान नहीं था कि उसके सेलेक्शन के लिए आइएसआइ ने भी पूरी किलेबंदी कर रखी होगी।

उसका इंटरव्यू बहुत अच्छा गया था। इंटरव्यू बोर्ड उसके जवाबों से बहुत खुश था। चेयरमैन ने तो साफ-साफ यह कह दिया था कि इस जॉब के लिए काबिल इंजीनियर की उनकी खोज पूरी हो गई है। राशिद बहुत खुश था, उसकी जिस काबिलियत और सोच को लेकर इस बड़े मिशन के लिए उसे चुना गया था, उसने उसे प्रूव कर दिखाया था। बस, अब उसे अपना मकसद पूरा करने के लिए जी-जान से लग जाना था। उसे अपनी मंजिल पास आती नजर आ रही थी। वह मुतमईन था कि अब इंशाअल्लाह उसका मकसद पूरा होकर ही रहेगा।

उसे तुरंत ही नौकरी ज्वाइन करने के लिए पत्र मिल गया था। दूसरे दिन से ही उसने अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी। अब उसे बहाने बना कर सड़कों पर घूमने नहीं जाना था, उसने सचमुच ऑफिस जाना शुरू कर दिया था। उसे शुरूआती तौर पर ऐसे काम में लगाया गया था, जिसमें उसे अपना मकसद पूरा करने की गुंजाइश नजर नहीं आ रही थी। आइएसआइ से उसे ऐसे इंस्ट्रक्शंस मिले थे कि वह जल्दबाजी में काम बिगाड़ने की कोशिश नहीं करे। उसे अपने अफसरों का विश्वास जीतना होगा और सही मौके की तलाश करनी होगी।

उसे जो भी काम सौंपा जाता था, उसे वह पूरा मन लगा कर करता था। काम करते हुए उसे जहां कुछ नई चीजें सीखने को मिल रही थीं, वहीं पाकिस्तान में उसे दी गई ट्रेनिंग भी बहुत काम आ रही थी। उसकी मेहनत, लगन और काबिलियत देखकर उसके सीनियर उससे बहुत खुश थे। प्लान के मुताबिक वह मिशन पूरा करने के लिए सही रास्ते पर आगे बढ़ रहा था।

काम में मशगूल होने के कारण उसे कभी-कभी घर पहुंचने में देर हो जाती। नुसरत उसका इंतजार कर रही होती। वह उसके आते ही चाय बना देती और खाना भी जल्दी से बना देती। अब्बू भी खाने पर उसका इंतजार करते और पूछ लेते – “क्या बात है राशिद, ऑफिस में बहुत ज्यादा काम बढ़ गया है क्या?”

वह जवाब देता – “हां, अब्बू। पहले तो मैं यहां के काम से खुद को वाकिफ कर रहा था और शुरूआत में मुझे इतनी जिम्मेदारी दी भी नहीं गई थी, इसलिए मैं टाइम पर घर आ जाता था अब मुझे बाकायदा बड़ी जिम्मेदारियां दी जाने लगी हैं, इसलिए काम पूरा करने के लिए मुझे अकसर ऑफिस के समय के बाद भी रुकना पड़ रहा है।“

“हां, ऑफिस है तो काम तो होगा ही। फिर भी, ऑफिस छूटने के टाइम से आपका इंतजार बना रहता है। नुसरत को भी लगता है कि आप समय से आ जाएं तो समय से खाना-पीना मिल जाए।“

“आप चिंता न किया करें अब्बू, देर होती है तो ऑफिस में कुछ न कुछ खाने के लिए मिल जाता है।“

“सुन रही हो नुसरत” – अब्बू ने नुसरत की तरफ देखते हुए कहा – “बेटा, तुम राशिद की ज्यादा चिंता मत किया करो, देर होती है तो इन्हें ऑफिस में खाने-पीने को मिल जाता है।“

“ठीक है अब्बू, इन्होंने कभी बताया नहीं कि ऑफिस में भी खाने को कुछ मिल जाता है। बता देते तो मैं इंतजार क्यों करती।“

राशिद ने नुसरत की आवाज में नाराजगी साफ महसूस की। वह जानता था कि वह उसका इंतजार तब से करने लगी थी, जब से उसे इस प्रोजेक्ट में नौकरी मिली भी नहीं थी। उसने उससे नाराज होने का हक खुद-ब-खुद ही हासिल कर लिया था। जिस तरह से वह छोटी-छोटी बातों में उसका ख्याल रखती थी, वह और कोई भी नहीं रख सकता था। कोई मकान मालकिन अपने अदने से किराएदार का इतने अपनेपन से ख्याल क्यों रखेगी। वह सबकुछ समझकर भी इसे समझना नहीं चाहता था।

वह जितना ही नुसरत की तरफ से ध्यान हटाने की कोशिश करता उतना ही उसके बारे में सोचने लगता। आजकल जब वह अकेला होता या फिर काम कर रहा होता, बेख्याली में उसका ध्यान वहीं चला जाता। नुसरत का उससे बार-बार अपनापन जताना वह शिद्दत से महसूस कर रहा था। पता नहीं वह भी ऐसा क्यों महसूस करने लगा था कि उसके दिल में भी नुसरत के लिए कुछ ऐसा पनप रहा था जो उसे उसकी तरफ खींचता था। पर, जिस गली जाना न हो वहां का रास्ता पूछने का क्या मतलब। वह जिस गुप्त मिशन पर यहां आया था, वह उसे इस बात की कतई इजाजत नहीं देता था कि वह किसी के लिए कोई कोमल भावना अपने दिल में रखे, फिर उसे जाहिर करना तो बड़ी दूर की बात थी।

यह मिशन नुसरत के मुल्क को दहलाने वाला मिशन था, वह दुश्मन मुल्क में था और यहां के एक बड़े और अहम प्रोजेक्ट को नेस्तनाबूद करने के इरादे से आया था। वह अपना मकसद पूरा करने के लिए जी-जान से जुटा था। इस मिशन के पूरा होते ही उसे अपने मुल्क के लिए हिफाजत के साथ भाग निकलना था। वह यहां रहना चाहे भी तो वह मुमकिन नहीं था क्योंकि आइएसआइ वाले ऐसा कभी होने नहीं देंगे। फिर उसका मिशन फेल होने और उसके पकड़े जाने का अंदेशा भी अपनी जगह मौजूद था। खुदानाखास्ता, अगर ऐसा हुआ तो वह भारत की अदालतों और जेलों के बीच चक्कर ही काटता रहेगा। हो सकता है उसे फांसी पर चढ़ा दिया जाए। यह मिशन खतरनाक मिशन था और इसके लिए वह अपनी जान हथेली पर लेकर निकला था। यह बात उसे नुसरत से नजदीकी न बढ़ाने के लिए मजबूर करती थी। उसे नुसरत से दूर ही रहना होगा। वह उसे इस बात की भनक भी नहीं लगने देगा कि वह उसकी नजरों के पीछे छुपी मोहब्बत को समझता है और खुद भी उसके लिए वैसा ही महसूस करने लगा है।

उस रात उसे एक अजीब सपना आया। वह और नुसरत हाथों में हाथ डाले समुद्र किनारे टहल रहे हैं। समुद्र की चंचल लहरें उनके पैरों से टकरा कर उन्हें मदमस्त बना रही हैं। नुसरत ने उसके कंधे पर सिर रख दिया है और उससे कह रही है – “राशिद, मैं आपके बिना नहीं रह सकती। आप अब्बू से मेरा हाथ मांग लो। निकाह के बाद हम दोनों अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे, जिसमें मोहब्बतों के अलावा और कुछ नहीं होगा।“

राशिद ने अपने कंधे पर रखे उसके सिर को सहलाते हुए कहा था – “मैं ठहरा यतीम। ना मुझे यह पता था कि अपना घर कैसा होता है न ही यह पता था कि अपनापन क्या होता है। बचपन से प्यार और मोहब्बत के लिए तरसता रहा हूं। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि यहां पराए मुल्क हिंदुस्तान में मुझे कोई इतना चाहने वाला मिलेगा कि मैं उसकी मोहब्बत में खुद को डुबोने लगूंगा।“

“यहां पराए मुल्क हिंदुस्तान में? क्या मतलब है इसका राशिद? आपके लिए यह मुल्क पराया कैसे हुआ? क्या तुम हिंदुस्तानी नहीं हो?”

“हां, मैं तुम्हें अपनी शरीके-हयात बनाने से पहले सबकुछ साफ-साफ बता देना चाहता हूं और तुम्हें किसी भी मुगालते में रखना नहीं चाहता। मैं पाकिस्तानी हूं और पाकिस्तान से यहां एक गुप्त मिशन पर आया हूं। यहां रहने वाले मुसलमानों पर जो जुल्म हो रहे हैं, उनका बदला लेने।“

नुसरत ने एकदम उसके कंधे से अपना सिर उठा लिया था और उसे घूरते हुए कहा था – “क्या कह रहे हैं आप? आपको दिखाई नहीं देता, हम सब पूरी तरह महफूज हैं यहां पर।“

“आप समझ नहीं रही हैं नुसरत। यह काफिरों का मुल्क है, यहां कोई भी मुसलमान इज्जत और मोहब्बत से नहीं रह सकता। मेरा वतन पाकिस्तान इस्लामी मुल्क है। सारे मुसलमानों का खैरख्वाह है। निकाह के बाद हम पाकिस्तान चलेंगे और फिर ऐसे मुल्क में रहेंगे जहां शरीयत का निजाम चलता है।“

“ओह, तो आप मेरे मुल्क के लिए खतरा बन कर आए हैं। चले जाइये यहां से। आपसे निकाह करना तो दूर मैं आपके मुंह पर थूकना भी नहीं चाहूंगी।“

“पागल मत बनो नुसरत, आप मुझसे प्यार करती हैं और ........।“

“मैंने कहा ना, आप दुश्मनी निभाने आए हैं यहां, आपसे प्यार कैसा? मेरी हुब्बे-वतनी पर शक न करो राशिद। मैं जा रही हूं।“

राशिद ने तेजी से जाती हुई नुसरत को भाग कर पकड़ लिया था और उसका मुंह अपनी तरफ करके कुछ कहने ही जा रहा था कि नुसरत ने उसके मुंह पर थूक दिया। इसी के साथ राशिद की आंख खुल गई। उसने देखा, वह सचमुच अपना मुंह पौंछने में लगा था।

उफ, कितना खराब सपना था, पर असलियत राशिद का मुंह चिढ़ा रही थी। जिस दिन भी नुसरत को उसकी असलियत का पता चलेगा, उसका प्यार काफूर हो जाएगा और वह उसके साथ वही सलूक करेगी जो सपने में उसने किया था। राशिद, घबराकर उठ बैठा था। इस सपने ने उसके इस इरादे को और भी मजबूत कर दिया कि वह ना तो खुद कभी अपने दिल की बात नुसरत के सामने जाहिर होने देगा और ना ही नुसरत को यह मौका देगा कि वह उसके सामने अपनी मोहब्बत का इजहार कर सके।

उसके बाद उसे फिर नींद नहीं आई थी।