मिशन सिफर - 13 Ramakant Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मिशन सिफर - 13

13.

वह घर पहुंचा तो बेहद थका हुआ महसूस कर रहा था। काश, नुसरत इस समय उसे एक कप चाय बना कर पिला जाती। वह इस समय खुदा से कुछ और भी मांगता तो मंजूर हो जाता। थोड़ी देर में ही नुसरत चाय ले आई। राशिद ने ताज्जुब से कहा था – “आपको कैसे पता लगा नुसरत कि मैं आ गया हूं और मुझे चाय की सख्त जरूरत महसूस हो रही है।“

“आपके आने का समय हो रहा था तो मैं दरवाजे की जाली में से देख रही थी। तभी मैंने आपको घर में आते हुए देख लिया था। थके हुए होगे और चाय की तलब होगी, ये तो अंदाजा मैं लगा ही सकती हूं” – नुसरत ने कहा था।

“ओह, तो आप मेरा इंतजार कर रही थीं?”

“आपके आने का समय हुआ तो यह तो लग ही रहा था कि आते ही होंगे।“

“मतलब आप इंतजार नहीं कर रही थीं, वैसे ही रास्ता देख रही थीं।“

नुसरत का चेहरा लाल हो गया था और वह कुछ भी नहीं बोल पाई थी।

राशिद ने उसकी हालत देखकर बात बदल दी थी – “अब्बू क्या करते रहते हैं सारा दिन?”

“कुछ खास नहीं। अखबार पढ़ लेते है, पढ़ क्या लेते हैं चाट जाते हैं। नमाज़ का वक्त होता है तो ज्यादातर घर में ही पढ़ लेते हैं। कभी-कभी मोहल्ले के अपने किसी दोस्त के घर चले जाते है, वहां उन्हें टीवी देखने को मिल जाता है। हमारे पास टीवी नहीं है ना। बहुत मन करता है टीवी देखने को। सुना है, बहुत अच्छे प्रोग्राम आते हैं।“

“मेरे पास तो टीवी वगैरह देखने का टाइम भी नहीं है। मुल्क में क्या चल रहा है, यह भी पता नहीं चलता।“

“आप क्यों नहीं खरीद लेते टीवी?”

“बताया ना अभी। टाइम नहीं है मेरे पास।“

“जाने दीजिए, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था। हम भी क्या बातें ले बैठे। अच्छा, हमेशा जो मेरे मन में आता है, वही खाना बना देती हूं। कभी आपका मन किसी चीज के लिए करे तो बता दीजिए।“

“आप जो भी बनाती हैं, बहुत अच्छा बनाती हैं। सच कहूं तो अब तक की जिंदगी में कभी घर का बना खाना खाया ही नहीं। यहां आने के बाद ही जाना कि घर का बना खाना कितना अच्छा होता है।“

“आप तो बस तारीफ किए जा रहे हैं। मैं दिल से कह रही हूं, कभी किसी चीज का मन करे तो बता दिया करें।“

“ठीक है।“

नुसरत चली गई तो उसे कुछ खाली-खाली सा लगा। ये क्या हो रहा था उसे। वह यहां एक सीक्रेट मिशन पर आया है। उसे सिर्फ अपने मिशन को कामयाब बनाने पर ही ध्यान देना होगा।

राशिद को अपनी तबीयत कुछ नासाज नजर आ रही थी। उसे लगा, वह सारे दिन इधर-उधर घूम कर थक गया है, शायद इसलिए ही उसे थकान और कमजोरी महसूस हो रही है। नमाजे-ईशा के लिए वह मस्जिद नहीं गया और उसने अपने कमरे में ही नमाज़ अदा की।

खाना खाने का भी उसका मन नहीं कर रहा था, पर उसे पता था अब्बू और नुसरत उसका इंतजार कर रहे होंगे, इसलिए वह खाना खाने के लिए चला गया। आज उसे खाना खाने में भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। जैसे-तैसे उसने अपना पेट भरा और यह कह कर वहां से आ गया कि उसे नींद आ रही है। खाना खाने के बाद अब्बू से कुछ देर बातें करने का एक नियम सा बन गया था। उन्होंने उसे रोका भी कि राशिद थोड़ी देर रुको, पर वह उनसे माफी मांग कर चला आया।

उसे कुछ अजीब-अजीब सा लग रहा था, इसलिए आते ही वह सो गया। उसकी नींद भी बार-बार खुलती रही। उसे सिर और बदन में दर्द भी महसूस हो रहा था। बड़ी मुश्किल से सुबह होते-होते उसे नींद आई और वह बहुत देर तक सोता रहा।

सुबह का चाय-नाश्ता लेकर जब नुसरत आई तो उसने बड़ी मुश्किल से उठकर दरवाजा खोला और वापस खाट पर पड़ गया। उसकी यह हालत देखकर नुसरत ने उससे पूछा – “क्या बात है, आपकी तबीयत तो ठीक है ना? आप और अभी तक लेटे हुए हैं, ऐसा होता तो नहीं है।“

“हां, पता नहीं तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है। पूरा बदन दर्द कर रहा है और बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस हो रही है।“

“ठहरिए मैं अब्बू को बुलाती हूं” - यह कह कर नुसरत उल्टे पैरों वापस चली गई।

थोड़ी ही देर में अब्बू और नुसरत उसके कमरे में आ गए। अब्बू ने कमरे में घुसते ही पूछा था – “क्या बात है राशिद? नुसरत बता रही थी कि आपकी तबीयत नासाज है।“

“जी हां, कुछ ठीक नहीं लग रहा है। रात में नींद भी ढंग से नहीं आई। सिर में और बदन में भी दर्द है।“

अब्बू ने उसके सिर पर हाथ रखा तो एकदम चौंक गए – “अरे आपका तो बदन तप रहा है, तेज बुखार है।“ फिर उन्होंने नुसरत से कहा – “डा. सतीश मेहता अभी घर पर ही होंगे। उन्हें जल्दी से बुला लाओ।“ घबराई सी नुसरत तुरंत ही डाक्टर को बुलाने के लिए चली गई थी।

उसके जाते ही राशिद ने कहा था – “कोई और डाक्टर नहीं है?”

“क्यों, डा. मेहता बहुत ही काबिल डाक्टर हैं। यहीं पास में रहते हैं और गली में ही उनका क्लीनिक है।“

“नहीं, मेरा मतलब था कोई अल्लाह पर ईमान रखने वाला डाक्टर नहीं है क्या?”

“यह क्या कह रहे हो आप राशिद? दूर-दूर से इलाज कराने आते हैं लोग उनके पास। हमारी गली के तो सारे हिंदू-मुसलमान उन्हीं के पास जाते हैं, बड़ी शफा है उनके हाथों में।“

“काफिर डाक्टर से इलाज......।“

“देखो राशिद, वे हमारे फैमिली डाक्टर हैं। उन्होंने बड़ी-बड़ी बीमारी में हमारा इलाज किया है। न तो हमें कभी महसूस हुआ कि वे हिंदू हैं और न ही उन्होंने हमें कभी यह महसूस होने दिया कि हम उनके मज़हब के नहीं हैं। जब वो इलाज करते हैं तो सिर्फ डाक्टर होते हैं, कोई मज़हब उनके और मरीज के बीच नहीं होता। बचपन में एकबार नुसरत बहुत बीमार पड़ गई थी। डाक्टर मेहता ने ही उसे ठीक किया था। उसकी हालत देखकर वे पूरी रात उसके सिरहाने बैठे रहे थे और जब उसकी हालत संभल गई तब सुबह चार बजे अपने घर गए थे।“

“मेरा मतलब .......।“

राशिद कुछ कहने जा ही रहा था कि नुसरत और डाक्टर वहां आ पहुंचे। डाक्टर को देखते ही अब्बू खड़े हो गए और बोले – “आइये डाक्टर साहब, ये राशिद हैं, हमारे किराएदार। कल रात से ही इनकी तबीयत नासाज़ है।“

इस बीच नुसरत ने कुर्सी खींच कर खाट के पास सरका दी थी। डाक्टर ने कुर्सी पर बैठकर अपने हाथ का बैग वहीं पास में ही रख लिया और राशिद की नब्ज पकड़ते हुए पूछा – “बताओ बेटा, तुम्हें कैसा लग रहा है?”

“कमजोरी बहुत लग रही है और सिर और बदन में काफी दर्द भी हो रहा है” – राशिद ने कहा।

“हूं, बुखार है तुम्हें।“ फिर स्टेथस्कोप से उसका मुआयना करने के बाद उन्होंने कहा – “वायरल बुखार है, मैं दवा दे देता हूं अभी से शुरू कर दो। पर, पूरी तरह ठीक होने में चार-पांच दिन लग जाएंगे।“

“ चार-पांच दिन? “

– “ हां, पर चिंता मत करो बेटा, कोई घबराने वाली बात नहीं है। हां, हल्का खाना है और आराम करना है।“

“जी मैं पांचों वक्त की नमाज़ का पाबंद हूं।“

“देखो बेटा जहां तक मुझे पता है, बीमारी की हालत में नमाज़ कजा हो सकती है। ऊपर वाला भी जानता है कि ऐसे समय पहले अपने शरीर का ख्याल रखना ज्यादा जरूरी है। शरीर ठीक होगा तभी हम तन और मन से उसकी इबादत कर सकते हैं। हां, पांचों वक्त क्या हर समय मन में उसकी इबादत की जा सकती है, इसके लिए तुम्हें कौन रोकता है। जब ठीक हो जाओगे तब फिर से सब शुरू कर देना।“

फिर उन्होंने अब्बू से कहा था – “बुखार बहुत तेज है, कुछ समय इनके सिर पर गीली पट्टी रखनी होगी, तब तक दवा का असर होने लगेगा और बुखार कम हो जाएगा।“

अब्बू ने ‘हां’ में सिर हिलाया था। डाक्टर साहब ने कुछ दवाएं उन्हें पकड़ाते हुए कहा था – “इनमें से एक-एक गोली नीम गर्म पानी के साथ तीनों वक्त इन्हें देते रहें। बुखार उतरने में थोड़ा समय लगेगा, इसलिए घबराएं नहीं। ठीक है?“

डाक्टर साहब के जाने के बाद नुसरत गर्म पानी ले आई थी और राशिद को दवा देने के बाद ठंडा पानी और छोटा तौलिया ले आई थी। थोड़ी देर तक अब्बू उसके माथे पर गीली पट्टियां रखते रहे थे। फिर यह काम नुसरत को सौंप कर चले गए थे। थोड़ी झिझक के बाद नुसरत कुर्सी पर बैठ गई थी और बहुत देर तक उसके माथे पर गीली पट्टियां रखती रही थी। राशिद को काफी चैन मिल रहा था, उसने कहा था – “याद नहीं कभी मुझे इतना तेज बुखार चढ़ा हो। खांसी जुकाम जरूर होते रहे। सोचता हूं कि अगर पहले कभी मुझे इतना तेज बुखार चढ़ा होता तो मुझ यतीम के सिर पर गीली पट्टियां कौन रखता।“

नुसरत ने उसे चुप रहने का इशारा करते हुए कहा था – “डाक्टर साहब कह गए हैं कि आपको आराम करना है, बोलने में भी मेहनत लगती है, समझे।“

राशिद चुप हो गया था, उसका इतना ख्याल तो कभी किसी ने नहीं रखा था। गीली पट्टियां रखने से उसका बुखार कम हुआ था और उसके सिर के दर्द में भी आराम मिला था, इसलिए उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।

नुसरत ने जब यह देखा कि वह सो गया है तो वह वहां से उठकर चली गई। उसे घर के बहुत से काम निपटाने थे।

राशिद काफी देर तक सोता रहा था। जब उसकी नींद खुली तो उसे बेहतर लग रहा था। वह उठकर बाथरूम गया। वहां से लौटा तो उसे कमजोरी लग रही थी, वह फिर से खाट पर जाकर लेट गया और अब्बू और नुसरत के बारे में सोचने लगा जो उसके कुछ भी नहीं लगते थे, फिर भी अपनों की तरह उसका ख्याल रख रहे थे। उसने अल्लाहताला का शुक्रिया अदा किया और उन दोनों की खुशहाली के लिए दुआ मांगी। वह उठकर बैठना चाहता था, पर कमजोरी की वजह से वैसे ही पड़ा रहा।

दरवाजा खुलने की आवाज सुनकर उसने सिर उठाकर देखा, अब्बू थे। उन्होंने उसे जगा हुआ देखकर पूछा था – “अब कैसा लग रहा है?”

“जी, बेहतर महसूस कर रहा हूं।“

“बहुत काबिल डाक्टर हैं मेहता साहब। उनके इलाज से जल्दी ही ठीक हो जाओगे।“

“वो तो कह गए हैं कि ठीक होने में कई दिन लग जाएंगे।“

“यह भी तो कहा है उन्होंने कि दवा, परहेज और आराम से बिलकुल ठीक हो जाओगे, घबराने की कोई जरूरत नहीं है। इंशाअल्लाह देखना बहुत जल्दी तन्दुरुस्त हो जाओगे।“

“हां, अल्लाह की मर्जी है.....।“

“अल्लाह की मर्जी से तो पूरी कायनात चल रही है। अच्छा डाक्टर, हकीम भी उसी की इनायत से मिलता है।“

“तभी तो मैंने कहा था, अल्लाह में ईमान रखने वाला डाक्टर होता........।“

“आप नौजवान और इस जमाने के होकर कैसी बात कर रहे हो राशिद? इस कायनात में सब उसी के तो बंदे हैं। डाक्टर, हकीम और मरीज के बीच मज़हब कहां से आता है? अब मैं आपको बताऊं, हमारी गली में ही एक बहुत काबिल जर्राह हैं, अकबर खान। उनके हाथ में इतनी शफा है कि दूर-दूर से हिंदू और मुख्तलिफ़ मजहब के लोग उनके पास आते हैं। वे भी उसी मोहब्बत से उनका इलाज करते हैं और उनके पास आया कोई भी मरीज कभी निराश होकर नहीं जाता। आपको क्या लगता है, उन्हें सिर्फ मुसलमानों का ही इलाज करना चाहिए?”

राशिद ने कोई जवाब नहीं दिया तो उन्होंने कहा – “आपके अहमदाबाद में क्या मज़हब देखकर डाक्टर, हकीम के पास जाया जाता है? अस्पतालों में क्या सभी मज़हबों के डाक्टर नहीं हैं और क्या वे इलाज करते समय पहले मज़हब दरियाफ्त करते हैं?”

राशिद अभी भी चुप था, वह उन्हें कैसे बताता कि उसके मुल्क पाकिस्तान में यह हकीकत थी। लोग किसी बड़ी मजबूरी में ही किसी दूसरे मज़हब को मानने वाले डाक्टर के पास जाते थे। मुसलमान तो किसी हिंदू या ईसाई डाक्टर से इलाज कराने को कुफ्र ही समझते थे।

शायद उसके मन की बात अब्बू तक जा पहुंची थी। उन्होंने कहा – “जो काम जिसका होता है, वही उसे अच्छी तरह कर सकता है, इसमें मज़हब कहीं आड़े नहीं आता है। अगर मज़हब ही देखते रहते तो कोई मुसलमान कभी हमारे मुल्क का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, गृह मंत्री, सेनाअध्यक्ष बन ही नहीं सकता था। अच्छी एक्टिंग करने वाले हिंदू और अन्य मज़हब के लोग सुपरस्टार हैं तो मुसलमान भी सुपरस्टार हैं और सभी मज़हब के लोग उन्हें प्यार करते हैं और उनके दीवाने हैं। हमारी क्रिकेट टीम ही नहीं, अन्य खेलों की टीमों में सभी मज़हब के खिलाड़ी खेलते हैं और कप्तान भी रहे हैं। जहां वतन की बात आती है तो कुर्बानी के लिए कोई मज़हब नहीं देखता..।“

“अब्बू मैं तो सिर्फ डाक्टर की बात......।“

“हां, मैं वहीं आ रहा हूं। मैं एक दिन अल्लामा साहब के घर गया हुआ था। वहां टीवी चल रहा था और ऐसी ही किसी बात को लेकर बहस हो रही थी। बहस में शामिल एक मुसलमान मौलवी ने जो कुछ कहा, वह मुझे आज तक याद है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के तालिबानों को अच्छे डाक्टरों की जरूरत थी, उन्होंने पाकिस्तान से कुछ डाक्टर भेजने की गुजारिश की। पाकिस्तान ने कुछ बेहतरीन डाक्टर वहां भेजे जिन्हें तालिबानों ने यह कह कर लौटा दिया कि वे सच्चे मुसलमान नहीं थे। उनमें से कई डाक्टरों ने दाढ़ी नहीं रखी हुई थी, कई कुर्ता-पाजामा नहीं पहने थे, उनके सिर पर जालीदार टोपी नहीं थी। उन्हें कुरान और हदीस के बारे में अच्छी मालूमात नहीं थी और वे पांचों वक्त की नमाज़ भी नहीं पढ़ते थे। बात पाकिस्तान के एक बहुत बड़े मौलाना तक पहुंची जिनकी इज्जत तालिबान भी करते थे। उन्होंने जो कुछ तालिबानों से कहा वह बहुत अहम है और काबिले-गौर है। उन्होंने कहा – ‘पाकिस्तान ने आपको अपने फन में माहिर डाक्टर भेजे हैं, मस्जिद में नमाज पढ़ाने के लिए इमाम नहीं।‘ उनकी बात में इतना वज़न था कि तालिबानों ने भी उन डाक्टरों को कुबूल कर लिया। यह बात हम सभी को समझनी चाहिए कि मजहब हमारा ईमान है, हमारी अकीदत है, अल्लाहताला से सीधे जुड़ने का जरिया है, इसे तमाशा बनाने की कोई जरूरत नहीं है। कहा भी गया है – ‘जहां से अच्छा मिले उसे अपना लो।‘ डाक्टर सतीश मेहता अच्छे डाक्टर हैं, मरीज किसी मजहब का हो, वे उसी काबिलियत से उसका इलाज करते हैं।“

“समझ गया अब्बू, उसने धीरे से कहा था।“

“नुसरत आपके लिए खिचड़ी बना रही है, आज आपको वही खानी है और सारा दिन आराम करना है। दवा का टाइम होगा तो मैं या नुसरत आकर दे जाएंगे। चलो, अब मैं चलता हूं, आप आराम करें।“

अब्बू उठ खड़े हुए थे और उसका सिर सहला कर चले गए थे। राशिद सोने की कोशिश करने लगा था। अब्बू की कही बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। उसे लग रहा था कि वे सही कह रहे थे, पर फिर भी वह उन्हें पूरी तरह से मानने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रहा था। उसके लिए यह बात अचरज भरी थी कि भारत में हिंदू डाक्टरों पर मुसलमान और मुसलमान जर्राह/डाक्टरों पर हिंदू और अन्य मजहब के लोग बिना कोई शंका मन में लाए उनपर पूरा यकीन रखते थे। सोचते, सोचते वह नींद के आगोश में डूब गया था।