त्रिखंडिता
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छूकर मेरे मन को
प्रेम का पदार्पण जीवन में कब हो जाएगा कोई नहीं जानता और यह भी कोई नहीं जानता कि कौन कब और किसके मन को छू लेगा। कभी-कभी बेहद साधारण दिखने वाले की कोई बात मन को भा जाती है और कभी सर्वगुण सम्पन्न भी मन से दूर रह जाता है।
मीना की किस बात ने अमन का मन मोहा, पता नहीं ! जलने से बच गई उसकी सुंदर नशीली आँखों और कंचन छड़ी सी सुंदर देह ने कि जले भयानक चेहरे और अपमानजनक निरर्थक जिन्दगी ने पता नहीं। पर बहुत जल्द दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आ गए। जिन्दगी में प्यार कितना मायने रखती है यह मीना को देखकर जाना जा सकता था। अमन इन दिनों बहुत कम काम पर जाता। अक्सर अपने कमरे में पड़ा रहता। मीना के पति दमन की आँखों से पत्नी का बदलाव और किराएदार अमन की उसके प्रति आत्मीयता न छिप सकी। उसका पुरूष अहंकार तिलमिला उठा। वह अमन से कमरा खाली करने को कहने लगा पर अमन उससे ज्यादा सक्षम व सबल था उस पर घर की मालकिन उस पर मेहरबान थी। ज्यादा जोर देने पर अमन ने उसे एक दिन डपट दिया-यह घर और सारी सम्पत्ति तुम्हारी पत्नी के नाम है। उसके पिता की दी हुई इसलिए ज्यादा चू-चपड़ मत करो। अपनी इज्जत बचाना चाहते हो तो पति नाम और पद धारे रहो....... तुम्हारी असलियत जानता हूँ मैं। लोग अगर तुम्हारा सच जानेंगे तो कहीं मुँह नहीं दिखा पाओगे। दमन को मानो लकवा मार गया। मीना सीधी-सादी स्त्री थी इसलिए उसे अब तक दबाता आया था पर अपने से सबल पुरूष से वह कैसे टकराए।
उसने मन ही मन मीना को एक भद्दी सी गाली दी-कुलटा। जले मुँह पर भी आशिक बना लिया.........।
दमन को याद आया कि विवाह के बाद मीना की सुंदरता से वह कितना परेशान हो गया था। जिधर भी दोनों साथ जाते लोग मीना को देखते रह जाते। गाँव-मोहल्ले हर जगह मीना के रूप के चर्चे। वह चिढ़ने लगा। अपनी कमी के अहसास ने भी उसमें कुंठा भर दी थी। वह पूर्ण पुरूष नहीं था और डॉक्टरों के हिसाब से वह कभी पिता नहीं बन सकता था। अपने घर के आस-पास मॅडराते आशिकों को देखकर उसमें यह भय व्यापता कि कहीं मीना के कदम बहक न जाए। उधर मीना मुग्धा नायिका-सी थी। भोली.......निश्छल.....चंचला। पिता की इकलौती संतान थी और पिता का कपड़े का व्यवसाय खूब चल रहा था इसलिए निश्चिन्त और खुश जिन्दगी जी रही थी। दमन से भी उसे कोई शिकायत न थी। देह विज्ञान की जानकारी ना होने के कारण वह उसकी कमियों के बारे में नहीं जानती थी पर दमन की कुंठा बढ़ती ही गई। जब मीना के पिता नाती....नाती की रट लगाते परलोक सिधारे तब वह उनकी गद्दी का मालिक बन बैठा। और धीरे-धीरे मीना पर हावी हो गया। घर-बाहर हर जगह उसकी मर्जी चलती मीना को तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा। वह दिन-प्रतिदिन निखर रही थी। निश्चिन्त और खुश रहना शायद इसकी वजह हो पर दमन को उसके चरित्र पर विश्वास नहीं था। औचक घर आ जाता। जासूस लगाए.....कई और जुगत किए पर मीना की चरित्रहीनता का कोई सूराक नहीं मिला। वह बेचैन रहने लगा। दुकान पर उसका मन नहीं लगता। हमेशा उसे यही लगता कि मीना किसी दूसरे पुरूष से इश्क लड़ा रही होगी। अपनी इस बेचैनी को दूर करने का उसने एक भयानक इलाज सोच लिया। एक दिन वह मीना को घूमाने के बहाने राजस्थान ले गया। पड़ोसियों ने सौंदर्य से दमकती मीना को दमन के साथ जाते देखा पर उसके लौटने पर चौंक गए। दमन के साथ एक मुँहजली स्त्री थी। नासिका सिकुड़ी हुई उलटे हुए अधर जले हुए सिकुड़े काले गाल-भयावह...............। लोगों की भीड़ लग गई। प्रश्नों की बौछार होने लगी- यह कैसे हो गया उफ कितना सुंदर चेहरा था किसने किया यह। और तब दमन का उत्तर सुन टूटी हुई मीना भहराकर गिर पड़़ी-इन्हीं के एक आशिक ने तेजाब फेंक दिया........।मीना बोलने की स्थिति में नहीं थी वरना बताती कि यह सब उसके ही पति ने किया है। पति ने अपने शक के कारण उसे बदसूरत बना दिया और अब उसके चरित्र की हत्या कर रहा है। पर उसके गले और सिर के चारों तरफ पट्टियाँ बँधी थी और मानसिक रूप से भी वह बोलने की स्थिति में नहीं थी।कहते हैं कि भीड़ का अपना कोई विचार नहीं होता। वह जो सुनती है उसी पर विश्वास कर लेती है। किसी स़्त्री का पति यदि उसे चरित्रहीन कह रहा है तो भीड़ को इस बात को सही करार देने में समय नहीं लगता। भीड़ ने पति की बात पर मोहर लगा दी। अब मीना घोषित गलत स्त्री थी। रूप के साथ चरित्र खोकर मीना बीमार पड़ गयी। और महीनों बिस्तर से ना उठ पाई। ईश्वर को उसका यह दुःख शायद नहीं देखा गया और अमन किराएदार के रूप में उसके घर रहने लगा। दमन अब निश्चिन्त था कि जले मुँह वाली मीना को अब कोई नहीं पूछेगा पर होनी अपना खेल रच रही थी।
अमन जब पहली बार मीना को देखा तो सहम गया था। मीना ने भी उसे देखते ही घूँघट निकाल लिया पर एक ही घर में रहने के कारण वे अक्सर एक-दूसरे से टकरा ही जाते। धीरे-धीरे दोनो को एक दूसरे की आदत हो गई। अमन को अब मीना का चेहरा भयावह नहीं लगता। वह उसकी सुंदर आँखों को देखता और उसी में खो जाता। सोचता-कितना अन्याय हुआ है इस स्त्री के साथ। किसने किया होगा यह। घर से बाहर तो लोग इस स्त्री को गलत कहते हैं पर उसका मन नहीं मानता था। एक दिन उसने एकांत पाकर मीना से पूछ ही लिया। उसके अपनत्व से भरे प्रश्नों को सुनकर मीना के नेत्र से गंगोत्री बन गए और वहाँ से उछल-उछलकर गंगा की निर्मल पतली धारा निकलने लगी। अमन से नहीं रहा गया उसने आगे बढ़कर उसे हृदय से लगा लिया। उसकी छाती आँसुओं से भींज गई। मीना ने रोते हुए ही अपनी पूरी कहानी बयान कर दी। इस जले चेहरे के पीछे दमन का हाथ है यह जानकर अमन भौचक्का रह गया। उसे दमन से नफरत हो गई। कोई पति इतना कैसे गिर सकता है जिसके घर में रह रहा है जिसकी गद्दी पर बैठा है उसी के साथ ऐसा व्यवहार ! मीना का इतना सीधा होना भी उसे अच्छा न लगा। स्त्री है तो क्या चुपचाप अन्याय-अत्याचार सहती रहेगी वह ऐसा नहीं होने देगा। धीरे-धीरे मीना और अमन में घनिष्ठता बढ़ती गई और एक दिन उनके बीच सारे बंधन टूट गए मीना को उस दिन पता चला कि दमन तो पूर्ण पुरूष है ही नहीं। अमन भी उसे पाकर खुश था। अब वह ज्यादा समय मीना के कमरे में ही बिताता। वक्त गुजरा मीना गर्भवती हो गई। पति दमन जानता था कि यह उसका बच्चा नहीं पर लोग उसे ही बधाई दे रहे थे। वह मुस्कुराकर उनको धन्यवाद कहता पर अकेले में रोता कि ईश्वर ने उसके साथ यह कैसा अन्याय किया है कभी-कभी उसका मन घर छोड़कर भाग जाने को होता पर वह भागकर जाता भी कहाँ वह अनाथ था। चाचा-चाची ने उसका पालन किया था और काम भर का पढ़ा-लिखा दिया था। वह मीना के शहर काम की तलाश में आया था और उसके पिता की दुकान पर मुनीबी करने लगा था। सेठ जी को अपनी इकलौती बेटी के लिए एक घरजवाई की तलाश थी। दमन उन्हें ठीक लगा और उन्होंने मीना का ब्याह उससे करवा दिया पर दुकान घर व सारी सम्पत्ति की स्वामिनी मीना को ही बनाया। दमन इस बात पर चिढ़ता भी था कि वह घर-दुकान सबका सिर्फ मुनीब है मालिक नहीं। हाँलाकि सब कुछ उसी के हाथ में था। मीना तो बस कठपुतली थी। पर अब स्थिति बदल रही थी। अमन उस पर हावी हो रहा था और वह उसे घर से निकाल भी नहीं पा रहा था, क्योंकि मीना उसके साथ थी। सही अर्थों में वे ही दोनों पति-पत्नी थे। वह सब कुछ देख-सुनकर भी चुप रहने को विवश था। आखिरकार उसने हालात से समझौता कर लिया। सुबह का निकला देर रात को लौटता और अपने कमरे में सो जाता।
एक-एक कर मीना को तीन बच्चे हुए। बड़ी लड़की उससे छोटे दो लड़के। बच्चे बहुत सुंदर थे बिल्कुल अपनी माँ की तरह। साथ रहने से दमन को भी बच्चों से लगाव हो गया था। वे उसे ही पिता कहते....समझते ! अमन तो बस अंकल कहा जाता था जो उनकी मँहगी फरमाईशें पूरी करता।
अमन पहले से ही विवाहित था। यह बात मीना जानती थी कि वे अमन के कस्बे वाले घर में रहती हैं और उनके भी दो बच्चे हैं। अमन पत्नी और बच्चों के प्रति सारे दायित्व निभाता था, पर मीना से संबंध की बात उसने छिपा रखी थी। एक दिन दमन उसकी पत्नी के पास पहुँच गया और सारी बात बता दी। पत्नी को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि उसका पति ऐसा कर सकता है, पर जब दमन ने शपथ लेकर कहा कि- कोई पति अपनी पत्नी के बारे में गलत कैसे बोल सकता है तब अमन की पत्नी ने कहा-मैं स्वयं वहाँ जाकर पता करूँगी...... आप जाइए।
दमन अपना दाँव खेलकर खुश था वह चाहता था कि किसी भी तरह अमन उसका घर छोड़ दे फिर तो वह मीना से गिन-गिनकर बदला लेगा।
अमन की पत्नी ने जब मीना का जला चेहरा देखा तो हैरान रह गई। इतना भयावह चेहरा!उसका पति ऐसे चेहरे पर कभी आसक्त नहीं हो सकता। वह नहीं जानती थी कि रिश्ते का आधार सिर्फ चेहरा नहीं होता। आत्मीयता के तंतु धीरे-धीरे आपस में इस तरह उलझ जाते है कि उन्हें सुलझाया नहीं जा सकता। अमन पत्नी को देखकर चौंक पड़ा कि यह अचानक कैसे आ गई। दमन को मुस्कुराते देख उसे स्थिति समझते देर न लगी। पत्नी ने जब उससे मीना से रिश्ते के बारे में पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। मीना को दुःख हुआ कि वह उसके रिश्ते को गोपनीय रखना चाहता है जब कि वह पूरे तन-मन-भावना से उसे समर्पित है। पर वह अमन की मजबूरी समझ रही थी। अमन उसके लिए अपना घर-परिवार समाज-संसार तो नहीं छोड़ सकता था, बच्चे भी उसके अपने थे पर उसकी दुनिया इनसे बाहर भी थी। यह ही कम ना था कि वह उसे नहीं छोड़ रहा था। अमन की पत्नी ने अमन को साथ चलने को कहा तो वह फौरन तैयार हो गया और बिना मीना से पूछे चला गया। मीना को धक्का लगा हाँलाकि उसका दिल कहता था कि अमन जल्द ही वापस आएगा।
इधर दमन ने पास-पड़ोस में मीना और अमन के रिश्ते के बारे में बता दिया था। लोग अब मीना को एक फूल दो माली कहते। एक तो वह यूँ ही अपने जले चेहरे के कारण बाहर कम निकलती थी। अब उसका निकलना असंभव सा हो गया। लोग उसके पति को बेचारा कहते। पीठ पीछे और भी बहुत कुछ। अमन को कुछ कहने का साहस उसके सामने नहीं था। पीठ पीछे भले कुछ कह ले। ले-देकर सारा इल्जाम मीना के सिर पर था। किसी को भी उससे सहानुभूति ना थी। लोगों के अनुसार वह दो पुरूषों के मजे एक साथ ले रही थी। अब इस हकीकत को वे क्या समझते कि किसी स्त्री के लिए एक समय दो पुरूषों के साथ होना कितना तकलीफदेह होता है। किसी विवशता के कारण स्त्री एक समय में दो पुरूषों के बीच भले ही देह स्तर पर बँट जाए। मन के स्तर पर नहीं बँट सकती। एक समय में एक ही पुरूष उसके मनो मस्तिष्क पर हॉवी हो सकता है।
मीना क्या करे ! सामाजिक स्तर पर वह दमन से जुड़ी थी। उसका मान-सम्मान पति के साथ था। बच्चों को पिता का नाम भी उसी से मिल रहा था। पुत्री युवा हो रही थी उसके विवाह की भी उसे चिन्ता थी। पुत्रों की शिक्षा-दीक्षा व भविष्य भी अभी बनना था इसलिए वह चाहकर भी पति से अलग नहीं हो सकती थी। अमन से उसे जो मिला था, वही उसके लिए बहुत था। उससे और ज्यादा की अपेक्षा वह नहीं कर सकती थी आखिर अमन की अपनी भी तो जिम्मेदारियाँ थीं, वह कहाँ तक सिर्फ उसकी जिम्मेदारी उठाता।
वह अक्सर सोचती कि यदि अमन नहीं मिला होता तो वह जिंदगी के कितने सुंदर रूपों से वंचित रह जाती। स्त्री होने का सुख मातृत्व की सार्थकता कहाँ मिल पाती उसे!
अमन भी उसे चाहता था। सुंदर पत्नी बच्चे अच्छी नौकरी धन-सम्पदा सब कुछ होते हुए भी उसके मन का कोई कोना रिक्त था। देह में भी कोई अतृप्ति थी जिसे मीना ने पूर कर दिया था। शुरूआती दिनों में वह अपने चेहरे को ढ़ँके रहती थी पर उसके कहने पर घूँघट हटा दिया था। कभी भी उसकी बदसूरती उसे नहीं खली। वह उस पर मुग्ध था क्योंकि जब वह उसकी बाहों में होती, उसकी देह में एक आग भड़क उठती। अजीब थी वह आग जो जलाती तो थी पर उस जलन का अंत गुनगुने जल की फुहारों से होता। अनोखी तृप्ति। मीना की देह मानो गुनगुने जल की नदी थी जिसमें उतर कर अमन की सारी थकान मिट जाती। वह सोचता कि उसकी पत्नी तो इतनी सुंदर है फिर उसकी देह ऐसी नदी क्यों नहीं बन पाती ! क्या वह उससे मन से नहीं जुड़ी है उसने पढ़ा था कि स्त्री की देह तब गुनगुने जल वाली नदी बनती है जब वह किसी के प्यार में हो। मीना के प्रति सहानुभूति ने उसे पहले उसकी तरफ खींचा था फिर ज्यों-त्यों वह उसे जानता गया और .........और जुड़ता गया। शायद यही प्यार होता है। अपनी मर्जी से किसी को किसी से कहीं भी जोड़ देता है।
समय सरक रहा था। अमन को गए एक माह बीत गए थे.... उसका कोई समाचार नहीं मिला था। इधर लड़की की चंचलता से वह परेशान थी। वह उसी की कार्बन कॉपी थी। जितनी सुंदर उतनी ही चंचला। उसे डर लगता-लड़की कहीं बहक ना जाए। कहीं उसके भाग्य की काली छाया उस पर भी ना पड़ जाए। बदनाम माँ की बेटी भी बदनाम होकर ना रह जाए। यह सब कुछ अमन ही सँभाल सकता है। आखिर यह उसकी भी बेटी है। दमन तो लड़की को बिगाड़ने में लगा था। लगातार के तनावों ने मीना के दिमाग में गाँठ डाल दी। उसे ब्रेन ट्यूमर हो गया था। डॅाक्टर ने ट्यूमर का आपरेशन कराने की सलाह दी खर्चा बहुत आ रहा था। दमन आपरेशन कराने के पक्ष में नहीं था । वह कहता-तुम्हारे पाप का फल बच्चे क्यों भोगे ! सब कुछ बेचकर इलाज कराने से बेहतर तुम्हारा मर जाना है। मीना निराश होने लगी थी कि अचानक अमन आ गया। वह मीना के मरने नहीं दे सकता था। उसने आपरेशन की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। इसके लिए उसने अपनी पुश्तैनी जायदाद का एक हिस्सा बेच दिया। पत्नी चीखी-चिल्लाई रोई-गाई पर उसने एक न सुनी। पत्नी ने बच्चों के भविष्य का वास्ता दिया तो उसने कहा-मीना भी मेरी पत्नी है। भले ही हमने सात फेरे नहीं लिए। मैं उसे जिन्दा देखना चाहता हूँ भले ही मुझे खुद को बेचना पड़े.........।पत्नी निरूत्तर हो रह गई।
आपरेशन के लिए मीना के सिर के घने काले बाल मूँड दिए गए थे जिससे वह और भी भयावह दिख रही थी। उसकी सिकुड़ी नाक उलटे होंठों से झाँकते दाँत देखकर नर्सें भी एक बार सहम जाती पर उसके बेड के पास कुर्सी पर बैठा अमन उसे एकटक देख रहा था। वह उसे एक परी-सी सुंदर दिख रही थी।