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रिक्तता

रिक्तता

लिफ्ट से निकल कर आर्यन कार पार्किंग की तरफ मुड़ा ही था कि गुलाबी रंग की साड़ी में लिपटी नीलिमा को देखकर ठिठक गया। ‘‘नीलिमा और यहां...?’’ उसने मन में कहा और नीलिमा के सामने जाकर खड़ा हो गया।

नीलिमा ने उसे नहीं पहचाना। वह अजनबियों की तरह उसे देखने लगी और इससे पहले कि नीलिमा कुछ बोलती आर्यन एकदम बोला, ‘‘नीलिमा, लगता है तुमने मुझे पहचाना नहीं..? ...मैं, आर्यन हूं।’’

‘‘आर्यन...?’’ नीलिमा ने अपने दिमाग पर जोर डाला।

‘‘हां, आर्यन गुप्ता।’’

आर्यन गुप्ता का नाम याद आते ही नीलिमा की आंखें आश्चर्य से फैल गयीं, वह एकदम बोली, ‘‘व्हाट ए सरप्राइज...आर्यन तुम...? ओह माई गाॅड, कितना चेंज आ गया है तुम्हारे अन्दर, मैं तो तुम्हें पहचान ही नहीं पायी।’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो नीलिमा, वक्त के साथ सबकुछ बदल जाता है। लेकिन तुम बिल्कुल भी नहीं बदलीं, आज भी बिल्कुल वैसी-की-वैसी ही दिखाई देती हो...खैर! छोड़ो इन बातों को और यह बताओ तुम यहां मुम्बई में कैसे..?’’

‘‘मैं यहां कल होने वाले एक फैशन शो के लिए एज ए फैशन डिजाइनर आयी हूं।’’

‘‘अच्छा, बधाई हो....और ठहरी कहां हो...?’’

आर्यन की बात पर नीलिमा हंसते हुए बोली, ‘‘इतने बड़े होटल के प्रांगण में खड़ी हूं, फिर भी मुझसे पूछ रहे हो, मैं ठहरी कहां हूं।’’

‘‘ओह तो, तुम इसी होटल में ठहरी हो...?’’

‘‘हूं...।...और तुम, तुम यहां कैसे...?

नीलिमा के सवाल को आर्यन नजरअंदाज करते हुए बोला, ‘‘वो सब बाद में बताऊंगा, पहले यह बताओ ,‘‘तुम्हारा आज का शैड्यूल क्या है। मेरा मतलब है, तुम कहीं जाने के लिए खड़ी हो ?’’

‘‘नहीं, मैं तो बस ऐसे ही मूड फ्रैश करने के लिए यहां आकर खड़ी हो गयी थी।’’

‘‘अगर मूड ही फ्रैश करना है, तो चलो मेरे साथ।’’

‘‘तुम्हारे साथ...? नीलिमा में एकदम चैंकते हुए कहा।

‘‘हां, मेरे साथ।’’

’’लेकिन कहां...?’’ नीलिमा का चेहरा प्रश्नवाचक मुद्रा में घूम गया।

‘‘नीलिमा के चेहरे की घूमी हुई आकृति को देखकर आर्यन ने कहा, ‘‘घबराओ नहीं नीलिमा, मैं तुम्हें अपने घर ले जा रहा हूं, कहीं और नहीं।’’

‘‘घर...?’’

‘‘हां घर, और घर में भी मैं अकेला नहीं रहता हूं। मेरी बीबी और दो बच्चे हैं। वो भी इतने शरारती कि तुम उनसे मिलोगी तो तुम्हारी तबियत खुश हो जायेगी।’’

‘‘तो क्या तुम्हारी शादी भी हो गयी...?’’

‘‘क्यों, मेरी शादी नहीं होनी चाहिए थी ?’’

‘‘नहीं...नहीं, मेरा यह मतलब नहीं है। नीलिमा एकदम सकपका गई। फिर विषयान्तर करते हुए बोली, ‘‘आर्यन, चलो मिलवाओ न अपने बच्चों से।’’

‘‘हां, चलो।’’

कार में बैठते समय आर्यन का स्पर्श पाकर नीलिमा का सारा शरीर ऐसे झन्ना गया, मानो उसने करंट का तार छू लिया हो। आर्यन का ध्यान गाड़ी ड्राईव करने में था और नीलिमा उसे बार-बार कनखियों से देख रही थी। वह मन-ही-मन कह रही थी, ‘‘कितना बदल गया है आर्यन। स्मार्ट एण्ड हैण्डसम पर्सनेलिटी। चेहरे का तेज और लाली देखकर ही पता चल रहा है कि आर्यन बहुत बड़ा आदमी बन गया है। बातचीत का लहजा भी हाई सोसाइटी वाला हो गया है। लग ही नहीं रहा है कि उसकी बगल में बैठा आर्यन वही आर्यन है, जो बीस साल पहले उसके पापा के साथ, उसके घर आया था। कितना दब्बू और शर्मीला-सा। अपने आपमें सिकुड़ा-सिमटा हुआ-सा। न ढंग के कपड़े, न उन्हें पहनने का सलीका। चेहरा भी गरीबी के लेबिल में लिपटा हुआ एकदम उदास और गम्भीर। सोचते-सोचते नीलिमा बीस साल पुराने अतीत की स्मृतियों में विलीन होती चली गयी।

उसके पापा आर्यन को जब घर लेकर आये थे तो उसका हुलिया देखकर घर के सभी लोग यही समझे थे कि पापा शायद घर के काम के लिए किसी गरीब लड़के को पकड़ लाए हैं। लेकिन जब नीलिमा के पापा ने सबको बताया कि आर्यन उनके चपरासी का बेटा है और इसने इस वर्ष इण्टरमीडिएट की परीक्षा पूरे नब्बे प्रतिशत नम्बरों से पास करके पूरे जिले में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है, तो घर के सभी लोग हतप्रभ रह गये थे। नीलिमा को तो जैसे अपने पापा की बातों पर यकीन ही नहीं हुआ था। वह कभी आर्यन को, तो कभी उसके हुलिये को देख रही थी।

नीलिमा के पापा उस समय सरकारी विभाग में प्रशासनिक अधिकारी थे । उन्हें आर्यन की तरह मेधावी बच्चों से बेहद लगाव था, क्योंकि वह स्वयं भी पढ़ाई में काफी होशियार रहे थे। हाईस्कूल से लेकर प्रशासनिक सेवा तक की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी से पास की थीं। नीलिमा के पापा ने आर्यन को उससे इसी उद्देश्य से मिलवाया था, कि शायद नीलिमा आर्यन की कुशाग्रता से प्रेरित होकर, खुद भी अपनी पढ़ाई के प्रति गम्भीर हो जाएगी और अपनी पढ़ाई में मेहनत करने लगेगी, क्योंकि उनकी हार्दिक इच्छा थी कि नीलिमा भी उनकी तरह हमेशा सर्वोच्च नम्बरों से अपनी सभी परीक्षाएं पास करके उन्हीं की तरह प्रशासनिक सेवा में जाए, मगर नीलिमा तो देश की जानी-मानी फैशन डिजाइनर बनकर खूब दौलत और शोहरत हासिल करना चाहती थी।

नीलिमा ने भी उसी वर्ष इण्टरमीडिएट की परीक्षा पास की थी। इसलिए आर्यन के साथ नीलिमा ने भी आगे की पढ़ाई के लिए बरेली काॅलेज में एडमीशन लिया था। दोनों के सब्जेक्ट भी सेम थे। पहले तो नीलिमा को आर्यन में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन बाद में धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे से इस तरह से घुल-मिल गए कि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत महसूस होने लगी। नीलिमा आर्यन की बहुत-सी बातों का खयाल रखने लगी। उसे आर्यन की पसंद-नपसंद का भी खूब अनुभव हो गया था।

नीलिमा का सामीप्य पाकर आर्यन उसे दिल की गहराईयों में उतारने लगा। उसे लेकर भविष्य के लिए सपने बुनने लगा, मगर उसने कभी अपने प्यार को नीलिमा पर जाहिर नहीं होने दिया। और तब तक जाहिर भी नहीं होने देना चाहता था, जब तक नीलिमा स्वयं उसके प्यार और जज्बात को समझकर उसे अपने दिल की गहराइयों में नहीं उतार लेती। उसे पूरा यकीन था कि नीलिमा भी उसको चाहती है, मगर अपने प्यार का इजहार करने में हिचकिचाती है। लेकिन उसने भी यह सोच लिया था कि जब तक नीलिमा अपने प्यार की पहल खुद नहीं करेगी, तब तक वह भी नीलिमा के सामने अपने प्यार को जाहिर नहीं करेगा।

समय का चक्र अपनी गति से घूम रहा था। ग्रेजुएशन कम्पलीट करने के बाद नीलिमा ने दिल्ली के एक मशहूर फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट में एडमीशन ले लिया और आर्यन नौकरी की तलाश में लग गया। इस बीच नीलिमा और आर्यन रोज फोन पर एक-दूसरे से मन की बात करते रहे। इसके अलावा जब भी नीलिमा छुट्टियों में घर आती तो दोनों साथ-साथ घूमते, काॅफी हाऊस में काॅफी पीते, नीलिमा उसके साथ शाॅपिंग करती, उसके पसंद के कपड़े खरीदती और दोनों घण्टों माॅल में बैठकर बातें करते।

अब आर्यन को इंतजार था तो उस दिन का, जिस दिन नीलिमा को फैशन डिजाइनर की डिग्री मिलने वाली थी। आर्यन का इंतजार खत्म हुआ। नीलिमा फैशन डिजाइनर बन गयी जिसकी सबसे ज्यादा खुशी आर्यन को हुई। आर्यन ने मौके का फायदा उठाते हुए एक दिन नीलिमा के समक्ष अपने मन की गांठ खोलते हुए कहा, ‘‘नीलिमा, आज का दिन मेरी जिन्दगी का सबसे बड़ा दिन है। आज मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि इस दिन का मुझे बेसब्री से इंतजार था।’’

‘‘अच्छा, आज ऐसा क्या है ?’’ नीलिमा ने पूछा।

‘‘आज तुम्हारा फैशन डिजाइनर बनने का सपना पूरा हो गया है इसलिए आज तुम बहुत खुश हो। और खुशी के इस मौके पर मैं तुमसे अपने मन की बात बेझिझक कह सकता हूं।’’

‘‘मन की बात ?’’

‘‘हाँ नीलिमा मन की बात.....। नीलिमा, मुझे यह तो नहीं मालूम कि तुम मेरे बारे में क्या फील करती हो, मगर मैं तुम्हें अपने दिल की गहराईयों में उतार चुका हूं। तुम्हें मन से अपना मान चुका हूं....नीलिमा, मुझे तुमसे प्यार हो गया है। और अब मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।’’

आर्यन की बात पर नीलिमा जरा भी विचलित नहीं हुई। उसने ध्यान से उसे देखा और कहा, ‘‘आर्यन, जमीन पर रहकर आसमान के तारे तोड़ने की ख्वाहिश मत पालो, वरना मुँह के बल गिर जाओगे। आर्यन, साथ पढ़ने, साथ घूमने-फिरने या फिर हंसने-बोलने का मतलब दोस्ती तो हो सकता है लेकिन प्यार नहीं।

‘‘यह तुम क्या कह रही हो नीलिमा...?’’

‘‘मैं बिल्कुल ठीक कह रही हूं। आर्यन, तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो, मुझे इस बात से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन मैंने तुम्हारे बारे में कभी इस तरह नहीं सोचा। आर्यन, मेरे बारे में सोचने से पहले तुम्हें अपनी औकात तो देख लेनी चाहिए थी। तुम खुद सोचो आर्यन मेरा-तुम्हारा क्या तालमेल। आर्यन, पहली बात तो अभी मुझे प्यार-व्यार, शादी-वादी के चक्कर में न पड़कर अपने कॅरियर की तरफ ध्यान देना है। दूसरी बात, जब मुझे प्यार और शादी ही करनी होगी, तो मैं किसी ऐसे इंसान से करूंगी, जो मुझसे किसी भी बात में कमतर न हो। न पैसे में, न पढ़ाई में और न ही सुन्दरता में। कम-से-कम उसके साथ चलते हुए मैं खुद में गर्व तो महसूस करूंगी। तुम्हारे पास क्या है, सिर्फ काबलियत, वो भी किसी काम की नहीं। और सच यह है कि तुम्हें नौकरी तो मिलने वाली है नहीं, क्योंकि आज कल नौकरी सिर्फ काबलियत से ही नहीं मिलती है, उसके साथ सोर्स-फोर्स और पैसा भी होना चाहिए और वो सब तुम्हारे पापा के पास है नहीं।’’

नीलिमा की बातों से आर्यन अवाक रह गया। उसे ऐसा लगा जैसे नीलिमा ने उसके जज्बातों और भावनाओं का मजाक उड़ाया हो। उसके सारे सपने, जो उसने नीलिमा को लेकर देखे थे, पल भर में सब टूट गए। उसने निराश मन से कहा, ‘‘नीलिमा, मेरे प्यार को पैसों या मेरी औकात से मत आंकों, क्योंकि प्यार, प्यार होता है। प्यार को किसी की अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच और भेद-भाव से कोई लेना-देना नहीं होता। ...नीलिमा, तुम्हें, तुम्हारी हैसियत और पद-प्रतिष्ठा वाले तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन मेरी तरह दिल की गहराईयों से चाहने वाला नहीं मिलेगा।’’

‘‘आर्यन, जिन्दगी जीने के लिए भावनाओं की नहीं, रुपये-पैसे की जरूरत होती है, जिसकी तुम से कभी उम्मीद नहीं की जा सकती।’’ कहकर नीलिमा उसके पास से चली गयी।’’ आर्यन लुटे मुसाफिर की तरह उसे जाता हुआ देखता रह गया।

आर्यन को नीलिमा की किसी भी बात का जरा भी बुरा नहीं लगा, क्योंकि नीलिमा ने जो कुछ भी उससे कहा था, वो एकदम सच था, लेकिन उसे इस बात का अहसास हो गया कि नीलिमा को अपने पापा की दौलत और अपनी जिस खूबसूरती पर बहुत गुरूर है, उसके उस गुरूर को तोड़कर, उसे उसकी हैसियत वाला बनकर दिखाना है।

आर्यन ने कार को ब्रेक लगाये, और कार झटका खाकर रूक गई। कार के झटके से नीलिमा की विचार शृंखला टूट गयी। वह अतीत की स्मृतियों से निकलकर वर्तमान में आ गई।

नीलिमा को खामोश देखकर आर्यन ने कहा, ‘‘क्या हुआ नीलिमा, तुम इतनी खामोश क्यों हो, क्या कुछ सोच रहीं थीं...?’’

‘‘कुछ नहीं बस ऐसे ही।’’ कहकर नीलिमा ने अपने हाथों से चेहरे को साफ करते हुए आर्यन से कहा, ‘‘गाड़ी क्यों रोक दी...?’’

‘‘घर आ गया।’’ आर्यन ने मुस्कुराकर कहा।

कार से उतर कर नीलिमा ने उस पाॅश काॅलोनी को ध्यान से देखा और आर्यन के साथ लिफ्ट में सवार हो गयी।

आर्यन के घर में प्रवेश करते ही एक सादा, सरल और शालीन किन्तु बला की खूबसूरत महिला ने नीलिमा का स्वागत किया।

‘‘नीलिमा, शी इज माई वाइफ सुनन्दा। फिर उसने सुनन्दा से कहा, ‘‘यह नीलिमा है, मेरे साथ काॅलेज में पढ़ती थी। यहां होने वाले फैशन शो में एज ए फैशन डिजाइनर पार्टिसिपेट करने आयी है।’’

सुनन्दा ने नीलिमा का मुस्कुराकर स्वागत किया और उसे अपने ड्राइंगरूम में ले गई। उसी समय आर्यन के दोनों बच्चे भी वहां आ गए और आर्यन से बोले, ‘‘पापा, यह कौन-सी वाली आण्टी हैं, इनसे पहले तो हम कभी नहीं मिले ?’’

‘‘बेटा, यह आपकी नीलिमा आण्टी हैं, बरेली में रहती हैं और मुम्बई पहली बार आईं हैं। नीलिमा यही हैं मेरे वो दोनों शरारती बच्चे, जिनके बारे में मैंने तुम्हें बताया था।’’

‘‘समझ गयी।’’ नीलिमा ने मुस्कुराकर कहा और दोनों के गालों को प्यार से थपथपाया और वहीं सोफे पर बैठ गयी।

नीलिमा पूरे दिन सुनन्दा और उसके बच्चों के साथ रही। सुनन्दा ने उसे खूब मान-सम्मान दिया। उसकी खूब खातिरदारी की। शाम को जब नीलिमा ने वहां से विदा ली, तो सुनन्दा ने उससे कहा, ‘‘ठीक है नीलिमा जी, कल आपके कार्यक्रम में आपसे फिर मुलाकात होगी।’’

‘‘कार्यक्रम में, तो क्या आप कल हमारे कार्यक्रम में आयेंगी ?’’ नीलिमा ने चैंकते हुए कहा।

नीलिमा की बात पर सुनन्दा कुछ बोलती इससे पहले ही आर्यन बोल पड़ा, ‘‘नीलिमा, कल जिस होटल में तुम्हारा फैशन शो है, वो हमारा ही होटल है और सुनन्दा उस फैशन शो की चीफ गेस्ट है।’’

यह नीलिमा के लिए शब्दों में लिपटा आर्यन का वो थप्पड़ था, जिसके दर्द से नीलिमा का दिल-ओ-दिमाग झन्ना गए और उसकी पीड़ा का अहसास नीलिमा के चेहरे से साफ दिखायी दे रहा था। नीलिमा की चुप्पी को तोड़ते हुए आर्यन ने कहा, ‘‘नीलिमा, अब हम चलें ?’’

‘‘हाँ चलो।’’ नीलिमा ने धीरे से कहा।

आर्यन की कार निर्बाध गति से कोलतार की चिकनी काली सड़क पर होटल की तरफ दौड़ रही थी। उसके चेहरे पर बिखरी मुस्कान इस बात का सूचक थी कि नीलिमा तुम्हारे अहम की लक्कीर को छोटा करने के लिए ऊपर वाले ने तुम्हारे सामने मेरी कामयाबी की इतनी बड़ी लक्कीर खींच दी, जिसे तुम जिन्दगी के किसी भी मोड़ पर छोटा नहीं कर पाओगी। नीलिमा, धन-दौलत और खूबसूरती के जिस पैमाने से तुमने कभी मेरी औकात को नापा था, आज तुम्हारा वही पैमाना मेरी औकात के सामने बहुत छोटा हो गया है। अब तो तुम्हें इस बात अहसास हो जाना चाहिए कि इंसान रुपये-पैसे से या फिर अपनी काबलियत से बड़ा नहीं होता, इंसान बड़ा होता है तो सिर्फ अपने विचारों और कर्मों से।

नीलिमा की बहुत इच्छा थी कि आर्यन उससे बात करे, उसे अपने बारे में बताये कि वह इतना बड़ा आदमी कैसे बना और सुनन्दा जैसी खूबसूरत, पढ़ी-लिखी और प्रतिष्ठित पत्नी उसे कैसे मिली...? लेकिन आर्यन ने नीलिमा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। रही बात नीलिमा को अपने साथ घर ले जाने की, तो इसके लिए उसका मकसद सिर्फ इतना था, वह उसे अपनी औकात दिखाना चाहता था, कि जिस आर्यन और उसके प्यार को उसने कभी गरीब और बेकार कहकर ठुकरा दिया था, आज वही आर्यन कामयाबी की कितनी ऊंची सीढ़ी पर खड़ा है।

आखिर में जब नीलिमा ने देखा कि आर्यन उससे कुछ बोल ही नहीं रहा है तो उसने ही कहा, ‘‘आर्यन, तुम मुम्बई कब और कैसे आ गये....? तुमने कुछ बताया ही नहीं, बताओ न आर्यन, तुम यहां मुम्बई में क्या करते हो..? और तुम्हारी सुनन्दा से शादी कैसे हुई...?’’

नीलिमा, कहते हैं, जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान् होता है। वैसे भी नदी को बहना होता है, तो वह अपना रास्ता तलाश ही लेती है। नीलिमा, जिस दिन तुमने मेरी काबलियत और गरीबी का मजाक उड़ाकर मेरे प्यार को ठुकराया था, उसी दिन मैंने यह सोच लिया था, मुझे अपनी औकात को इतना ऊँचा करना है, जहां से हर उस इंसान का कद नीचा दिखाई दे, जिसे अपनी दौलत पर बहुत गुमान है। इसीलिए मैं बरेली छोड़कर दिल्ली आ गया। दिल्ली में मेरी मुलाकात सुनन्दा से हो गयी। सुनन्दा के पिता स्वर्गीय मनचन्दानी होटल कारोबारी थे। मैंने सुनन्दा को बताया कि मुझे काम चाहिए। सुनन्दा ने मुझे अपने पापा से मिलवाया। उन्होंने मुझे अपने होटल में रख लिया।

मैं पूरी मेहनत और ईमानदारी से अपना काम करने लगा। एक दिन सुनन्दा के पापा ने मुझे अपने आॅफिस में बुलाया और मुझसे मेरे काम की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी काबलियत को देखकर मैंने तुम्हे असिस्टेंट मैंनेजर के लिए प्रमोट करने का फैसला किया है। मुझे प्रमोट करने के कुछ दिन बाद ही मिस्टर मनचंदानी को अचानक पैरालाइज हो गया और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। उनके बीमार होने के बाद उनके होटल कारोबार की सारी जिम्मेदारी सुनन्दा के ऊपर आ गई। अपना बिजनेस सम्हालने के लिए सुनन्दा को एक ऐसे इंसान की जरूरत पड़ी, जो पूरी मेहनत और ईमानदारी से सुनन्दा के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर होटल के कारोबार को सम्हाल सकता था। इस काम के लिए सुनन्दा के पापा ने मेरा नाम सजेस किया। क्योंकि मैं अपने काम के साथ-साथ उनकी भी सेवा टहल करता था, वो भी बिना किसी लालच और स्वार्थ से। बस वह इसीलिए मुझसे बहुत खुश थे। उसके बाद मैं सुनन्दा के साथ काम करने लगा। थोड़े दिन बाद सुनन्दा ने अपने पापा के कहने पर मुझे होटल मैनेजमेंट की डिग्री लेने के लिए अपने खर्चे पर बैंगलूर भेज दिया।

‘‘तो क्या सुनन्दा से तुमने लव मैरेज की है ?’’नीलिमा ने एकदम पूछा।

‘‘नहीं, नीलिमा, तुमसे प्यार के बदले में मिली नफरत और अपमान को मैं भूला नहीं था। नीलिमा तुम्हारे प्यार में टूटने के बाद और दोबारा टूटना नहीं चाहता था। इसलिए तुम्हारे बाद मैं कभी किसी लड़की से प्यार करने की हिम्मत भी नहीं कर पाया। मैं जब भी किसी लड़की को देखता था, उसमें मुझे तुम्हारी सूरत नजर आ जाती थी। रही बात सुनन्दा से शादी की तो बैंगलोर से लौटने के बाद अचानक मिस्टर मनचंदानी की तबियत काफी बिगड़ गयी। उन्हीं दिनों उन्होंने मुझे और सुनन्दा को अपने पास बुलाया। उन्होंने सुनन्दा से कहा, ‘‘बेटा, मुझे नहीं लगता कि मैं अब और जी पाऊंगा। इसलिए मेरी हार्दिक इच्छा है, कि मैं तेरी शादी करके पिता के दायित्व से भी मुक्त हो जाऊं। बेटा, अगर तुम अपनी पसंद से शादी करना चाहती हो, तो मुझे बता दे, वरना मैं जिस लड़के से तुम्हारी शादी करना चाहता हूं, तुम उसके लिए इनकार मत करना।’’

जवाब में सुनन्दा ने उनसे सिर्फ इतना ही कहा, कि मेरी जिन्दगी का फैसला आप से अच्छा और कौन कर सकता है।’’

‘‘बेटी, मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। बेटी, मुझे नहीं मालूम कि आर्यन के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है, पर आर्यन मुझे बहुत पसंद है। मुझे नहीं लगता कि इससे अच्छा लड़का तुम्हारे लिए और कोई मिल सकता है क्योंकि , आर्यन में वो सभी गुण हैं, जो एक अच्छे पति में होना चाहिए। अगर तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो मैं तुम्हारी शादी आर्यन के साथ करना चाहता हूं।’’

‘‘अपने पापा का फैसला सुनकर सुनन्दा ने क्या सोचा, मुझे नहीं मालूम, पर मैं यह सोचकर घबरा गया था कि फिर मुझे किसी लड़की की नफरत का शिकार होना पड़ेगा। लेकिन जब सुनन्दा ने कहा, ओ.के. पापा, आर्यन से शादी करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, तो कई दिन तक तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि सुनन्दा जैसी खूबसूरत, पढ़ी-लिखी करोड़पति बाप की बेटी मुझ जैसे गरीब इंसान को, जिसके रहमो-करम से मैं यहां तक पहुँचा हूँ उसे वह अपने पति के रूप में अपनाने के लिए तैयार हो गयी।

उसके बाद सुनन्दा के पापा ने धूमधाम से हम दोनों की शादी की। शादी के एक साल बाद सुनन्दा के पापा ने इस दुनिया से विदा ले ली।’’

इतना कहकर आर्यन एकदम खामोश हो गया। दोनों के मध्य काफी देर तक संवादहीनता बनी रही, जिसे तोड़ते हुए नीलिमा ने कहा, ‘‘आर्यन, मैं तो तुम्हारे बारे में सबकुछ जान चुकी हूं। लेकिन मेरे बारे में तुम कुछ नहीं

जानना चाहोगे...?’’

‘‘नीलिमा, क्या करूंगा तुम्हारे बारे में जानकर, क्योंकि मैं पहले से जानता हूं कि तुमने जिन्दगी में जो पाना चाहा, वो तुम्हें मिल गया होगा। जाहिर है तुम अपनी जिन्दगी से पूरी तरह खुश और संतुष्ट होओगी ?’’

आर्यन की बात सुनकर नीलिमा एकदम खामोश हो गयी। वह मन-ही-मन कहने लगी, ‘‘आर्यन, आज तुमने अहसास करा दिया कि दौलत और शोहरत पा लेने से ही एक औरत पूर्ण औरत नहीं होती। उसकी जिन्दगी तब पूरी होती है, जब उसकी जिन्दगी में एक पुरुष शामिल होता है, जो उसके दुख-दर्द को सुनता है, उसकी खुशी में खुश होता है। ऐसा नहीं है कि मेरी जिन्दगी में लड़के नहीं आए, लड़के तो बहुत आए, लेकिन खूबसूरत और दौलतमंद पति की चाहत में मैं हर रिश्ते को ठुकराती रही। और देखते-ही-देखते मैं उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गयी, जहां पर रिश्ते आने बंद हो गए। सच पूछो तो आर्यन मैं अपनी जिन्दगी से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हूं। मेरी जिन्दगी का एक खाना आज भी रिक्त है, जो शायद अब उम्र के इस पड़ाव पर कभी नहीं भर पायेगा। आर्यन, आज मुझे यह अहसास हो रहा है कि औरत कामयाबी की कितनी भी ऊंची सीढ़ी क्यों न चढ़ जाये, उसे कितनी भी धन-दौलत क्यों न मिल जाये, लेकिन उसके जीवन की रिक्तता और सूनेपन को एक पुरुष ही भर सकता है, उसकी उपाधियां या अहम नहीं। इसी तरह न जाने कितने विचार नीलिमा के मन-मस्तिष्क में आवागमन कर उसकी अन्तर्रात्मा को कचोट रहे थे।

होटल के कार पार्किंग में आर्यन ने अपनी कार पार्क की और नीलिमा के साथ उसी जगह खड़े होकर, जहां वह दोनों सुबह मिले थे। उसने नीलिमा से कहा, ‘‘नीलिमा, यह मुम्बई के बड़े होटलों में से एक है और इस होटल का मालिक मंै हूं।’’

आर्यन के कहने के साथ ही नीलिमा ने गर्दन उठाकर होटल को देखा तो उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आसमान को छूते उस होटल की ऊँचाई के सामने वह पाताल में धसी हुई हो। उसके बाद आर्यन नीलिमा के साथ होटल के रिसेप्शन तक गया। वहां जाकर उसने अपने होटल स्टाफ से कहा, ‘‘मैडम, हमारी खास मेहमान हैं। इनको किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। और हां, मैडम का जो भी बिल बने वह मैडम से न लेकर, मेरे अकाउन्ट में चढ़ा देना। इतना कहकर आर्यन ने नीलिमा से उसी लहजे में साॅरी कहा, जिस लहजे में नीलिमा ने साॅरी कहकर उसके प्यार को ठुकराया था। फिर उसी तरह उसने भी विजयी मुस्कान अपने होठों पर बिखेरकर नीलिमा को देखा और वहां से चला गया।

रात बहुत हो चुकी थी। नींद नीलिमा की आंखों से कोसों दूर थी। उसके दिल-ओ-दिमाग में आर्यन की आकृति घूम रही थी। उसने मन में कहा, जिस आर्यन को मैंने बेकार की चीज समझकर ठुकरा दिया था, आज वही आर्यन सुनन्दा के साथ कितनी खुशहाल जिन्दगी जी रहा है। उसी समय उसे आर्यन के कहे शब्द स्मरण हो आए, ‘‘नीलिमा, तुम्हे तुम्हारी हैसियत और पद-प्रतिष्ठा वाले तो बहुत लोग मिल जायेंगे, मगर मेरी तरह दिल की गहराईयों से तुम्हें प्यार करने वाला कोई नहीं मिलेगा।’’

आर्यन के शब्दों को याद करके नीलिमा को अपनी तंगदिली का अहसास होने लगा। वास्तव में उसने कुछ पाने के चक्कर में सबकुछ खो दिया था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अंधेरी गुफा में घुस गयी हो।

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