लहराता चाँद - 22 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लहराता चाँद - 22

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

  • 22
  • गौरव और साहिल खिड़की से अंदर झाँककर देखा। दीये की रोशनी में कुछ साफ़-साफ़ नहीं दिख रहा था।
  • साहिल गौरव को रोक कर कहा, "गौरव, ऐसे नहीं हमें अंदर जाना होगा। तुम उस तरफ से देखो कोई है कि नहीं, अगर कोई आये तो इशारा करना। मैं अंदर जाकर देखता हूँ।"
  • "ठीक है, मैं यहाँ रुकता हूँ। अगर किसी खतरे का आभास हो तो बुलाना।"
  • "ओके।"
  • साहिल ने अंदर प्रवेश किया। धूल मिटटी से भरा कमरा अँधेरे में डूबा हुआ था। एक कोने एक छोटा सा दिया लहलहा रहा था। साहिल ने ध्यान से पूरे कमरे को छान मारा। एक कोने में टूटी-फूटी लकड़ियाँ और काँच के शीशों के बीच एक औरत बेखबर सोई हुई थी। साहिल ने खूब ध्यान से उसे पहचानने की कोशिश की। उसके बिखरे बाल मुँह को आधे ढँके हुए थे। कपड़े गंदे और चहरे पर मिट्टी के धब्बे ऊपर से हलकी सी रोशनी से पहचानना मुश्किल था। उसके दोनों हाथ बँधी हुए थे। वह धीरे उसके पास गया अपनी मोबाइल के रोशनी में उसे पहचानने की कोशिश किया। वह अनन्या थी। 'अनु अनु' धीरे से पुकारा।
  • - हूँ , कहकर एक थकावट सी आवाज़ बाहर आई। अंधेरे में साहिल को पहचानना कठिन था। अनन्या जोर से चिल्लाने ही वाली थी कि साहिल उसके मुँह पर हाथ रखकर चुप कराया। "स् स् स् .... अनु चुप चुप.., मैं साहिल हूँ तुम्हें यहाँ से ले जाने आया हूँ।" फुस-फुसाते उसके कान में कहा।
  • "साहिल तुम?" अँधेरे में पहचानने को कोशिशकर रही थी।
  • - हाँ हमें यहाँ से जाना है। जल्दी उठो।
  • - साहिल, मुझे ले चलो यहाँ से ... मुझे दो दिन से हाथ पैर बाँध रखे है।" अनन्या रो पड़ी।
  • - साहिल उसे गले लगा लिया और माथे पर चूमते हुए, उसकी आँखे आँसू से छलक पड़े।
  • - साहिल, जल्दी कर। गौरव ने धीरे से आवाज़ किया।
  • - अनु चलो यहाँ से निकलते हैं। कोई भी आ जाएगा तो मुश्किल हो जाएगी।"
  • - मेरे पैर बँधे हैं।
  • साहिल ने उसके हाथ पैर खोल दिए। अनन्या उठ खड़ी हुई।

    - वक़्त बहुत कम है, सुबह होने से पहले हमें यहाँ से निकलना है। "

    "तुम्हें यहाँ आते हुए किसीने देखा तो नहीं है ना?

    अब तक तो नहीं लेकिन संभावना तो है। गौरव दरवाज़े के पास इंतज़ार कर रहा है, तुम भी जल्दी करो।"

  • "गौरव भी ?"
  • "हाँ गौरव बाहर इंतज़ार कर रहा है।" अनन्या के दोनों हाथ पकड़कर दरवाज़े की ओर चल पड़ा। दरवाज़े पर गौरव को भी देख अनन्या को यकीन हो गया की किसी न किसी तरह वे बाहर निकल ही जाएँगे।

    दोनों जैसे ही बाहर निकले गौरव ख़ुशी से पूछा - "अनु चलो यहाँ से इससे पहले कि कोई आ जाए जल्दी से यहाँ से निकलना होगा।" अनु गौरव और साहिल तीनों साथ में चल पड़े।

    - यहाँ खतरे से खाली नहीं है। सावधानी से चलो, अगर किसी ने हमें देख लिया तो तीनों मारे जाएँगे।" साहिल ने जोर देकर कहा। तीनों जिस रास्ते आये थे उसी रास्ते धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। तीनों कुटिया छोड़कर बाहर निकल आये। साहिल अनन्या का हाथ पकड़े हुए था।

    - गौरव भागो मत धीरे-धीरे चलो पत्तों की आवाज़ से हमारे होने का पता चल जाएगा। तीनों जंगल के रास्ते होते हुए छुपते-छुपाते आहिस्ता से चलने लगे। बीच-बीच में मोबाइल चालूकर उसकी उजाले में रास्ता तयकर रहे थे।

    अचानक कुछ पैरों की आवाज़ पास आते सुनाई दी। साहिल गौरव से फुसफुसाते हुए कहा तुरंत छुप जाओ। पेड़ के झाड़ियों में तीनों दुबककर बैठ गए। कुछ शार्प टॉर्च की रौशनी उनके पास से हो कर गुजर गई।

    "असरफ देखो किसीको इस जंगल से बाहर न जाने देना। यहीं कहीं छुपे हुए हैं।"

    "ठीक है दादा ! हर संभव कोशिश करता हूँ वे इस जंगल के बाहर जा न सके।"

    "नहीं... कोशिश नहीं.... कोशिश नहीं... मुझे वे सब के सब चाहिये। वह भी जिन्दा। ख़ासकर वह छोकरी... । वरना हम जिन्दा नहीं बचेंगे।"

    - ये बात सुनते ही अनन्या काँप उठी। साहिल और गौरव एक दूसरे की और देखा ।

    - "यहाँ से जल्दी ही निकालना है।" गौरव ने कहा।

    - "हाँ पर सही सलामत।" साहिल ने जवाब में कहा।

    वे झाड़ियों में काफी देर तक बैठे रहे जब तक कि उनके पैरों की आवाज़ दूर चली न गयी। पूरी तसल्ली के बाद वे झाड़ियों से निकल कर सावधानी से जंगल में चलने लगे। गौरव टॉर्च जलाना चाहा मगर साहिल ने मना करने से बंद कर दिया। कुछ दूर जाने के बाद गौरव ने कहा, "साहिल हम पहुँचने ही वाले हैं। बस कुछ ही देर में पहुँच जाएँगे।"

  • - "लेकिन अभी हम पर खतरा टला नहीं है। अभी भी हम उनके एरिया में ही हैं।"
  • अचानक कहीं से दो आदमी उनके सामने आ खड़े हो गए। अनन्या, साहिल का हाथ जोर से पकड़ लिया। उसके पीछे छिपकर खड़ी हुई। लेकिन तब तक वे इन्हें देख लिए थे।
  • एक आदमी हाथ में पिस्तौल लिए, "कौन हो तुम लोग। इस लड़की को कहाँ ले जा रहे हो?"
  • - "हम हम... रास्ता भटक कर इस ओर आ गए हैं। हमें इस जंगल से बाहर जाना है।" तीनों समझ चुके थे की उनकी पिस्तौल के आगे कुछ कहे तो सबकी जान जा सकती है। लेकिन अनन्या को जाने भी नहीं दे सकते।
  • - "अगर तुम्हें सही सलामत बाहर जाना है तो इस लड़की को छोड़ दो। वरना.." बीच में ही रुक गया वह।
  • - "देखो तुम लोगों से हमारा कोई दुश्मनी नहीं है, लड़की को छोड़कर चले जाओ वरना ख़ामोखा तुम लोग मारे जाओगे। दूसरे आदमी ने कहा।
  • - "तो इस लड़की ने तुम्हें बुला ही लिया। क्यों री! तेरी वजह से महुआ की जान गई। अभी इन दोनों की जान भी खतरे में डाल दी।"
  • - महुआ को ... महुआ को..." उसके गले से शब्द निकल नहीं रहे थे।
  • - "हाँ, छोकरी तेरी वजह से उसे गोली मारकर परलोक भेज दिया है, तुझे भी जल्दी ही भेज दिया जाएगा। चल भाई इन दोनों के भी हाथ पैर बाँधकर गाड़ी में डालकर ले चल।"
  • - "आप सब दरिंदे हो। महिआ ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा। हैवानों के बीच में रहकर भी सच्चा और साफ़ दिल वाला था। उसे ..." अनन्या गुस्से से काँप उठी। महुआ को उसी के कारण मार दिया गया, ये बात उसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
  • - "ये छोकरी! एक गोली भेजे में लगेगी न सब बात भूल जाएगी। चल, अरे बुधिया देखता क्या है ले चल इसे।"
  • साहिल और गौरव को पिस्तौल दिखाकर - चले जाओ वार्ना ख़ामोखा मारे जाओगे।"
  • साहिल और गौरव एक दूसरे को देखा। लेकिन वहाँ से नहीं हिले।
  • सुना नहीं अगर तुम यहाँ से नहीं गए तो इस लड़की को .. " उसके सिर पर बंदूक ताने रखा।
  • दोनों पीछे मुड़कर जाने लगे। साहिल ने कहा, "अब क्या करें? इतना दूर आकर अनन्या को ऐसे छोड़कर तो नहीं जा सकते हैं।"
  • "साहिल पीछे मत देख सीधा चल नहीं तो गोली चल सकती है।" गौरव ने कहा।
  • अनन्या ने पीछे मुड़कर दोनों की ओर देखा तब उसने देखा बुधिया ने साहिल और गौरव की ओर बंदूक तान रखी थी। अनन्या जोर से चिल्लाई, "मत मारो उन्हें छोड़ दो। साहिल भाग,.. भाग जाओ ये लोग तुम्हें मार डालेंगे।"
  • अनन्या के चिल्लाने की आवाज़ से बुधिया का निशाना चुक गया। बस उस एक मिनट काफ़ी था साहिल बुधिया के ऊपर कूद पड़ा। गौरव ने तुरंत मुड़कर पीछे से उसकी दोनोँ हाथों को जोर से पकड़ा। लेकिन अनन्या को पकड़े हुए आदमी ने चाकू निकालकर अनन्या के गर्दन पर रखकर गरजते हुए अवाज़ से कहा, "छोड़ दो उसे वर्ना लड़की को खो दोगे। छोड़ दो।"
  • साहिल को उसे छोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिखा। जंगल में सन्नाटे के बीच घने पेड़ों के नीचे हो रहे इस युद्ध का चाँद ही साक्षी रहा। कुछ ही देर में बुधिया ने उन दोनों के हाथ बाँधकर चलने को बाध्य किया। अनन्या रो रही थी। गुंड़े उन तीनों के सिर पर बंदूक तानकर साथ ले चले।
  • ##
  • वे कुछ दूर आगे बढ़े ही थे, पुलिस वालों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। दो युवा पुलिस पीछे से उनके कनपटी पर गन रखते हुए उनके हाथों से पिस्तौल छीन लिए। वे जवाबी कारवाही करते उससे पहले पुलिस ने उन पर प्रहार कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया और पूरा जंगल छान मार कर उनके कुछ साथियों को गिरफ्तारकर लिया। कुछ बदमाश कुशल से भाग निकले। संजय वहाँ आ पहुँचा। संजय को देखते ही अनन्या उस से लिपट गई।
  • - अनु मेरी बच्ची! कैसी हो? तुम्हें कुछ नहीं हुआ है न? इन गुंडों तुम्हें परेशान तो नहीं किया? मेरी बच्ची! कहकर उसे गले लगाया।
  • "पापा, मैं ठीक हूँ। मुझे कुछ नहीं हुआ, मुझे बाँधकर कमरे में रख दिये थे। मेरे साथ बहुत कुछ हो सकता था लेकिन ये लोग मुझे कोई शारीरिक हानि नहीं पहुँचाए।
  • भगवान का शुक्र है, मेरी बच्ची सही सलामत है। उसके माथे को चूमते हुए कहा।
  • - पापा इन दोनों का शुक्र मानिए कि समय पर आकर मुझे बचा लिया। लेकिन पापा महिआ जिसने मेरी मदद किया था उसको गोली मारकर इन लोगों ने मार डाला।
  • तभी इंस्पेक्टर ने कहा, "नहीं महुआ जिंदा है, उसे गहरी चोट लगी है। उसे अस्पताल भेज दिया गया है। अगर ठीक हो जाए तो उसे गिरफ्त में लिया जाएगा।"
  • - "भगवान करे महिआ जल्दी ठीक हो जाए। इंस्पेक्टर महुआ ने अगर मेरी मदद नहीं की होती तो मेरा पता किसीको नहीं चल पाता। महुआ बहुत अच्छा लड़का है, अगर सही शिक्षा मिले तो एक अच्छा इंसान बन सकता है।
  • - यकीन करो बेटा जो अच्छे होते हैं उनकी रक्षा भगवान करते हैं। उसे कुछ नहीं होगा। भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि मेरी बेटी मुझे सही सलामत वापस मिल गई। बस अब सब ठीक हो जाएगा।"
  • - पापा अवन्तिका कैसी है?"
  • - अवन्तिका ठीक है, अगर न भी हो तो तुझे देखते ही ठीक हो जाएगी। अब सब की चिंता छोड़कर अपना ध्यान रखो।"
  • पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा - संजय जी आप इन्हें लेकर घर लौट जाइए। हम यहाँ का काम निपटाकर आते हैं।"
  • - ओके इंस्पेक्टर!"
  • - हाँ संजय जी कल एक बार पुलिस स्टेशन आकर अपना स्टेटमेंट लिखवा दीजिएगा।
  • - जी जरूर।
  • संजय ने साहिल और गौरव का हाथ पकड़कर कहा, "मैं आप दोनों का कैसे शुक्रिया अदा करूँ, आप दोनों ने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है। यह जानते हुए कि ये लोग कितना खतरनाक हैं आप दोनों ने अपने जान की परवाह किये बगैर मेरी बेटी को बचाया।" संजय की आँखें छलक गई।
  • - अंकल प्लीज ऐसा न कहिए। अनन्या हमारी दोस्त है। हमारा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है। हमें तो महिआ का शुक्रिया अदा करना चाहिये जिसकी वजह से अनन्या आज हमें मिल गई।" साहिल ने कहा।
  • - कुछ भी हो अगर आप को जिंदगी में कभी भी किसी भी तरह की जरुरत पड़े तो हिचकिचाना मत.. अगर आप दोनोँ के किसी भी काम आ सकूँगा तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी।.."
  • - अंकल ये सब साहिल ने किया है, मैं तो बस उसके साथ आया हूँ। उसकी मदद करने।"
  • - आप दोनों की कोशिश ही तो है बेटा कि आज हम सब साथ हैं। संजय ने कहा।
  • - अंकल अगर आपकी पुलिस को लेकर आने में थोड़ी भी देर हो जाती तो हमारा क्या हश्र होता भगवान जाने।"
  • - भगवान हमेशा अच्छे लोगों की मदद करतें है। संजय ने इंस्पेक्टर का भी शुक्रिया अदा किया और चारों अपनी गाड़ियों की ओर निकले। संजय की आँखें बार-बार नम हो रही थीं।
  • "ज्यादा समय यहाँ रहना ठीक नहीं; गोली लग सकती है। चलिए आप को सकुशल जंगल से बाहर छोड़कर आता हूँ।" कहकर इंस्पेक्टर उनके साथ आकर उन्हें गाड़ी में बिठाकर ड्राइवर को घर पर छोड़ने के लिए कहा।
  • - पापा अवन्तिका कैसी है?
  • - अवन्तिका ने रो-रो कर अपना बुरा हाल कर लिया है। तुम्हारी सहेली क्षमा उसके साथ है, नहीं तो मेरे लिए उसे सँभालना मुश्किल था।"
  • अनन्या "पापा एक बार महिआ को देखना है, पता नहीं वह किस हाल में है।"
  • संजय ने अंजली की ओर देखा। वे अनन्या की ओर मुड़कर बोले, "अभी नहीं अनन्या महिआ अस्पताल में पुलिस और डॉक्टर की निगरानी में है। जब तक महिआ की स्टेटमेंट न लिया जाएगा तब तक कोई उससे मिल नहीं सकता।"
  • संजय ने गाड़ी में बैठते हुए कहा, "शुक्रिया इंस्पेक्टर आप की सहायता से मेरी बेटी मुझे वापस मिल गई। अब हम चलते हैं।" वे सब अपनी- अपनी गाड़ी में घर की ओर बढ़ गए।
  • "पहले घर चलते हैं, अवन्तिका बहुत सदमें में है। सुबह इंस्पेक्टर से बात करके फिर महिआ से मिलने चलेंगे।" संजय ने कहा।
  • - ठीक है पापा। अनन्या सिर हिलाकर अपनी सहमति दी।
  • सब घर वापस लौट गए। अनन्या जैसे ही घर पहुँची अवन्तिका उसके गले लिपट कर रोने लगी। इन् कुछ दिनों वह कैसे अपनी आँसू सँभालकर रखी थी वह जाने। माँ के गले लिपटी बच्ची को रोते देख क्षमा भी रो पड़ी।