लहराता चाँद
लता तेजेश्वर 'रेणुका'
20
महुआ ने उसके दादू से मोबाइल फ़ोन चुराने की कोशिश की पर हासिल नहीं कर पाया। उसे क्या करना है समझ में नहीं आ रहा था दूसरी ओर अनन्या को किसी भी हाल में बचाना है ये वह समझता था। पर कैसे? सोचते हुए जब भटक रहा था उसे कूड़े में एक कागज़ का टुकुड़ा मिला। मिट्टी लगकर पीला पड़ गया था। उस कागज़ को कूड़े से निकाल कर उलटकर देखा। कागज ख़राब हो चुका था लेकिन एक आस बनी कि इस कागज़ से उस बेचारी लड़की की कोई मदद हो जाए। नहीं तो इन भेड़ियों के आगे एक हिरन की बच्ची कब तक टिक पाएगी, जितने जल्दी हो सके उसे यहाँ से भगाने में मदद करनी है । इस जगह से मुक्त करा लेना चाहिए। उसने कागज़ को पलटकर देखा कागज पर लिखने के लायक जगह थी। उसने उस टुकुड़े को सँभालकर पॉकेट में रखा। पर जंगल मे कलम या पेन्सिल कहाँ से लाऊँ?
वह सीधे घर पहुँचा। घर के आँगन में राख में पड़ी एक जली हुई लकड़ी पर उसकी नज़र पड़ी, रात के वक्त बन्य पशुओं को गाँव से दूर रखने के लिए आग जलायी जाती है। उस राख में से आधी जली हुई एक छोटी सी लकड़ी (तिनके) को उठाकर जेब में छुपा लिया। तब कहीं से दादू ने आवाज़ दिया, "क्या कर रहा है महुआ, खाना खाया कि नहीं? उस राख में क्या छान रहा है। आजा खाना खा ले।"
- हाँ दादू मैं अभी आया। कागज और तिनके को पैंट की जेब में रखकर दादू के पास गया।
- अरे महुआ कहाँ घूमता फिरता है सारा दिन, देख चेहरा कैसे काला पड़ गया है।"
- नहीं दादू, राख लग गया होगा चेहरे पर। सब कहते हैं मेरा चेहरा तो हीरो जैसे चमकता है।"
- हाँ बेटा जवानी में हम भी तेरे जैसे ही दीखते थे। लड़कियाँ खूब आगे पीछे घूमती थी। हम भी उस जमाने के राजा थे। शादी होने के बाद तुम्हारी दादी तो रोज़ नज़र उतरती थी। उसे डर था कि किसी लड़की की नज़र न लग जाए।" मुस्कुराते हुए कहा।
- हाँ पता है दादू रात को जब पीकर हल्ला मचाते थे दादी बहुत डंडा भी मारती थी।"
- चल छोकरे हट, अच्छा देख तेरे पसंद का बैंगन का भर्ता बनाया हूँ।"
- दादू इसके अलावा और कुछ मिलेगा भी क्या इस जंगल में? रोज़ वही बैंगन का भर्ता।
- शुकर कर यह भी मिल जाता है क्यों कि ये सब्जी हमारे घर के पीछे ही है नहीं तो इस जंगल में ये भी कहाँ नसीब होता। जो भी मिलता है वही खा लेना।
- लेकिन हम यहाँ क्यों हैं दादू सब की तरह गाँव में क्यों नहीं जी सकते?"
- बेटा फिर कभी इस तरह बातें मत करना, कोई सुन लेगा तो तुझे मुझे बाहर फेंक देगा नहीं तो बंदूक की गोली से उड़ा देगा। चुप-चाप खाना खा ले।"
- चलो न दादू गाँव में जाकर बस जाते हैं। छोड़ दो ना ये सब कुछ, हमें नहीं करनी है गुंडागर्दी। हम अच्छे लोगों के साथ अच्छे बनकर रहेंगे।"
- श्..आगे एक शब्द नहीं यहाँ के पेड़ पत्तों के भी कान होते हैं। जल्दी से आजा खाना परोस दिया है।"
महुआ जाकर दादू के पास बैठ खाना खाने लगा। "अरे, महुआ वो लड़की खाना खाई कि नहीं? तू खाकर उसे भी खाना दे आ। "
"प्लेट तैयार कर दो दादू मैं दे आऊँगा।"
एक प्लेट में रोटी चावल बैगन का भर्ता रखते हुए कहा, "उस लड़की पर एक नज़र टिकाए रख अगर भाग निकली तो तुझे और मुझे कहीं का नहीं छोड़ेगा सरदार। हम बड़े ईमानदार हैं अपने काम के लिए अगर पैसा लेते हैं तो पूरी ईमानदारी से काम करना पड़ेगा। लड़की को उठवा तो लिया, उसे अगर कुछ हुआ या भाग गई तो हमारा काम तमाम कर देगा सरदार। सुपारी लिया है तो काम पूरा होने पर ही छोड़ेगा वरना मार ही डालेगा।"
- हाँ दादू पता है। खाना खत्मकर वहाँ से उठ कर चल पड़ा महुआ।
- रे महुआ, लड़की के लिए खाना तो ले जा। नहीं तो भूखे प्यास से मर जाएगी।" पीछे से आवाज़ दिया।
- दीजिए।" महुआ लौटकर हाथ बढ़ाया।
- ये ले, खाना खिलाकर दरवाज़ा अच्छे से बंद करना।
महुआ खाना लेकर उस झोपड़ी की ओर चल पड़ा। दरवाजा खोलकर अनन्या के सामने खाना रख दिया। अनन्या चुपचाप बैठी रही।
- खाना खाओ।
- मुझे नहीं खाना।
- तो फिर यहाँ से भागोगी कैसे?
- तो क्या मेरी मदद करोगे? महुआ की ओर आशा से देखते हुए "प्लीज कुछ करो। मुझे यहाँ से जाने दो।" अनुनय करते हुए हाथ जोड़कर कहा अनन्या।
"पहले खाना खा लो।" कह कर पीछे मुड़कर खड़ा रहा। कुछ खाना खाकर "ये लो, खाना खा लिया अब कुछ करो प्लीज।"
"बार-बार ऐसे गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं। मैं कुछ लाया हूँ। इसमें जो भी लिखना हो लिख दो किसी भी तरह ये चिट्ठी पहुँचा दूँगा। लेकिन इसके बाद कुछ नहीं करूँगा। पकड़ा गया तो मार दिया जाऊँगा।" कहते हुए महुआ बाहर झाँककर आया। जेब से कागज़ का टुकुड़ा और जली हुई लकड़ी की टुकुड़ी देकर जल्दी से सन्देश लिखने को कहा।
- इससे क्या होगा?
- मुझे जो मिला ले आया अब कैसे करना है क्या करना है तुम बताओ।"
अनन्या जल्दी-जल्दी उस छोटे से कागज़ के टुकुड़े पर दो लाइन लिख दिया।" ये किसी भी तरह पुलिस तक पहुँचा देना।" हाथ जोड़कर इशारे से कहा। महुआ चुपचाप उसे सँभाल कर अपने जेब में रख लिया।
"पुलिस नहीं लेकिन किसी के सही हाथ पहुँचा दूँगा। जो तुम्हें यहाँ से निकलवा ने में मदद करेगा।" कहकर वहाँसे चला गया। अनन्या मन ही मन भगवान का स्मरण करने लगी। 'हे भगवान महुआ सही सलामत उस चिट्ठी को किसी के हाथ पहुँचा दे। हे भगवान मेरी मदद कर मुझे किसी न किसी तरह इस जगह से निकाल दे'।
अनन्या की प्लेट लेकर महुआ वहाँ से निकल गया। उसने दादा को आवाज़ देकर कहा, "दादा, प्लेट ले आया हूँ। कुछ देर कुटिया की ओर ध्यान रखना थोड़े ही देर में आता हूँ।"
- अरे महुआ कहाँ जा रहा है? बताकर तो जा।"
- अरे दादा, हर बात आप को बताना जरूरी है का? समझते काहे नहीं लोटा लेकर जा रहा हूँ तो वह भी बताना है का?"
- ठीक है जाकर जल्दी आ। अरे लोटा भर के तो ले जा।" पीछे से आवाज़ दिया महुआ के दादाजी ने।
- हाँ हाँ, ले जा रहा हूँ।" कहते हुए महुआ बड़े-बड़े कदमों से वहाँ से निकल गया। कोई उस पर शक न करे और उसकी तलाशी ले उसके पहले ही चिट्ठी को किसी के हाथ पहुँचाना पड़ेगा। जंगल की उबड़-खाबड़ पगडंड़ियों को पार करते हुए सूखे पत्त्ते और कंकड़ पत्थरों से गुजरते हुए लंबे-लंबे कदमों से आगे बढ़ गया।
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साहिल और गौरव बहुत दूर चले आये। साहिल को घर जाने की इच्छा नहीं थी। वह संशय में था कि घर जाकर माँ को क्या कहेगा।
गौरव, "साहिल अब हमें वापस जाना चाहिए। मुझे नहीं लगता इस तरह हमें कुछ भी पता चलेगा। शाम हो गई है फिर सुबह आएँगे।
- काका ने तो इसी जंगल के बारे में बताया था।
"यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि यही वो जंगल है? और काका ने जो भी कहा उसमें सचाई है कि नहीं क्या पता।"
"जो भी है उन्हें भरोसा करने के अलावा हमारे पास कोई रास्ता भी तो नहीं। क्या पता किस बिल में कौन सा साँप छुपा है?"
उस वक्त एक गौ-बाल गायों को चराते उस ओर से आते दिखा। साहिल उसके पास भागकर गया और पूछा, "यहाँ किसी लड़की को देखा है? इस जंगल में?"
"अकेली लड़की और जंगल में? साब यहाँ लोग घूमने से भी डरते हैं। ये इलाका, गुंडों बदमाशों के लिए मशहूर है। अगर लड़की अकेली पकड़ी गई तो खुदा खैर करे उसकी।" उसने कहा।
- साब इस तरफ कोई लड़की मुझे नज़र नहीं आई है, लेकिन अगर कोई लड़की आई होगी तो हो सकता है कोई गुंडों बदमाशों के हाथ पकड़ी गई हो। आप भी उनसे दूर ही रहें तो अच्छा है।" कहकर आगे बढ़ गया।
साहिल को लगा यही वह जगह हो सकता है जिसके बारे में भिवन्डी बाजार वाले चाचा ने कहा था। उस बालक को धन्यबाद कह कर गौरव की तरफ देखा और कहा, "यकीनन वह यही जगह है जहाँ अनन्या को बंदी बनाकर रखा गया है और चाचा ने भी हो न हो इसी जगह के बारे में कहा था।"
"तो चल देखते हैं। तब 18-20 साल का एक लड़का उनके पास आया और कहा, "साहब ये कागज़ को इस एड्रेस पर पहुँच दोगे?" उसमें लिखी एड्रेस दिखाते हुए पूछा।
"नहीं हम किसी और काम पे आये हैं। शहर पहुँचते देर हो जाएगी।"
"साहब देख लीजिए ना, हो सकता है किसी को मदद की सख्त जरुरत है।"
"ठीक है, मगर हम शहर पहुँचने के बाद ही कुछ कर पाएँगे।" गौरव उसे बिना देखे ही जेब में रख लिया। दोनों जंगल में बहुत देर तक घूमते रहे लेकिन उन्हें कोई सुराग नहीं मिला। शाम के 6 बजने वाली थी। गौरव साहिल को आगे जाने से रोक लिया। साहिल चलो अब चलते हैं, रात भर जंगल में भटकने से हमें कुछ नहीं मिलेगा। जंगल है, हम टॉर्च या कोई तैयारी के साथ नहीं आये हैं। सुबह फिर से आते हैं। अभी चलते हैं। दोनों वापस आ गए।
शहर पहुँचने से पहले गौरव अपने जेब में मोबइल के लिए ढूँढ रहा था तभी उसे वो छोटी टुकुड़ी कागज़ हाथ में आया। "हाँ भूल गया वह लड़का इस कागज़ को किसी एड्रेस पर पहुँचाने के लिए कहा था। इसे उस् एड्रेस पर पहुँचाना जरुरी है।"
"एड्रेस देखो, अभी शहर दूर है रास्ते में कहीं एड्रेस मिल जाए तो पहुँचाकर जाएँगे।" गौरव उस कागज निकालकर देखा। देखते ही चिल्ला कर गाड़ी रोकने को कहा। गौरव के चिल्लाने से साहिल हाथ अचानक हड़बड़ा गया। साहिल ने अगर अचानक ब्रेक नहीं दिया होता तो बाइक पेड़ से टकराया गया होता। वे पेड़ से टकराते-टकराते बच गए। साहिल तुरंत ही बाइक को स्टैंड देकर गौरव पर चिल्लाया, "पागल है क्या तू? इतना जोर से चिल्लाया की गाड़ी पेड़ को टकराकर खाई में जा गिरती।"
गौरव कुछ सुनने के मूड में नहीं था वो कागज़ के टुकुड़े को साहिल को दिखाया कहा, "अनन्या, अनन्या की लिखी चिठ्ठी है। इसका मतलब अनन्या ने ही उस लड़के के हाथों इस कागज़ का टुकुड़ा दिया होगा। इसका मतलब अनन्या कहाँ है पता चल गया।" गौरव आश्चर्यानंद से एकदम से चिल्ला उठा।
साहिल कुछ समझ नहीं पाया, - तू क्या कह रहा है गौरव?
गौरव ने चिठ्ठी को साहिल की ओर बढ़ाया।
साहिल उस चिट्ठी को हाथ में लेकर देखा, "तू कैसे कह सकता है कि यह चिट्ठी अनन्या ने लिखी है?"
- इसलिए कि नीचे अनन्या का दस्तखत है।"
साहिल ने ध्यान से देखा और आनंदित होकर कहा, - बिल्कुल ठीक कह रहे हो गौरव ये चिठ्ठी अनन्या ने लिखी है। यानी अनन्या उसी जगह कहीं है जहाँ यह चिठ्ठी मिली थी।
- हाँ साहिल अनन्या का पता लग गया है बस उसे वहाँ से निकालना है।
- लेकिन यह चिठ्ठी तुझे कहाँ और कब मिली?
- वहीं जहाँ हम खड़े जंगल में ढूँढ़ रहे थे। वह ग्वालबाल ने हमें यानि मुझे एक कागज़ का टुकुड़ा दिया था। मैने देखे बिना ही जेब में रख लिया था। वह ... वह अनन्या की लिखी चिट्ठी थी यानि अनन्या वहीँ उसी जंगल के आस पास कहीं है।"
"चल गौरव अभी चलते हैं अनन्या को वहाँ से निकालते हैं।
- नहीं, ऐसे नहीं जल्दबाज़ी करना ठीक नहीं, पहले पुलिस को खबर करते हैं। क्यों कि हमें मालूम नहीं जंगल में कितने आदमी कहाँ-कहाँ छुपे होंगे। अगर हम पकड़े गए या उन्हें भनक भी लग गई तो हो सकता है अनन्या की जान खतरे में पड़ सकती है। या तो वो हमें मार डालेंगे या अनन्या को वहाँ से निकाल लेंगे। ऐसे में अनन्या को छुड़ाना तो दूर हमें भी बंदी बना लेंगे।
- हाँ ये भी सही है।"
रात के 8 बज चुके थे। साहिल उस चिठ्ठी को खोलकर देखा, "कोई मुझे किडनैप कर जंगल में कैदकर रखे हैं। मुझे बचालो। अनन्या।"
पढ़कर साहिल सोचने लगा। गौरव एक कामकर तू अनन्या के पापा को इस बात का खबरकर दे कि "अनन्या का पता लग गया है, पुलिस को लेकर जंगल के खाड़ी के पास आ जाए। हम अनन्या को छुड़ाने जा रहे हैं।"
"जब तक पुलिस जंगल पहुँचेंगी तब तक हम पहुँच कर अनन्या को खोज निकालने का प्रयास करेंगे।"
"अगर पकड़े गए तो?"
- अगर पकड़े गए तो पुलिस के आने तक उनके आदमियों को उलझा के रखेंगे। पुलिस आकर हमें छुड़ाएगी नहीं तो बस जो होगा सो होगा।
"ठीक है, मैं अभी फ़ोन करके अंकल को खबर कर देता हूँ, और हम यहीं से साथ में चलेंगे।"
गौरव ने तुरंत ही संजय को फ़ोन लगाया। जगह का पता देकर पुलिस को लेकर पहुँचने को कहा। दोनों फिर से अपनी बाइक लेकर उसी जगह की ओर चल पड़े।
"साहिल जल्दबाज़ी मत करना बहुत सोच समझकर एक एक कदम उठाना होगा। आज चौथ होने से काफी अँधेरा है, बादल भी उमड़ आए हैं। इस अँधेरे में जंगल के अंदर जाने के लिए टॉर्च की सख्त जरुरत है।"
"हाँ, आज यह अँधेरा हमारा मदद भी करेगा। अँधेरे में जंगली जानवर का खतरा भी है। आगे दुकान के सामने बाइक रोकता हूँ। जो भी चीज़ें चाहिए साथ ले चलते हैं।"
"ठीक है, चल।"
दोनों कुछ दूरी पर बाइक रोककर जरूरी सामान खरीदकर जंगल की और बढ़ गए।