लहराता चाँद - 19 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लहराता चाँद - 19

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

19

सुबह 10 बजे गौतम साहिल और क्षमा ऑफिस पहुँचे। अनन्या को लेकर चिंता सभी को थी। क्षमा साहिल को अनन्या के बारे में पूछा, "अनन्या का कुछ पता चला।"

"नहीं, भिंवडी बाजार की उसी जगह पर जाकर हमने हर एक को पूछा पर किसीने कोई जवाब नहीं दिया। हम कोशिश कर रहे हैं उन गुंडों में किसी एक का भी पता लग जाए हम बाकी का पता निकाल लेंगे। इस बार उन गुंडों को ऐसा सबक सिखाएँगे कि या तो अपाहिज हो जाएँगे या तो जिंदगी भर याद रखेंगे।"

"क्या कहा लोगों ने?" क्षमा ने साहिल से पूछा।

"कोई अभी तक कुछ भी नहीं कहा जुबान तक नहीं खोली। हो सकता है उन लोगों को डराया धमकाया गया हो।" गौतम ने कहा।

"क्या उन लोग से तुम मिले जिनकी अनन्या ने मदद की थी।" क्षमा ने पूछा।

"नहीं आश्चर्य तो यही लगा और वो लोग दिखे भी नहीं।" साहिल ने चिंता जताई।

"आज फिर से जाकर देखते हैं। कोई तो दिख जाए बस, बाकी हम पता लगा लेंगे।" गौतम ने कहा।

"ठीक है, उसी बुजुर्ग आदमी को ढूँढो वही कुछ बता सकते हैं। फिर कुछ न कुछ तो सामने आ जाएगा।" क्षमा ने कहा।

"सभी प्रकार की कोशिश कर रहे हैं। आज चाहे कुछ भी हो जाए अनन्या का पता लगा लेंगे।" साहिल ने निश्चित स्वर से कहा।

"ऑल द बेस्ट। कामयाब होकर लौटना।"क्षमा उन्हें धैर्य देते कहा।

कुछ देर बाद गौरव और साहिल बाइक लेकर निकल गए। क्षमा अपनी टेबल पर बैठ सोच में पड़ गई। अचानक टेबल पर फ़ोन बज उठा, क्षमा ने फ़ोन उठाकर कहा "यस सर,"

- " क्षमा मेरे कमरे में आओ।"

- "यस सर।" क्षमा ने दुर्योधन के ऑफिस रूम में प्रवेश किया।

क्षमा को देखते ही दुर्योधन ने पूछा, "काम कैसे चल रहा है।"

"सब ठीक है सर।"

"अवन्तिका कैसी है?"

"बहुत डिप्रेशन में है। संजय सर ने भी दो दिन से ठीक से कुछ खाया पिया नहीं। सारा दिन बाहर अनन्या के लिए ढूँढते फिर रहे हैं। कोई फ़ोन आये तो चौंक जाते हैं। कोई फ़ोन न आने से चिंतित भी हैं। यहाँ तक के रैनसम के लिए भी कोई फ़ोन नहीं आया। कोई खबर नहीं। बहुत परेशान हैं। क्लिनिक जाना भी छोड़ दिया है। मुझे अवन्तिका के लिए भी बहुत चिंता हो रही है। वह अनन्या के बिना एक कदम भी नहीं चलती। रो-रो कर अपना बुरा हाल कर लिया है।

"इस हालात में कर भी क्या सकते हैं।" मन में ही बड़बड़ाया।

"ठीक है तुम जाओ, साहिल और गौरव को अंदर भेज दो।"

"सर, वे दोनों अनन्या के बारे में पता करने बाहर गए हैं। हमारा टीम भी अनन्या की खोज में लगी हुई हैं ।"

पेपर में इस न्यूज़ का क्या असर है?

सर्, इसकी चर्चा बहुत जोरों पर है, लेकिन कोई कुछ क्लू देने को आगे नहीं आये हैं। ना कहीं से अनन्या की खबर आई है।" क्षमा ने दुखी होकर कहा।

"अच्छा ठीक है तुम जाओ।" क्षमा चली गई। कुछ कागज़ पत्र देखते हुए वह सोचने लगा, 'अनन्या पत्रिका का एक अहम हिस्सा बन गई है। कुछ दिन पहले की चर्चित खबर हफ्ता वसूली का सच बाहर आने के बाद कई नेता और पुलिसकर्मी हरकत में आ गए थे। कई नेताओं का सच भी सामने आया है, क्या इसका बदला लेने अनन्या का अपहरण किया गया? अगर ऐसी बात है तो कोई न कोई सुराग इन मंत्रियों और पुलिस कर्मी से मिल सकता है।

नेताएँ अपने सिंहद्वार में छेद करने वालों को इतनी आसानी से छोड़ कैसे सकते हैं। लेकिन इसका अंजाम बहुत बुरा होगा, वह समाचार ठंड़ा भी नहीं हुआ था कि उसी पत्रिका की सह संपादक का अपहरण होना ये सबूत छोड़ रहा है कि इन्हीं नेताओं में से कोई है जिसने इस काम को अंजाम दिया। बस किसी ना किसी तरह अनन्या सही सलामत घर वापस लौट आए। फिर इनका जो हाल करूँगा कि दुनिया देखती रह जाएगी।'

दुर्योधन ऑफिस से बाहर निकल ही रहा था कि फ़ोन बजने लगा। कुछ सुनने से पहले ही दुर्योधन ने कहा, "हाँ संजय मैं निकल रहा हूँ।"

"दुर्योधन, जल्दी आ जाओ, इंस्पेक्टर का फ़ोन आया था, तुरंत ही बुलाया है।"

"कोई ख़ास बात है? अनन्या का कुछ पता चला?"

"नहीं तुम जल्दी आना,. आने पर बताऊँगा..." गला रुद्ध हो गया। "कुछ अजीब बात कह रहे हैं कि .. कह रहे हैं रेल पटरी पर... रेल पटरी पर एक लड़की की लाश मिली है, उन्हें शक है कि... कि ..." आगे कुछ कह नहीं पाया वह।

"संजय धैर्य रखो, मैं आ रहा हूँ। कहाँ हो अब...... मैं तुरंत पहुँच रहा हूँ, तुम वही रुको।" कहते हुए दुर्योधन गाड़ी निकालकर चल पड़ा।

कुछ ही देर में दोनों अपनी अपनी गाड़ी में पुलिस स्टेशन पहुँचे। पुलिस स्टेशन में पहुँचकर दोनों इंस्पेक्टर से मिले। कांस्टेबल बैठने को कहकर अंदर चला गया। संजय का हाल बहुत बुरा था, उसकी हिम्मत टूट गई थी। दुर्योधन साथ न होते तो उन्हें खुद को सँभालना मुश्किल था।

संजय मेरा पूरा यकीन है, ये अनन्या नहीं हो सकती, अनन्या बहुत ही हिम्मत वाली लड़की है। वह कभी खुदकुशी नहीं कर सकती। आत्महत्या करने जैसा कायर स्वभाव नहीं है उसका, अगर कोई उसे हानि पहुँचाने की कोशिश करे उसकी लंका जलाकर आयेगी। किसी दूसरे वक्त होता तो संजय तुरंत ही दुर्योधन से लड़ पड़ता और कहता, 'तो क्या मेरी बेटी तुम्हें हनुमान दिखती है जो लंका दहन करके आयेगी?' उसने उसी नज़र से दुर्योधन की ओर नज़र का तीर चलाया। संजय के नज़र बाण का अर्थ वह पढ़ चुके थे। इसलिए उन्होंने कहा, 'मेरा मतलब अनन्या उतनी ही साहसी और हिम्मतवाली लड़की है।' संजय ने तेज नज़र से दुर्योधन को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, 'अब ठीक है नहीं तो... ' तब जाकर उसकी नज़र शांत हुई।

कुछ देर बाद कांस्टेबल ने अंदर बुलाया। दोनों अंदर गए। इंस्पेक्टर उन्हें शवगृह में ले गए। संजय के दिल पर जैसे दावानल फट रहा था। उसके पैर काँप रहे थे। दिल की धड़कन बढ़ गयी थी। संजय ने वह दुर्योधन के हाथ जोर से पकड़े रखा। दुर्योधन उसे आश्वासन देते उसके हाथ को थपथपाए और अंदर ले गए। वहीं पर खड़े कांस्टेबल ने एक शव के ऊपर से परदा हटाया। संजय ने अपनी साँसों को रोक कर रखा था। भगवान से बार-बार प्रार्थना करता रहा कि वह उसकी बेटी न हो। शव को देख दोनों बाहर आ गए। दोनों कुछ आस्वस्थ महसूस कर रहे थे। दुर्योधन ने संजय के काँधे पर हाथ रख उसे दिलासा दिया।

"चिंता मत करो संजय अनन्या जहाँ भी होगी ठीक ही होगी। वह इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है। भगवान के ऊपर भरोसा रखो और अनन्या पर भी। वह बहुत जल्द वापस आएगी। मुझे तो यह चिंता हो रही है कि जिन्होंने उसका अपहरण किया उनका क्या होगा? उनका तो भगवान ही मालिक है।'' ऊपर देखकर अभिनय करते हुए कहा। अब संजय गर्व से मुस्कुरा दिया।

चलो फिर कल मिलते हैं। अगर कुछ और पता चले तो मुझे बताना जरूर। इन चार दिनों में अनुराधा अनन्या के बारे कोई 50 बार पूछ चुकी है। संजय उसको दिलासा दे रहा था लेकिन कैसे बताता कि उसका अपहरण हो गया है। दुर्योधन ने संजय से बिदा लेते कहा, "मेरी पत्नी पलँग पर से उठ नहीं सकती नहीं तो पूरा घर सिर पे उठा लिया होता। अनन्या को अपना जो मानती है पगली। उसे न देखकर उसकी बहुत चिंता कर रही है, घर पहुँचते ही सवाल करेगी इसलिए उसे बिना बताये आ गया हूँ। संजय से बिदा लेकर वह अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया दुर्योधन।

##

साहिल और गौरव भिवंडी बाजार के उसी टी स्टाल पर खड़े रहे जहाँ से बाजार का नज़ारा काफी हद तक नज़र आ रहा था। वे उस बुजुर्ग आदमी रमेश की तलाश में थे जिनसे उन्हें कुछ जानकारी मिलने की उम्मीद थी। पूछ-ताछ करने पर पता चला कि वह बुजुर्ग कई दिनों से दिख नहीं रहे हैं। कारण किसी को भी नहीं पता। आस पास लोगों को पूछताछ करने पर रमेश का घर का पता मिला। जैसे ही दोनों बस्ती में जाने के लिए निकले, चाय बेचने वाले साजिद ने एक लड़के की ओर दिखा कर कहा, "उस लड़के को पूछो, वह उस आदमी का पोता है, वह आपको पहुँचा देगा।"

दोनों ने उस लड़के को पास बुलाया और उसके घर का पता पूछा। उसने इधर-उधर देखा और जल्दी से वहाँ से जाने लगा। उनके बुलाने पर भी बिना पीछे देखे मिनटों में वहाँ से गायब हो गया। कुछ समय इंतज़ार करने के बाद वे बाइक लेकर एक गली में मुड़े ही थे सामने वह लड़का दिखा। गौरव बाइक से उतर कर उसके पास गया। साहिल भी बाइक को रास्ते के किनारे खड़े कर आगे बढ़ा। पूछने पर उसने बताया कि उसका दादू की तबियत ठीक नहीं है। साहिल और गौरव छोड़ने वाले नहीं थे। पहले भाग जाने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वहाँ किसी से बात करना उसके लिए खतरे से खाली नहीं था। दोनों उस लड़के के साथ उसके घर गए और रमेश से बात करके दोनों वापस आ गए।

वहाँ से वे अपने बाइक पर शहर छोड़ बाहर आ गए। करीब 100 किलोमीटर शहर से दूर आने के बाद साहिल ने बाइक रोक दिया। दोनों बाइक से उतरे। जंगल की ओर देखते हुए साहिल ने कहा," तू यहीं रुक गौरव मैं अभी देखकर आता हूँ। रमेश चाचा की सूचित की हुई जगह यही कहीं हो सकती है।

साहिल रास्ते से कुछ दूर जंगल की तरफ चल पड़ा। जंगल बहुत घना तो नहीं था पर कुछ ही दूरी पर एक नदी दिख रही थी। उसके ऊपर एक लकड़ी का ब्रिज बनाया गया था। नदी को पार करने के लिए उस छोटा-सा ब्रिज बहुत काम आता था। दो किनारों को स्पर्श करते बहती नदी की धार पहाड़ी के कई मीलों ऊँचाई से गिरते सँभलते लचकते बहकते चली आ रही है। नदी का सौंदर्य अक्सर लोगों को अपनी और खींच ले आता है। साहिल ने उस नदी के एक किनारे पर खड़े होकर चारों ओर नज़र ड़ाली।

कई प्रेमी जोड़े एक दूसरे की बाँहों में बाँहें ड़ाले प्रकृति का सौंदर्य अवलोकन कर रहे थे। साहिल की नज़र उनमें से अनन्या को ढूँढने की कोशिश कर रही थी। कुछ बच्चे, बुजुर्ग बाँध पर खड़े पानी के बहाव को देख रहे थे तो कोई अपने कैमरे में नदी के सौंदर्य को कैदकर रहे थे। सूरज अस्त होने को था। आकाश के रंगीन नज़ारे सैलानियों को खूब लुभा रहे थे। सूरज की सुनहरी और लाल मिश्रित किरणें नदी के पानी में झिलमिला रही थीं।

कुछ लोग नदी के किनारे एक ओर ठेले गाड़ी में चने और बर्फ का गोला बेच रहे थे। कोई आइसक्रीम और कुल्फी बंद डब्बे में बेच रहा था। नदी का पानी पत्थर पर टकरा कर पानी के छींटे उड़ते हुए लोगों को भिगो रहे थे। नीले गगन में डूबते सूरज के साथ उगता हुआ चाँद नदी के जल में लहरा रहा था। सूरज और चाँद एक समय पर प्रेमी युगल की तरह लहरों में झूमते दिख रहे थे। डूबते सूरज की किरणें जल में प्रतिबिंबित होकर आभासी इंद्रधनुष सी प्रतीत हो रही थी। उस रंगीन जल में तैरता चाँद लहराते हुए जैसे नक्षत्रों के बीच रास क्रीड़ा में निमग्न था। स्त्री पुरुष सभी उस रंगीन शाम का मज़ा ले रहे थे। कुछ लोग ब्रिज के नीचे पानी में तैरने की तैयारी कर रहे थे।

सभी के चेहरोँ को ध्यान से देखते हुए साहिल की नजर अचानक एक चहरे पर अटक गई। आश्चर्य और शॉक से वह देखते रह गया। ऐसी कोई बात उसने कभी उम्मीद ही नहीं कर सकता था। लेकिन वह सच उसके सामने यथार्थ बन खड़ा था। उसकी आँखोँ पर विश्वास करना मुश्किल था। उसके पिता किसी दूसरी औरत के साथ आँखों में आँखें बाहों में बाहें डाले हँसकर बात कर रहे थे और वह स्त्री शरमाते हुए साहिल के पापा से कुछ कह रही थी। उसका एक हाथ अभिनव के सीने पर था। दोनों बिलकुल एक अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे। वह अपने में इतना मशगूल थे कि साहिल के कुछ दूर खड़े होकर उन्हें देखने का उन्हें पता तक नहीं चला।

साहिल के पैर लड़खड़ा गये। वह एक पत्थर का सहारा लिए उस पर बैठ गया। अपने पापा को किसी दूसरी औरत की बाँहों में देख शरीर उसका काँप उठा। क्रोध और दुःख एक साथ उसे चारों ओर से घेर गए। माँ, माँ इन्, सब से अनभिज्ञ कितने भरोसे के साथ पापा का इंतज़ार करती है। हर छोटी-छोटी जरूरत को उनके कहने से पहले ही तैयार रखती है।

"भोली भाली माँ को धोखे में रखकर अभिनव का किसी दूसरे औरत के साथ ... इस तरह। उफ़," उसके बरदाश्त के बाहर था। सीधा जाकर उसके पिता का कलर पकड़ पूछने को मन किया। लेकिन सरे आम उनकी बे इज्जती करने से उसकी ही बदनामी होगी। वह वक्त और हालात की नजाकत को देख चुप रहा। जिस काम से वह यहाँ आया है पहले उसे पूरा करना है। अभी इस वक्त अनन्या को ढूँढना जरूरी है। अनन्या की जान खतरे में है, किसी भी वक्त उसे कुछ भी हो सकता है। साहिल चुपचाप वहाँ से चला आया ।

गौरव ने पूछा, "क्या हुआ कुछ दिखा?"

"वहाँ कुछ नहीं गहरी खाई है, चलो यहाँ से चलते हैं।" सिर हिलाते कहा।

"ठहरो, मैं इस तरफ देख कर आता हूँ ।" गौरव भी कुछ दूर जाकर वापस लौट आया उसे कुछ नहीं मिला।

वापस लौट कर साहिल से कहा, "साहिल अभी दो दिन गुजर चुके हैं अभी तक रैनसम के लिए कोई फ़ोन भी नहीं आया, न ही अब तक किडनैपर का कोई सुराग मिला। न जाने अनन्या किन हालात मैं है। भगवान करे सही सलामत हो।"

"कुछ नहीं होगा अनन्या को,... सुन रहा है न तू ..... कुछ नहीं होगा । मैं लेकर आऊँगा उसे सही सलामत। कुछ नहीं होगा उसे, कुछ नहीं होगा।" साहिल की आवाज़ में उसकी बेबसी नज़र आ रही थी। जब से अनन्या का किडनैप हुआ तब से साहिल व्यथित है।" गौरव ने उसे शांत कराया और बाइक पर बिठाकर पानी पिलाया।

गौरव ने बाइक पर बैठते हुए कहा, "साहिल चिंता मत कर हम ढूँढ लेंगे। मैं हूँ न तुम्हारे साथ, हम मिलकर पता लगा लेंगे। ला चाबी दे। तू पीछे शांति से बैठ मैं बाइक चलाऊँगा।" गौरव ने गाड़ी स्टार्ट की।