दूसरा आखिरी पन्ना। रामानुज दरिया द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दूसरा आखिरी पन्ना।

अब बात नहीं होती, न ही fb पर रात - रात भर चैट होती है। काफी दिन गुजर जाता है, न ही कोई मैसेज न ही कोई call। सब बन्द पड़ा है अगर एक तरफ से hello आ भी जाता है तो दूसरी तरफ से रिप्लाई नहीं आएगा।
ऐसा नहीं कि दोंनो तरफ से प्यार दफन हो गया है लेकिन हाँ दफनाने का प्रयास भरपूर किया गया है। अगर वक्त और हालात ने साथ दिया तो ओ पूर्णतया दफन भी हो जयेगा।
चलो ये भी अच्छा है। लेटे - लेटे आशु सोंच रहा था कि देखो कैसे सारी रात गुजर जाती थी बातों - बातों में और पता भी नही चलता और वही रात लगता है की कितनी भारी हो गयी। जब प्यार में थे तो कैसे - कैसे रहते थे ।
मज़ाल था कि बिना प्रेस किये कपड़ा पहन कर office चले जायें, बिना पॉलिश के किये सूज़ पैर में डाल लें, वही दर्पण बार - बार देखा जाता था। वही फ़ोन जो हाथों से एक पल के लिये भी दूर नहीं होता था।
उसके साथ - साथ जिंदगी के सारे तौर - तरीके बदल गये। कैसे लाइफ में इश्क के साथ परिवर्तन होता है।
तब और अब में कितना फ़र्क हो गया है । अब तो जैसे भी मिल गया पहन लिया, जो भी मिल गया खा लिया, क्या पसंद क्या न पसंद, क्या प्रेस क्या न प्रेस कौन देखने वाला है कौन कहने वाला है कि ज़रा सेल्फी भेजो मुझे अभी इसी वक्त की। फिर इतना मेन्टेन होने की जरूरत ही क्या है। एक महीना होने को हो गया लगभग लेकिन धुलने की तो बात क्या जूते पर पॉलिश तक नहीं हुयी है।
स्टाफ के लोग चिढ़ाते हैं क्या हो गया मलिक्ष बनकर चले आते हो। पागलों जैसे भेष - भूषा बना रखे हो।लेकिन उसके ऊपर कोई फर्क नी पड़ता। जो दर्पण नजर के सामने से हटता नहीं था अब वही कई कई दिन बीत जाता है नजर के सामने पड़ता है नही है।
ऐसा नहीं है कि आशु को ये सब बातें पता नहीं थी लेकिन
लेकिन इतनी जल्दी इस पर विराम लग जायेगा इसका अंदाज़ा आशु को भी नही था।
आशु को याद है आशी को ओ अंतिम शब्द जिसमें उसने कहा था कि अब आप मुझे भूल जाओ और अब आगे से बात नहीं कर पाएंगे और न ही इस रिस्ते को आगे बढ़ा पायेंगे। आशु के क्यूं का जवाब देते हुये उसने समझाया था कि देखो मेरे सामने मेरे माँ- बाप का सम्मान पहले एवम सर्वोपरि है। कल मेरी माँ ने आपसे बात करते हुए मुझे सुन लिया था। उन्होंने मुझसे कुछ कहा तो नहीं लेकिन छोटी बहन से कह रही थी कि तुम्हारी दी तो आजकल फ़ोन पर लगी रहती है। और आशी को यह बात मां की बहुत खल गयी। बहुत ही द्रवित स्वर में उसने अपनी यह बात बतायी और बहुत ही स्पस्ट कर दिया कि अब आप मुझे भूल जाओ। आशु का जो question था जो बहुत ही लाज़मी था कि हम आप को भूल नहीं पाएंगे। मैं आपके बगैर जी नहीं पाऊंगा। दिल चीरता हुआ जो रिप्लाई था आशी का कि मेरे मिलने से पहले आप जिंदा नहीं थे , क्या उसके पहले मेरे ही सहारे जिंदगी काट रहे थे। मेरे से बकवास की बातें मत करो।
कोई मरता वरता नहीं है।
उसके इस भयावह प्रश्नों का उत्तर आशु के पास बिल्कुल नहीं था वह निरुत्तर हो चुका था उसके पास बस दो ही ऑप्शन थे एक तो उसे भूल जाये दूसरा आशी को मर के दिखा दे। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही माना जाये कि इन दोनो में से एक भी आशु के हाथ में नहीं था। हालांकि आशु ने भरे गले से भूल जाने की सहमति दे दी थी। आशु किसी भी कीमत पर आशी को छोड़ना नहीं चाहता था क्योंकि आशी धीरे धीरे उसके आदत में शामिल हो गयी थी।
ओ जब तक उसको देख नहीं लेता उसको चैन नहीं आता। मज़ाल था कि बिना बात किये ही सो जाये। और ये भी था कि जिस दिन बात नहीं होती थी उस रात तो वह जाग के ही काट देता था।
लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योंकि काफी दिन हो गया बात नहीं हुयी। अब तो आशी मैसेज का रिप्लाई भी देना उचित नहीं समझती है। किसी ने कभी कहा था कि जितनी मोहब्बत तुम मुझसे करते हो ,उतनी तो हम खैरात में बांट देते हैं। अब तो बस ओ fb स्टोरी देखने आती है ओ भी बिना लाइक और कमेंट के लेकिन बहुत ही जल्द ओ ये भी करना बंद कर देगी।
यह कलयुग है साहब यहां किसी के पास धैर्य नहीं है और न ही कोई इसे दूर तक ले जाना चाहता है।
एक अजीब टाइप की पागल लड़की थी आशी, अगर ठीक से कैलकुलेट किया जाय तो अभी मुश्किल से चार महीना भी नहीं हुआ होगा लेकिन इसी चार महीने में चार बार अपने रिस्ते को खत्म करने का प्रयास कर चुकी है। झटके पे झटके देना अब उसकी आदत में शामिल होता जा रहा था लेकिन ओ करे भी तो क्या, ओ उस उम्र के पड़ाव से गुज़र रही थी जिसमें एक कंधे की जरूरत होती है जिस पर सर रख के रो सके, एक ऐसे सख्स की जरूरत है जिससे ओ अपने दिल की बातें शेयर कर सके , अपनी बातें कह सके।
परिवार के साथ रहना तो अच्छा लगता है क्योंकि उसमें आप अपनी बातें लोगों से कह सकते हैं मगर इसके बावजूद भी बहुत सी बातें होती है जो इंशान घर में नहीं कर सकता है और खास कर तब जब दिल जवां हो।
जवां से आपको बताते चलें कि आशी की उम्र अभी कोई 23 -24 साल होगी लेकिन जो उसके चेहरे की चमक है वह 18 साल की लड़कियों को पीछे छोड़ देती है।दमकता हुआ चेहरा और उस पर घुटने तक लम्बे घने काले बाल उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती है। वैसे भी आशु को सबसे ज्यादा वही पिक पसंद आती थी जिसमें वह अपने लम्बे बालों से चेहरे को ढक के आती थी।
आशी अपने परिवार के साथ रहती है इसलिए उसे अनुमति नहीं है नाजायज किसी से फ़ोन पे बात करना व भी शादी से पहले। उसके पिताजी थोड़ा कड़क स्वभाव हैं जो उसके प्रिये भी हैं औऱ उसका ख़ौफ़ भी। उसके पिता जी के कड़क स्वभाव का असर अक्सर उसके चेहरे से साफ - साफ झलकता है। लेकिन फिर भी आशी एक भरी पूरी लड़की है। उसके बदन से इत्र की खुशबू तो नहीं आती लेकिन मादकता वाली खुशबू जरूर आती थी। उसके आंखें बेशक झील और सागर जैसी नहीं थी और साइज में छोटी थी लेकिन अपनी तरफ आकर्षित करने का हुनर रखती थीं। बिना स्पर्श और पास से देखे बगैर आप किसी के बारे में बहुत ज्यादा तो नहीं बता सकते लेकिन हां जिस तरह ओ करीब हुई थी, जिस कदर उसने अंतर्मन को छुआ था कि रोम रोम तक का की व्यख्या करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती । उसके ओंठ गुलाब की पंखुड़ी जैसे कोमल तो नहीं थे लेकिन आप उस को करीब से देख कर खुद को रोक नहीं सकते थे।
जो पहली बार देखता है ओ देखता ही रह जाता है।
बहुत ज्यादा तो खूबसूरत नहीं थी लेकिन इतना जरूर थीं कि उससे मिलने के बाद आप किसी और से मिलना पसंद नहीं करोगे।
आशी को ये पता था कि ओ इस रिस्ते को दूर तक नहीं ले जा सकती लेकिन फिर भी उसने शुरुआत कर दी। शायद इसीलिए ओ बार - बार ब्रेक कर रही थी क्योंकि एक तरफ उसकी बेपनाह मोहब्बत और दूसरी तरफ उसका परिवार। दोनों में समझौता नहीं करा सकती थी क्योंकि ओ अपने प्यार को पब्लिक नहीं करना चाहती थी। कारण कुछ भी हो , चाहे इसे पिता जी का डर समझ लो या फिर सम्मान या फिर मान लो कि उसमें हिम्मत नहीं थी। या फिर आप ये भी मान सकते हैं कि चार महीने में ऐसा कौन सा प्यार हो जाएगा जो 24 साल पर भारी हो जायेगा। और अगर मान लो कि भारी हो भी जाता है तो किसके लिये, आशु के लिये जिसमें अपनी ही बात का विरोध करने की हिम्मत नही है, जो खुद शादी शुदा है।
वैसे आशु बहुत स्मार्ट तो नहीं है लेकिन हां तीस की उम्र में भी तीस साल जैसा नहीं लगता। उसकी बातों में मिठास और शब्दों में शालीनता है। आशी कह रही थी कि उसकी आंखें उसे बहुत पसंद है हालांकि आशु को इन सब का बहुत अच्छा अवलोकन नहीं आता, हां अगर कोई कह देता है कि आज अच्छे लग रहे हो तो उसी में खुश हो जाता।
आशी अपने चारों भाई बहन में सबसे बड़ी थी इसलिए ओ नहीं चाहती थी कि कोई मेरी ऐसी हरकत सामने आए जिसमे मेरे माँ बाप को सर झुकाना पड़े और न ही मेरे छोटे इसका आ अनुसरण करे। आशी ही क्या गांव का अभी भी जो संस्कार है उसमें किसी लड़की का लड़के से बात करना, मिलना मिलाना अपराध की श्रेणी में माना जाता है और पुरुष समाज इसे अपने सम्मान कर ख़िलाफ़ मानता है बसरते की जिसकी बेटी हो। क्योंकि हमारे यहां लड़की/ स्त्री को लक्ष्मी का दर्जा दिया जाता है और उसकी पूजा की जाती है इसलिए घर की पहली इज़्ज़त लड़की ही होती है। इसलिये आशी के लिये अब दिन ब दिन मुश्किलें बढती जा रही थी। दिन उसके भी गुजर रहे थे किसी तरह। ओ तो ठीक से रो भी नहीं सकती थी क्योंकि परिवार के साथ रहती है और सब को पता चल जायेगा।हां ये है कि उसको दर्द दफन करने का तरीका पता है।
आशु अपने प्यार को भुलाने का हर संभव प्रयास कर चुका लेकिन सारी नाकामयाब कोशिश ही रहती है। लेकिन उसे भरोसा है कि एक न एक दिन ओ उसे भूल कर ही रहेगा। अभी तो खैर आशु पूर्णतयः पागल नहीं हुआ है लेकिन आस - पास से वाले इसका जिक्र बातों बातों में करने लगे हैं कि जल्द ही आशु पागलों की श्रेणी में आ जायेगा क्योंकि उसकी हरकते अब अजीबो गरीब हो गयी है। हालांकि आशु अपने स्तर से कह रहा था कि ओ आत्महत्या नहीं करना चाहता है क्योंकि उसके पीछे उसका परिवार भी है लेकिन ख्याल उसके दिमाग मे कई बार आ चुका है। लेकिन कंट्रोल भी कर लेता है वरना अब तक तो ........।
लेकिन पता नहीं क्यों उसको आशी के बगैर अब जीवन का स्तित्व समझ में नहीं आता। काम में भी अब उसका मन नहीं लगता आये दिन रूम में पड़ा रहता है आफिस तक नहीं जाता। और बहुत समय नहीं कि ओ काम छोड़ कर वापस अपने गांव चला जाये। खाने पीने पर ध्यान न देने की वजह से अब स्वास्थ्य में भी गिरावट आने लगी है
हो सकता है कि इस प्यार का दूसरा आखिरी पन्ना ही आखिरी पन्ना हो जाये। और जीवन अमरत्व की तरफ बढ़ जाये।