दरिया - एक ग़ज़ल संग्रह रामानुज दरिया द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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दरिया - एक ग़ज़ल संग्रह

बसंत

संत की भंग होत तपस्या

जब बसंत के आगमन होत हैं

महक उठे गोरी के अंग –अंग

जब पवन मंद- मंद चलत हैं

साजन- सजनी रहें संग-संग

जब सुमन को भंवर तंग करत हैं

पांव में पायल बाजे छना-छन

जब नयनों से तीर दना-दन चलत हैं

आती है गोरी जब सामने मेरे

जिया मोरा धका-धक करत है

रसालों का योवन चूस लिए

तब भंवरे कैसे भना-भन करत हैं

बगिया में कोयल कूँ –कूँ करे

जब अमुआ सब बौरे लगत हैं

किसानन कय जियरा गद-गद होय

जब गेहुवन में गलुआ लगत हैं

मनवा मां सबके पीर उठत हैं

जब बसंत के आगमन होत हैं

गज़ल

पतझड़ न परेशान कर

गिर रहे हैं एक-एक कर

पत्तों की बेबसी पर

अब न विचार कर |

उम्र की न सीमा है

टूट कर न जीना है ,

छोड़ साख को

अब न सलाम कर |

घना अँधेरा भी है

चाँद का पहेरा भी है,

बारिश आकर तू

चांदनी न बेकार कर||

महंगाई का दौर है

समेट चाहत को ले,

खड़े बाजार में होकर

बेवजह न भाव कर |

क्यों दुशमनी निभाने लगे

वादा दोस्ती का कर ,

खंजर सीने में उतार दे

अब न पीछे से वार कर ||

प्रेम स्वाद के कई ,

चख कर ऐतबार कर |

खुद से है तो सही

औरों से , तो और सही ,

समभाल कर रख इसे

सरेआम न बदनाम कर ||

गज़ल

न जाने कितने बदल गए

हवाओं ने बेरुखी की

सारे मौसम बदल गए |

तख्त-ए –ताज बदल गए

दिलों के सरताज बदल गए

जब मोहब्बत हमने की

सनम के अंदाज बदल गए |

सादगी में जीने क्या लगे

उनके तो atitude बढ़ने लगे

जब तेवर हमने दिखाए

सतरंज के सब चाल बदल गए |

प्यार के इम्तहां में फेल हो गए

अस्कों के भी कई खेल हो गए

अंदर थे तेरी मोहब्बत बनकर

बाहर आते ही दरिया से मेल हो गए|

पूँछ लो आज दिल से मेरे

कितनी मोहब्बत है तेरे लिए

हाल-ए –दिल क्या बयाँ किया

तेरे सारे किरदार बदल गए |

हवाओं ने बेरुखी की

सारे मौसम बदल गए ||

गज़ल

उठ चल दो कदम चार

हरगिज़ तू न मान लेना हर

भर तू हौंसलों में उड़ान

जाना है तुझे गगन के पार

उठ चल ........................

वक्त भी तेरा होगा

और कायनात भी तेरी

ठान ले तू इस बार

पहन परिश्रम का हार |

उठ चल ......................

दूर मंजिल नहीं तुझसे

चूम ले सफलता का मुकाम

खा कसम खुद से इस बार

जाना है तुझे गगन के पार |

उठ चल .............................

उठा मेहनत का हथियार

बदल दे हर वक्त की मार

कोई बाँध टिक नहीं सकता

बन जा तू नदिया की धार |

उठ चल ............................

पहचान तू खुद को एक बार

जुनून ले दिल में उतार

हर शब्द तेरा quotation होगा

रच नया इतिहास इस बार |

उठ चल दो .........................

गज़ल

प्यार के उस पार गया हूँ मैं ||

परिवर्तन की मार से

हार गया हूँ मैं ||

प्यार के उस पार गया हूँ मैं ||

इस पार मीठी बातें हैं

उस पार काली रातें हैं

बातों भरी रातों से

उद्धार हो गया हूँ मैं

प्यार के उस .............

जान दे देंगे

पर जाने नहीं देंगे ,

बसा दिल में लिए हो

तो मुश्कुराने नहीं देंगे ,

दिव्धारी तलवार का

शिकार हो गया हूँ मैं

प्यार के .................

इस पार जान देने की कसमें हैं

उस पार जान लेने की रसमें हैं

लेन-देन का बाज़ार हो गया हूँ मैं

प्यार के उस ..........................

पतझड़

इक बार ही सही ए सनम ,

उस पार ले चलो |

इस पतझड़ से मुझे,

बसंत विहार ले चलो ||

साख से टूटे हुए पत्ते ,

मुझे बहुत चिढ़ाते हैं |

कुमुदनी के संग मुझे ,

गुलशन के द्वार ले चलो ||

इक बार .....................

सितम ढाती है ये ठंढी ,

गरीबों पे सनम |

शुरुआत इसकी भी कराती है,

ये पतझड़ ही सनम ||

रजाई गर्मी की , न संभाल पाती है

मुझे जेठ की मास ले चलो ||

इक बार .............................

बंजर धरती पर फूल,

खिलें भी तो कैसे |

मुझे दिलों के उपजाऊ ,

मैदान ले चलो ||

इक बार.................

महसूस तो कर मुझे ,

कंपकंपाती ठंढीयों संग सनम |

मुझे अक्टूबर से,

फ़रवरी मार्च ले चलो ||

इक बार ...................

यूं तो पतझड़,

उदासी का प्रतीक है सनम |

मुझे मुश्कुराती,

‘दरिया ‘ के पास ले चलो ||

ग़ज़ल

ये रोशनी अब मेरे द्वार चल

अंधकार में डूबी है जिंदगी

थोड़ा उस पर भी विचार कर

ये रोशनी ................................

मेरे दिल में सुलगती उसकी यादें हैं

उस पर खड़ी अब दीवार कर |

ये रोशनी ....................................

कुछ तश्वीर आंशुओं से भिगोई है ,

कुछ जख्मों को दिल में संजोया है |

रोशनी अपना तेज प्रताप कर ,

जला कर इसको अब राख कर |

ऊब गया हूँ मै इस प्रेम जाल से ,

माया से अब मुक्ति के द्वार चल |

ये रोशनी..................................

ग़ज़ल

दो घूंट जहर की बस मुझे पिला देना

जिंदगी-ए–सफ़र की रोशनी मिटा देना

जिंदगी जहन्नुम से बद्तर बना देगी

नफ़रत किसी जिंदगी में मिला देना

दो घूंट ..........................................

हर रिश्ते को मिटाने की ताकत है

बस गलतफ़हमी रिश्तों में सज़ा देना

दो घूंट .........................................

बेंड़ीयां ज़माने की जकड़ नहीं सकती

मोहब्बत किसी की दिल में बसा लेना

दो घूंट ...........................................

ग़ज़ल

ये जिंदगी तुझसे,

अब आस नहीं कोई |

मेरे सर पे धूप रहने दे ,

न चहिये छांव अब कोई ||

सताने लगे हैं ,

ये उजाले भी मुझे |

अंधेरों में न रही ,

औकात अब कोई ||

ये जिंदगी .....................

नफ़रते हुश्न का जलवा तो देखो

टूट कर आइना भी कहता है

“ये मनहूस चेहरा”

तुझे कितना बरदास करे कोई ||

ये जिंदगी ......................

रूठ के यूं न जा, ये जिंदगी मेरी

जख्म बन जाएगी बस ये यादें तेरी |

तड़पना मेरी बस मुक्कदर में है ,

वरना बाँहों में होती मोहब्बत मेरी |

रूठ के यूं .............................

चाह के भी न होती कम ये चाहत मेरी,

न गुजरती है बिन तेरे ये रातें मेरी|

रूठ के यूं .................................

मैखानों की दुनिया से क्या वास्ता,

तेरे नैनों से बुझती है प्यासें मेरी |

रूठ के यूं ...............................

नारी

नारी के बारे में कुछ भी कह पाना मुस्किल है क्योंकि नारी का जीवन ही अपने आप में अद्भुत है फिर भी एक छोटी सी कोसिस ........................................................................

नारी वही जो नार को सताती है ,

नारी वही जो जीवन नरक बनाती है |

नारी में दुर्गा का वास है ,

नारी ही विश्वासघात है|

नारी इज्ज़त नारी ही सम्मान है,

नारी गीता नारी कुरान है |

नारी हिन्दू को भी बना देती मुसलमान है ||

नारी धर्म नारी ही लज्जा है ,

जिंदगी का श्रंगार नारी साज़ सज्ज़ा है |

नारी मानव के लिए भगवान का वरदान है ,

नारी उलझन नारी ही समाधान है |

नारी नरत्व की खान है ,

नारी पुरुस के समान है |

नारी सुबह की पहली किरण है ,

नारी जिंदगी की महकती शाम है |

हर तरफ नारी का नाम है ,

नारी ही समाज में बदनाम है|

नारी जन्म दाता है ,

नारी भाग्य बिधाता है |

नारी अर्चन नारी बंदन ,

नारी धरा की पहचान है |

नारी बिन जीवन सूना समसान है ||

नारी सृस्टी नारी विनाश है ,

नारी धरती पर ही नरक वाश है |

नारी त्याग नारी तपस्या है ,

नारी का ही एक रूप वैश्या है|

नारी मंथरा,कैकेयी,होलिका है ,

नारी ही जलवा देती सोने की लंका है |

नारी माता ,बहन ,भौजाई है ,

नारी भाई को भी बना देती कसाई है |

नारी गीत नारी संगीत है,

नारी संगम और प्रीत है |

नारी शराब नारी नशा है,

नारी शाम का असली मज़ा है|

नारी समर्पण, शक्ति का अहसास है,

नारी भूत-प्रेत और अंधविश्वास है|

नारी गाँव की गरीबी है ,

नारी ही गाँव का संस्कार है |

नारी शहर की अमीरी है ,

जहां नारी होती हवस जा शिकार है ||

नारी भोग नारी विलाश है ,

नारी से पटा पूरा इतिहास है|

नारी ईर्ष्या ,द्वेश, कलह की जड़ है,

नारी ही नर की एक अकड़ है |

नारी “दरिया” धारा किनारा है ,

नारी में डूब गया समाज का तारा है |

नारी जेठ की दुपहरी है,

नारी बारिश की पहली फुहार है |

नारी जीवन का पतझड़ है,

नारी मदमस्त पवन बहार है ||

गज़ल

कमजोरियों का करता शिकार था ओ

सुना है कि बहुत समझदार था ओ

बिखेर देता फूल कदमों तले पहले

फिर करता काँटों से वार था ओ

निश्छल ,निर्मल पावन था ओ

सुना है बड़ा मन भावन था ओ

ये सपनों के शब्द हैं साहब

दिल से तो बड़ा मक्कार था ओ

शिकार को पहले शिकंजे में लेता

मौका पाते ही दबा पंजों में लेता

दिमाग का करता बलात्कार था ओ

सच में बड़ा मक्कार था ओ ||

ग़ज़ल गम

लिपटकर रात भर मेरे साथ सोता है

जाने क्यूं मेरे साथ ही ऐसा होता है |

उतार देता हूँ बदन से हर कपड़े अपने

पता चलता है ओ रूह में उतरा होता है |

जी चाहता है निकल फेंकू ये रूह भी अपनी

ध्यान गया तो देखा रोम –रोम में बसा होता है |

मेरा गम से इतना गहरा नाता है

आँख खुलती है तो कोहरा सा होता है |

मां

ये मां जब भी तेरी याद आती है

मेरा दिल तेरी आंचल में लिपट जाना चाहती है

धूप में आंचल की छांव दी हो

सर्दियों में तन को पसारा हो

बारिस की बूँदें जिसे छू न सके

जतन भी किया कितना सारा हो

चरणों में जिंदगी ठिकाना चाहती है |

मेरा दिल .....................................

मेरी खुशियों से खुश हो जाती है

कितने दुखों से मुझको संभाला है

मेरी हर सांसों में बस तू रहे मां

सांसें भी तुझमें समा जाना चाहती हैं |

मेरा दिल .......................................

कभी लोरी सुनाती

कभी थपकियां देकर सुलाती

कभी आंचल में छुपाती

कभी मुझमें खुद खो जाती

उम्र भी गोदी में बिखर जाना चाहती है |

मेरा दिल ......................................

ग़ज़ल

आज़ देखने की तमन्ना क्या हुयी

सारे सहर में हंगामा हो गया |

गलियों से उनके गुज़रे ही थे

दुश्मन-ए- सारा ज़माना हो गया |

जी भर के उसे देखा जो हमने

अपना दिला भी बेगाना हो गया |

कुछ लम्हे थे प्यारी बातों से

सारा शहर उसका दीवाना हो गया |

कसमें खायी थी संग रहने की

दिल मेरा ,उसका ठिकाना हो गया |

मदहोश सी बोली यूं रोज़ मिला करेंगे

बहाना –ए –अंदाज़ कातिलाना हो गया |