लहराता चाँद - 15 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लहराता चाँद - 15

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

15

अगले दिन से अनन्या ने घर और ऑफिस में अपना काम सँभाल लिया। ऑफिस में अनन्या की कामयाबी से सभी ने उसको बधाई दी। दफ्तर पहुँचते ही रोज़ की तरह अनन्या अपने काम में डूब गई। इन दिनों की छुट्टी से टेबल पर फाइलें भर गई थीं। वह उन फाइलों को समेट कर एक एक कर ध्यान से देखने लगी। सौरभ और अंजली के तैयार किये हुए कागजों को पढ़ अगले दिन की रिपोर्ट तैयार करने में मग्न हो गई।

तभी रामू काका गरमा गरम कॉफी ले कर आये। " बीबीजी कॉफ़ी ।"

- "काका जी, आप कॉफ़ी भी ले आये। मुझे सच में कॉफ़ी की सख्त जरुरत थी और पानी की भी।"

-" हाँ बिटिया, कॉफ़ी के साथ पानी भी ले आया हूँ। सुबह से आप इतनी व्यस्त हो इसलिए सोचा गर्म कॉफ़ी पी लो तो काम करने में मन लगेगा। इसलिए दोनों ले आया।" पानी की ग्लास आगे बढ़ाते हुए कहा।

- "आप हमारा कितना ख्याल करते हैं काका, बिना कहे ही आप जान गए, शुक्रिया।"

- "क्यों शर्मिंदा करती हो बिटिया म्हारा काम तो यही है। आपको बधाई, आप को टीवी पर देखकर बहुत खुशी हुई। म्हारी घरवाली और छोकरी को भी दिखाकर कहा ये हमरी बीबीजी हैं। पता है म्हारी छोरी ने कहा, कांग रा टू लाशन बोलना बीबीजी से।" शब्दों को जोड़ते हुए कहा।

अनन्या हँस पड़ी और कहा, "नहीं काका ऐसे नहीं उसे कॉन-ग्रा-चू-लशन कहते हैं।"

"हाँ वही बीबीजी, कांग रा चु लाशन"

"हमारी छोरी ने कहा कि अंग्रेजी में बधाई देना।"

- अनन्या हँस के पूछा, क्या पढ़ती है तुम्हारी बेटी?

- "म्हारी छोरी पाठशाला में 11वी कक्षा में पढ़ती है, बीबीजी। उ बड़ी होकर दफ्तर में काम करेगी आप की माफिक।"

- अरे वाह काका, बहुत अच्छी बात है। बेटिया को खूब पढ़ाना। क्या नाम है तुम्हारी बेटी का?

- "गुड़िया बीबीजी। "

- "बहुत सुंदर नाम है। गुड़िया को खूब पढ़ाना अगर कभी कोई मदद की जरूरत पड़े तो मुझे बताना।"

- "ना बीबीजी, अब तो सब कुछ ठीक है घर मा।"

-" फिर भी, आप जितनी शिद्दत से काम करते हो हमारा भी कुछ फर्ज़ बनाता है आपके लिए कुछ करें। आप को किसे कब क्या चाहिए सब कुछ पता है, बिना कहे ही वक्त पर पहुँचा देते हैं आप।"

- "कई साल से यहाँ काम करता हूँ। अब दफ्तर म्हारा दूसरा घर बन गया है। यहाँ काम करना तो म्हारे लिए बड़ी खुशी की बात है। "

अनन्या मुस्कुराकर कागजात से सिर उठाकर रामू की ओर देखकर अपने काम में व्यस्त हो गई। अनन्या 'मिशन हफ्ता वसूली' के सारे अहम मुद्दों को लोगों के सामने लाने के लिए जो भी कुछ समाचार इकठ्ठा किया था वह सब का रिकॉर्ड तैयार करने लगी। कंप्यूटर में कुछ तस्वीरें, लोगों की मुश्किलें और कहाँ से कहाँ तक तार जुड़ी है सब को विस्तार से देखने लगी। उसने गौरव और साहिल को अपने कमरे में बुलाकर गहरी चर्चा के बाद एक फैसले पर पहुँची। इस मिशन में काम करने वाले स्टाफ के खोज बीन के दौरान कई मामले सामने आए। कानूनी और गैर कानूनी मामले में जुड़े अधिकारियों का कच्चा चिट्ठा खुलकर सामने आया। बड़े-बड़े नेताओं से घूस लेकर उन गुंडों का साथ देने वाली पुलिस ऑफसर तक के कई खुलासे हुए। विस्तृत खबरों को प्रमाण सहित ब्रेकिंग न्यूज बनाकर अनन्या अगले दिन की अखबार के लिए भेज दिया।

काम खत्म करके अनन्या अपने कमरे से बाहर आई। सौरभ और अंजली ने उसकी ओर प्रश्नार्थ नज़रों से देखा। तीनों की ओर देखकर अपनी अंगुली को उँचा कर कामयाबी की हँसी उसके होंठों से निकल पड़ी। तीनों खुश थे। आखिरकार उनकी मेहनत कामयाब रही।

- 'कल का अखबार भूकंप की तरह कई नेता और ऑफसर को हिलाकर रख देगा इसका प्रभाव कल का अखबार निकलने के बाद ही पता चलेगा। अब उसे यह देखना था कि इस खबर से अगले दिन प्रसाशन और प्रजा पर क्या असर पड़ेगा।'

*****

अनन्या ऑफिस से सीधे अंजली के घर की और बढ़ गई। जैसे कि वह घंटी बजाई अनुसूया ने दरवाज़ा खोला। सामने अनन्या को देखते ही अंदर बुलाकर सोफ़े पर बैठने को कहा, "आप बैठिए अभी दीदी को बुलाती हूँ।" कह कर वह अंदर चली गई। अनुसूया सालों से अंजली के घर की देखभाल करती है। कुछ समय बाद अंजली की माँ आकर अनन्या के पास बैठी।

- "दादी कैसी हैं आप?"अनन्या ने पैर छूकर आशीर्वाद लिया।

- "ठीक हूँ बेटा। तुम कैसी हो?" आशीर्वाद देते हुए कहा।

- "ठीक हूँ दादी, दादी अंजली आँटी घर पर है?"

- "वह आती होगी तुम बैठो मैं पानी भेजती हूँ।" कहकर वे अंदर चली गई।

अनन्या ने टेबल पर रखा अखबार उठाकर देख रही थी, तभी अंजली की आवाज़ सुनाई दी - "अरे अनन्या , व्हाट अ सरप्राइज, कहो कैसे आना हुआ?" कह कर सोफ़े पर बैठी।

- नमस्ते आँटी, बस आप से बात करने को मन कर रहा था। इसलिए चली आई।"

- अच्छा किया अनन्या, कभी-कभी आ जाया करो, अच्छा लगेगा। अवन्तिका कैसी है?

- हाँ आँटी अवि ठीक है। आप आज क्लिनिक नहीं गई?"

- "बस थोड़ी देर में निकलूँगी। तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ अनन्या।"

- "थैंक यू आँटी। कल आप से ठीक से बात नहीं हो पाई। सोचा कुछ समय आप के साथ बिताऊँ।" अनन्या अनमने सोच रही थी कि बात शुरू कैसे करें।

- "बहुत अच्छा किया। और बताओ कैसी चल रही है तुम्हारी पत्रिका?" अंजली अनन्या के मनोभाव को आँकने की कोशिश कर रही थी। अनन्या को देख साफ पता चल रहा था उसके मन में कुछ कशमकश चल रही है लेकिन कुछ कहने को उसे शब्द नहीं मिल रहे हैं।

- "ठीक है, आँटी। आँटी आप से पापा के बारे में कुछ बात करने आई थी पर कैसे कहूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा। और बात सुन कर पता नहीं आप क्या सोचेंगे इसलिए... " कहते कहते रुक गई।

- "साफ साफ कहो अनन्या तुम्हें समझने की पूरी कोशिश करूँगी।"

- "आँटी आज कल तो पापा बस माँ के ख्यालों में खोये रहते हैं। माँ की मौत का जिम्मेदार खुद को मानते हैं और दिन के आधा समय ख्यालों में रहते हैं। पापा कोई डिप्रेशन का शिकार बन जाये उससे पहले उन्हें इससे बाहर निकलना है।"

- "ये तो चिंता का विषय है, क्या कुछ और बात है जो उन्हें परेशान कर रही हो।

- "पता नहीं आँटी, आप ही कुछ कीजिए। क्या करना है और कैसे मुझे पता नहीं पर सालों बाद कल आप दोनों को हँसते बात करते देख एक आशा की किरण मन में जागी कि शायद आप कुछ मदद कर सकती हैं। "

- "अच्छा कुछ सोचते हैं।" अंजली ने सोचते हुए कहा।

- "हाँ आँटी जल्द से जल्द पापा को इस डिप्रेशन से बाहर निकालना पड़ेगा। वह खुद किसी की मदद नहीं लेंगे।"

अनुसूया चाय, बिस्कुट लाकर टेबल पर रखी। अंजली एक कप चाय अनन्या को देकर खुद एक प्याली ले ली। दोनों ने चुप चापचाय पीने लगे। उसी वक्त अंजली की माँ कहीं से एक पुराना फ़ोटो एल्बम ले आई और अनन्या के हाथ में थमा दिये और कहा "देख बेटा ये तेरी आँटी अंजली के बचपन की तस्वीरें हैं। हो सकता है इनमें कुछ तेरी माँ के तस्वीरें भी हों। अनन्या खाली कप को टेबल पर रखकर उस एल्बम को ध्यान से देखते हुए एक एक पृष्ठ को उलटने लगी। एक तस्वीर पर अनन्या की निगाहें अटक गई।

वह तस्वीर अंजली के कॉलेज के दिनों के थी। उसमें अंजली के साथ रम्या भी थी। आश्चर्यानंद से उसने तस्वीर को अंजली को दिखाई। अंजली ध्यान से देखकर कहा - हाँ ये हमारे कॉलेज में एक नाट्य प्रतियोगिता की तस्वीर है, जिसमें हम तीनों एक नाटिका में भाग लिए थे। संजय, रम्या और मैं। रम्या किसी भी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेती थी, पद्मा मैडम, रम्या के प्रोफ़ेसर और मेरे बहुत जोर देने से वह राज़ी हुई थी। ये कृष्ण के वेश में कौन है पहचानो तो।

- ये तो पापा लगते हैं।

- हाँ ये संजय हैं, तेरी माँ राधा और मैं मीरा थी।

- बहुत प्यारी तस्वीर है आँटी... आँटी माँ ..माँ और बाबूजी कहते हुए अंजली की ओर देखा, उसकी आँखों में अनंदाश्रु भरे हुए थे। सालों बाद माँ की तस्वीर देख भावुक हो गई। अंजली उसे अपने हाथों से अपने करीब ले कर उसके सिर को प्यार से सहलाया।

- माँ, माँ ... ये सब कैसे हुआ आँटी क्यूँ हुआ हमारे साथ। माँ क्यों चली गई?" वह फूट फूट कर रोने लगी।

- कार दुर्घटना में। बस अब चुप हो जाओ, जो हो गया सो हो गया। अब इतने सालों बाद पुरानी बातों को याद करके मत रोँ। जाओ फ्रेश होकर आओ मैं तुम्हें घर छोड़कर क्लिनिक चली जाऊँगी। वह अपनी माँ कादंबरी की ओर देखते हुए कहा - "माँ तुम भी ना, देखो तो रुला दिया ना बच्ची को। इसलिए कभी इस एल्बम का जिक्र नहीं किया था मैंने।"

- नहीं आँटी ऐसा मत कहो, दादी थैंक यू आज इसकी वजह से मैंने माँ की यादों को पा लिया है।

- "वेलकम बेटा। जाओ आँखे पोंछकर फ्रेश हो जाओ।"दादी ने उसे आशिर्वाद दिया।

- "आँटी क्या मैं इस तस्वीर को अपने पास रख सकती हूँ?" आशा से देखते हुए पूछा अनन्या।

- "ठीक है रख लो। कहकर उसे एल्बम से निकालकर अनन्या को दिया। अनन्या ने उसे बहुत सँभालकर अपने पास रखा। वाशरूम जाकर मुँह धोकर रोते-से चेहरे को ठीककर आई। अंजली अपनी गाड़ी में उसे उसके घर छोड़कर वापस आ गई।

*****

दूसरे दिन सुबह अनन्या आँखें खुलते ही अखबार के लिए ढूँढ़ा। कल उसकी तैयारी की हुई सनसनी खबर अखबार में आने वाली थी। वह उठते ही सीधा ड्राइंगरूम में आई और अखबार के लिए देखा मगर उसे नहीं मिला। लगता है अभी तक अखबार नहीं आया। समय 7 बज चुके थे। अखबार के लिए वह कई बार गेट तक आ जा चुकी थी। बेचैनी से घर से बाहर चक्कर काटते पेपर वाले का इंतज़ार करने लगी।

पेपरवाले की साइकल की घंटी सुनाई देते ही वह बाहर आई और झपटकर उसके हाथ से अखबार ले ली। उसकी तैयार की हुई रिपोर्ट हू-ब-हू अखबार में छपी है, उसकी खुशी की सीमा नहीं थी। अब जो होगा उसका इंतज़ार रहेगा। पुलिस में, पब्लिक में और संसद में भी हंगामा होकर रहेगा। बड़े-बड़े नेताओं की छुट्टी हो जाएगी। कानून की आँखों में धूल झोंककर हो रहे नेताओं की काली करतूत आज खुलकर सामने आ गई है। अब परिणाम का इंतज़ार, क्या इससे काले धंधे और हफ्ते वसूली जैसी गैर कानूनी गिरोहों की धर पक्कड़ होगी या इस बार भी रिश्वत देकर पुलिस के नाक के नीचे से अपराधी निकल जाएँगे?

खबर चारों तरफ आग की तरह फ़ैल गई। सनसनी खबर से पुलिस भी हरकत में आ गई। भिंवडी बाजार की तस्वीर समेत लोगों का बयान और उनकी तकलीफें जन जन तक पहुँच गई। इस खबर के आधार पर पुलिस के दोषियों को धर दबोचने के अलावा कोई रास्ता नहीं छोड़ा अनन्या ने। इस खबर से मुंबई के गुंडे, हफ्ते के आधार पर अय्याशी करने वाले और राजनेता तक के इस में हाथ होने की खबर से मुंबई में तहलका मच गया। पुलिस के कांस्टेबल से लेकर ड़ी.आई.जी और होम मिनिस्टर तक बड़े पदों में रहने वालों के हाथ होने की खबर सरकारी कुर्सियों को हिलाकर रख दिया। सरकारी कामकाज में सेंध कर गुंडों से हाथ मिलाए हुए कई नाम बाहर आने का खतरा पैदा हो गया। इससे कई अधिकारी थर थरा उठे। वे अपने नाम और पद को बचाने कोई भी हथकंडे अपनाने को तैयार थे।

संजय को भी इसी बात का डर था। "बाबुल का अँगना" एक मासिक पत्रिका जो कि बाद में साप्ताहिक फिर अखबार बनकर उभरी इस खबर की सच्चाई को निडर होकर प्रकाशित किया। इस पत्रिका की खूब चर्चा भी हुई थी और भारत के छोटे से छोटे प्रान्तों तक यह पत्रिका पहुँचने में कामयाब रही। सच्चाई को आईना दिखाती यह पत्रिका जन जन की पत्रिका के नाम से भी प्रसिद्ध है। अनन्या द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट से कई राजनेता की जिंदगियां प्रभावित होने को थी। तहलका मचा देने वाली ये खबर से अखबार और मीडिया में बहुत चर्चा हुई। अनन्या और उसकी साथियों की मेहनत आखिरकार रंग लाई।