Lahrata Chand - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

लहराता चाँद - 14

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

  • 14
  • समय करीब डेढ़ बजने को था। संजय अपने कमरे में आराम चेयर पर बैठ बहुत दिनों बाद डायरी लिख रहा था। अपनी जिन्दगी के 48 साल गुजार दी है उसने। वह कभी अपनी जिन्दगी में फूल या खुशबू की तमन्ना नहीं रखी। अपने बच्चों और रम्या के ख़्यालों के अलावा उसकी कोई ख्वाहिश नहीं थी। अवन्तिका, अनन्या भी बड़े हो चुके हैं। वे खुद को सँभालने के काबिल बन गए हैं। सालों बाद अनन्या के बगैर घर सूना-सूना लग रहा था। अवन्तिका अपने कमरे में सो गई है और अनन्या दिल्ली में। आज अनन्या को टी वी पर देख उसका मन बहुत प्रसन्न था और अवन्तिका की ख़ुशी समा नहीं पा रही थी। रम्या होती तो जमीन असमान एक कर देती। आज उसकी बेटी बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है, कोई भी पिता भला कैसे दिल थामकर बैठ पाएगा। बार-बार उसकी आँखें नम हो रही थी। अवन्तिका की ख़ुशी देखने लायक थी। जश्न मनाने के लिए सारी तैयारी कर ली थी उसने। बस अनन्या का इंतज़ार था।
  • संजय अपनी डायरी को अपने सीने पर रखकर सोच रहा था। जब रम्या स्क्रिज़ोफ्रेनिया से उबर रही थी, डॉ. अंजली ने भी रम्या के ठीक होने का संकेत दे दिया था। संजय के जीवन में खुशी फिर से लौट रही थी। अनन्या, अवन्तिका को लेकर रम्या और संजय ने ढेर सारे सपने गढ़े थे। अनन्या को डॉक्टर बनाने का सपना संजय को हमेशा ही था। लेकिन रम्या के जाने के बाद अनन्या पर घर की ज़िम्मेदारियाँ आन पड़ी। संजय ने अनन्या को किसी भी विषय के लिए कभी जोर नहीं दिया। उसकी मर्ज़ी जो थी उसे करने दिया। उसने अपनी इच्छा पत्रिकारिता की ओर दिखाई।
  • अनन्या ने माँ और संजय की इच्छा अनुसार अवन्तिका को डॉक्टरी पढ़ाने पर जोर दिया लेकिन अवन्तिका को फैशन डिजाइनिंग में रुचि थी। संजय उसकी इच्छा के अनुरूप उसे उसकी पसंदीदा विषय को ही चुनकर उसे कॉलेज में ज्वाइन करवा दिया। अवन्तिका के दो साल पूरे हो चुके थे। अब अनन्या की कामयाबी की खुशी से संजय खुद को सँभाल नहीं पा रहा था। कुर्सी के नीचे छिपाई हुई व्हिस्की की बोतल से कुछ व्हिस्की ग्लास में भरकर एक घूँट में पी गया। दीवार पर रम्या की तस्वीर जैसे घूर रही थी।
  • संजय उसकी तस्वीर के पास जा खड़ा हुआ और कहा, "रम्या आज के लिए मुझे पीने की इजाजत दे दो। पता है आज बहुत बड़ा दिन है, हमारी बेटी ने आज समाज में बहुत नाम कमाया है। हमारी बेटी जो है। हमें बहुत गर्व महसूस हो रहा है। इसी खुशी में यह छोटी सी पार्टी।" बोतल को दिखाकर टेबल पर रखा।
  • "आज के लिए माफ कर दो।"
  • तस्वीर मुस्कुराने लगी, "जैसे वह कह रही थी आज के लिए तुम्हें माफ करती हूँ।"
  • संजय अपने आप में बड़बड़ाया, "देखा रम्या तुम तो मुझे अकेले छोड़कर चली गई। पर मैने बच्चों को इन हाथों से पाला है। बिलकुल तुम्हारी सोच की तरह। जैसे तुमने चाहा था बिलकुल उसी तरह। मैने कभी हार नहीं मानी। दुःख होता है यह सोचते कि तुम होती तो ऐसा होता तुम होती तो वैसा होता। लेकिन देखो आज मेरे बच्चे ..... नहीं हमारे बच्चे! किस क़ाबिल बन गए हैं, बिलकुल तुम्हारी तरह।" अपने दिल पर हाथ रखते हुए कहा, "तुम चली गई तो क्या हुआ, सिर्फ दिखाई नहीं देती किसी को लेकिन मैं हूँ न, जब तक मैं हूँ तुम जिन्दा हो मेरे अंदर, मेरे अंदर जिन्दा रखा हैं तुम्हें, हर पल हर लम्हा तुम मेरे साथ हो। तुम्हारे बच्चों में तुम को जिन्दा रखा है मैने। ये डायरी साक्षी है कितना जहर पिया है मैने, खुद को जिन्दा रखने के लिए .. ना.. ना खुद को नहीं इस शरीर में तुम को जिन्दा रखने के लिए। आज मैं जीत गया। एक बाप जीत गया। देखा इसलिए मैं इस व्हिस्की के साथ जश्न मना रहा हूँ।"
  • - अब पीने से तुम कैसे रोकोगी बोलो, आज तुम भी मुझे नहीं रोक सकती क्यों कि आज मेरी बेटी ने मुझे शिखर पर खड़ा कर दिया है। आज गर्व से मेरा सीना 56'इंच का हो गया है। देखो-देखो। तन कर खड़े अपने सीने को देखकर कहा, "तुम नहीं देख सकती ना..... तुम.... नहीं देख सकती.... तुम तो मुझे धोखा देकर चली गई, पर गलती मेरी ही थी।
  • अगर उस दिन पार्टी से लौटते तुम्हारी बात मान लेता तो शायद आज तुम हमारे बीच जिन्दा होती। तुम्हारी बात सुन लेना चाहिए था मुझे ड्राइविंग नहीं करनी थी। अगर तुम्हारी बात मान लिया होता तो न एक्सीडेंट होता न तुम मुझसे दूर जाती। इसीलिए तो आज तक तुम्हारे बिना जीने की सज़ा दिया है खुदको और तुम्हारे बिना जिए जा रहा हूँ अकेले ही .. अकेले ही..." कहते हुए पलँग पर लैट गया और कुछ ही देर में गहरी नींद में चला गया।
  • सुबह अवन्तिका जब उसके कमरे में आई, संजय सो रहा था। अवन्तिका पापा को न उठाकर चादर को ठीक से ओढ़ा कर किचेन में गई। देखा किचेन पूरा फैला हुआ था।
  • 'अरे दीदी होती तो किचेन कितना साफ रखती है, मैं भी ना रात को ऐसे ही खाना खाकर सो गई। और पापा भी इतना खुश थे कि मुझे यकीन है रात भर नहीं सोये होंगे वरना सुबह मुझसे पहले जाग जाते थे और आज अब तक सोये हैं। आज दीदी वापस घर आ रही है, मुझे कुछ इंतज़ाम करना होगा जिससे दीदी की खुशी दुगुनी हो जाए।' सोचते हुए चाय बनाकर पापा के लिए उनके कमरे में ले गई। जब संजय नींद से जागा देखा अवन्तिका चाय लेकर खड़ी है। अवन्तिका को चाय के साथ देख वह उठ कर बैठ गया, "अरे बेटा अवन्तिका तुम इतनी सुबह जाग गई? और मेरे लिए चाय भी ले लायी।"
  • - क्यों पापा मैं नहीं कर सकती?"
  • - हाँ बेटा क्यों नहीं पर तुम तो 9 बजे तक उठती भी नहीं थी, और आज इतनी सुबह उठकर चाय भी बना दी।"
  • - हाँ मैं बड़ी जो हो गई हूँ न पापा अब मुझे भी ज़िम्मेदारियाँ सँभालना होगा ना। दीदी भी तो नहीं है और पापा आज आपने मेरी ड्यूटी ले ली है।"
  • - मतलब समझा नहीं
  • - मतलब पापा आज आप 9 बजे तक सोते रहे हैं। मुस्कुराते हुए कहा।
  • - ओहो! 9 बज गया? आज देखो मुझे कैसे आँख लग गई।
  • - पापा आज दीदी के लिए सरप्राइज प्लान किया है। दीदी का ऐसी जबरदस्त स्वागत करेंगे की दीदी एकदम खुश हो जाएगी।"
  • - अच्छा, तो ये बात है। क्या करना है मुझे भी बताओ साथ में मिलकर करते हैं।"
  • - पहले आप चाय पी कर स्नान करके आइये, फिर बताऊँगी। लीजिए चाय ठंडी हो रही है।"
  • - ठीक है बेटा। वहीँ रख दो मैं अभी आता हूँ।"
  • - नहीं पापा अभी मेरे सामने उठिए और चाय पीजिए।"
  • - उम्... ठीक है लाओ." अवन्तिका संजय के हाथ चाय देकर अंदर चली गई।
  • ####
  • संजय जब मुंबई शिफ्ट हुआ था तब एक छोटे से मकान में रहता था। जब बच्चे बड़े होने लगे रम्या की जिद्द से उसने एक डुप्लेक्स बंगला खरीद लिया। यही वह घर है जिसमें रम्या की यादें बसी हुई है। इसलिए संजय को इस घर से बहुत लगाव है। घर ही क्या रम्या से जुडी हर छोटी-छोटी चीज़ों को उसने बहुत सँभालकर रखा है। चार कमरेवाला डुप्लेक्स और घर के सामने एक छोटा सा बगीचा कई प्रकार के फल फूलों से भरा। रम्या को बगीचे में तरह तरह के पौधे लगाना उनकी देखभाल करना बहुत पसंद था। वह सुंदर-सुंदर रंगीन फूलों की शौक़ीन थी। रोज़ बगीचे से फूल तोड़कर ताज़े फूलों से घर सजाती थी। संजय ने भी उसकी सारी आदतों को अपनी आदत बना लिया था।
  • जब संजय अपना काम खत्म कर नीचे टेबल पर आया, तब अवन्तिका ने टेबल सजाकर नाश्ता भी तैयार कर दिया था। जैसे ही संजय टेबल पर बैठा अवन्तिका एक प्लेट पर दूसरा प्लेट ढँककर ले आई। हिचकिचाते हुए संजय के सामने रखा और सहमकर थोड़ी दूर खड़ी रही।
  • - अवन्तिका, तुम नाश्ता नहीं करोगी, जाओ अपना प्लेट भी ले आओ साथ में नाश्ता करेंगे।"
  • अवन्तिका चुपचाप अलग प्लेट ले आई और संजय के सामने बैठी। संजय प्लेट का ढक्कन खोला उसमें दो ब्रेड पीस और ऑमलेट थी। ऑमलेट आंशिक रूप से जल गई थी। अवन्तिका ने अपना कान पकड़कर कहा, "सॉरी पापा ऑमलेट जल गई है। मुझे ठीक से बनाना नहीं आया। मैने कोशिश की थी पर ऑमलेट् जल गई। फिर से बनाने के लिए अंडे भी खत्म हो गए थे इसलिए उसी को ले आई।" कह कर कान पकड़ी।
  • - अवि बेटा! दुःखी मत हो, ऑमलेट जल गई तो क्या हुआ? मेरी बेटी ने आज पहली बार किचन में कुछ बनाया है, इतनी मेहनत कर के सॉरी क्यों? आज जश्न का दिन है तुमने भी आज पहली बार नाश्ता बनाया है।" कहकर ब्रेड और ऑमलेट का टुकुड़ा अवन्तिका को खिलाया और खुद भी खाया। अवन्तिका ने अनन्या के स्वागत में सरप्राइज पार्टी के लिए प्लान बताई, संजय ने भी हामी भरी। शाम तक सारी तैयारी पूरी कर अनन्या के फ्लाइट का इंतज़ार करने लगे।
  • जब अनन्या फ्लाइट से उतरकर बाहर आई तो देखा अवन्तिका और संजय हाथों में फूल लिए उसका इंतज़ार कर रहे थे। उन्हें देख ख़ुशी से उछल पड़ी अनन्या। संजय के पैर छू कर आशीर्वाद लिया। संजय की खुशी के आँसू पोंछते हुए कहा, "थैंक यू पापा। थैंक यू वैरी मच।" अवन्तिका "दी..... दीदी " कह कर उसे जोर से पकड़ कर नाचने लगी। अनन्या, अवन्तिका को खुश देख अभिभूत थी।

    - अवन्तिका कैसी हो?" प्यार से पूछा।

    - मैं बिलकुल ठीक हूँ दी, मैं...मैं आप के लिए ब...बहुत खुश हूँ।" कहकर अनन्या के गले लग गई। कुछ ही देर वे हवाईअड्डे से बाहर निकल कर गाड़ी में घर पहुँचे। अवन्तिका ने पूरे घर को फूलों से सजाया था। टेबल पर सुंदर से सजाए केक भी तैयार था। केक पर "फॉर माय स्वीट दी।" देख अनन्या की आँखें भर आई। अवन्तिका ने उस दिन संजय की मदद से पार्टी की अच्छे से तैयारी करी थी। शाम को अनन्या के ऑफिस के सारे दोस्त हाज़िर हुए, दुर्योधन भी आये। अवन्तिका ने डॉ. अंजली को भी फ़ोन पर बुलाया था। पीली रंग की साड़ी में कार से उतरते अंजली बहुत सुंदर लग रही थी। 42 साल की अंजली के आँखों पर चष्मा चढ़ चुका था फिर भी खुले घुंघराले बाल उस पर बहुत जंच रहे थे।

    - अंजली कैसी हो आप?" संजय अंजली को स्वागत करते हुए पूछा।

    - बहुत अच्छी हूँ, आप कैसे हैं?

    - बहुत बढ़िया।"

    - अनन्या की सफलता के लिए आप को बहुत बहुत बधाई।

    - शुक्रिया, अंदर चलिए अनु, अवि दोनों आपकी रास्ता देख रहे हैं।

    - हाँ चलिए। अंजली दो कदम चलकर पीछे मुड़कर पूछी, "आज आप को बहुत खुश होना चाहिये फिर आप की आवाज़ में उदासी क्यों?

    - "ऐसी कोई बात नहीं। आज मेरे बच्चों ने मुझे इतनी खुशी दी है कि मन फूले नहीं समाया। और जब आप सामने आती हैं रम्या की पुरानी यादें मन में खिल उठती हैं।

    - अगर ऐसी बात है तो फिर मेरा आप के सामने आना सही नहीं है। मुस्कुराते हुए अंजली ने कहा।

    - अरे! नहीं ऐसी कोई बात नहीं। बस यूँ ही कह दिया।

    - कोई बात नहीं संजय। मुझे खुशी होती है कि रम्या के जाने के इतने साल बाद भी वह आप के दिल में जिंदा है। कभी कभार लगता है कि काश की रम्या की जगह पर मैं होती। अचानक अंजली के जुबान से ये बात सुनकर संजय के कदम रुक गए।

    अंजली को अपना गलती समझ आते ही संजय की ओर हँसकर कहा, "यकीन मानो संजय मज़ाक में कह दिया है और अब इस उम्र में मैं शादी के मूड में बिल्कुल नहीं हूँ।" संजय मुस्कुराकर कहा, "मेरी जान ले ली थी तुमने।" कॉलेज की दोस्तों की तरह दोनों साथ साथ जोर से हँस पड़े।

    - सच तो ये है संजय कि रम्या खूब भाग्यशाली है जिसे तुम्हारे जैसा पति मिला। आप के प्यार में और आप के बच्चों में मुझे रम्या की झलक दिखाई देती है। इसलिए तो चली आती हूँ बार बार।"

    - लेकिन अंजली कई दिनों से मेरे मन मे एक सवाल है, क्या पूछ सकता हूँ?

    - बेशक पूछो संजय।

    - तुम ने आज तक शादी क्यों नहीं की? सीधा अंजली की आँखों में देखते हुए प्रश्न किया संजय।

    - अंजली संजय के इस प्रश्न पर सन्न रह गई। संजय की नज़र से खुदको बचाने का प्रयास करते एक कदम पीछे हटी और अचानक उसके पैर सीढ़ी से फिसल गए।

    - आ..ह। अंजली एक दम से आवाज़ लगायी।

    - अरे क्या हुआ कहते हुए गिरती हुई अंजली को पीछे से पकड़ा संजय। दूसरे ही पल अंजली संजय के बाहों में थी। अंजली को उसकी नज़र से नज़र मिलाना मुश्किल था। संजय उसके हाथ पकड़कर हॉल में ले आया और सोफ़े पर बिठाकर पानी ले आया।

    "कहीं लगी तो नहीं?"

    "नहीं मैं बिल्कुल ठीक हूँ।

    तभी कुछ ही दूरी पर खड़ी अवन्तिका दौड़कर आई और 'आँटी' कहकर अंजली से चिपक गई। अंजली से मिलकर वे दोनों अपनी माँ की कमी को भूल जाते थे। वह उनके परिवार का हिस्सा बन गई थी। अंजली को देख अनन्या भावुक हो गई। अंजली के गले लगकर उन्हें जैसे माँ की गोद का एहसास होता था। रम्या के जाने के बाद से अंजली अनन्या और अवन्तिका के बहुत करीब रही है।

    अवन्तिका अनन्या को टेबल के पास ले आई। अनन्या और अवन्तिका मिलकर केक काटे। सभी अनन्या को बहुत बधाई दिये। अनन्या के लिए वह दिन अविस्मरणीय रहा। केक काटते वक्त अनन्या के पास खड़े संजय और अंजली को साथ देखकर अनन्या के मन में अपना बचपन याद आ गया। उसके जन्म दिन पर किस तरह माँ और पापा घर पर ही केक तैयार करते थे। और केक काटते वक्त उसे गोद में लिए केक कटाया करते थे। उसके आँखें एक पल के लिए नम हो गई। अगर रम्या जिन्दा होती तो संजय और रम्या भी साथ कितने अच्छे लगते। ये सोचते ही अनन्या के मन में उन दोनों की एक तस्वीर खीँच गई। पापा अगर फिर से... अंजली आँटी से शादी करले तो... " उसके सोच को विराम देते हुए अवन्तिका, "दीदी, कहाँ खो गई हो, मुझे केक खिलाओ न।" कहकर अनन्या के केक पकड़े हुए हाथ को हिलाया। अनन्या मुस्कुराते एक टुकुड़ा अवन्तिका के मुँह में रखा।

    संजय और अवन्तिका ने सभी का स्वागत किया। मेहमानों का स्वागत से लेकर हल्के-फुल्के खेल फिर खाने का प्रवंध किया गया था। अंजली, अनन्या और अवन्तिका के साथ मेहमान नवाज़ी में हाथ बँटाई। अनन्या, अंजली को संजय के साथ बात करते हँसते देख उसके मन में पापा के नीरस जिंदगी में रंग भरने के लिए एक नया सपना बुनने लगी। रम्या के जाने के बाद से संजय को किसी के साथ हँसकर बात करते हुए किसीने नहीं देखा था। संजय को खुद में खोए रहना या रम्या की तस्वीर से बातें करते घंटों बिताना देखा है। हमेशा वह अकेला रहना पसंद करता है।

    संजय को अंजली के साथ खुश देख उसे बेहद ख़ुशी हुई। एक पल उसे लगा अंजली आँटी और पापा फिर से एक दूसरे का सहारा बन जाए तो कितना अच्छा होता। दोनों की जिंदगी में अकेलापन दूर होकर उनकी आने वाली जिंदगी खुशियों से भर जाएगी। यह ख्याल मन में आते ही उसके मन में नयी ऊर्जा से भर गई। उसको जैसे एक मंजिल दिख गई।

    अंजली बिन शादी के ही अकेले अपने माँ बाबूजी के साथ रहती है। उसकी माँ-बाबूजी ने कई बार शादी का रिश्ता लेकर आये पर अंजली कभी शादी के लिए राज़ी नहीं हुई। अनन्या जब कभी इस बारे में पूछती तो वह हँस कर टाल देती।

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