Dah-Shat - 52 books and stories free download online pdf in Hindi

दह--शत - 52

एपीसोड ---52

अश्विन पटेल के यहाँ बेटे की शादी से पहले की संगीतमय शाम है। समिधा का मन बहल रहा है। मंच पर सजे हुए दूल्हा-दूल्हिन नृत्य कर रहे हैं, “आँखों में तेरी अजब सी, अजब सी अदायें हैं।”

इंटरवल में कोल्ड कोको पीते हुए देखती है। अभय ऑफ़िस के लोगों के साथ लॉन के एक कोने में खड़े हैं। उनके साथ विकेश को देखकर वह जानबूझकर अपना गिलास लिये वहाँ जा पहुँचती है। विकेश भद्दे रूप से मोटा हो रहा है। सफ़ेद बालों से घिरे चेहरे पर उसकी हरकतों का घिनौनापन बिछा हुआ है। सामने समिधा को खड़ा देख वह तेज़ डग भरता दूर निकल जाता है। समिधा को लगता है वह इतने ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाये चाहे कोको हाथ में पकड़े गिलास में से छलक ही क्यों न जाये? इतने मर्दों के बीच खड़ा विकेश अकेली औरत को देखकर दुम दबाकर भाग गया।

उस दिन वह अस्पताल में आउटडोर में खड़ी डॉक्टर का इंतज़ार करते हुए परिचित महिला से गपिया रही है। तभी वह कविता को बरामदे की सीढ़ियाँ चढ़ते देखती है, उसका बेटा उसके साथ है। बेटा नवयुवक की तरह निखर आया है। समिधा का खून खौल रहा है ढाढ़े मार रहा है। ये नाटे कद की काली औरत सामने है जिसके कारण उसका चैन लुट गया है, समय बर्बाद हो रहा है। जो कितने लोगों को पालतू बनाकर समिधा को सता रही है। आज कुछ न कुछ तो करना ही है। कविता बेटे के साथ दवाई के काउंटर के पीछे के कमरे में चली जाती है। समिधा उन परिचित महिला से कहती है,“मैं अभी आई।”

समिधा तेज़ डग भरते-भरते उस कमरे के दरवाजे पर खड़े कविता के बेटे के पास से गुज़रकर अंदर चली जाती है व फ़ार्मेसिस्ट से कहती है, “एक्सक्यूज मी प्लीज़।”

कविता पीछे घूमकर अपनी सकपकाहट छिपाते हुए उसे अपने काले फ्रेम के चश्मे में से देखती है। उसका चेहरा कुम्हलाया हुआ है होठ सूखे हुए हैं। समिधा को लगता है सूखे हुए फन वाली नागिन को काले फ्रेम का चश्मा लगा दिया है। उसकी काली नज़रें सतर खड़ी समिधा से मिलती हैं। एक बिजली सी कौंधती है। सामने खड़ी है दो औरतें। एक हैवानियत की अंतिम सीमा। एक अच्छाइयों की धवल। दो अलग किस्म की ताकतें। समिधा उससे नज़रे हटाकर फ़ार्मेसिस्ट से फिर कहती है, “एक्सक्यूज मी।”

वह कुर्सी पर बैठा रजिस्टर से नज़रे उठाकर पूछता है,“जी कहिये।”

“क्या यहाँ किसी जूही ठकराल की पोस्टिंग हुई है?”

“नहीं तो।”

“ओ.के.।”

वह कविता के सिर पर बिल्कुल सामने खड़े होकर बम फोड़ चुकी है जिसने उसे पर्दे के पीछे से सताया है। वह उसके बेटे के पास से निकलती है, उसके क्रोध की तरंगों को महसूस करते हुए। उन दोनों की तिलमिलाहट से वह बाग़-बाग़ है। ‘तुलसी’, ‘पार्वती’ के दीवाने सारे देश को मालूम है एक बदमाश औरत जूही ठकराल गृहणी तुलसी का नकाब पहने रह रही है।

दवा के काउंटर से दवा देते समय हमेशा की तरह दीवार पर लगे उस वाक्य को देखकर वह मुस्करा उठती है। “सर्वे सन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया” अस्पताल की दीवार पर ये टँगा कितना हास्यास्पद लगता है। वह दवा लेकर बरामदे की सीढ़ियों की तरफ बढ़ रही है। कविता अपने बेटे के साथ सामने से गुज़रती है। समिधा बोल उठती है, “बोल्ड...बोल्ड।” कविता व उसका बेटा तेज़ चाल से चलते बहुत आगे निकल जाते हैं।

अस्पताल के गेट के बाद वाले लॉन के पास वाहन पार्क करने की जगह है। समिधा लॉन के पास आकर देखती है, एक पाम के पौधे के पास खड़ी अपनी बाइक को सुयश स्टार्ट कर रहा है। विकेश आउटडोर के मुख्य दरवाजे से सीढ़ियाँ उतर रहा है। वह समिधा को देखकर आँखें झुका लेता है।

घर पर अभय लंच के लिए आ चुके हैं। वह पूछतें हैं, “कहाँ गई थीं?”

“अस्पताल गई थी। वहाँ पर ऐश्वर्या राय आई थी। तुम्हारे ऑफ़िस के ‘पिग्स’ काम छोड़कर उन्हें देखने अस्पताल में टहल रहे थे।”

“कौन ऐश्वर्या राय? कौन पिग्स?”

“वही काली नागिन। उसके पड़ोसियों ने देखा होगा कि वह माताजी बेटे के स्कूटर पर बैठ कहीं जा रही है। उसने मोबाइल से विकेश ख़बर कर दी होगी। मैं उसके सामने खड़े होकर, उसके सिर पर बम फोड़ आई हूँ।

“क्या बड़ बड़ करती रहती हो और कैसा बम?”

“तुम्हारे गुंडे दोस्त तुम्हें बता ही देंगे।”

तीन चार दिन बाद ही दूरदर्शन धारावाहिक में सच ही जूही ठकराल व तुलसी तनी हुई आमने-सामने खड़ी हुई है, उसकी हँसी निकल जाती है।

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अभय का व्यवहार बिल्कुल संतुलित, चल रहा है। इसी बीच समिधा का गुस्सा शांत हो गया है वर्ना उनको ‘हिपनोटिस्ट’ के पास ले जाना इतना आसान नहीं था। क्या करे एक बार मैडम से मिलकर देख लें। वह उनके पी.ए. से फ़ोन पर समय नियत करती है। उसे एक घंटे के बाद का समय मिल जाता है।

समिधा घर से निकलती है। एक ख़ाकी वर्दीवाला अपनी साइकिल सड़क पर खड़ी दुकान की तरफ बढ़ रहा है। उसकी नज़र समिधा पर पड़ती है। वह साइकिल की तरफ़ मुड़कर उसे चलाता समिधा के आगे चलने लगता है। बीच रास्ते में ‘रेड आइकन’ वाली एक जीप उसके बगल से स ऽ ऽ र्र से निकल जाती है। एम.डी.मैडम का बंगला पास आ चुका है। बंगले के सामने बाँयी तरफ बनी वॉचमेन की गुमटी के पास एक युवक बाइक रोक लेता है व वॉचमेन से पूछता है, “सिक्यूरिटी डिपार्टमेंट किधर है?”

समिधा का मन होता है उस युवक से पूछे कि ऑफ़िसों को पीछे छोड़कर इस निर्जन सड़क पर ये पता क्यों पूछ रहे हो ? किसके चमचे हो ? चलो, मैं तुम्हें सिक्यूरिटी डिपार्टमेंट छोड़ आती हूँ।

समिधा अपने होंठ भींचे हुए सहज चाल से चलकर एम.डी. ऑफ़िस के वातानुकूलित रिसेप्शन में बैठ जाती है।

मैडम की मुस्कान कुछ मित्रवत् है क्यों कि इस केम्पस में एक वर्ष रहने के बाद महिला समिति का अध्यक्ष पद सम्भालने के बाद वह समिधा के बारे में जान चुकी हैं । समिधा का फ़ोन टेलीकॉम विभाग टैप कर रहा होगा, अमित कुमार के कहने पर सुरक्षा विभाग के लोग रिपोर्ट लेते होंगे समिधा, अनुभा से बातें करने के बहाने अपरोक्ष रूप से उनका कच्चा-चिट्ठा खोल चुकी है। सुरक्षा विभाग में तो आग की तरह ये बात फैल गई होगी क्योंकि इस विभाग के इस सवा वर्ष में न जाने कितने लोग समिधा के पीछे लगाये गये हैं शायद मैडम इसीलिए मित्रवत हैं ।

वह मैडम को कुछ बिन्दु बताती है। वह ‘साइकोट्रॉपिक्स ड्रग्स’ के बारे में, कविता के देसाई रोड के मकान के बारे में, उसकी रोकी गई डाक के विषय मे बताती है। वह उन्हें अनुरोध करती है, “आप पुलिस विभाग के नारको विभाग में ये नाम दे दें। इस लिस्ट में विकेश, सुयश, वर्मा के बेटे, बेटी व कविता के नाम है। मैं चांस ले रही हूँ कोई शायद ड्रग खरीदते पकड़ा जाये।”

“यदि नहीं पकड़ा गया तो?”

“मैं फिर आगे का रास्ता निकालूँगी।” समिधा फिर भी उनसे कह नहीं पाती है कि उसे कत्ल करने की धमकी भी मिल चुकी है। उसे झिझक लग रही है, शायद वे ये समझें कि उनकी सहानुभूति प्राप्त करने के लिये झूठ बोल रही है।

कल शादी की वर्षगाँठ है। इतने लम्बे अरसे में किस-किस तरह के पल अभय के साथ बितायें हैं, मौसम की तरह बदलते हुए अभय एक दिन पहले से ही गुमसुम हो रहे हैं, बिना बात लड़ने की कोसिश करते हुए। इस चढ़ते हुए ज़हर को रोक पाने में असमर्थ है समिधा। फिर भी शाम को कहती है, “कल गेस्ट आये थे इसलिए स्पेशल डिशेज रखी है। बाद में हम लोग बच्चों को इकट्ठा करके ही ‘एनिवर्सिरी सेलिब्रेट’ करेंगे।”

“तो मैं क्या करूँ?”

“मैं मंदिर चलने के लिए तैयार हो रही हूँ।”

“मुझे नहीं जाना।”

“तो मत चलो। मैंतो जा रही हूँ। इस शादी ने ही तो मुझे रोली व अक्षत जैसे प्यारे बच्चे दिये हैं।”

समिधा मम्मी की दी हुई साड़ी पहनकर तैयार हो जाती है, उन्हें व पापा को फ़ोन करके उनका आशीर्वाद लेती है। फिर घर के मंदिर में दान के रुपये रखकर मंदिर की तरफ़ चल देती है। अभय उसी समय घूमने निकलते हैं विपरीत दिशा में। अपने को बहुत हिम्मत वाली समझने वाली समिधा अंदर ही अंदर इन धमकियों से, आगे-पीछे घूमने वाली उन ख़ाकीवर्दियों से, बीच-बीच की अभय की बददिमाग़ी से टूट रही है किर्च...किर्च।

अगले दिन मैडम के पी.ए. को एक गोपनीय पत्र दे आती है जिस में लिखा है यदि एक प्रतिशत समिधा को कुछ हो जाये तो इस केस को सी.बी.आई. को दे दिया जाये। पता तो उसे लग रहा है लेकिन वह ऊपर से अपने को सम्भाले हुए हैं। कोई अपना अगर पास हो तो उसके गले में बाँहें डाल दे, “आई एम सिकिंग, मुझे बचा लो।”

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रोली व सुमित फ़ोन पर कहते हैं, “मॉम ! आप लोग हमारे पास आ जाइए, अक्षत को भी बुला लेते हैं। हम लोग आपकी एनीवर्सिरी यहाँ ‘सेलिब्रेट’ करेंगे।”

“बेटी के घर?”

सुमित लाड़ से कहते है, “मम्मी जी ! आप भी क्या पुरानी बातें सोच रही हैं ? मैं आपका बेटा तो हूँ।”

***

वहाँ अच्छे होटल में सुमित ने सूप व स्टार्टर का आर्डर दे दिया है। समिधा पानी के गिलास के बीच रखी एक प्लेट में रखी एक छोटी बाउल को देखकर हैरान हो रही है.... ये क्या है ?....कुछ समझ में नहीं आ रहा....हल्के-हल्के दिमाग़ घूमता सा लग रहा है। वह पूछ ही बैठती है, “यह सूप इतनी छोटी बाउल में?”

रोली अचरज करती है, “मॉम ! आप पहली बार होटल में थोड़े ही आई है। ये ‘स्टार्टर’ की चटनी है।”

“ओ ऽ ऽ...।”

बेयरा स्टार्टर समाप्त होने के बाद प्लेट्स उठा रहा है। वह प्लेट उठा-उठाकर उसे देने लगती है। अक्षत धीमे से कहता है, “मॉम ! वो ले जायेगा।”

क्यों नहीं दिमाग़ में से कुछ छूटता जा रहा है....नियंत्रित क्यों नहीं हो रहा ?

घर पर लौटकर सब टी.वी. के सामने बैठ गये हैं। अक्षत लैपटॉप पर काम कर रहा है। अचानक समिधा चौंकती है। जानना चाहती है, “अक्षत ! लैप टॉप पर फ़िल्म देख सकते हैं ?”

उससे दुगुना वह चौंकता है, “क्या ? क्या आपने कभी लैपटॉप पर फ़िल्म नहीं देखी ?”

रोली इशारे से उसे चुप रहने का संकेत करती है।

टी.वी. पर सोनी पर कोई धारावाहिक देखते-देखते समिधा का दिमाग सुन्न होने लगा है, वह चौंककर जानना चाहती है, “रोली ! तुम्हारे यहाँ ‘केबल कनेक्शन’ है?”

रोली की आँखें डबडबा आई हैं, “मॉम ! आज आपको क्या हो रहा है? चलिए सो जाते हैं।” वह उसे लेकर बैडरूम में सोने आ जाती है। रोली की बाँहों में घिरी समिधा छोटी बच्ची की तरह सो जाती है सोचते हुए....कहीं वह सचमुच साइकिक तो नहीं हो गई ?

सुबह उठकर दो दिन बच्चों के साथ रहकर उसका आत्मविश्वास लौट आया है। दिमाग़ दुरुस्त है। इन्हीं बच्चों को किसी बड़े हंगामें से बचाये रखना है।

इसी माह समिधा की वर्षगाँठ आनी है। दो दिन पहले से ही अभय अकेले घूमने निकल रहे हैं, लड़ाई का बहाना ढूँढ़ रहे हैं। समिधा जानबूझकर एम.डी.मैडम के पी.ए. को फ़ोन करती है, “प्लीज़ ! मैडम को बता दीजिये कि दो दिन बाद मेरी बर्थ डे है ।”

“क्यों?”

“बस उन्हें पता रहेगा तो गुंडे शांति से बर्थ डे ‘सेलिब्रेट’ करने देंगे।”

अभय अब लड़ाई का कोई बहाना नहीं खोज रहे, लेकिन कुछ न कुछ तो उन्हें सिखाया गया है। वर्षगाँठ के दिन शाम को वे उसके पास बैठकर मोबाइल पर एस.एम.एस. करने का बार-बार नाटक कर रहे हैं। समिधा शांत है। तभी दरवाजे की घंटी बजती है। वह दरवाजा खोलकर खुशी से चहक उठती है, “’तुम ऽ ऽ ऽ ? ” दरवाजे पर खड़ा है अक्षत एक हाथ में केक व एक गिफ़्ट पैक लिये।

अक्षत आदतन घर में अंदर आते ही शोर मचाता है, “जल्दी केक काटिए, कहीं बाहर डिनर के लिए चलते हैं।”

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मैडम से मिले पंद्रह बीस दिन ही निकले हैं। कुछ न कुछ तो होना ही है। अक्सर समिधा के घर के ओवरहेड टैंक में पानी की सप्लाई रोक दी जाती है लेकिन क्यों ?

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail.com

 

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