दह--शत - 51 Neelam Kulshreshtha द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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दह--शत - 51

एपीसोड ---51

पापा का हिपनोटाइज़ करके टैस्ट होगा, ये बात जानकार, अक्षत के चेहरे के असमंजस को पढ़ रही है। उसके लिये ये आसान नहीं है..... उसे भी कौन-सा अच्छा लग रहा है ।

उसी रात फ़ोन की घंटी बज़ने पर अभय फ़ोन उठाते हैं, “नमस्कार ! भाईसाहब और कैसे हैं ?......अभी बात करवाता हूँ।”

वह समिधा को बुला लेते हैं ,``दिल्ली वाले भाईसाहब तुमसे बात करना चाहतें हैं।``

“नमस्कार ! भाईसाहब”

“तुमने जो हमें पत्र डाला था उसी समस्या पर बात कर रहे हैं। ”

वह बुरी तरह चौंक जाती है, “अब? ठीक सवा साल बाद ? आपने मेरी शिकायत के विषय में तो दिल्ही के बाद मुझे एक बार भी फ़ोन नहीं किया। आप लोग यहां एक दिन के लिए आये थे, तब भी कुछ नहीं पूछा।”

“तब टाइम कहाँ था? टूर पर निकले हुए थे।”

“आपके भाई को ड्रग दी जा रही थी मैंने प्रशासन को जाँच की अर्जी दी हुई है और सवा साल बाद आप फ़ोन कर रहे हैं ? मुझे बहुत बुरा लगा है ।”

“अभी पिछले महीने जब शादी में मिले थे तब हमने अभय को पूछा था। तब बता रहा था कि ऐसी कोई बात नहीं है।”

“क्या ये अपने मुँह से स्वीकार करते ? तब आपने मुझे क्यों नहीं बुलाया ?अभी अचानक इन्हें फिर से ड्रग दी गई थी। आपके फ़ोन आने से पहले ये नशे में मुझे फिर धमका रहे थे।”

“हमने शादी में अक्षत को बुलाकर भी पूछा था उसने भी वही बताया है। जाँच में कुछ नहीं निकला है। यहाँ से रिपोर्ट हेडक्वार्टर भेज दी गई थी।”

“आपने उस समय मुझे क्यों नहीं बुलाया? अक्षत तो पापा के सामने बोल ही नहीं पाता। उस जाँच अधिकारी को विकेश ने रुपये खिलाकर खरीद...।”

उसका वाक्य समाप्त होने से पहले अभय उसके हाथ से रिसीवर छीन लेते हैं, “भाई साहब ! मैं आपसे कह रहा था न कि ये....।”

अक्षत उसका हाथ पकड़कर उसे उठाकर ले जाता है,“ किसी को सफ़ाई देने की जरूरत नहीं है। अभी तक आप हमें कुछ करने नहीं दे रही थीं, अब हम रास्ता निकालेंगे।”

अक्षत को सोमवार को तो जाना ही है .वह सी.एम.एस. [चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर ] को फ़ोन करती है, “डॉक्टर साहब ! नमस्कार ! मैं अक्षत की मम्मी बोल रही हूँ।”

“नमस्कार ! कहिए कैसी है? अक्षत कैसे है?”

“सब ठीक है। क्या आप किसी ‘ हिपनोटिस्ट’ का पता बता सकते हैं?”

“ओ श्योर ! इस शहर में ये एक ही हैं। इनका पता अभी डायरी देखकर बताता हूँ लेकिन आपको इसकी क्या जरूरत पड़ गई?”

“जी, मेरे मित्र परिवार को ये पता चाहिये। कुछ ‘इजी मनी’ वाले लोग व उनके गुंडे साथी उन्हें तंग कर रहे हैं। डिटेक्टिव एजेंसी से थोड़े से प्रूफ़ मिल पाये हैं लेकिन उन्हें ड्रग दी जा रही है इसका प्रूफ़ नहीं है। यदि ये प्रूफ़ नहीं है। यदि ये प्रूफ़ मिल जाये तो उन्हें ‘नारकोटिक लॉ’ में पकड़वाया जा सकता है उसमे तो ज़मानत भी नहीं मिलती।”

“आपने तो बहुत रिसर्च कर ली है।”

“करनी पड़ गई।”

“कहीं आपको तो खतरा नहीं है?”

“नहीं.... नहीं।” जहाँ तक तो बात छिपाना चाह रही है।

“उन ‘ हिपनोटिस्ट’ का पता लिखिए।”

“नहीं डॉक्साब ! मैं यह पता हॉस्पिटल आकर आपसे लूँगी क्योंकि आपकी राय भी लेनी है।”

“ओ.के.।”

विभागीय फ़ोन रखकर वह बहुत संतुष्ट है। वह सी.एम.एस. से जानकारी ले रही है, साथ ही उसका फ़ोन मॉनीटर करवाने वालों को डरा भी रही है। वह दो दिन बाद ही ये पता ले आती है। इतवार को अक्षत व रोली के आने से पहले ही रोली का फ़ोन आ जाता है,“मॉम ! वैरी सॉरी ।”

“क्या हुआ?”

“मेरी बड़ी ननद दस दिन के लिए मेरे घर आ रही है।”

“ओ माई गॉड ! तू चिन्ता मत कर। उसके बाद तो होली आ जायेगी। होली के बाद में टेस्ट करवायेंगे।”

लोग दूरदर्शन धारावाहिक को तो बदनाम करते हैं लेकिन जीवन की कोई भी योजना ऊपर वाले की मर्ज़ी के कारण टलती जाती है। उसकी मर्ज़ी कुछ और ही है। वे होली भी नहीं मना पाते अभय के पापा लम्बी बीमारी से चल बसते हैं। शोक में डूबे हुए पैतृक घर में अब पंद्रह दिन के लिए जाना ही है। जाने से पहले वह स्थानीय समाचार पत्र में प्रकाशित डिटेक्टिव एजेंसी की रशिता के इंटर्व्यू की कटिंग वर्मा के नाम पोस्ट कर देती है, कविता व वे ज़रा डर-डर अधमरे हों। वहाँ से लौटकर कुछ दिन तो मन अवसाद से भरा रहता है, लोगों की संवेदना के लिए आना-जाना लगा रहता है।

समिधा का सीमाहीन गुस्सा शांत हो चुका है। वैसे भी मन में एक झिझक थी कि अभय को ‘ हिपनोटिस्ट’ के पास ले चलने के लिए कैसे तैयार करेंगे? वह बात टल गई है, शायद समस्या के निदान का कोई रास्ता निकल आये।

एक दोपहर अनुभा का फ़ोन आता है उसकी आवाज धीमी, सहमी सी, डूबी हुई है, “समिधा ! कैसी है? वो..... वो..... नीता.......।”

“नीता ने तुझे बता दिया?” वह हल्के से हँस जाती हैं।

“हाँ..... वो.....।``

वह गंभीर हो जाती हैं, “अनुभा ! जीवन में तरह तरह की दुर्घटनायें होती हैं। मेरे साथ यही होना था। टी.वी. में हर तीसरे दिन एक ‘सेक्स स्कैम` में मरने की बात सामने आ रही है। ये ऊपर वाले की मेहरबानी है, हम बच गये हैं। अक्षय की मैंने जो उन दिनों पागलों जैसी हरकत देखी है, उनके सौ गुनाह भी माफ़ है।” उसके दिमाग़ में बिजली कौंधती है, फ़ोन विभागीय है । ये सब कहीं सुना जा रहा है। वह जोश में आ जाती है, “अनुभा ! तुझे याद है कि तेरे पास तेरी सहेली मिसिज बनर्जी का फ़ोन आया था कि मैंने कविता से कहा है कि मैडम के कहने पर मिसिज बनर्जी कविता पर नज़र रख रही है।”

“हाँ.... हाँ.... अच्छी तरह याद है। वे बहुत सीधी है इसलिए घबराई हुई थी”

“हाँ... हाँ.... अच्छी तरह याद है। ”

“तुझे तो पता है कविता से मैं कब से सम्बन्ध तोड़ चुकी हूँ। ऐसा जीवन में मैंने पहली बार किया है। उसने अपना मोबाइल नम्बर बदल लिया है, तो ये बात उस तक कैसे पहुँची ? ”

“हाँ, तू सही कह रही है।”

“अब सुन अभय के साथ कविता ये खेल नहीं छोड़ रही थी। मैंने अभय़ को बचाने के लिए अभय से ऐसे ही कह दिया था कि मिसिज बनर्जी कविता पर नज़र रख रही हैं। कविता ने जान बूझकर ये बात मिसिज बनर्जी से कही जिससे मुझे लगे कि कविता मोबाइल से तब भी सम्बन्ध रखे है और मैं अभय से बुरी तरह झगड़ा करूँ ।”

“ओ माई गोड ! ये औरत है या दरिन्दा।”

“कविता एक भयानक दरिन्दा है। तब मैंने तुमसे झूठ बोल दिया था, आज बता रही हूँ, बड़े ही सुनियोजित ढंग से हमारे झगड़े करवाये जाते है।”

“तूने क्या अभय जी से उस दिन झगड़ा किया था?”

“ना रे ! वह तो स्वयं गुंडों के पंजों में जकड़ विवेकहीन हो चुके हैं। मैंने नीता को जून में ही बताया था कि तीन जून को वर्मा ने बीवी सप्लाई कर चार जून को मुझे सड़क पर देखकर स्कूटर का हॉर्न बजाकर अपनी विजय की घोषणा की थी बाद में तीन अगस्त को उसका एक्सीडेंट हुआ व स्कूटर का हॉर्न बजाने वाली ऊँगली का ऑपरेशन हुआ। इस संयोग पर कौन विश्वास करेगा?”

“हाँ, नीता ने ये बात मुझे बतायी थी।”

“मैं उसे गोपनीय पत्र डालकर अभय को बचाती रहती हूँ। कभी वो भी पत्र डालती है।”

“क्या? तुझे डर नहीं लगता?”

“जब सब कुछ ‘कन्फ़र्म है’ तो मैं क्या डरूँ? वक़्त कुछ भी करा सकता है। इसने एक पत्र में बड़े शान से लिखा था कि मैं दो मोबाइल रखती हूँ। जान पहचान वालों को एक नंबर देती है। दूसरे से आदमियों का शिकार करती है।”

“वॉट?”

“हाँ, नीता ने बताया होगा मैं पुलिस कमिशनर से भी मिली थी कि वे मोबाइल की कॉल डिटेल्स चैक करवायें । इसी कारण से इन्हें कोई सुराग हाथ नहीं लग पाया था। वे भी मुझे साइकिक समझने लगे थे।”

“वॉट ?”

“हाँ, विकेश व अपने एक बिग बॉस आका के कारण ये परिवार ज़ोर लगाकर रह रहा है।” कहते –कहते समिधा क्रोधित हुई जा रही है, “इसने अपने देसाई रोड के किसी मकान में महीनों किरायेदार नहीं रखा। उसी आका के बूते उस घर में अड्डा बना रखा है। मैंने शोर मचाकर ये अड्डा बंद करवाया है।”

“गुस्से में ये लोग अभय को ड्रग भी दे सकते हैं।”

“मैंने सी.एम.एस. से बात कर ली है, अभय को अब ड्रग टेस्ट करवा दूँगी। तुम व कौशल साथ चलने के लिए तैयार रहना।”

“समिधा ! चिन्ता न करना तेरे एक फ़ोन पर आ जाएँगे। नीता ये भी कह रही थी कि अभय को तंत्र-मंत्र यानि ब्लेक मेजिक कोई उच्चाटन तांत्रिक विधि होती है उसमें बिठाया गया है जिससे उस व्यक्ति का परिवार के लोगों से दिल उचट जाता है कोई वशीकरण मंत्र भी होता है।”

“अनुभा ! मैं इस विधि पर विश्वास न भी करूँ लेकिन मैंने अभय को बरसों इन मानसिक अवस्था में देखा है। उन पर मेरी व बच्चों की बात का कोई असर नहीं होता है। उनके विकलांग किये दिमाग़ को आज भी समझ में नहीं आता है कि उनका घर बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है।”

“तू अपने को सम्भाले रहना।”

“मेरी चिन्ता मत कर।”

फ़ोन रखकर समिधा हाँफ़ रही हैं ये उसका कौन सा रूप है? कभी सीधे ही, कभी घुमा फिराकर धमकी देता हुआ? अमित कुमार ! तुम्हारे मातहत ही टेलीकॉम विभाग से इन मॉनीटर फ़ोन की रिपोर्ट लेते होंगे। आग की तरह दोनों विभागों में ये बात फैल जायेगी। कुछ दिन तो शांति रहेगी।

X XXX

चार दिन बाद ही एक दुकान में वह छात्रों के लिए टेस्ट पेपर्स ज़ेरोक्स करवा रही है। एक युवक हेलमेट उतारकर ज़बरदस्ती बात करने की कोशिश करता है, “आप टीचर हैं?”

“जी।”

“मैंने आपको किसी ‘गेट टु गेदर’ में देखा है।”

“हो सकता है, हम लोग काफी सोशल हैं।”

“मेरे पापा उर्दू में ग़ज़ल लिखते थे उन्हें राष्ट्रपति एवॉर्ड मिल चुका है। मेरे दादाजी को भी।”

“उनके नाम क्या थे?”

“मेरे दादाजी का नाम था भुवनदेव श्रीवा ऽ ऽ ऽ स्तव, पापा का परमानंद श्रीवा ऽ ऽ ऽ स्तव।”

उन बताये हुए अनजान नामों से वह समझ जाती है किसी फ़्रॉड को उसके पीछे लगाया गया है। वह पूछती है, “आपका क्या नाम है?”

वह अपने काग़ज उठाकर आँखें फैलाकर, चेहरे पर गुंडई लाकर बताता है,“कातिल बड़ौदवी।” और हेलमेट पहनकर तेज़ी से बाहर चला जाता है।

समिधा मुस्करा जाती है, इस भेजे गये कार्टून कातिल से क्या वह डरेगी?

फिर कुछ दिन बाद कॉल बेल बजने पर वह दरवाजा खोलती है, एक युवा साधु ग्रे कुर्ते व गेरुए रंग की धोती पहने खड़ा है उसका शिक्षित सा चेहरा देखकर फटाक से दरवाजा बंद कर देती है। ये सब क्या है? औरत को एक कम अक्ल, कमज़ोर समझकर डराने की साजिश? जिस केम्पस के जीवन की सुरक्षा पर वह नाज़ करती थी। जिस केम्पस से निकलकर लोग अपने निजी मकानों में जाकर इस सुरक्षा व आत्मीयता की याद में उनके दिल में कसक रहती है, उसी केम्पस में वह दहशत से भरी जी रही है। ये बात और है वह इस दहशत पर पाँव रखना जानती है।

क्या पॉज़िटिव व निगेटिव एनर्जी की बातें सच है? कभी पीछे कम्पाउन्ड में निकलकर सामने की इमारत से आती दहशत से वह सहमती रहती थी। ये इमारत बाँयीं तरफ के पेड़, यहाँ तक कि हवा तक भय से थरथराती लगती थी लेकिन अब सब उजली धूप में धुला-धुला लगता है। रात में वर्मा सहमकर इस तरफ़ के दरवाज़े बंद रखते हैं। क्या इतने आकाओं के साथ होते हुये भी वे लोग डर गये हैं ?

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffamil.com