Dah-Shat - 50 books and stories free download online pdf in Hindi

दह--शत - 50

एपीसोड----50

आधी फ़रवरी भी निकल गई है। कविता का सारा घर बंद रहता है। बालकनी में बस तीन तार कपड़े सूखते दिखाई देते हैं जैसे कि सिर्फ़ उसका बेटा वहाँ रह रहा हो।

क्या सच ही कविता का बेटा अपने घर में अकेला रहा रहा है ?

उसके सामने की इमारत में रहने वाली पड़ोसिन श्रीमती बर्नजी बताती हैं, “तीन-चार दिन पहले कविता को बालकनी में देखा था। पता नहीं सारा दिन घर बंद करके क्या करती रहती है?”

रशिता डिटेक्टिव एजेंसी के ऑफ़िस में उसे बताती है, “आप भी ठीक कह रहीं थीं कि जनवरी प्रथम सप्ताह में कविता की हलचलें रही हैं। मैं भी ठीक कह रही थी कि वह सुबह नौ बजे तक निकली नहीं है।”

“दोनों बातें सही कैसे हो सकती हैं?”

“आप पता कीजिए कोई तो जगह है जहाँ इसने अड्डा बनाया होगा क्योंकि विकेश व सुयश के घरों पर हमारी नज़र थी।”

समिधा का दिमाग़ फिर तेज़ी से सोचने लगता है। सुयश दिल्ली जाने वाले दिन

अभय को कहाँ ले जाना चाहता होगा….. कहाँ?..... कहाँ? ओ माई गॉड..... सुयश के घर की पास वाली कॉलोनी में कविता वर्मा का अपना निजी मकान है। उस सोसायटी में अभय के एक और मित्र रहते हैं। उनकी पत्नी से फ़ोन पर पता चलता है,“वर्मा जी ने तो महीनों से अपने खुद के घर में किरायेदार नहीं रखा है।”

“आपको कैसे पता लगा?”

“ये अपने फ़्रेंड को वह मकान किराये पर दिलवाना चाहते थे तो उन्होंने मना कर दिया था कि किराये पर मकान नहीं देना। हम मकान बेचना चाहते हैं।”

वह विकेश के मोबाइल का नम्बर डायल करती अँधेरे में तीर छोड़ती है,“कविता का बड़े ऊँचे स्केल पर धंधा चलवा रहे हो।”

“कौन कविता?”

“ओहो ! कविता को नहीं पहचानते? आजकल उसने अपना अड्डा देसाई रोड के अपने मकान में बना रखा है। तभी सुयश अभय को अपने साथ लेकर जाने वाला था। देखना तुम सब पर एक दिन भगवान का कहर टूटेगा।”

“कहर तो आप मुझे लगती हैं। आप मेरे पास आ जायें, हमारे ग्रुप में आ जायें तो लड़ाई किस बात की?”

“वॉट? यू क्रिमनल पिग.... ।” गुस्से से फड़फड़ाती समिधा की आवाज़ नहीं निकल पा रही फिर भी फ़ोन पर चीख उठती है, “कमीने हमारी उम्र क्या है? तू मुझे भाभी कहता था, ऐसा कहते हुए तुझे शर्म नहीं आ रही?”

उधर से फ़ोन कटना ही है। तीसरे दिन ही कविता का अपने घर में अँधेरा रखने का नाटक समाप्त हो जाता है। उसके दरवाजे, खिड़कियाँ खुल जाती हैं।

डिटेक्टिव एजेंसी के ऑफ़िस मे रशिता कहती है, “आपकी सूचना के अनुसार कविता के देसाई रोड वाले मकान पर नज़र रखती थी लेकिन वह अपना मकान बेच रही है। मेरे आदमियों ने कुछ लोग वहाँ आते-जाते देखे थे। उनके लिए तो वह कह सकती है लोग मकान देखने आ रहे थे। किसी के निजी घर में हम कैमरे भी फ़िट नहीं कर सकते। आई एम सॉरी।”

“कोई बात नहीं आपका बिल कितना हुआ?”

“आपसे पैसे लेने के लिए सर ने मना किया है, आप उनके भतीजे की गुरु हैं।”

समिधा हठ भी करती है लेकिन वह नहीं मानती।

भागदौड़ से निराश हो समिधा का गुस्सा सुयश की सीनियर इंजीनियर बीवी पर फ़ोन पर फट उठता है। वह सारी कहानी उसे बता रही है। ये जानते हुए भी कि केम्पस से बाहर रहने वाली वह अपनी भोली शक्ल के पति की हरकतों पर कैसे विश्वास करेगी? अंत में वह कह ही उठती है,“सुयश को पता तो लग गया होगा कि अकेली औरत क्या-क्या कर सकती है। सब कविता के साथ ड्रग लेकर बेवकूफ़ जंगली ‘पिग्स’ हो रहे हैं।”

उसी रात समिधा घूमकर लौट रही है। अमित कुमार जानबूझ कर सड़क के बाँयी ओर बने बंगले में से अपनी गाड़ी निकाल कर उसकी बगल में से उसे दौड़ाते निकल जाते है। कविता की लेन पास आती जा रही है। कविता बालकनी में आकर उसे घूरने लगती है। दोनों का किस बात का गुस्सा है? एक और अड्डा बंद करवा दिया गया है? समिधा अंधेरे में टटोलती किसी तीर को पकड़ लेती है, गुंडों की बौखलाहट बता देती है वह सही निशाने पर लग गया है। देसाई रोड के मकान का तो उसने अनुमान भर लगाया था।

दो दिन बाद ही वह रात में घूमकर लौट रही है। अमित कुमार का बंगला पास आता जा रहा है। वह उनके बंगले के गेट के सामने पहुँचती है। बाँयीं ओर बने उनके बंगले के बीच में खड़ी किसी गाड़ी की हेड लाइट्स ऑन होती है। समिधा तेज़ रोशनी में नहा गई है फिर भी वह शांत, सहज आगे बढ़ती जा रही है। उसे डराया जा रहा है? या कि देखा जा रहा है जिसके साथ भगवान या सच होता है वह औरत कैसी होती है ?

X XXX

अभय अपने में हल्के गुम-सुम होने लगे हैं। वह तय नहीं कर पा रही उन्हें हल्की ड्रग दी जा रही है वह अभिनय कर रहे हैं। उनका ड्रग टेस्ट कैसे करवा दे? और इस काँड के आका ड्रग देने के ख़ून के परिणाम के सच को सामने आने देंगे? यदि खून टेस्ट में ड्रग नहीं निकला तो वह और भी साइकिक करार कर दी जायेगी।

वह अजीब तरह के संशय व डर से घिरती जा रही है। एक दिन वह कहते हैं, “आजकल सोने का भाव बहुत बढ़ गया है। चलो अक्षत की शादी के लिए रखा सोने का बिस्कुट निकाल देते हैं। आठ दस हज़ार का फ़ायदा हो जायेगा।”

“गुड आइडिया।”

बैंक का लॉकर समिधा के नाम है फिर भी वह कहती है,“अभय ! तुम साथ चलो इतना सोना बैंक से लाने में डर लगता है।”

सोना घर के अलमारी के लॉकर में रखे तीन-चार दिन निकल गये हैं। वह उस लॉकर की चाबी बाई के कारण छिपाकर रखती है। अभय बाज़ार जाने का नाम नहीं ले रहे। शाम को बहाना बनाकर टाल जाते हैं। अभय के अनमने, खिंचे से चेहरे को देख समिधा सशंकित रहती है। वह जब भी रसोई में होती है या कम्प्यूटर पर काम कर रही होती है (या किसी दूसरे कमरे में हो) तो उसे आभास होता है अभय अलमारी वाले कमरे में कुछ ढूँढ़ते रहते हैं। वह कुछ दिन तक नोट करती रहती है। वे क्या ढूँढ़ते रहते हैं? उसे एम.डी. मैडम की तुर्शी याद आ जाती है,“क्या आपके घर की चीज़ें गायब हो रही हैं?”

“ओ ऽ ऽ.....।” वह उछल कर बैठ जाती है। वह अलमारी के लॉकर की चाबी और छिपाकर रखने लगती है।

अभय अनमने से, अजीब से तनाव में ग्रस्त रहते हैं। वह अंदर से ऊब गई है, वह अभय से शाम को कहती है,“चलिए, आज गोल्ड बेच आयें।”

“आज नहीं, मैं थक गया हूँ।”

एक ख़तरनाक औरत अभय से अब तक कोई मोटी रकम हड़प नहीं पाई.... सिर्फ़ प्यार में पागल करती रही है... तो क्या एक झटके में सारा हिसाब वसूल करना चाहती है?..... ओ माई गॉड !.... ये सोने का बिस्कुट भी तो अजीब तरह से ख़रीदा गया था। पिछले वर्ष अभय ऑफ़िस से आकर अजीब उत्तेजना में थे, “चलो अक्षत की शादी के लिए सोना खरीदकर रख लें।”

“वॉट? तुम्हें ऐसी बातों की कब से चिन्ता हो गई? इस समय सोना तेज़ भी हो रहा है।”

“सोने के दाम और भी बढ़ेंगे, आज ख़रीद ही लेते हैं।”

वे दोनों एक सोने का बिस्कुट खरीद ही लाये थे। समिधा ने उसे बैंक के लॉकर में रख दिया था.... तो एक खानदानी बाज़ारू औरत को अपनी माँ बहनों से मिली ये ट्रेनिंग है? अपने शिकार का ‘ब्रेन’ वॉश करवा कर सोना ख़रीदवाओ व मौका लगने पर उसी से घर से चोरी करवा दो..... इल्ज़ाम बीवी या किसी और पर लगवा दो..... हे भगवान ! बड़ा अच्छा है जो बैंक का लॉकर समिधा के ही नाम है। अभय हल्के नशे की चपेट में हैं..... यदि उनके हाथ सोना पड़ जाये तो इल्ज़ाम समिधा पर ही आना है क्योंकि रोली व अक्षत जानते हैं घर की अलमारी के लॉकर की चाबी समिधा के पास ही रहती है।

अभय का कम बोलना.... उसे संशकित दृष्टि से देखना.... कहीं बड़ा ख़तरा समिधा के आस-पास मंडरा रहा है.... उसकी गर्दन की कोई नस तेज़ फड़कने लगती है..... उसकी गर्दन की झनझनाहट उसे गहरे तनाव में डुबोये दे रही है या कि ये झनझनाहट उसे बता रही है कि उसके आस-पास भयानक अनहोनी बुनी जा रही है। अँधेरे भय में अपने डूबते जा रहे मन को वह कैसे सम्भाले?

कहीं ग़लती से लॉकर की चाबी दिमाग खोये अभय के हाथ में लग गई तो अनर्थ हो जायेगा। कहीं उन्हें अधिक ड्रग दे दी जाये, वह झगड़ा करके सीधे सोना माँगे, इससे पहले ही समिधा सोना अकेले जाकर बैंक के लॉकर में रख आती है व घर पर आकर घोषणा भी कर देती है।

अभय कुछ गुस्से में कहते हैं, “मुझसे पूछ तो लिया होता।”

“तुमसे क्या पूछती? हर तीसरे दिन तुमसे कह रही हूँ उसे बेचने चलो। तुम चलते ही नहीं हो। रोज़ लॉकर की चाबी ढूँढ़ते रहते हो।”

“तुम इल्ज़ाम मत लगाया करो।”

“ये इल्ज़ाम नहीं है। उस बदमाश औरत व उसके गुंडे दोस्तों से कह देना कि मेरे इस घर का सोना हथिया कर तो देखें।”

अभय की आँखें लाल हो उबल उठी है। समिधा सकपका जाती है, उसे चुप ही रहना था। इन लाल डरावनी आँखों को छेड़ने का मतलब है घर में बवाल। अभय क्रोध में चिल्लाने लगते हैं, “तुम उन्हें चैलेंज़ कर रही हो, मैं तुम्हें चैलेंज कर रहा हूँ, चे रिश्ता तुड़वाकर देखो.....। मैं तुम्हें चैलेंज कर रहा हूँ। जब इनक्यायरी होगी मैं कहूँगा तुमने मेरा व अपनी माँ का घर बर्बाद कर दिया है। तुमने दोनों घर बर्बाद कर दिये हैं।”

“मैं तुम्हें इन दरिंदों के पंजे से छुड़ाकर दिखाऊँगी। आइ एम पिटी ऑन यू।”

समिधा की गर्दन में ज़ोर-ज़ोर से झनझनाहट होने लगती है, सहने की भी सीमा होती है वह अक्षत को अब ड्रग टेस्ट के लिए बुला ही ले। वह अक्षत को फ़ोन लगाती है। वह कहता है,“मॉम मैं दो दिन टूर पर हूँ, कोई ख़ास बात?”

“नहीं.... वैसे ही फ़ोन किया था। तुम्हारी याद आ रही थी।” उसकी आँखों में आँसू नहीं छलछलाते, दुश्मनों की चालों का जवाब देते-देते वह पक्की हो चुकी है।

अभय के ड्रग टेस्ट करवाने का एक मौका हाथ से गया। मौका हाथ से गया तो क्या घर की सम्पत्ति, सोना तो बच गया।

आश्चर्य है ! अभय दो-तीन दिन में तनाव रहित चेहरे से खुश हैं। नशे में भी वह संशय में झूल रहे थे कि वे जो करने जा रहे हैं ठीक है या नहीं। गुंडों की काली छाया से समिधा ने फिर उन्हें मुक्त कर दिया है। गर्दन में अभी भी झनझनाहट है। वह अस्पताल में डॉक्टर को दिखाती है। डॉक्टर उसके केस पेपर पर लिखते हुए कहती हैं,“आपको फिर दस दिन ट्रेक्शन लेना होगा।”

समिधा अकेली कितनी असहाय हो उठी है। अभय की नशे में दी गई धमकियों ने इस बार उसे बेहद विचलित कर दिया है। कहाँ तक वह घर की इज़्जत बचाये? अक्षत के घर आने पर वह अभय की हरकतें बताती है व कहती है, “इन गुंडों की हिम्मत बहुत बढ़ रही है। मैंने इतने वर्ष निकाल लिए हैं। रोली व तुम कुछ करो।”

“श्योर मॉम ! क्या करना है आप बताइए।”

“तेरे दोस्त मलय के पापा यहाँ सी.एम.एस. (मुख्य चिकित्सा अधिकारी) होकर आ गये हैं। उनकी उपस्थिति में अभय को ‘हिप्नोटाइज’ करके पूछताछ की जाये। कुछ तो सबूत हाथ में आयेगा। ये ड्रग देने की बात भी बता देंगे।”

वह सकुचा जाता है,“जरूरी है मलय या उसके पाप को ये बात बताई जाये? हम लोग प्राइवेट भी ये टेस्ट करवा सकते हैं।”

“उस प्रूफ़ से क्या होगा? ये गुंडे कहेंगे प्रूफ़ लेकर पुलिस के पास जाओ। मेरे पुलिस के पास जाने पर ये झूठे गवाहों की लाइन लगा देंगे। विभाग के ही मेडिकल ऑफ़िसर के सामने ये बात प्रमाणित हो तो इनके स्थानांतर की बात की जा सकती है।”

“ये भी सही बात है।”

“पहले मैं मलय के पापा से बात करके फिर देखती हूँ।”

“आप जब भी कहेंगी मैं छुट्टी लेकर आ जाऊँगा लेकिन -----।”

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail---kneeli@rediffamil.com

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