दह--शत - 48 Neelam Kulshreshtha द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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दह--शत - 48

एपीसोड –48

“पति को छोड़ दीजिये।” मैडम सुहासिनी कुमार बड़ी चलाकी से सलाह देतीं हैं।

एम .डी .मैडम की ये सलाह सुनकर वह चौंककर उन्हें देखती रह जाती है।

“यदि ये उनका प्यार होता तो मैं उन्हें छोड़ देती, उन्हें जाल में फँसाया गया है। ये बात बस मैं हीं जानती हूँ।

“”ये बात आप इतने विश्वास से कैसे कह रही हैं ?”

“जून 2005 में मैं पाँच छः दिन घर में अंदर से ताला लगाकर सोई हूँ जब कि मुझे पता भी नहीं था इन्हें ड्रग दी जा रही है उन दिनों इनकी हालत बहुत खराब थी।” कहते कहते वह रो पड़ती है।

“रोने से कुछ नहीं होगा।”

“ये बात मुझे भी पता है पहली बार मैं किसी के सामने रोई हूँ, बिकॉज़ यू आर लेडी।” कहते हुए वह रुमाल से आँसू पोंछ लेती है।

“आपके यहाँ जैसे ही ‘टेंशन’ शुरु हो जाता है, आप किसी न किसी के पास पहुँच जाती हैं कि वर्मा को धमका दो।”

“वॉट? ये बात किसने उड़ाई है ? जानती हैं सुरक्षा विभाग मुझे डराने के हथकंडे कर रहा है, किसके इशारे पर। ये बात आप समझिए या पता लगवाइए। मैं इस केम्पस में हूँ इसलिए ट्रिक कर के अभय को बचा रही हूँ वर्ना दो वर्ष पूर्व ही पुलिस में रिपोर्ट करनी पड़ जाती। कोई हँसे या मज़ाक उड़ाये लेकिन मेरी समस्या ऐसे ही कंट्रोल में आ रही है। नौकरी के कारण हम इतने दूर घर से आये हैं। केम्पस में, ऑफ़िस में, कॉलोनी में लोग हमारे जीवन से खेल रहे हैं प्रशासन को कुछ तो करना चाहिये।”

वे नियमों से बँधी मौन है.

***

रोली ज़िद करके बैठी है - इस बार गणेश चतुर्थी को उसके घर आना है। जाने से पहले वह वर्मा के नाम एफ़ आई आर की नकल पोस्ट कर देती है लिख देती है, “यदि तुम लोग बीस तारीख तक नहीं गये तो मैं इस पर हस्ताक्षर कर दूँगी।” उसे पता है वे जाँयेंगे तो नहीं लेकिन कविता के वारों का एक जवाब ये भी है।

ऑफ़िस में तरह-तरह के लालचों से घिरे अभय की भावनायें फिर भड़काई जा रही हैं। उधर कविता के मोबाइल मंत्र अभय से कुछ न कुछ उल्टा सीधा कहलवाते रहते हैं। समिधा की चिन्तायें घनी हो रही हैं। वह अक्षत के आने पर एक क्रिमिनल लायर से मिल आती है कहीं सच ही एफ़ आई आर न करनी पड़ जाये। जो महत्त्वपूर्ण बात पता लगती है। उसी घोषणा सुबह-सुबह नाश्ते के समय अभय के सामने कर देती हैं, “अभय! अपने आका से कह देना। उसे बड़ा घमंड है न अपनी वकालत पास करने का। उसे बता देना यदि मैंने एफ़ आई आर कर दी तो ड्यूटी के समय, ड्रग लेने के आरोप में वर्मा व इसकी नौकरी चली जायेगी।”

“सुबह-सुबह क्या बकवास कर रही हो?”

“जरा सुनते जाओ यदि ये वे गिरफ़्तार हो गये तो ‘नारकोटिक लॉ’ के अनुसार उन्हें गैरज़मानती वारंट में गिरफ़्तार किया जायेगा। आपने ‘क्रिमिनल पिग्स’ दोस्तों को कह देना।”

“तुम्हें तो बड़ बड़ करने की आदत तो गई है।”

अभय का तमतमाया चेहरा देखकर उसे शांति पहुँच रही है। ऐसे ही वे उन गुँडों से अभय को बचाती आ रही है उन्हें बौखलाती आ रही है।

अगले सप्ताह वह अभय को विभागीय फ़ोन पर बताती है, “अभय ! मैं डि-एडिक्शन सेंटर जा रही हूँ। घर की दूसरी चाबी आपके पास है?”

“है न! ये मुझे सुनाकर क्यों जा रही हो?”

वह ऑटो वाले से जानबूझकर ऑफ़िसों की श्रृखंला के बीच से निकलने को कहती है। बाँयी तरफ़ के ऑफ़िस के सामने खड़े हैं मोटर साइकिल लिए पाँच छः ख़ाकी वर्दी वाले लोग, उसे घूरते हुए। उसका अनुमान सही था उसका विभागीय फ़ोन मॉनीटर किया जा रहा है। वह क्यों डरे इन ख़ाकी वर्दी वालों से ?

तभी विकेश का मुँह बोला भाई सुयश अपनी बाइक पर सामने से आता दिखाई देता है। वह अपनी बाइक उसके ऑटो के पास आने पर धीमी कर देता है, “भाभीजी ! नमस्कार ! आपको कहाँ जाना है? मैं ड्रॉप कर दूँ?”

“नो, थैंक्स।” उसे उसका ये प्रस्ताव बहुत बेतुका लगता है। वह ऑटो में है, वह बाइक में, फिर वह ऐसे क्यों पूछ रहा है?

***

वह डि-एडिक्शन सेंटर के डॉक्टर से व्यग्रता से पूछती है, “डॉक्टर ! ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी को ऑफ़िस में ड्रग दी जा रही हो और उसके साथियों को पता ही न चले?”

“अफ़ीम, गांजा, चरस यानि कि ‘नारकोटिक्स ड्रग्स’ दी जाये तो किसी हद तक पता लग जाता है किन्तु साइकोट्रोपिक ड्रग्स लेने पर आदमी लगभग नॉर्मल रहता है। वह बॉस से, अपने साथियों से सामान्य रूप से व्यवहार करता रहता है।”

``क्या ये ड्रग लेनेवाला व्यक्ति कभी फ़्यूरिअस हो सकता है ?``

“यदि उसकी किसी ‘कमज़ोरी’ को कोई छू दे तो वह क्रोधित हो सकता है। मार-धाड़ कर सकता है। यदि ड्रग की मात्रा अधिक हो तो वह किसी की जान भी ले सकता है।”

“ओ नो!” वह सिहर जाती है। तब ही पहले के दो बरसों में उसे बार-बार लगता था कि मौत उनके आस-पास मंडरा रही है या बार-बार उन्हें छूकर निकल जाती है।

“एक बात और है यदि किसी ने ड्रग्स ली हो तो सिर्फ़ चौबीस घंटे तक टेस्ट करवा कर प्रमाणित कर सकते हैं। ब्लड टेस्ट में चौबीस घंटे बाद ‘निल’ रिज़ल्ट रहता है।”

एम.डी. मैडम सही कह रही थीं कहाँ से लायेगी एक भी गवाह? अभय के ऑफ़िस के लोग ठहाका मारकर हँसेंगे यदि वह कहे कि इन वर्षों में अभय को, बीच-बीच में ड्रग दी जा रही थी।

एफ़ आई आर की बिना हस्ताक्षर की गई कॉपी के भेजने से के बाईस-तेईस दिन बाद वह शाम को पीछे के कम्पाउंड में तार पर सूखते कपड़े उतार रही है। अपनी छत पर घूम रहा है कमज़ोर हुआ, बौखलाया सा वर्मा ! वह उसे देखकर मुंडेर पर हाथ खड़ा हो जाता है। वह भी अपना हाथ रोककर कपड़े हाथ में लिए तनकर खड़ी हो जाती है। कविता उसके पीछे से निकल कर नीचे उसे देखकर सकपका कर बालों लगी पिन ठीक करती, पीछे हट जाती है। वर्मा की बाँह पकड़कर पीछे खींच लेती है। समिधा का दिल बाग़-बाग़ है। कहाँ गई छत पर आठ-दस लोगों को लेकर खड़ी कविता, आँखों से फुँफ़कारती कविता, “हाँ, मैं बहुत बोल्ड हूँ....बहुत बोल्ड हूँ।”

xxxx

अभय एक कठपुतली बन चुके हैं। कभी रसोई की लाइट, कभी म्यूज़िक सिस्टम ऑन करके उस पर दोषारोपण करके लड़ने की कोशिश करते हैं। समिधा कहाँ तक संयम रखे ? दीपावली को पंद्रह दिन रह गये हैं। वह सोचती है अपने परिचितों को शुभकामनाओं का ई-मेल कर दें, बाद में तो दीवाली की तैयारी की इतनी व्यस्ततायें बढ़ जाती हैं कि कम्प्यूटर पर बैठना मुश्किल हो जाता है। वह तीन-चार दिन कोशिश करती हैं। नेट की छोटी काली स्क्रीन पर बार-बार आ जाता है- ‘स्क्रिप्ट इज़ हॉल्ट’ ये मुसीबत भी अभी आनी थी। कुछ दिनों में ही वह ताज्जुब करने लगती है कि जब भी अभय बैठते हैं, ‘नेट कनेक्ट’ हो जाता है।

महीने भर बाद वह अक्षत को फ़ोन करती हैं, “अक्षत ! तेरे पापा ने किसी ट्रिक से नेट लॉक कर दिया है। मैं जब भी मेल करने बैठती हूँ तो वह लॉक रहता है तेरे पापा नेट पर आराम से काम करते रहते हैं।”

“मॉम ! कम्प्यूटर पर कोई ऐसा लॉकिंग सिस्टम नहीं होता कि वह स्क्रिप्ट हॉल्ट कर दे।”

“बेटे ! तेरे पापा ज़ानवरों से बुरी तरह घिरे हैं। ये इतने बरसों से कभी नहीं कहते थे लेकिन अभी सुयश की बातें करते रहते हैं कि किस तरह उसने रेस्तराँ में ट्रीट दी। एक शादी में वह इन्हें वी वी आई पी ट्रीटमेन्ट दे रहा था, तब मुझे हल्का सा शक हुआ था। अब मैं श्योर हूँ एक इंजीनियर तो नेट की स्क्रिप्ट लॉक कर ही सकता है।”

“मॉम ! आप भी.....”

“इन गुँडों का मकसद यही है कि मैं इतनी सताई जाऊँ कि हम ये शहर छोड़कर चले जायें।”

“मॉम ! आपको बस बहुत वहम हो रहा है।”

अपने इस अनुमान को एक दिन पक्का कर ही लेती है। रात में अभय के कम्प्यूटर पर बैठने से समय से पाँच मिनट पहले वह चैक करती है, `स्क्रिप्ट हॉल्ट` ही है।

पाँच मिनट बाद अभय कम्प्यूटर पर नेट लगाकर अपना काम कर रहे हैं। अब वह बुरी तरह चिल्ला पड़ती है, “अभय ! ये क्या तमाशा है। मैं दो महीने से पूछ रही हूँ कि नेट क्यों नहीं लग रहा ?तुम बताने नहीं हो। जब तुम काम करने बैठते हो तो नेट कनेक्ट हो जाता है।”

“इत्तफ़ाक की बात है।”

“अभय ! बनो मत पाँच मिनट पहले मैंने नेट लगाने की कोशिश की तो लग नहीं रहा था।”

उसके चीखने से अभय का चेहरा उतर जाता है। वह सकपकाकर कहते हैं, “तुम ‘डन’ पर क्लिक कर दिया करो।”

“मैं दो महीने से परेशान हो रही हूँ तुम्हें चिंता नहीं है।”

“तुमने पहले पूछा क्यों नहीं?”

“अभय ! तुम सिर्फ़ गुँडों में गुँडे बनकर रह गये हो, मैं तुम्हें ठीक करूँगी। ”

ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं कि अभय का चेहरा तनाव से घिरा रहे। पंद्रह दिन निकल चुके है अभय के चेहरे से भयंकर तनाव नहीं हट रहा। आँखें चिंता में भटकती रहती हैं। वह पूछती है तो वे टाल जाते हैं लेकिन इतवार की सुबह की चाय पीते समय स्वयं बताते हैं, “एक ‘ऑफ़िशियल प्रॉब्लम’ है किसी से कहना नहीं।”

“कभी तुम्हारा विश्वास तोड़ा है क्या?”

“हमारे यहाँ के स्टोर से ‘प्लास्टिक ग्रेन्यूल्स’ चोरी हो गये हैं। चोर उन्हें ट्रक में भरकर ले जा रहे थे। चुंगी पर पुलिस ने ट्रक रोककर हमारे ऑफ़िस फ़ोन भी किया तो सुरक्षाकर्मी ने झूठ कह दिया यहाँ चोरी नहीं हुई है।”

“तो चिन्ता की बात क्या है?”

“मैं आजकल स्टोर इन्चार्ज़ हूँ।”

“ओ ! माइ गॉड ।”

“यदि बाद में इन्क्वायरी में ग्रेन्यूल्स कम हुए तो उनका हर्जाना मेरी तनख़्वाह में से लाखों रुपया काटा जा सकता है। ”

“वॉट? तुमने इतनी बड़ी बात पहले क्यों नहीं बताई ?”

“अख़बार में भी आ गया था। वह सुरक्षाकर्मी मेरे पास आया था कि साहब आप लिख कर दे दीजिये कि प्लास्टिक ग्रेन्यूल्स बराबर हैं, कोई चोरी नहीं हुई।”

वह घबरा जाती है, क्योंकि अभय के कमज़ोर दिमाग़ का कोई ठिकाना नहीं है, “तुमने लिखकर तो नहीं दिया?”

“कैसे देता? हज़ारों टन ग्रेन्यूल्स का मामला है।”

एक बिजली चमक उठती है, “ अभय ! ये उस बदमाश औरत के कारण अमित कुमार की ही साज़िश है। तुम्हारे गुंडे दोस्त सब चाह रहे हैं । हम बर्बाद हो जायें। पुलिस ने रात में सुरक्षा कर्मी से पूछताछ की उसने मना कर दिया ये ग्रेन्यूल्स हमारे यहाँ से चोरी नहीं हुए हैं । हो सकता है उसे ग़लतफ़हमी हो लेकिन तुमसे लिखवाने की कोशिश ? अभय ! तुम अपने को गुंडों से क्यों नहीं बचा पा रहे ?”

“तुम्हारा दिमाग़ तो बस एक ही बात सोचता है।”

अभय को परेशान देखकर वह भी परेशान तो होती ही है।

अभय के पीछे लगे गुंडे उन्हें ये सिखाना तो भूल गये हैं कि बेटे के मकान में रुपया नहीं लगाना, एफ़ आई आर का डर तो होना ही है। अभय को अक्षत को फ़ोन करते देख उसे तसल्ली होती है, “अक्षत ! किसी एजेंट से कॉन्टेक्ट कर मकान देखना शुरू करो।”

समिधा की माँ बार-बार उसे बुला रही हैं वह अक्षत को फ़ोन करती है, “अक्षत ! मैं मम्मी को देखने जाना चाह रही हूँ लेकिन अभय को अकेले छोड़ना नहीं चाहती।”

“मॉम ! आप चिन्ता न करें। आप इतवार का रिज़र्वेशन करवा लीजिये। मैं सोमवार की छुट्टी लेकर घर ही रहूँगा।

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नीलम कुलश्रेष्ठ,

e-mail---kneeli@rediffamil.com