गांव और हमारी यादें - गढ़े में जिन्दगी रनजीत कुमार तिवारी द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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गांव और हमारी यादें - गढ़े में जिन्दगी

नमस्कार दोस्तों मेरा सादर प्रणाम मैं रनजीत कुमार तिवारी आप लोगों के लिए लाया हूं एक और कहानी कैसी लगी मुझे कमेन्ट करके जरूर बताएं। अगर कोई गलती हो जाए तो क्षमा करने की कृपा करें।
यह कहानी एक गांव की है जहां स्वच्छंद वातावरण में लोग जिवन यापन करते हैं। चारों तरफ हरियाली पेड़ पौधे खेतों में लहलहाती फसल पंछियों की चहचहाहट खुलें आसमान के नीचे दादी ,मां के द्वारा सप्त ऋषि, शुक्र, धुर्व, चंंन्द्रमा, पुछल्ल तारों का गर्मी के दिनों में सोते समय ज्ञान कराना आदि आकस्मिक मेेेरे दिल मे आया जिसको मैं आप सबके बिच रखने की छोटी सी कोशिश कर रहा हूं कोई लेेेखक नहीं हूं।बस अपने दिल की बात आप सबसे साझा कर रहा हूं उम्मीद करता हूं आप सबको अच्छा लगेगा। इन्हीं सब यादों के बिच एक घटना और हैं।जो कहानी के सृृृशक को चरितार्थ करता है।एक कहावत है बच्चे मन के सच्चे होते हैं इनमें कल छपट नहीं होता है। मुझे बहुत अच्छी तरह याद है।हम अपने गांव के स्कूल में पढ़ने जाते थे बारिश का मौसम था। गांव के पास ही एक चिमनी थी जिसमें पुरा लबा लब पानी भरा हुआ था। हम चार पांच दोस्त मिलकर उसमें नहाने का प्लान बनाए।हम लोग छुट्टी के बाद अपने योजना के अनुसार जाकर नहाने लगें । मुझे तैरना कम आता था लेकिन मेेेरे साथ वाले लड़के अच्छा तैैैरना जानते थे। मैं भी उनके साथ नहाने में मस्त था। गढ़े के बिच में एक बांध था और वहां तैरकर जाना था।सारे लड़के वहां जाकर उस टिले पर बैठ गए और मैैं डर रहा था क्योंकि पानी उस तरफ बहुत गहरा था। मेरे साथ के लड़के मेरा हौसला बढ़ा रहे थे और मुझे अपनी तरफ आने को कह रहे थे।मैैं भी हिम्मत करके उधर चला गया। लेकिन आते समय आधे ही दुरी पर मेेेरा हाथ पैर काम करना बन्द कर दिया और मैैं डुबने लगा सारे लड़को को लग रहा था।मैं मजाक कर रहा हूं लेकिन जब कुछ देर मैं पानी में ऊपर नीचे होता रहा तो उनको यकीन हो गया मैं डुब रहा हूं। मेरे साथ का एक लड़का जिसका नााम पंचा प्रसाद है।वह मुझे बचाने मेरे पास आया लेकिन उस मासुम अवस्था में हम सब को कहा पता था डुबने वाले व्यक्ति के पास नहीं जाना चाहिए।हम सब की उम्र लगभग 14,15,16 की रही होगी। जैसे ही वह मेेेरे पास आया मैैं उसके ऊपर चढ़ने लगा। कभी वह पानी में गोते लगाता कभी मैं दोनों आदमी उस गढ़े का पानी पीने लगे थे।यह सिन देेखकर और जो साथ के लड़के थे भाग खड़े हुए। चिमनी पर गाांव का ही एक मुुंशी था वह आने की बजाय वहीं से धमकीया दे रहा था।आ गया तो ऊपर से चाार बाांस दुुंगा जो लड़के भग रहे थे उनकी मां को पता चल गया । इनके साथ नहा रहे लड़के डुब रहे हैं।वह उधर से उनको उल्टा दौड़ा रही थी आ जाओ काट दुगी और अपनी देेेहाती भााषा वाली गाली देते हुए बचाने को बोल रही थी।यह संस्कार हमने कुछ थोड़ी बहुत देखी है। वह लड़के दुबारा आकर गमछे (तौलिया) को एक दुसरे मेें जोड़कर हमारे तरफ फेंके जैसे ही हमें तौलिये का सहारा मिला हम बाहर निकल गए यह सब कुछ इतने संयोग से हुुआ की दो जिन्दगी गढ़े से बाहर निकल आई।जिसको भुला देना मेरे बस का नहीं है। इस घटनाक्रम ने एक बचपन की अमिट छाप हमारे जीवन में दी है। हमारे साथी भी कभी ना कभी इस घटना को जरूर याद करके भावुक होते होंगे। मेरे साथ नहाने वाले साथियों मेें सत्यदेव यादव,अशोक यादव,पंंचा प्रसाद,और मैं इस घटना को ज्यादा दिन हो जाने की वजह से एक दो मित्रों का ध्यान नहीं है। लेकिन यह एकदम सही घटना है।आप सबको कैसी लगी जरूर बताएं धन्यवाद 🙏