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सडयंत्र - लाचारी

आदरणीय मित्रों आप सबको मेरा प्रणाम मैं फिर एक बार हाजिर हूं।एक नयी कहानी लेकर जो एक सच्ची घटना पर आधारित है।मेरी कहानी में कोई गलती हो तो उसके लिए माफी चाहता हूं।चलिए कहानी पर आते हैं।
बलिया उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गांव जहां पर एक समान्य ब्राह्मण परिवार रहता है। पंडित जी के चार लड़के थे, उन्होंने अपने लड़कों ,में अच्छे संस्कारों को देने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। समय के साथ बच्चे जवान हो गए। सबसे बड़े बेटे रेलवे में, तिसरे नम्बर बेटे अध्यापक, चौथे नंबर बेटे बैंक में नौकरी करने लगे। दुसरे नम्बर बेटे को मां बाप की सेवा और जो थोड़ी सी खेती थी उसमें लगा दिया गया।धिरे- धिरे समय के साथ बच्चों के दिल और दिमाग में भी परिवर्तन आता गया।जो चचेरे एकलौते भाई थे उनकी शादी नहीं हुई थी। मां, बाप के गुजर जाने के बाद वह बिल्कुल अकेले हो गए।उनकी देख रेख के लिए जो दुसरे नम्बर के बेटे थे। उनको तरह- तरह के प्रलोभन और लालच देकर उनकी देख रेख के लिए लगा दिया गया।उनको उनकी जमीन और घर का लालच दिया गया।इनका कोई नहीं है सब तुम्हारे ही तो होंगे।वह बहुत सरल और किसान व्यक्ति थे उनको अपने भाईयों पर पुरा भरोसा था। लेकिन यहां तो संयंत्रों के तहत उनको फंसाया जा रहा था।वह बेचारे मान गये और उनकी देख देख करने में लग गए।पुरा परिवार उनके घर में रहने लगा अपना जो घर था भाईयों ने हड़प लिया। पंडित जी के तिन पुत्र थे उन्होंने कभी अपने घर और हक के लिए लड़ाई नहीं किया।वह संतुष्ट थे यह समझकर हमारे भाई है। लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती। कुछ दिनों बाद जो चचेरे भाई थे उनको दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई।घर में दुखों का पहाड़ टुट पड़ा क्योंकि वह थोड़ा सा भी भेदभाव नहीं करते थे।अपने सगे भाइयों की तरह उनको मानते थे, पंडित जी के तिन लड़के थे जिनकी परवरिश बड़ी कठिनाई में उन्होंने किया था। लेकिन उनकी मृत्यु होते ही सारी कहानी उल्टी हो गयी। जो चचेरे भाई (मृतक) थे उनकी एक बहन थी। उन्होंने ही घर परिवार का हवाला देकर पंडित जी को उनकी सेवा में लगाया था। लेकिन उनके पुत्रों और नाती पोतों के दिमाग में लालच आ गया।और उन्होंने हंगामा कर दिया इधर पंडित जी अंतिम संस्कार की तैयारी करने में लगे हुए थे। दुसरे दिन ही जाकर उनके बहन के बेटे और उनके भाईयों ने उनकी जायदाद के लिए केस दर्ज कर दिया। पंडित जी का जो अपना घर था उसपर पहले से ही भाईयों ने कब्जा कर लिया था।अब पंडित जी बड़े मुसिबत में फंस गये थे।केस चलता रहा और घर परिवार में सबको बहुत कष्ट होता देखकर पंडित जी चिन्तित रहने लगे। गांव वालों के दखल से पंडित जी उसी घर में रहने लगे। लेकिन खेती बन्द हो गयी कोर्ट में केस चलने की वजह से खाने पिने की भी समस्या होने लगी।उनके पास कोई दुसरा आजिविका का साधन नहीं था। पंडित जी के बड़े लड़के गांव में रहते थे।पुजा पाठ करने से जो कुछ मिलता उसी से घर परिवार का गुजारा चलता।उनके दो बेटे किसी प्राइवेट कम्पनी में कार्य करते थे। कुछ समय बाद पंडित जी भी चल बसे सब परिवार बिखर गया है। पंडित जी के साथ जो उनके भाईयों ने किया वहीं उनके बच्चे एक दुसरे के साथ कर रहे हैं। दुनिया की अगर यही रित है।तो भगवान ऐसे रिश्ते बनाया ही क्यों। मुझे इस कहानी से आत्मिक पिडा हुई है।और इसलिए मैंने इसको लिखने की एक छोटी सी कोशिश की है।मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताएं। धन्यवाद

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