एक बहू ऐसी भी
आर ० के ० लाल
आज जतिन बहुत खुश एवं उत्साहित था क्योंकि उसकी पत्नी सुभद्रा विदेश से छ: माह बाद आज सुबह ही वापस आई थी। उससे इतने दिनों का विछोह सहा नहीं जा रहा था । पढ़ाई पूरी करते ही सुभद्रा की सगाई हो गयी थी, उसने मैनेजमेंट का कोर्स किया था मगर उसे कोई अच्छी नौकरी दिल्ली के आसपास नहीं मिल रही थी। उसके मामा विदेश एक मल्टीनेशनल कंपनी में किसी ऊंचे पद पर थे इसलिए सुभद्रा को उनकी कंपनी में जॉब मिल गईं थी। उसे ट्रेनिंग पर इंग्लैंड जाना पड़ा था। जतिन स्वयं उसे लेने एयरपोर्ट गया था। जतिन ने अपना घर भी बहुत ही रोमांटिक ढंग से सजाया था। शाम से जतिन को लग रहा था मानो आज उसकी प्रथम मिलन की रात हो और वह सुभद्रा के साथ मिलन की मधुमय बेला में काफी मौज मस्ती करना चाहता था । यह सोच कर जतिन ने प्यार से सुभद्रा को अपनी बाहों में भर लिया था परंतु सुभद्रा उसके बाहुपाश से अलग हो गई और बोली, “नहीं, जो कुछ इस घर में हो रहा है, मैं हरगिज बरदाश्त नहीं कर पाऊँगी”। फिर वह अपना सामान पैक करने में लग गयी तो जतिन ने पूछा, “क्या बात है, अब कहां जाने की तैयारी है? इतने दिनों बाद तुम मिली हो , मैं तुम्हें आज कहीं नहीं जाने दूंगा। अगर तुम अपने पैरेंट्स से मिलने जा रही हो तो कुछ दिनों बाद चली जाना” ।
सुभद्रा यह सुनकर कुछ ज्यादा ही भड़क उठी, बोली, “अभी तक तुम मेरे मां-बाप को मेरे पेरेंट्स कहकर संबोधित करते हो जब कि मैं तुम्हारे मां-बाप को अपनी मम्मी पापा कहती हूँ। मैं तो कभी जतिन के बाबूजी या जतिन की मम्मीजी नहीं कहती । वे हमारे असली मां बाप से भी बढ़ कर हो चुके हैं पर तुम अभी तक मेरे परिवार को अपना नहीं सके। ऐसे विचार रखने वाला मेरे को कभी अपना पाएगा या नहीं , एक बहुत बड़ा प्रश्न है। क्या उन्हें मम्मी पापा कहते हुए तुम्हें शर्म लगती है? विदेश से आते ही मुझे पता चला कि मेरी ससूमाँ और पापा जी अब इस घर में नहीं रहते। इसलिए मैं भी यहाँ से जा रहीं हूँ”। सुभद्रा की इन बातों ने तो जतिन कि बोलती ही बंद कर दी थी। उसका सारा रोमांस बेताल की तरह फुर्र हो चुका था।
जतिन ने प्यार से सुभद्रा को समझाना चाहा कि मम्मी -पापा तो अपनी मर्जी से घर छोड़ कर चले गए तो मैं क्या करूँ। मैंने तो उन्हें रोका था मगर मामला तो रोहन भैया और भाभी का था। वे नहीं चाहते थे कि मम्मी , पापा यहाँ रहें।
सुभद्रा ने ताना कसा कि मम्मी -पापा अपनी मर्जी से गए और तुमने उन्हें खुशी खुशी बिदा कर दिया? सत्तर- पचहत्तर साल के लोगों को अपनी मर्जी से बृद्धाश्रम जाते हुये और तुम जैसे बेटे को खुश होते मैंने पहली बार देखा है। अब मैं भी तो अपनी मर्जी से जा रही हूँ फिर तुम दुखी क्यों हो रहे हो ? फिर सुभद्रा ने अपना निर्णय सुनाया कि अब वह इस घर में नहीं रहेगी क्योंकि उसे विदेश से आते ही पता चला कि तुमने और तुम्हारे भाई ने मिलकर पापाजी और मम्मीजी को वृद्धाश्रम पहुंचा दिया है। मैं मानती हूं कि इसमें उनकी गलती रही होगी, अब वे लोग बुड्ढे हो गए हैं, काम नहीं कर पा रहे होंगे, हमेशा बीमार रहते होंगे। वे तुम लोगों पर बोझ बन गए होंगे। तुमने सोचा होगा कि अब तुम और तुम्हारे भाई उनके बनवाए घर में आराम से रह सकोगे , मैं भी ज्यादा प्रसन्न रहूंगी । परंतु मैंने शादी करके तुम्हारे पूरे परिवार को अपनाया था जिसमें तुम मात्र एक हिस्सा थे जिसे पति कहते हैं। मेरा साथ एक मां-बाप से छूटा था तो उसी दिन मुझे दूसरे मां-बाप भी मिल गए थे। जब वे ही इस घर में नहीं है तो मैं अकेले यहाँ क्यों रहूं? मैं आज ही उनके पास जा रही हूं। उन्हें यहां लाने नहीं बल्कि उन्हें लेकर कहीं किसी किराए के मकान में अलग रहने के लिए ।
सुभद्रा ने पुनः अपने उदगार व्यक्त किए, “जब मेरी शादी हुई थी तो मैं मात्र बाईस वर्ष की थी। अपने घर में बड़े नाज़ों से पली थी। मुझे समझाया गया था कि शादी होते ही दूसरे दिन से मुझे जल्दी उठना होगा, नहा धो कर सबको चाय बना कर देना होगा, खाना बनाना और न जाने क्या क्या। मैं कुछ नहीं जानती थी बड़ी घबराई थी । तुम्हारे यहाँ मुझसे कुछ नहीं किया जा रहा था तो मेरी सासू माँ ने मुझे खरी-खोटी नहीं सुनाई थी बल्कि कहा था कि तुम बिल्कुल वैसे ही रहोगी जैसे अपने घर में रहती थी। तुम आराम से देर तक सो सकती हो, और तुम्हें कोई काम करने की जरूरत नहीं है। मैं सब संभाल लूंगी। वे मुझे रोज प्यार से जगाती थी, प्यार से मेरे बालों में कंघी करती थी, यहां तक कि मुझे कपड़े पहनने में मदद करती थी, बिलकुल एक माँ की तरह । तुम्हें पता नहीं होगा कि उन्होंने मुझे कितनी बातें सिखाई हैं । पापाजी भी हमेशा बेटी-बेटी कहते नहीं थकते थे। उन्होंने मुझसे कभी कोई अपेक्षा नहीं की । जब भी मैं बाजार जाती तो वे कुछ न कुछ पैसा अवश्य दे देते और हमेशा मेरे लिए कोई न कोई सामान जैसे चाट- समोसा जरूर लेकर आते। तुम सब भूल जाओ पर मैं तो कभी उन्हें नहीं भूल सकती’”।
मैं अपने मायके जाती थी तो मेरी मम्मी मुझसे पूछती थी कि जतिन के पेरेंट्स कैसे हैं तो मैं उनसे लड़ पड़ती थी और कहती थी कि अगर तुम्हें उनके पेरेंट्स के बारे में पूछना है तो जतिन से ही पूछो। हां मेरे ससुराल वाले मां बाप के बारे में पूछना है तो मैं बता सकती हूं । मेरी समझ में नहीं आता कि शादी के बाद जब दो परिवार एक हो गए हैं यह हमारे- तुम्हारे पेरेंट्स का क्या मतलब है?
सुभद्रा के आँखों में आँसू थे वह रोकर कह रही थी कि किसी ने उनके जाने के बारे में मुझे क्यों कुछ बताया नहीं। मुझे कभी नहीं भूलेगा जब मैं बीमार थी और मुझे डेंगू हो गया था तो मेरी सासूमाँ ने लगभग दस दिनों तक ठीक से न खाना खाया था और न ठीक से सोई थीं । हमेशा मेरे पास ही बैठी रहती थी। मोहल्ले भर के घरों से पपीते की पत्ती ला कर उसे पीसकर उसका रस पिलाती रहती थी। मुझे काफी कमजोरी आ गई थी इसलिए वे मेरा पैर भी दबा देती थी। तुम तो सिर्फ हाल-चाल पूछ कर के ऑफिस चले जाते थे । बहुत कम समय में हम दोनों इतनी अच्छी सहेलियां बन गई थी कि अब मुझे उसके बिना जी ही नहीं लगता है। साथ ही सुभद्रा ने कहा, “मैं नहीं कह रही हूँ कि तुम मुझे प्यार नहीं करते। तुम जरूरत से ज्यादा प्यार करते हो पर अपनी सासूमां के बिना भी नहीं रह सकती। इंग्लैंड से जब मैं उनको फोन करती थी तो कभी उन्होने अपनी कोई भी परेशानी मुझे नहीं बताई” ।
जतिन ने कहा, “ मैंने तुम्हें इसलिए नहीं बताया ताकि विदेश में अकेले तुम कहीं परेशान न हो जाओ । जतिन ने बताया कि तुम्हारे जाने के बाद पिताजी फिसल कर कर गिर गए थे। उनके पैर में प्लास्टर चढ़ा था। उन्हें अक्सर अस्पताल ले जाना पड़ता था मगर न तो मेरे पास समय था न रोहन भैया के पास। तुम तो भाभी को जानती ही हो कि एक-एक पैसे के लिए वे कितना बवाल करती हैं। पापाजी के दवा आदि का ज्यादा खर्च देख कर भाभी ने कहा वे दोनों का खर्चा नहीं उठा सकती इसलिए एक का खर्च मैं उठाऊँ और दूसरे का वे । यानि मम्मी पापा में से एक को मैं खिलाऊँ और दूसरे को रोहन । इस बात से मम्मी- पापा दोनों बहुत खफा हुए और वे दोनों दुखी रहने लगे। कुछ दिनों बाद उन्होंने निर्णय ले लिया कि अब वे अपनी मर्जी से बृद्धाश्रम चले जाएंगे। मैंने तो उन्हें बहुत मनाया था मगर वह नहीं माने थे। मैंने भी सोचा कि चलो स्वेच्छा से जा रहे हैं तो अच्छा ही है। मम्मी पापा वहां रह लेंगे और हम लोग यहां आराम से रहेंगे। उन्होंने स्वयं ऊपर का मकान का हिस्सा मेरे लिए दे दिया और नीचे रोहन को । अभी एक महीने पहले ही वे हम सबको विदा करके चले गए । मैंने सोचा था कि तुम आराम से मेरे साथ रहोगी इसलिए मैंने घर को बहुत अच्छी तरह से सजा कर रखा है”।
सुभद्रा ने कहा, “घर को आर्टिफिशियल चीजों से सजाने से उसका महत्व नहीं बढ़ता बल्कि जब सब लोग सपरिवार एक साथ रहें तभी घर वास्तव में घर होता है। तुम कैसे भूल गए कि आज तक उन्होंने हम लोगों की हर ख्वाहिश पूरी की है क्या अब हमारा उनके प्रति कोई कोई दायित्व नहीं होता”।
शाम को सुभद्रा अकेले ही अपना सामान लेकर बृद्धाश्रम पहुंच गयी । उसको देखते ही उसकी सासूमाँ और ससुरजी की आंखों में आंसू आ गए। सुभद्रा ने उनसे कहा, “मम्मी जी मैं आज सुबह ही इंग्लैंड से वापस आई हूं और अब आप ही के साथ यहां रहने आई हूँ। मैं अपना सामान भी लायी हूँ, आपके बिना मैं उस घर में कदापि नहीं रह सकती” । फिर उसने शिकायत की कि परसों जब आपसे बात हो रही थी तब भी आप लोगों ने मुझे कुछ नहीं बताया । लगता है आप मुझे अब अपनी बेटी ही नहीं मानते। यह कह कर सुभद्रा रोने लगी। उसके सास-ससुर कुछ कह नहीं पा रहे थे मगर उनकी आंखे सब कुछ व्यक्त कर रही थीं। उनसे कोई जवाब देते नहीं बना। उन्होंने बस इतना कहा, “बेटी यह बृद्धाश्रम है ,यहां पर केवल वृद्धि ही रह सकते हैं । तुम घर जाओ, मैं तुमसे मिलने कल आऊंगा”। मगर सुभद्रा वापस जाने को तैयार नहीं हो रही थी। बोली कि मैं वह घर छोड़ कर आयी हूँ इसलिए मैं वहां नहीं जाऊंगी। हम लोग कहीं किराए के मकान में रहेंगे मुझे अच्छी खासी सैलरी मिलती है और आप दोनों का खर्च मैं ही उठाऊंगी। आपको कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। जतिन का मन होगा तो वह भी वहाँ आ जाएगा। सास-ससुर या माता-पिता के बिना यह संसार अधूरा है इसीलिए मैंने यह फैसला लिया है।
बृद्धाश्रम के सभी लोग यह नजारा देख रहे थे और कह रहे थे कि क्या कोई बहू ऐसी भी हो सकती है? जतिन के पापा- मम्मी की आंखों से बरबस आंसू की धाराएं बहने लगी। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक पराई लड़की उनके बारे में इतना सोचेगी और इतना मान सम्मान देगी जो उसके अपने बेटे भी नहीं दे सके।
सुभद्रा जबरदस्ती उन्हें बृद्धाश्रम से अपने मायके ले गयी वहां कुछ दिनों तक रहने के बाद एक किराए का फ्लैट ले लिया। सुभद्रा ने जतिन को भी फोन करके वहीं बुला लिया। अब वह साथ साथ रहते हैं । सुभद्रा अपने सास-ससुर का पूरा ख्याल रखती है और उसके सास-ससुर भी उसके लिए जान देते हैं।
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