30 शेड्स ऑफ बेला - 22 Jayanti Ranganathan द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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30 शेड्स ऑफ बेला - 22

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Day 22 by Sana Sameer सना समीर

किस गली बिकती है वफाएं?

कृष की आवाज़ सुनकर बेला के मन में एक तूफ़ान सा उमड़ आया। अचानक कुछ यादें ताज़ा हो उठीं। बेला को अपनी एक नज़्म याद आ गयी -

" अरमां की बारात लिए,

आशाओं में कौन जिए,

जिनके लिए बस कांटे हैं,

उनका दामन कौन सिये,

कृष्ण कन्हैय्या आ जाओ,

मीरा कब तक ज़हर पिए "

बेला लिखती थी लेकिन केवल एक शख्स के लिए। कृष की बात सुनकर वह बीते दिनों के सैलाब में समा गयी। कृष का पुराना भेस - कुरता, पैजामा, लम्बे बाल, मानो बेला कुछ साल पहले फ्लैशबैक में चली गयी हो। दिल में ज़रा सी चुभन हुई और बेला को ये एहसास हो गया कि उसका दिल अभी भी किसी के लिए बेचैन है। ज़िन्दगी में कुछ भावनाएं हमेशा समायी रहती हैं, जिनकी अभिव्यक्ति संभव नहीं होती। बेला के कुछ अरमान थे, आशाएं थीं, जिन्हें उसने अपने कलम में क़ैद तो कर लिया था, लेकिन ज़ाहिर नहीं कर पायी थी। गले में थोड़ा दर्द हुआ, वैसा ही जैसे किसी इन्फेक्शन में होता है। दिल भारी हुआ, वैसा जैसे शायद दम घुटने से होता हो। बेला सोचने लगी की ज़िन्दगी भी कितनी अजीब है, हर कोई अपनी चाहतों से दूर है, एक ऐसे संसार में जहां उमीदों का बोझ और ज़िम्मेदारियों का आदेश, होंठों पर भावनाएं बयां करने से रोकता है।

अचानक, पद्मा ने नींद या शायद नशे में कुछ कहा और बेला अपनी यादों और भावनाओं के समंदर से बहार आ गयी। बेला भावनात्मक रूप से भले ही कमज़ोर थी, लेकिन उसकी ज़िन्दगी ने उसे एक कठोर रूप दे दिया था। अपनी ज़िम्मेदारियों को दामन में वो हर वक़्त संजोये रहती थीं। ज़िन्दगी की बारीकियों को खूब पढ़ना जानती थी बेला।

ज़ेहनी तौर से पद्मा के पास वो वापस आयी और उसके सिर पर हाथ फेरती हुई उसे वापस उसने सुला दिया। अपने दिल के सैलाब को चुप करा दिया।

बेला उठी और सुबह की तैयारी में लग गयी, वैसे ही जैसे इतने सालों से निभाती आ रही थी। कृष की बात में ऐसी क्या बेवफाई थी, जो बेला को सालों पहले खींच कर ले गयी। आखिर ज़िन्दगी में वो भी तो आगे बढ चुकी है। समीर, रिया , घर....

इतने सालों में कितना आगे आ चुकी थी बेला, रिश्तों को समझने की अभी तक कोशिश ही कर रही थी। ये ज़िन्दगी का तूफ़ान कब शांत होगा? इसका जवाब उसे मिल नहीं पा रहा था और वो फिर अपनी ज़िन्दगी में मशगूल हो जाती। उसे आजकल समीर की आंखों में वो प्यार दिखने लगा था जो बेला की आंखों में कृष के लिए था। बेला उसकी अनुभूति बखूबी करना जानती थी। शब्दों के पीछे छिपी बात को भांप जाती थी बेला। कृष की आवाज़ में कुछ ऐसा था जो बेला को पसंद नहीं आया। क्या ये कि पद्मा , मां बनने वाली है? एक ख़ुशी तो है पद्मा के लिए, लेकिन फ़िक्र ज़्यादा और उससे भी ज़्यादा बेवफाई का दर्द।

अपनी नज़्म गुनगुनाते हुए उसने अपने आप को संभालने की कोशिश की। थोड़ी कामयाब हुई तो पद्मा के लिए कॉफी और बिस्कुट लेकर अंदर बढ़ी।

बेला ने सोचा, "आज पद्मा के दिल को खुलकर पढूंगी। ज़िन्दगी बहुत छोटी है, मौके कम मिलते हैं ज़ाहिर करने के। आज पद्मा को खुलकर अपनाऊंगी, गले लगाकर हो सका तो रो लूंगी।"

मुश्किल से तीस मिनट हुए थे उसे किचन में गए, वापस आयी तो पद्मा को देख कर उसकी घबराहट तेज़ हो गयी। पद्मा पलंग से नीचे गिरी हुई थी बेहोश, फ़ौरन समीर को आवाज़ लगायी और दोनों दौड़ पड़े उसे डॉक्टर के पास लेकर।

दिल में बहुत सारे सवाल आ रहे थे, फिक्रमंद तो थी और साथ साथ बेचैन भी। आखिर ये सब क्या हो रहा है? पद्मा उसके साथ है, लेकिन वो उससे बात नहीं कर पा रही है। कृष के प्रति उसकी नाराज़गी क्या जायज़ है? पद्मा को कोई खतरा तो नहीं, कृष ने बहुत भावुक होकर कहा था कि पद्मा का ख्याल रखना। क्या जवाब दूंगी मैं कृष को कि एक दिन भी उसकी पत्नी का ख्याल नहीं रख पाई।

समीर परेशान थे। डॉक्टर से बात करके बाहर उसके पास आ कर चहलकदमी करने लगे। अचानक रुक कर समीर ने उससे पूछा, "तुमने कुछ खिलाया था पद्मा को सुबह?"

बेला समझ नहीं पायी और बोली, "मैं तो खाने के लिए कुछ लेने ही गई थी कि पता नहीं क्या हो गया। ....."

समीर ने बीच में टोकते हुए कहा, " डॉक्टर कह रहे हैं कि फूड पॉइजन हो सकता है। रात से हमारे साथ है पद्मा। फिर… "

बेला एक पल को कुछ समझ नहीं पाई। समीर ने यह क्या कह दिया?

अचानक बेला को जैसे होश आया, कहीं डॉक्टर पद्मा को ऐसी दवा ना दे दें जिससे…

उसने अपने आपको संभालते हुए कहा, ‘समीर, मेरी डॉक्टर से बात कराओ। पद्मा के बारे में…’

वह खुद ही पद्मा के कमरे की तरफ बढ़ गई।

………..

शाम हो गई। बेला पद्मा के कमरे के बाहर बैठी थी। समीर अभी-अभी डॉक्टर से बात करके लौटा था। वह बेला से नाराज लग रहा था, ‘तुमने मुझे पद्मा की प्रेग्नेंसी के बारे में क्यों नहीं बताया?’

बेला ने शांति से कहा, ‘समीर, मुझे खुद आज सुबह कृश ने बताया। वो पद्मा के फोन पर कॉल कर रहा था, मैंने उठा लिया…’

समीर ने कुछ यूं सिर हिलाया मानो वह उसकी बात से असहमत हो।

‘तुम्हें पता है बेला, पद्मा की हालत क्रिटिकल है। उसका बच्चा…, पता नहीं अब क्या होगा? वो बहुत भरोसा करके हमारे पास आई थी। ये ठीक नहीं हुआ।’

बेला का दिमाग सुन्न होने लगा। पद्मा के पास जा कर वह बैठ गई। पद्मा के चेहरे पर अजीब सी शांति थी। आंखें बंद। सांसों का हलका सा कंपन। एकदम देवकन्या लग रही थी उसकी छोटी बहन। बेला ने आंखें बंद कर दुआ मांगी— आंखें खुलीं एक बहुत परिचित कदमों की आवाज से। उसने चिहुंक कर पीछे मुड़ कर देखा, वो उससे कह रहा था .... ‘आखिर तुमने पद्मा से बदला ले ही लिया ना?’....