30 Shades of Bela - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

30 शेड्स ऑफ बेला - 9

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Episode 9 by Abhishek Mehrotra अभिषेक मेहरोत्रा

आंखों का वो पानी...

दिन बीत गया था, रात को अलसाई सी बेला ने खिड़की से बाहर देखा तो भागती-दौड़ती मुंबई को देखकर उसे उस बनारस की याद आई, जहां कुछ दिन बिताने के बाद उसने पाया कि लोगों में कितना अपनापन है। वो अपनापन, वो सुकून जिसके चलते शायद मामूली सी चाय की चुस्कियां भी मुंह में नया स्वाद घोल जाती। मुंबई की मीठी चाय, मुंह में बस मीठा स्वाद छोड़ती है। शायद इसीलिए चाय की शौकीन बेला भी कब कॉफी पीने लगी, उसे ही नहीं पता।

ऑफिस से लौटे उसे काफी देर हो चुकी थी। समीर को इस वक्त तक घर आ जाना था। रिया को अभी-अभी सुला कर वह बालकनी में आई थी। शाम से समीर का कोई फोन नहीं आया। उसने मैसेज छोड़े थे व्हाट्सएप पर। उसने अभी तक उन्हें देखा भी नहीं। अचानक बेला की नजर बिल्डिंग के नीचे जमा भीड़ पर पड़ी। पता नहीं इतने लोग इकट्ठा क्यों थे?

ये कोई बनारस थोड़े ही है, जहां चौराहे पर चार आदमी क्या जमा हुए, हर आने-जाने वाला उनके बीच होने वाली चर्चा में शरीक हो गया। उसे याद आया... समीर से बनारस में ऐसे ही एक चौराहे पर मिली थी! समीर उसकी तलाश में आया था। बेला के पापा के दोस्त का परिचित। ऊंचे कद का समीर भीड़ में सबसे अलग दिख रहा था। उन दिनों बेला का बस एक ही मकसद था—इंद्रपाल को ढूंढना। समीर ने हर तरह से उसका साथ दिया। जिस दिन समीर यह खबर ले कर आया, इंद्रपाल को पुलिस ने पकड़ लिया है, बेला पता नहीं क्यों समीर के गले लग कर रोने लगी, इतने दिनों का अवसाद उसे अंदर तक हिला गया था। समीर ने उसका सिर सहला कर बस इतना कहा, ‘सब ठीक हो जाएगा।’

बेला को समीर के रूप में एक ऐसा शख्स नजर आने लगा, जिस पर वह हर तरह से भरोसा कर सकती थी। बनारस से दिल्ली जाते समय जब समीर उसे एयरपोर्ट पर उसे छोड़ने आया, बेला की आंखें भर आईं, ‘समीर, पता नहीं मैं तुमसे कुछ ज्यादा तो नहीं मांग रही? पर मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।’

समीर ने कुछ कहा नहीं। बेला रास्ते भर सोचती आई, कहीं उसका प्यार एकतरफा तो नहीं?

अगले महीने समीर उससे मिलने दिल्ली आया। पापा तब तक आ चुके थे। मौसी की वजह से वह काफी सामान्य लग रहे थे।

बेला के लिए मुश्किल भरे दिन थे। वह पापा और मौसी के साथ कतई नहीं रहना चाहती थी। समीर को देख कर उसे लगा उसे मन मांगी मुराद मिल गई है।

शादी के बाद उसने महसूस किया, समीर को उसकी भावुकता नहीं पसंद। समीर ने उसे बनारस जाने से सख्ती से मना किया था। मां के जिक्र पर वह नाराज हो जाता, ‘तुम हमेशा अपने पास्ट को सीने से लगाए रखती हो। आज में जीना शुरू करो। तुम्हारी मां, तुम्हारा कृष, अघौरी बाबा, छोटू...हद है यार, ग्रो अप।’

क्या वह समीर से अब भी प्यार करती है? इतना सोचना क्यों पड़ रहा है उसे? समीर तो उससे कई बार कह चुका है कि वह उसे प्यार नहीं करता। उसे अपने काम से प्यार है, उसे जिंदगी में आगे बढ़ना है।

रिया हलकी सी कुनमुनाई। बेला ने कमरे में झांक कर देखा, बिस्तर पर उसकी नन्ही परी सोते हुए मुस्करा रही थी। बेला उसके पास जा कर उसकी बगल में लेट गई। अपनी बेटी के नन्हे हाथों को अपने जिस्म पर महसूस करने लगी।

अचानक मोबाइल की घंटी बजी, बेला ने मोबाइल में देखा, रात के बारह बजने में दो मिनट कम थे। समीर तो नहीं । समीर को नंबर नहीं था। फिर? बेला ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज आई, हैप्पी बर्थडे माई डियर, हाउज यू?

जानी-पहचानी आवाज। मन में घंटियां, कानों में बांसुरी बजने लगी। कृष फोन पर बोलता जा रहा था, पर बेला तो किसी ओर ही ख्याल में खोई थी। कृष की बातों में हां में हां मिलाती जा रही थी, अचानक फोन कट गया।

फोन की ओर देखती हुई बेला सोचने लगी कि आज उसे अपना बर्थडे ही याद नहीं रहा। पर हर साल की तरह कृष को उसका बर्थडे याद था। शायद दादी के बाद वो ही है जिसकी जिंदगी में उसकी इतनी अहमीयत है। फोन दोबारा बजा, कृष ही था। वे कह रहा था-- बेला आई एम बैक इन इंडिया, जस्ट लैंडेड इन मुंबई।

बेला के पूरी शरीर में एक स्फूर्ति सी जाग गई, कृष मुंबई में है? पता नहीं क्यों बेला को आज सुबह से ही कृष की याद आ रही थी। जब से टीवी पर सुबह उसने इस्कॉन की आरती देखी थी, उसे कृष के साथ बिताया अपना वो समय याद आ रहा था, जो उसका ‘गोल्डन पीरियड’ था।

बेला ने अपने आपको संभाला और उसे बताया कि वह आजकल मुंबई में ही है। कृष ने फौरन कहा-अपना पटा भेजो। मैं आता हूं, तुम्हें बर्थडे विश करने।

हल्की सी उत्तेजना तारी हो गई। कृष को अपना पता मैसेज करने के बाद वह फौरन खड़ी हो गई। इतने सालों बाद उससे मिलेगी, उसकी पसंद का खाना तो बनाना पड़ेगा।

वे तुरंत किचन में गई और कृष का मनपसंद बटर-पनीर-मसाला तैयार करने में जुट गई। समीर को फोन किया। वह ऑफिस में था, मीटिंग में। उसका जवाब आया कि वह रात को घर नहीं आ पाएगा, मीटिंग सुबह तक चलेगी।

बेला उसे यह भी नहीं बता पाई कि कृष घर आ रहा है। समीर के साथ उसके रिश्तों में ये कौन सी दरार आ गई है कि वह उसे अपने मन की बात भी नहीं बता पाती। शादी के कुछ समय बाद जब समीर ने बेला को बताया कि वह पिता नहीं बन सकता, बेला के अंदर कुछ टूट गया था। बहुत वक्त लगा था उसे समीर को इस बात के लिए राजी करने में कि एक बच्ची गोद ले लें। समीर को बहुत मुश्किल से राजी कर पाई। रिया बस उसकी बेटी थी। मां की नन्ही परी, बेला का विस्तार। उसमें बेला को अपना बचपन नजर आता था।

घड़ी में बारह बजकर पच्चीस मिनट हुए थे कि घर का दरवाजा नॉक हुआ। बेला ने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा सामने कृष खड़ा था। पर इस बार उसने कुर्ते की जगह स्टाइलिश सा कोट डाला हुआ था, पूरा जेंटलमेन के माफिक। उसे देखते है बेला उसके गले लग गई। दो मिनट तक कस कर हग करने के बाद उसने जैसे ही उसने आंखें खोलीं तो देखा कृष उसे प्यार भरी निगाहों से निहारे ही जा रहा है। इस पल भर के समय में ही बेला की आंखों ने हजारों सपने जगते हुए देख लिए। उस रात दोनों ने जमकर वाइन पी और फिर बेलौस बेला अपने उस साथी के साथ हरे कृष्णा-हरे रामा पर जमकर थिरकी, देर रात दो बजे जाकर दोनों सोए।

सुबह जब बेला उठी तो उसे अपने बाजू में एक नोट लिखा दिखा..जिस पर लिखा था: डियर बेला, आई हैव टू गो टू एयरपोर्ट। माई वाइफ इज कमिंग टुडे.... इतना पढ़ने के बाद ही बेला की आंखें डबडबा गईं। वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि आखिर उसकी आंखों में ये पानी क्यों आया....

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