30 शेड्स ऑफ बेला - 11 Jayanti Ranganathan द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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30 शेड्स ऑफ बेला - 11

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Day 11 by Kamlesh Pathak कमलेश पाठक

सायों में उलझी एक रात

बेला के अंदर एक नदी लगातार बहती है , कभी शांत तो कभी उग्र । कभी इलाहाबाद की गंगा की तरह सीधी सरल तो कभी बनारस की गंगा की तरह बलखाती हुई । यही अंतर्धारा उसका संबल है जिसके सहारे वह बड़े से बड़े हादसों को झेल जाती है।

आज ऑफिस से जल्दी निकल गई। मन में हजार सवाल थे। पापा, कृष, कृष, पापा… !!! पापा। दिल्ली जाना पड़ेगा। पापा इस तरह कभी नहीं बुलाते। बहुत जरूरी बात होगी। पिछले साल दो दिन के लिए समीर और रिया के साथ गई थी। पापा ठीक थे। हमेशा की तरह कम बोले। रिया को तो खैर वे अपना मानते ही नहीं थे। मौसी ही थीं, जो रिया को दुलारती फिर रही थीं। बेला को पता था रिया को गोद लेने से पापा खुश नहीं थे।

ऑफिस से ही उसने घर फोन किया था। रिया को हल्की सी हरारत थी, उसकी आया ने बताया, वो सो रही है अभी। बुखार में उसे दिल्ली ले जाने का कोई फायदा नहीं था। रिया को उसके बिना रहने की आदत थी, वह दफ्तर के काम से बाहर आती-जाती रहती थी। अपने लिए अगले दिन शाम को तत्काल में राजधानी से मुंबई-दिल्ली का टिकट करवाया। समीर को कहना पड़ेगा कि रात को समय पर घर आ कर रिया का ध्यान रखे। नहीं तो पड़ोस में रहने वाली गेरा आंटी तो है ही। रिया उन्हें दादी कहती थी।

सुबह रिया ने कहा था, आज मेरी डॉल का हैप्पी वाला बर्थडे है, उसे कलर्स देना है गिफ्ट में, आप लाओगी ना?

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टैक्सी में बैठ कर एक बार फिर बेला ने अपने आपको संभाला। बैग में पड़े पैकेट को चेक किया, रिया के कलर्स थे। घर पहुंच कर देखा, रिया अपने दोस्तों के साथ अपनी गुड़िया का जन्म दिन मनाने में व्यस्त थी । वह कमरे में जा रही थी और समीर निकल रहे थे ।

समीर हाय कहते हुए उसके सामने से निकल गया। बेला ठिठकी। इस वक्त टोकना ठीक नहीं लगा। कल सुबह बता देगी।

समीर और उसके बीच यह दरार कैसे आ गई? मां जब पापा को छोड़ कर चली गई थी, दादी अकसर कहा करती थी, दो लोगों के बीच जब संवाद खत्म हो जाता है, तो रिश्ते अपने आप दरकने लगते हैं।

बेला को खुद पर ही हंसी आ गई । विचित्र हो बेला तुम । एक बार जिसे तुमने प्यार किया उसे दूसरों के लिए छोड़ दिया, दोबारा प्यार किया उस आदमी को जिसका प्यार नाम की चीज़ से दूर-दूर तक वास्ता नहीं था । पता नहीं समीर ने उससे प्यार किया था भी या नहीं।

अचानक उसे मां की बहुत शिद्दत से याद आई । लगा आज मां होतीं तो मैं ज़िद करके उनकी गोदी में सर रख कर जी भर के रोती। मां तुम इतनी निष्ठुर कैसे हो गईं? तुमने मेरे बारे में एक बार भी नहीं सोचा? दादी और पापा के पास मुझे उस वक्त छोड़ कर चली गई, जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी। और सच में बेला फफक-फफक कर रो पड़ी। उसे कब नींद आई पता ही नहीं चला। रिया ने उसे झकझोर कर उठाया। अब भी हलका सा बुखार था उसे। उसने बहुत प्यार से रिया को समझाया, ‘बेटू, मम्मा को दो दिन के लिए ऑफस के काम से बाहर जाना है। तुम आया आंटी के साथ रह लोगी ना गुड गर्ल के जैसे?’

रिया ने सिर हिलाया, ‘ओके। दादी भी तो हैं। आप मेरे लिए नया वाला डॉल ले कर आओगे?’

बेला ने प्यार से उसे गले लगाते हुए कहा, ‘जरूर बेबी। मैं जल्दी आ जाऊंगी।’

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राजधानी सूरत स्टेशन से निकली। रात के आठ बज रहे थे। बेला की सामने वाली सीट पर एक हृष्टपुष्ट महिला एक छह महीने के बच्चे को गोद मे लेकर प्रसन्नचित्त बैठी थीं । बच्चा प्यारा था। बेला को उसे प्यार से देखता देख फौरन उन्होंने बैग से काजल निकालकर एक काला टीका बच्चे के माथे पर लगा दिया। बेला को हंसी आ गई। सुबह से सिर पर हावी तनाव काफी कम हो गया। मन कहने लगा, पापा ठीक होंगे।

बेला सोने के लिए लेटी ही थी कि फ़ोन की घंटी बजी। कृष। एक सेकंड के लिए धड़कन रुक गई। फुरसत मिल गई उसे?

उसने फोन उठाया। कृष की आवाज में बेचैनी थी।

‘बेला, कहां हो टुम? आइ नो, तुम मुझसे नाराज हो।’

बेला चुप रही।

कृष अधीर हो गया, ‘आएम सॉरी। आइ नो। तुमने मुझे फोन किया था।’

‘तुम अपना वॉलेट छोड़ गए थे कृष!’

‘थैंक गॉड। तुम्हारे पास है मेरा वॉलेट? मैंने सोचा था, कहीं खो गया। मैं आ सकटा हूं अभी?’

बेला रुक कर बोली, ‘मैं घर पर नहीं हूं कृष। ट्रेन में हूं, दिल्ली जा रही हूं। पापा की तबीयत ठीक नहीं है।’

‘ओह। आइ होप ही गेट्स वेल सून।’ कृष की आवाज जैसे बहुत दूर से आई।

बेला की चुप्पी कृष जैसे भांप गया, ‘तुम मुझसे नाराज हो ना? बोलो?’

‘नाराज नहीं कृष। बस अपने सवालों से परेशान हूं। पता नहीं तुमसे पूछ सकती हूं कि नहीं। मैंने तुम्हारे वॉलेट में एक तसवीर देखी, तुम्हारे साथ कौन है उसमें? मेरे जैसी? पद्मा?’

कृष की आवाज में हलका सी थर्राहट थी, ‘हां।’

‘कृष, उस रात हम साथ में थे। हमने इतनी बातें की, और तुमने मुझे यह बात नहीं बताई। क्यों?’

‘बेला, मैंने टुमसे कुछ नहीं छिपाया। मुझे लगा, तुम्हें पटा होगा। तुम्हारे पापा को पटा थी, तुम्हारे हजबैंड को भी। क्या तुम्हें किसी ने बताया नहीं?’

ट्रेन लंबी सींटी देती हुई सरपट किसी छोटे से स्टेशन से गुजरी। रात के अंधेरे में लैंप पोस्ट, खेत, गांव-घर पीछे छूटता जा रहा था, बस नजर आ रहे थे लंबे से काले साए।

कृष अबकि कुछ तेज आवाज में पूछ रहा था—बेला, बेला, आर यू देयर?