दह--शत - 40 Neelam Kulshreshtha द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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दह--शत - 40

एपीसोड -40

      समिधा एसटीडी बूथ से कहती है, “कविता ! न! न! फ़ोन मत काटना....मैंने जी.एम. साहब से शिकायत कर दी है । नये चीफ़ विजलेंस ऑफिसर आ गये हैं । उन्होंने तेरे घर के आसपास पहरा बिठा दिया है । अभय को ड्रग देने का काम तूने ही किया है विकेश ने नहीं क्योंकि तेरे चंगुल से जब इन्हें छुड़ा लेती हूँ ये बिल्कुल ठीक हो जाते हैं । विकेश तो इन्हें रोज़ ऑफ़िस में मिलता है । तुम तैयार रहना जी.एम. तुम्हें क्या सज़ा देते हैं । होली आ रही है इसलिए.....।” समिधा को फ़ोन काटने की ज़रुरत नहीं रहती ।

हर समय स्वयं को, बच्चों को किताबों में उलझाये रहने वाली या संगीत की धुनों में सराबोर रहने वाली समिधा स्वयं किस दुनिया की औरत बनती जा रही है ?

अभय डेढ़ महीने तक बिल्कुल शांत है । समिधा इस शांति से आश्वस्त नहीं है कब क्या कुछ होने लगता है, पता नहीं । एक दिन वह उसे सूचना देते हैं, “मैं शाम को कार ड्राइविंग सीखने जाया करुँगा ।”

“गुड !”कह तो वह यह रही है लेकिन चिन्तित है,

“कार कब ले रहे हो ?”

“क्या मैं कार नहीं ख़रीद सकता ?”

“क्यों नहीं?”

“विकेश कह रहा था कि मुझे कार ख़रीद लेनी चाहिये ।”

तो ये चाँडालों के दिमाग की नई उपज है । दिन में तो वह प्रशासन का पहरा बिठाने की धमकी दे चुकी है । समिधा अभय को रोके कैसे ? अभय कुछ दिनों में ही सुन्न व चुप होने लगे हैं । किसी दिन वह साढ़े सात बजे की जगह साढ़े आठ बजे आते हैं । वह अपने छूटते धीरज को बाँधे हुए है। अक्षत की शादी अभी बाकी है । कैसी होती है यह छटपटाहट ! ये क्षोभ ! ये बेबसी ! अपराध इस सफ़ाई से किया जा रहा हो प्रमाणित करना मुश्किल हो । महीने दर महीने.......बरस निकलते जा रहे हो । एक दिन वे देर से आकर शोर मचाते हैं, “चलो घूमने चलो ।”

“अभी से ? मैं अभी नहाई नहीं हूँ हम तो आठ बजे घूमने निकलते हैं ।”

 

“एक दिन बिना नहाये घूम लोगी तो क्या बिगड़ जायेगा ?”

 “नहीं, अभी मुझे नहीं जाना ।” अभय की सूरत की ये कुरुपता वह खूब पहचानने लगी है ।

   “मैं तो जा रहा हूँ ।”

समिधा नहा धोकर लखनवी सूट पहनकर घूमने निकलती है । गर्मी के मौसम में ये हल्के पतले कपड़े दोनों तरफ के पेडों की हरियाली के बीच सरसराती हवा लम्बी सड़क पर वह चलती हुई केम्पस के अस्पताल के पहले गेट से आगे निकल चुकी है । दूसरे गेट के पास जैसे ही वह पहुँचती है अचानक उस गेट में से एक स्कूटर निकल कर कॉलोनी की तरफ मुड़ता है । समिधा सन्न है । ड्राइवर की सीट पर बैठा है लम्बा, गोरा वर्मा, पीछे बैठी है छोटे कद की कविता । उसे अचानक सामने देखकर वर्मा स्कूटर दौड़ा देता है । समिधा मुड़कर देखती है । उसे मुड़कर देखते कविता के चेहरे पर मुस्कराहट भरी बेशर्मी व थोड़ी खिसियाहट भी है ।

तो अभय उसे जल्दी घूमने के लिए इसलिए मजबूर कर रहे थे कि वह घूमकर लौट जाये तो कविता उस ‘स्थान विशेष’ से बाद में निकल कर घर जा सके । यदि समिधा अभय को बताये कि उसके ‘धंधे’ में साथ देने वाला पति उसे वहाँ से ला रहा था तो क्या अभय विश्वास करेंगे ? प्रशासन के पास शिकायत है फिर भी केम्पस में ये खौफ़नाक हिम्मत ? इस हिम्मत से समिधा का दिमाग अर्द्धविक्षिप्त सा होने लगता है लेकिन वह क्या करे ? उसमें घर के बार बार के तूफ़ानों को झेलने की हिम्मत कहाँ रही है लेकिन उसे धीरज रखना ही होगा । हर समस्या का उत्तर समय ही देता है ।

दूसरे दिन वे दोनों घूमने निकलते हैं तो कोई परिचित ठीक वर्मा की लेन के सामने मिल जाता है । वे वहीं रुककर बात करने लगते हैं ।

उस घर की खिड़की पर पर्दा नहीं है । थोड़ी देर बाद ही खिड़की पर वर्मा सीना चौड़ाये खड़ा हो गया है । एकटक नीचे खड़े उन तीनों पर ही उस की नज़र है । कल उसकी बहादुरी वह देख चुकी है, आज वह सीना ताने खड़ा है समिधा को लगता है कोई सफ़ेद नाग पूरा फन फैलाये खिड़की से फुफकार रहा है । समिधा को घृणा से थरथरी होने लगती है ।

x x x x

कुछ दिनों बाद उसे आश्चर्य हो रहा है अभय उसके साथ ही लौट रहे हैं । वे दोनों थोड़ी दूर चलकर आते हैं, सामने से वर्मा कपल आ रहा है । इन बरसों से इन्हें उसने दो तीन बार ही सड़क पर देखा है । आज अभय का साथ लौटना व उन दोनों का सड़क पर घूमने आना पूर्व नियोजित है । अभय तो उसके समझाने पर भी सामने वालों का मंतव्य समझ नहीं पायेंगे । वे लोग पास आते जा रहे हैं । वर्मा का सीना ज़रुरत से अधिक चौड़ा हो रहा है । चाल में एक अकड़ है । आँखें समिधा पर टिकी व्यंग से मुस्करा रही हैं । कविता काली बेहया ख़तरनाक आँखें अभय केpage 190

 कविता की काली बेहया ख़तरनाक आँखें अभय के चेहरे पर जमी हैं । वह कनखियों से देखती है वे मंत्र मुग्ध से उनमें उलझते हुए हैं । समिधा कविता के चेहरे पर अपनी आँखें बहुत बुरी तरह गड़ा देती है लेकिन वह अभय को सीधे घूरना नहीं छोड़ती ।

अपनी घृणा को कम करने के लिए समिधा उनके सामने थूक देती है, दो बार और कर भी क्या सकती है वह, इस आसमान फाड़ देनेवाली छाती ठोंकती इस बेशर्मी पर?

थोड़ा आगे निकलकर उसके होंठ बुदबुदा उठते हैं, “दे आर क्रिमनल्स।”

अभय पूछते हैं, “कुछ कहा?”

“नहीं तो।”

समिधा के लिए अब नई मुसीबत है कि वह अभय के साथ शाम को कार ड्राइविंग स्कूल जाने के लिए क्या-क्या बहाना बनाये ? वहाँ से ट्रेनिंग की अंतिम तारीख पता कर लेती है, कहीं ऐसा न हो ये तारीख निकल जाये और अभय रोज़ ड्राइविंग सीखने जाते रहे। उसकी मेहनत रंग ला रही है अभय फिर उन्मुक्त व सहज हो चले हैं । रोली, सुमित व अक्षत बीच-बीच में जब भी आते हैं घर खुशी के हंगामे में डूब जाता है ।

कुछ दिनों बाद ही सुबह सात बजे विभागीय फ़ोन आता है । समिधा की अपनी सारी शक्ति कानों में एकत्रित हो गई है। अभय फ़ोन पर हैं, “विकेश बोल रहे हो... हलो... हूँ...हाँ... क्या ठीक है।” फिर वह उत्साह में ज़ोर से बोल उठते हैं, “ थैंक यू वेरी मच... थैंक यू वेरी मच।”

चाहे समिधा की ग़लतफ़हमी ही हो। अभय के ऑफ़िस के लिए स्कूटर स्टार्ट करते ही वह उनके पीछे बैठ जाती हैं क्योंकि विकेश कॉलोनी में नहीं रहता और ऑफ़िस टाइम तो नौ बजे हैं । वे मुड़कर उसकी तरफ देखते हैं, “क्या हुआ?”

“आगे की दुकान से दूध का पैकेट लेना है ।”

“ओ....।” वे आगे दुकान के पास स्कूटर रोक देते हैं।

वह कहती है, “मुझे आगे क्रॉसिंग पर छोड़ दीजिए । मार्निंग वॉक हो जायेगी।”

क्रॉसिंग पर वे स्कूटर रोक देते हैं । वह उतर कर व्यंग से कहती है, “बाय ऽ ऽ ऽ.....”

वे उसके व्यंग को पहचानकर हड़बड़ी में स्कूटर दौड़ाकर बाँयी तरफ़ ऑफ़िस के रास्ते पर मोड़ देते हैं। यदि वह साथ नहीं आती तो निश्चित स्कूटर दाँयी तरफ़ मुड़ता, वह भी इतनी सुबह ?

अपने पति को उसके घर लेकर आई वह झूमती हुई काली नागिन याद आने लगती है जो चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी, “अपने पति पर इतना शक है तो उन्हें ऑफ़िस छोड़ने व लेने साथ जाया करिए....वाह ! महापिशाचिनीजी! आज आपने ये भी करवा लिया।”

पाँचवे दिन फिर सुबह विभागीय फ़ोन की घंटी बजती है, समिधा दौड़कर रिसीवर उठा लेती है। उसके “हलो” कहने के साथ फ़ोन कट जाता है। दस मिनट बाद भी ऐसा ही होता है ।

एक दिन फिर रिंग आती है। अभय फ़ोन पर “हाँ......हूँ......।” करते धीमे स्वर में बात कर रहे हैं। रिसीवर रखकर उसके पास आकर कहते हैं, “मुझे ऑफ़िस जल्दी जाना है।”

उसने कहीं पढ़ रखा है ‘बीभत्स अपराध’का अपना नशा होता है। नशे में अभय को कितना रटाया गया है, “अकेली औरत कर ही क्या सकती है?”

सच ही वह अकेली पड़ गई है । अपराधी तीन है, अभय को अपने जाल में उलझाये हुए विवेकहीन किए हुए । एक बदमाश औरत ने अपने सच्चे प्यार का विश्वास दिला दिया हैं वे अपराधी अपनी सफ़लता पर फूल रहे हैं...झूम रहे हैं....बौरा रहे हैं.....खुले आम अभय को इतनी सुबह बुलाया जा रहा है, विकेश को अभय किस बात का उस दिन धन्यवाद दे रहे थे ? विकेश ने किसी नये स्थान की या पुराने ही स्थान की चाबी का प्रबंध किया है? इतनी सुबह कविता का बेटा व बेटी घर पर होते हैं तो क्या सारा घर...।

समिधा को कुछ करना होगा, उसका दिमाग़ तेज़ी से दौड़ रहा है । अभय शेविंग कर रहे हैं । वह विभागीय टेलीफ़ोन एक्स्चेंज का नंबर डायल करती है । ऊँची आवाज़ में कहती है, “अभी हमारे इस फ़ोन नंबर पर किसी ने बात की थी । प्लीज़ ! बता सकते हैं वह फ़ोन किस नंबर से आया था?”

“मैडम ! वेरी सॉरी ! यदि आप पहले बता देतीं तो हम नोट भी कर लेते ।”

वह निराश हो बरामदे में आती हैं अभय तौलिया हाथ में लिये खड़े हैं । उनका चेहरा बुरी तरह उतरा हुआ है । वे चिड़चिड़ाकर कहते हैं, “मैं नहाने जा रहा हूँ ।”

तो? तो अभय समझ रहे हैं कि उसे जगह का सुराग लग गया है । आज तो दुश्मनों के खेमे में खलबली मच जायेगी । वह गुनगुनाते हुए नाश्ता तैयार करने लगती है ।

उन सबकी बौखलाहट का सबूत मिलता है प्रतिमा के फ़ोन से, “भाभी जी ! हैपी बर्थ डे।”

“थैंक यू, हमारे तो रिलेशन्स नहीं रहे फिर ये फ़ोन?”

“आपकी बर्थ डे तो मैं भूल ही नहीं सकती ।”

“तुम या विकेश ?क्या उसने फ़ोन करने को कहा था ?”

“हाँ।”

“यह बात मैं समझ गई थी । तीनों गुंडे बौखलाये हुए हैं डरे हुए हैं । वो प्लेस पहचान लिया गया है ।”

“कौन सा?”

“तुम्हें फ़ोन पर कैसे बताऊँ ? वह नागिन चैलेंज करती थी कि मैं प्रूफ़ कहाँ से लाऊँगी ? अब देखना ।”

 “तो क्या वर्मा का ट्रांसफ़र नहीं हो पा रहा?”

“ यदि जी.एम. ऑफ़िस से हो जाता तो साहिल ही करवा देता लेकिन विकेश को बता देना, अब प्रूफ़ मिल गया है, कुछ न कुछ तो होगा ही ।”

“आप उम्मीद नहीं छोड़ रहीं ?” वह व्यंग करती है ।

“देखो बदमाशों का भी अपना समय होता है । उससे पहले उनका अंत सम्भव नहीं होता । एक ‘एडिक्टेड’ व्यक्ति का जो विरोध करता है वह उसका दुश्मन होता है और जो किसी गंदी लत की पूर्ति करता है वह सबसे प्यारा दोस्त । अभय ऐसे ही चक्रव्यूह में फँसा दिये गये हैं। मैं उन्हें निकालकर दिखाऊँगी ।कहीं तुम भी तो इस गैंग की मेंबर तो नहीं बन गईं जो सम्बन्ध न होने पर फ़ोन कर रही हो ?”

“आप पुलिस में रिपोर्ट करिए न !”

“पुलिस में रिपोर्ट करनी होती तो कब से कर देती।”

“विकेश सच कह रहे थे...।”

“यही कि मैं साइकिक हो रही हूँ, पागल हो रही हूँ ।”

उधर से फ़ोन कट जाता है ।

नीलम कुलश्रेष्ठ

ई मेल –kneeli@rediffmail.com