एपीसोड---39
शादी की तैयारी के तनाव तो होते ही हैं लेकिन उसके तनाव तो कुछ और भी भयंकर थे। मेह़मानों की विदाई के बाद ऐसा लगता रहता है जैसे सारा स्नायु तंत्र काँप रहा है। दिमाग समेटे नहीं सिमट रहा। बीस दिन की ट्यूशन के बच्चों की छुट्टी कर दी है। कुछ भी पढ़ा पाना उसके बस में नहीं है। शरीर में जैसे जान नहीं रही है।
होली पर रोली चहकती, खुश लौटी है उसकी सूरत देखकर समिधा की आत्मा तृप्त है। रोली आते ही उसे एकांत में ले जाती है, “मॉम! कैसी हैं?”
“फाइन! लेकिन तेरे बिना ये घर कैसा हो गया है। पूछ मत।” कहते हुए फफक उठती है।
होली की दौज की पूजा के समय उसने आटे का चौक व स्वास्तिक बनाकर उस पर मिट्टी की गौड़ (पार्वती का स्वरूप) रख दिया है, इसे लाल रंग की चूनर उढ़ाई है। रोली के दाँये हाथ के ऊपर हल्दी से स्वास्तिक बनाती है। रोली कहती है, “मॉम! आपने प्रॉमिस किया था इस बार नानी से दौज की कहानी सीख कर आयेंगी ”
“कौन सी?”
“वही जिस कहानी में एक बहिन अपने भाई की प्राण रक्षा के कारण पागल मशहूर हो जाती है।”
“पागल या साइकिक।” कहते हुए समिधा की आँखें डबडबा आई हैं।
“कुछ भी समझ लीजिए।” रोली की आँखें भी छलक उठी हैं।
“हाँ, इस बार मम्मी से पूरी कहानी नोट करके लाई हूँ, मैंने याद कर ली है। समिधा वह कथा कहना आरंभ कर देती है, “एक लड़का अपनी विधवा माँ के साथ रहता था। जब उसे उम्र के साथ कुछ समझ आई तो उसने देखा की बहिनें अपने भाईयों को राखी बाँधती हैं, दौज पर माथे पर टीका लगाती हैं। उसने माँ से पूछा कि माँ! क्या मेरे बहिन नहीं हैं?”
माँ बोली, “है क्यों नहीं? वह दूर गाँव में रहती है।”
“माँ! मैं उससे मिलने जाऊँगा।” वह ज़िद करके जंगल पार करता बहिन के यहाँ पहुँचा। उसकी बहिन चरखे पर डोरा कात रही थी। उसने भाई को बिठा लिया और बोली, “ये धागा टूट गया है, इसे पहले ठीक कर लूँ।”
वह धागा जोड़ती वह बार-बार टूट जाता था। भाई उकता गया और बोला, “मैं वापिस जा रहा हूँ।”
बहिन बोली, “बिना कुछ खाये पीये कैसे चला जायेगा?”
बहिन ने उसकी खूब ख़ातिर की । भाई को सुबह वापिस जाना था । इसलिए बहिन ने सुबह चार बजे उठकर गेहूँ पीसे, चने की दाल पीसी । खाना व लड्डू बनाकर भाई के साथ रख दिये । भाई मुँह अंधेरे ही चल दिया । जब थोड़ा उजाला हुआ तो बहिन का कलेजा ये देखकर धक्क से रह गया कि एक काला ज़हरीला सांप साँप चक्की में पिस गया है । अब तो वह चूले में पकता खाना व बच्चे छोड़कर भाई को ढूँढ़ने भागी । रास्ते में अपने भाई का हुलिया बताकर पूछती कि किसी ने उसका भाई देखा है ।
किसी ने बताया कि वह एक पेड़ के नीचे सो रहा है । बहिन वहाँ पहुँची देखा कि पोटली एक टहनी से बँधी है, भाई सो रहा है, उसने भाई को जगाकर पोटली का सारा खाना फेंक दिया । उस के मन में इतनी दहशत बैठ गई थी उसने भाई से कहा कि वह उसे घर तक छोड़कर आयेगी।
भाई भी ख़ुश हो गया क्योंकि बहिन बरसों से घर नहीं आई थी । बहिन ने उसकी खूब ख़ातिर की । भाई को सुबह वापिस जाना था । इसलिए बहिन ने सुबह चार बजे उठकर गेहूँ पीसे, चने की दाल पीसी । खाना व लड्डू बनाकर भाई के साथ रख दिये । भाई मुँह अंधेरे ही चल दिया । जब थोड़ा उजाला हुआ तो बहिन का कलेजा ये देखकर धक्क से रह गया कि एक काला ज़हरीला सांप साँप चक्की में पिस गया है । अब तो वह चूले में पकता खाना व बच्चे छोड़कर भाई को ढूँढ़ने भागी । रास्ते में अपने भाई का हुलिया बताकर पूछती कि किसी ने उसका भाई देखा है ।
किसी ने बताया कि वह एक पेड़ के नीचे सो रहा है । बहिन वहाँ पहुँची देखा कि पोटली एक टहनी से बँधी है, भाई सो रहा है, उसने भाई को जगाकर पोटली का सारा खाना फेंक दिया । उस के मन में इतनी दहशत बैठ गई थी उसने भाई से कहा कि वह उसे घर तक छोड़कर आयेगी।
भाई भी ख़ुश हो गया क्योंकि बहिन बरसों से घर नहीं आई थी ।
बहिन ने रास्ते में देखा कि कुछ औरतें पत्थर की बैमाता(एक देवी) की पूजा कर रही हैं । बहिन भी वहाँ पूजा करने के लिए रूक गई । जैसे ही उसने हाथ जोड़ सिर झुकाया कि वह शिला खिसक गई, व आकाशवाणी हुई, “तेरे भाई की शादी निकट है लेकिन वह शादी से पहले ही मर जायेगा ।”
बहिन उस शिला को पकड़कर लेट गई, “मेरा इकलौता भाई है उस की मौत को रोकने का कोई उपाय होगा ?”
“मौत तो अटल होती है ।”
“ऐसा मत बोल बैमाता ।” वह अपना सिर उस शिला पर ठोकने लगी, “इस मौत को टालने का उपाय बता ।”
“यदि कोई औरत लड़का बनकर उसकी शादी की रस्में पहले स्वयं करे तब ही वह बच सकता है।”
“मैं ऐसा ही करुँगी । भाई को बचाकर इसी रास्ते लौटूँगी तेरी पूजा करुँगी ।”
माँ बेटी को देखकर बहुत ख़ुश हुई वह बोली, “अब तू आ गई है तो तेरे भैया की शादी कर देते हैं। जमाई राजा व बच्चों को बुलवा लेंगे ।”
शादी में जब भाई के हल्दी लगाने की बात हुई तो वह अड़ गई, “पहले मेरे हल्दी लगाओ, मुझे कंगन बाँधो ।”
माँ बोली, “बहिन के हल्दी थोड़े ही लगाते हैं ?”
उसकी ज़िद देखकर उसकी बुआ ने कहा, “ये परदेस में रहती है रिवाज़ें नहीं जानती इसे हल्दी लगा दो ।”
वह जैसे ही पटरे पर बैठी उसे वहाँ एक काला बिच्छू दिखाई दिया । उस ने चुपके से उसे मारकर कुर्ते की जेब में रख लिया । बारात में पहले वह घोड़े पर बैठी । जैसे ही घोड़ा चला दरवाजे की एक शिला उस पर गिरने को हुई उसने उसे भी पकड़कर कुर्ते की जेब में रख लिया । बाद में असली दूल्हा घोड़े पर बैठा ।
सब को विश्वास हो गया था कि वह पागल हो गई है । उसका दिल रखने को सभी रस्में पहले बहिन के साथ करने लगे ।
सुहागरात के दिन वह अड़ गई, “दुल्हिन के कमरे में मैं पहले जाऊँगी । ”
सबने उसे ही भेज दिया । दुल्हिन घूंघट में पलंग पर बैठी हुई थी । बहिन ने पलंग के नीचे देखा एक काला साँप कुँडली मारे फ़न उठाये बैठा था । उसने तलवार से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये । अब तक शादी हो चुकी थी । उसने सभी रिश्तेदारों को इकट्ठा किया व असली बात बताई व प्रमाण स्वरूप बिच्छू, पत्थर व साँप दिखाया । माँ ने रोते हुए अपनी बदनाम हुई पगली बेटी को गले लगा लिया, “हम तुम्हें पागल समझ रहे थे मेरी बेटी ।”
----------कहानी कहते-कहते समिधा का गला भर आया था । रोली हिचकी भर-भर कर रोने लगी, “मॉम ! मुझे आपकी चिन्ता है ।”
“ बेटी ! मुझे इस घर की चिन्ता है । मैंने व अभय ने इतनी मेहनत कर के तुम दोनों को इस मुकाम पर पहुँचाया है, कहीं विरासत में तुम्हें कोई कलंक न दे जाये ।”
“मॉम, आइ एम प्राउड ऑफ यू ।” वह रोते-रोते उसके गले से लिपट गई है । समिधा उसके बालों पर हाथ फेरते-फेरते कहती जा रही है, “ये पौराणिक कथायें, धार्मिक त्यौहारों के बहाने औरतें पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी बेटियों को सुनाती हैं । वे बेटियाँ अपनी बेटियों जिससे वह अपने से जुड़े पुरुषों की देखभाल में उनकी रक्षा में जी जान लगा दें ।”
“हमेशा क्यों औरतों को ही बलिदान देना सिखाया जाता है ?”
“बेटी ! वे अपने से जुड़े पुरुषों की रक्षा करेंगी तभी तक वे भी सुरक्षित हैं । इनके बहाने वह अपनी भी रक्षा करती हैं वर्ना बाहर की दुनिया तो एक जंगल है ।”
रोली का रोना फिर भी रुकता नहीं है, “मॉम ! आइ केअर फ़ॉर यू ।”
समिधा अपनी हथेली से उसके आँसू पोंछती है, “चल उठ, अक्षत को टीका नहीं लगायेगी ?”
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रोली के जाते ही अभय की भाग दौड़ बदहवासी बढ़ने लगी है ।
एम.डी. से मिलना वह टालती आ रही है लेकिन अब उनसे मिले बिना कोई रास्ता नहीं है ।
वह एम.डी. के चेम्बर में उनसे कहती है, “आप कहें तो दिल्ली चेयरमेन साहब को शिकायत कर दूँ । वे इस शहर में एम.डी. रहकर गये हैं, मैडम मुझे थोड़ा बहुत जानती हैं ।”
“क्या ये बात इतनी ऊँचाई तक पहुँचाना ठीक है ?”
“ठीक तो मुझे भी नहीं लगता लेकिन.....”
“ये घर का मामला है आप घर में ही समस्या का हल क्यों नहीं खोजती ?”
“सर ! ये घर का मामला नहीं है । ये बहुत बड़ी ‘क्रिमनल कॉन्सपिरेसी’ है । ये बीच-बीच में भयंकर गुंडे बना दिये जाते हैं । ”
“मैं मान ही नहीं सकता कोई औरत ऐसा कर सकती है । आप जो भी ‘हेल्प’ चाहें हम करने को तैयार हैं । मैं आपकी बेटी की शादी में आया, आप बिल्कुल नॉर्मल लग रही थीं ।” क्या कहे समिधा ?
उसे वर्मा के ट्रान्सफ़र की ‘हेल्प’ चाहिए जो उनके हाथ में नहीं है । अभय के पागलपन को रोकने के लिए अक्षत को फोन कर देती है, “यदि तेरे पापा नहीं रुके तो मुम्बई प्रेसिडेंट को रिपोर्ट कर दूँगी ।”
अभय घर आकर गरजते हैं, “यदि तुमने कोई रिपोर्ट की तो तुम देखना ?”
“तुम क्या देखोगे ? इन तीन गुंडों को जी.एम. साहब देखेंगे ।”
“तुम सोच लो इस घर में रह पाओगी ?”
“तुम ये धमकी किसे दे रहे हो ? क्या मुझे पत्नी के लीगल राइट्स नहीं पता है ?”
“कौन से राइट्स की बात कर रही हो, तुम तो साइकिक हो रही हो ।”
“अभय मैं तुम्हारे साथ हूँ तुम्हें ड्रग देकर गुँडा बनाया गया है ।”
“मैं क्या इतना बेवकूफ हूँ ?”
अभय को कौन ये बात समझाये कि उन्हें धोखे से ड्रग दे देकर उसकी लत डाली गई है । कविता को रुपये कमाने है, विकेश का बिज़नेस बढ़ रहा है । इसे और बढ़ाने के लिए कविता जैसी वहशी औरत से अच्छा कौन हो सकता है । वह तो समिधा बीच में आ गई है इसलिए गुंडे उसे व उस का घर बर्बाद करने में जी जान से जुटे हैं ।
जी.एम. के नाम की धमकी काम कर गई है । गुंडों के खेमे में खलबली है जिसे वह अभय के चेहरे पर देख पा रही है । इतवार को अक्षत के घर आने पर अभय उस घेरते हैं, “तुम कल की छुट्टी ले लो और सच्चाई पता करो । तुम्हारी मम्मी कभी कहती है एम.डी. को प्रूफ़ मिल गया है । कभी कहती है कि कॉल्स रिकॉर्ड हो गई है । तुम कल एम.डी. से मिलकर सच्चाई पता करो ।”
वह बीच में बोल उठती है, “तुम्हारे तीनों गुंडे दोस्त मुझे चुनौती दे रहे थे कि अकेली औरत क्या कर सकती है, तीनों मिलकर भी एम.डी. के पास नहीं जा सकते ? तुम स्वयं क्यो नहीं जा रहे ? बेटे को बीच में क्यों ले रहे हो? ”
अक्षत अब बोल पाता है, “पापा ! मैं क्यों एम.डी. के पास जाऊँ ? मॉम ने आप के खिलाफ़ ‘कम्प्लेन’ थोडे ही की है । उन तीन गुंडों के खिलाफ़ है । वे क्यों नहीं जाते ?”
वह अभय का बौखलाया चेहरा देखकर अक्षत से कहती है, “मैंने जी.एम. को कम्प्लेन कर दी है । अगले हफ़्ते वे व उनकी पत्नी आ रहे हैं । तब मैं उनसे मिलूँगी । ”
उस रात वह शांति से सोती है । अब इस ट्रिक से एक डेढ़ महीना शांति से निकल जायेगा ।
वह अध्यक्ष को फोन करती है, “मैडम ! मिसिज जी.एम. आनेवाली हैं । प्लीज ! आप मुझे उन से मिलवा दीजिए । ”
“आप उन से मिलकर क्या करेंगी ? अगले हफ़्ते जी.एम. साहब रिटायर हो रहे हैं ।”
समिधा अब भी कभी असुरक्षित महसूस करती रहती हैं । एक दिन एसटीडी बूथ से कविता का मोबाइल नंबर लगाती हैं ।
फ़ोन से वही ज़हरीली ,गहरी,नशीली ,बड़ी बोल्ड कविता की बड़ी बोल्ड आवाज़ सुनाई देती है , “हलो” ।
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नीलम कुलश्रेष्ठ
ई –मेल---kneeli@rediffamil.com