30 शेड्स ऑफ बेला
(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)
Day 14 by Rajlaxmi Tripathi राजलक्ष्मी त्रिपाठी
जुड़ रहे हैं दो किनारे
बेला एकटक खिड़की से बाहर देख रही थी। रात होने को थी। जबसे रिया को घर ले कर आई है, दिमाग में ढेरों बातें चल रही है। सबसे पहले डॉ पंखुरी को फोन किया, उसने रिया को गोद दिलवाने में उसकी काफी मदद की थी।
दिल में छेद… सूई भर का। पंखुरी खुद अवाक रह गई। देर तक फोन पर कोई आवाज नहीं आई। फिर अपने आपको समेट कर और बेला को ढांढस बंधाते हुए बोली, ‘सब ठीक हो जाएगा बेला। मैं कल आऊंगी, रिया की रिपोर्ट देखने। रिया को हम मिल कर ठीक करेंगे।’
अब अपने को रोक नहीं पाई। आंखों के आंसू उसके गालों से ढलक रहे थे और उसके मन में बस एक ही बात गूंज रही थी, हर बार मेरे हिस्से में ही क्यों तकलीफें आती हैं? क्या मेरी जिंदगी में यही लिखा है कि मैं जिन्हें बेहद प्यार करती हूं उनसे अलग हो जाऊं? पहले दादी, फिर मां और अब मेरी नन्हीं सी जान रिया।
अपनी आंखें पोंछ जब बेला ने अपनी नजरें ऊपर उठाई, तो देखा रिया एकटक उसे ही देख रही थी।
‘क्या हुआ बेबी, तुम तो अपनी डॉल से खेल रही थी ना? कुछ चाहिए?’ बेला रिया को अपनी गोद में बिठाते हुए बोली।
रिया बेला के गालों को सहलाते हुए बोली, ‘कुछ नहीं मम्मा, मैं, तो ये सोच रही थी कि क्या बड़े भी छोटे बेबी की तरह रोते हैं? आप क्यों रो रही थीं मम्मा? आपकी कोई प्यारी चीज खो गई क्या? मैं हैल्प कर दूं?
बेला ने रिया के गाल पर प्यारी सी पप्पी देते हुए कहा, ‘मेरी सबसे प्यारी चीज तो तुम हो। और तुम्हें मैं कभी खोने नहीं दूंगी।’
अपनी मम्मी को टाइट हग देते हुए रिया बोली, ‘ओके मम्मी। मैं आपके पास क्यों आई पता है? मेरी डॉल को भी बुखार है। उसे भी दवाई दे दो। थोड़ी मीठी वाली देना।’
बहुत देर तक मां और बेटी एक-दूसरे से लिपटे बैठे रहे। बेला का फोन बजने लगा। वह चौंक कर उठी।
फोन ड्राइंग रूम में पड़ा था। मौसी़… का। इस वक्त। सुबह ही तो लौटी है वहां से।
बेला ने फोन उठाया। मौसी के कुछ बोलने से पहले हड़बडाहट में पूछ बैठी- क्या हुआ मासी, पापा की तबीयत तो ठीक है ना।
मौसी की आवाज ठहरी हुई थी, ‘बेला, तेरे पापा ठीक हैं। तू इस तरह बिना कुछ कहे चली गई। तेरे पापा और …मैं, थोड़े परेशान हैं। बेला, क्या हुआ? कल रात तू कहां थी? ऐसे, मुझसे बिना बताए… मुझसे नाराज है ना तू?’
बेला चुप रही। अपने आपको संभाल ना सकी। सैलाब टूट गया। हिचकियां बंध गई, ‘रिया, उसे…’
मौसी घबरा गईं, ‘बता तो। क्या हुआ उसे?’
अपने आपको किसी तरह संभालते हुए बेला ने बताया। दोनों तरफ से देर तक टेलिफोन लाइन पर बस आंसुओं के बीच बात होती रही।
‘बेला, तू अपने आपको संभाल बेटा। सब ठीक हो जाएगा। मैं हूं ना तेरे साथ!’
मौसी से बातें करके बेला का मन हल्का हो गया। उसने फोन रखकर देखा, तो रिया उसके पास खड़ी थी।
‘क्या हुआ बेबी, आपको नींद नहीं आ रही, चलो मम्मा आपको स्टोरी सुनाएगी, फिर आप सो जाना।’
रिया बेला के ओर देखते हुए मासूमियत से पूछा, ‘मम्मा, मुझे क्या हुआ है? क्या मैं मरने वाली हूं?’
बेला एक क्षण को अचकचा गई। घुटनों के बल बैठ कर बाल सहलाती हुई बोली, ‘नहीं बेबी, आपको कुछ नहीं हुआ है। आपकी तबीयत थोड़ी सी खराब है, डॉक्टर अंकल दवाई देंगे और आप बिल्कुल ठीक हो जाओगी। तुम गुड गर्ल हो ना। मम्मी तुम्हें अच्छी वाली कहानी सुनाएगी। ओके?’
बेला रिया की पसंदीदा टंबलीना की कहानी सुनाने लगी। रिया को सुलाते-सुलाते बेला भी गहरी नींद सो गई।
रात में समीर घर आया कि नहीं बेला को कुछ नहीं पता चला।
बेला देर तक सोती रही।
बेला की नींद कॉलबेल से खुली। ओह, आज रिया की आया को उसने छुट्टी दी थी। समीर मुंबई से बाहर रिपोर्टिंग के लिए गया था। बेला ने उनींदी आंखों से दरवाजा खोला तो सामने आशा मौसी और पापा खड़े थे।
बेला के गले से पता नहीं कैसे अंदर से आवाज आई ‘मां,’ आशा मौसी आगे बढ़ कर उसके गले लग गई।
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दोपहर बाद डॉ पंखुरी के साथ उनका लीलावती हॉस्पिटल में एपाइंटमेंट था। उसके मना करने के बाद भी पापा और आशा मौसी उसके साथ चल पड़े।
पंखुरी बेला को समझा रही थी, दिल में छेद होने का मेडिकल टर्म। रिया का हिमोग्लोबीन बहुत कम था। उसे तुरंत खून चढ़ाना था। बेला को पता था उसके खून का ग्रुप रिया से अलग है। मौसी ने एकदम से अपना हाथ आगे कर दिया। मेरा चैक करो। रिया का बी नेगेटिव है ना, मेरा भी।
मौसी ने चेहरा घुमा कर कहा, ‘मेरी दोनों बेटियों ने अपने पापा का ग्रुप पाया है।’
दो बेटी? बेला की नजरें पढ़ ली थी आशा मौसी ने। धीरे से कहा, ‘ऐसे मत देखो बेला। मुझे पता है हम दोनों को कई सवालों के जवाब चाहिए।’
मौसी अपने खून का सैंपल दे कर बाहर आ गई। लाउंज में एक सोफे पर पापा बैठे थे। उनकी गोद में, पहली बार रिया थी। एक हाथ में डॉल। दूसरे में पापा का हाथ। बेला की आंखें भर आईं। तो पापा ने रिया को स्वीकार लिया है।
मौसी उसके पास आ बैठीं। बेला का हाथ अपने हथेलियों रखा। अनजाना सा स्पर्श। पर बेहद अपना सा। ये औरत मेरी मां है। बेला ने लंबी सांस ली। मौसी की आवाज जैसे कहीं दूर से आ रही थी—
मैं और नियति चचेरी बहनें थीं। नियति दीदी मुझसे छह साल बड़ी, सलीके वाली, अच्छी वाली, बड़ी बहन। मैं छोटी, हमेशा आसमां में उड़ने वाली बिंदास सी लड़की। हमारे बगल में तुम्हारी दादी का परिवार रहता था। दादी के घर बहुत आनाजाना था मेरा और दीदी का। दीदी जाती थीं दादी से गप लड़ाने, उनसे कोई नई रेसिपी सीखने। और मैं… चोरी-चुपके पुष्पेंद्र से मिलने, उसे खिझाने, उससे बातें करने। पुष्पेंद्र मुझसे दस साल बड़े थे। पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मोटरसाइकिल पर उनके पीछे बैठ कर हवा से बातें करती, उड़ती घूमती रहूं, बस यही दिल चाहता था। मुझे नहीं पता था पुष्पेंद्र के दिल में क्या है। वह तो मुझे शायद बच्चा मानते थे, सिर पर धौल जमा कर धकिया कर कहते—ठीक से कपड़े पहन, ये मत कर, वहां मत जा।
फिर दादी ने तय किया पुष्पेंद्र की शादी हो जानी चाहिए। पता नहीं, उनको इस बात का गुमान था कि नहीं कि मैं एक पगली, उनके बेटे को पागलों की तरह चाहती हूं। उन्हें लगा, नियति ठीक है उनके बेटे के लिए। दादी ने अपने से बड़ी उम्र के आदमी से शादी की, उन्हें लगता था कि दादा ने उन्हें कभी हमसफर नहीं समझा। नियति हर तरह से ठीक थी पुष्पेंद्र के लिए। शांत, पेंटिंग के रंगों से अपनी छोटी सी दुनिया रंगने वाली नियति।
‘दादी ने पुष्पेंद्र के लिए नियति को चुना और पता है नियति ने किसे चुना?’
बेला की आंखें चौड़ी हो गईं!
‘मुझे!’